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भारत
राजनीति
माल्या अपेक्षाकृत छोटी मछली हैं, बड़ी शार्क मछलियाँ अभी भी व्यवस्था के चक्कर लगा रही है.
अगर बैंक कड़े कदम उठाये तो भारत के 6 ऊँचे व्यापारिक घराने कानून के दायरे में आ जायेंगे.
मोहन गुरुस्वामी
08 Dec 2017
Translated by महेश कुमार
Vijay Mallya

लंदन कोर्ट में विजय माल्या की प्रत्यर्पण सुनवाई से एक बार फिर टीवी चैनल सरगर्मी में हैं. सारी की सारी ताकत एक छोटे जालसाज़ पर लगाने से मुझे संदेह होता है कि बड़े धोखेबाजों/जालसाजों जैसे एस्सार, रिलायंस एडीएजी, अदानी, जीएमआर, जीवीके में से किसी एक पर भी उनके विशाल एनपीए को ध्यान में रखकर शासन द्वारा कार्यवाही की जायेगी.

सरकार के बैंक कई धोखेबाजों (डिफॉल्ट) खाते बंद करने की पेशकश कर रहे हैं, वैसे ही जैसे विजय माल्या भी चाहते हैं, लेकिन मल्ल्या को यह पेशकश नहीं दी जा रही है.

हमें विजय माल्या के बारे में कुछ और जानकारी लेनी चाहिए. उनके बारे में लोकप्रिय कथा यह है कि उन्होंने भारत और विदेशों में अपनी सुखवादी जीवन शैली को जीने के लिए बैंकों से 9000 करोड़ रुपये का क़र्ज़ लिया था, और जब कर्ज का बोझ अत्यधिक हो गया या तो उसे चुकाने के लिए कोई नया पैसा नहीं आते देख वे यहाँ से फुर हो गए.

लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि किंगफिशर एयरलाइंस से पहले भी वे एक सुखवादी/अय्याश जीवन शैली का आनंद लेते थे और उनके पास किंगफिशर एयरलाइंस से पहले भी लूटाने के लिए बहुत पैसा था. किंगफिशर बियर के एयरलाइन बनने से पहले उसने विदेशों में अपना बहुत पैसा जामा भी किया था.

किंगफिशर एयरलाइंस के आस्तित्व में आने से पहले उन्होंने जनता दल के रामकृष्ण हेगड़े और देवेगौड़ा, भाजपा के अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी पर बहुत पैसा खर्च किया था.

कांग्रेस ने उसे कभी भी अतिरिक्त या अन्य वोट नहीं दिया, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि कांग्रेस और अन्य पार्टियों को माल्या से फायदा नहीं हुआ. और फिर हमें एम.जे. अकबर को नहीं भूलना चाहिए, जिन्होंने उनके जरिए केवल खुद की सहायता की अपने आपको आगे बढाया.

अब उन पर पीएसयू बैंकों के 9000 करोड़ रुपये गबन करने का आरोप है और किंगफिशर एयरलाइंस को डुबोने का. मैं समझता हूं कि वास्तविक ऋण लगभग 4000 करोड़ रुपये है बाकी ब्याज है और फिर ब्याज पर ब्याज है.

बैंकों ने सिर्फ अपने कर्ज के व्यापार को सदाबहार करने के लिए उसे धन उधार दिया था. यह राजनीतिक और नौकरशाही के समर्थन के बिना संभव नहीं था. यहां तक कि अगर एक छोटे से संयुक्त सचिव या एक पिद्दी से सांसद या एक छोटे से बैंक प्रबंधक ने किंगफिशर एयरलाइंस के बढ़ते कर्ज पर रोक लगाई होती तो इस बड़े नुकशान को होने से रोका जा सकता था.

किंगफिशर एयरलाइंस को बचाए रखने के लिए या उसे ऊँचाइयों पर पहुचाने के लिए माल्या ने सिर्फ बैंकों को नहीं दुहा; बल्कि उसने अपनी यूनाइटेड स्पिरिट्स और यूनाइटेड ब्रेवेरिज जैसी कंपनियों को भी दुहा था.

जब कोई व्यवसाय नुकसान करता है, तो इसका मतलब यह नहीं होता कि धन की चोरी की गयी है. इसका अक्सर मतलब होता है कि उसने कमाई की तुलना में पैसा अधिक खर्च किया है. इसका मतलब यह है कि कर्मचारियों को पिछले साल को छोड़कर जब ज्यादातर समय एयरलाइन ने उड़ान ही नहीं भरी थी, के लिए तनख्वा/भुगतान मिला, और तेल कंपनियों को विमानन टरबाइन ईंधन के लिए भी भुगतान किया गया, पट्टे पर विमान देने वाली कंपनियों को भी किराए पर लिए गए विमानों के लिए भुगतान किया गया, कैटरर्स बोर्ड पर आपूर्ति किए गए भोजन के लिए भी भुगतान किया गया, हवाई अड्डों को अपने लैंडिंग और पार्किंग फीस का भी भुगतान किया गया था, और अधिकतर समय के लिए कर और उपका (सेस) का भुगतान किया गया.

इस अवधि के दौरान, किंगफिशर एयरलाइंस ने लागतों को कवर करने के लिए पर्याप्त सीटों की बिक्री नहीं की, या यह कहे कि उसने कमाई की तुलना में पैसा अधिक खर्च किया.

सवाल यह उठता है कि मल्ल्या को पैसे क्यों दिए थे, जब पता था कि किंगफिशर एयरलाइंस का उसका व्यापार मॉडल स्पष्ट रूप से दिखाया रहा था कि था, इसमें कमाई नहीं है.

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस अवधि के दौरान एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस ने एक साथ 43,000 करोड़ रूपए खो दिए थे. माल्या की रहनुमाई में मात्र 4,000 करोड़ रुपये घाटा हुआ था. लेकिन हम इन विशाल घाटे के लिए, शरद यादव, अनंत कुमार, प्रफुल्ल पटेल और अजीत सिंह को जिम्मेदार क्यों नहीं मान रहे हैं. क्यों?

हद तो यह है कि हम जानना भी नहीं चाहते हैं कि दो बड़ी सरकारी एयरलाइनों के कारण पिछले दशकों में राजनेताओं और नौकरशाहों ने कितना पैसा बनाया है?

हर्टफोर्डशायर के लिए माल्या की आखिरी उड़ान के बारे में हम काफी हो-हल्ला कर रहे हैं लेकिन क्या हम बैंकरों को भूल गए हैं, जिन्होंने किंगफिशर एयरलाइंस को धन दे दिया और भूल गए की वह भी इस ब्रांड नाम की तरह ही नकली हैं.

हम वित्त मंत्रालय के बैंकिंग सेवा विभाग के अधिकारियों को भूल रहे हैं, जिनमें से कई ने किंगफिशर एयरलाइंस को पैसे देने वाले बैंकों के बोर्डों में रहकर काम किया और कई बोर्ड निदेशकों ने ऋण स्वीकृत को किया.

ऐसे ऋण जब स्वीकृत किए जाते हैं तब सभी के पल्ले कुछ न कुछ आता है. अब माल्या तो उड़ गए क्योंकि उन्हें इसी व्यवस्था ने पोशा लेकिन ऐसा लगता जैसे कि उनके जाने से अन्य सभी दोषमुक्त हो गए हैं. और वह वरिष्ठ मंत्री कौन था, जो मल्ल्या को पलायन करने के लिए सहायता करने पर संदेह के घेरे में आ गया है.

माल्या को भूल जाओ वह जल्दी वापस नहीं आएगा. बैंक भारत में उसकी कारों और घरों की कुर्की कर सकते हैं, लेकिन वह “अधिकारियों”/"प्राधिकारियों" की पहुंच से स्पष्ट रूप से बाहर हैं क्योंकि वास्तव वे खुद ही नहीं चाहते कि वह वापस आये. वे यह भी नहीं चाहते कि ज्यादा जिन्दा रहे ताकि वह पाने सभे अपने रहस्यों को अपने साथ कब्र में ले जाए. वह सिर्फ साठ वर्ष का है लेकिन उनकी अस्थिरता अस्वास्थ्यकर दिखती है माल्या एक सट्टेबाजी वाला आदमी हैं, और वह शायद अपनी दीर्घायु पर शर्त नहीं लगायेंगे.

लेकिन माल्या जिस रास्ते पर गए हैं वह एक उपयोगी उद्देश्य की सेवा और एक कडवे सच को उजागर करता है. वह यह कि कैसे "उद्योगपतियों" ने अपने लिए शानदार जीवन शैली जीने के लिए विदेशों में अपना साम्राज्य बनाया हुआ है.

अनिल अग्रवाल और दो रूईया भाई, शशि और रवि अब भारत की तुलना में विदेशों में बड़े पूंजीपति हैं. बहुत पहले की बात नहीं है जब नितिन गडकरी केन्स में एस्सार की नांव पर मज़े ले रहे थे.

हमारे सभी "उद्योगपति" निजी अय्याशी के लिए अपनी कंपनी की परिसंपत्तियों का उपयोग करते है. कंपनी जेट और कंपनी के भव्य घरों का मतलब है अपने लिए व अपने चाहने वालों के लिए निजी अय्याशी के लिए व्यवस्था. कॉर्पोरेट खजाने से निकाली गई राशि का इस्तेमाल केवल अपनी लड़की दोस्तों के लिए और प्रेमिकाओं के लिए ही नै बल्कि सरकारी अफसरों व राजनीतिक नेताओं की वेश्यावृति के लिए भी है.

व्यापारिक घरानों से पैसा न केवल राजनैतिक गलियारों में बल्कि बस्तर के नक्सल से लेकर असाम के उल्फा तक बहता है. "उद्योगपतियों" को कमाई के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती बल्कि वे पीएसयू बैंकों से पैसे कमा लेते हैं, वे अपने अभिजात वर्ग के सुखवादी राजनीतिक जीवन शैली को भी पोषते है.

आरबीआई इस रोकने के लिए क्यों कोशिश नहीं करती है? कंपनी मामलों के विभाग का मंत्रालय इतना चुप क्यों हैं? कोई यह समझ सकता है कि अरुण जेटली इस बात को स्वीकार करते हैं, लेकिन क्या आरबीआई बैंकों को इस लूट के लिए क्यों नहीं कटघरे में खडा करता है?

समस्या यह है कि हम इस प्रणाली में बहुत दूर तक निवेश कर चुके हैं. अगर बैंकों को मजबूती दी जाती है, तो हमारे शीर्ष दस व्यवसायिक घराने घेरे में आ जायेंगे और उन्हें ध्वस्त किया जा सकता है. दूसरे शब्दों में कहे तो वास्तव में पुनर्गठन किया जा सकता है. रिलायंस इंडस्ट्रीज, टाटा और आदित्य बिड़ला को छोड़कर, अन्य सभी बड़े व्यापारिक घराने या तो कर्जे से या उनपर लूटने से बड़े हुए हैं.

अगर हम इस वक्त इस पर हमला करते हैं तो न जाने कितने डूब जायेंगे, अर्थव्यवस्था और मंदी हो जाएगी. माल्या अपेक्षाकृत छोटी मछली हैं बड़े शार्क अभी भी बैंकों के चक्कर लगा रहे हैं. अनिल अंबानी, गौतम अदानी, जीएमआर और जीवीके, लैंको सभी बड़ी मछली हैं.

क्या प्रधान मंत्री संसद में खड़े होंगे और देश को आश्वस्त करेंगे कि उनके द्वारा दी गई सभी धनराशि मानदंडों और विवेकपूर्ण बैंकिंग प्रथाओं के अनुसार है, और क्या कभी भी ऋण माफ़ नहीं किया जाएगा?

क्या राहुल गांधी मांग करेंगे कि प्रधान मंत्री देश को इस पर आश्वासन दें?

मुझे ऐसा नहीं लगता है, दोनों ही छोटी सार्वजनिक यादों पर दांव लगा रहे हैं. हमारे यहाँ ग्लैडीएटोरियल स्पोर्ट्स और रोमन सम्राटों की बड़े पैमाने पर मनोविज्ञान को समझने की समझ है क्योंकि हमारे पास शेरों को खिलाने के लिए बड़ी मात्रा में चारा और जनता का उन्माद मौजूद हैं.

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