NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
महाराष्ट्र दलित विरोध : बेरोज़गारी और उत्पीड़न का नतीजा
दलितों में बेरोजगारी की दर दूसरों की तुलना में दोगुनी है और रोज़ाना अन्य जातियों द्वारा दलितों के खिलाफ पाँच अपराध होते हैंI
सुबोध वर्मा
04 Jan 2018
Translated by महेश कुमार
dalit assertion

महाराष्ट्र में एक बार फिर 3 दिसंबर को दलित विरोध का उभार देखने को मिला। इससे लोगों के मन में सबसे बड़ा सवाल यह है कि राज्य में दलितों और अन्य जातियों के बीच बार-बार तनाव पैदा क्यों होता है और हर घटना में क्रोध-भरा राज्यव्यापी आन्दोलन क्यों बन है। उच्च शिक्षा प्रसार, उच्च शहरीकरण और अपेक्षाकृत बेहतर स्वास्थ्य सूचकांकों के साथ महाराष्ट्र को औद्योगीकरण, कृषि उत्पादन, व्यापार और वित्तीय क्षेत्रों के संदर्भ में एक 'उन्नत' राज्य माना जाता है। बावजूद इसके ऐसा लगता है कि एक के बाद एक जातिवादी उत्पीड़न के चलते यह (महाराष्ट्र) कहीं थम-सा गया है क्योंकि यहाँ एक के बाद एक जाति आधारित ध्रुवीकरण हो रहा है। आखिर ऐसा हो क्यों रहा है?

इसे समझने के लिए निम्नलिखित तथ्यों पर विचार करने कि ज़रूरत है:

• 2016 में राज्य सरकार के विभिन्न हिस्सों में मराठों ने बड़े पैमाने पर 57 रैलियों का आयोजन किया। उन्होंने इन रैलियों के ज़रिए नौकरियों में मराठाओं के लिए आरक्षण और अत्याचार के विरुद्ध दलितों की सुरक्षा के लिए बने कानूनों को रद्द करने माँग कि गयी।

• उसी वर्ष राज्य में दलितों पर उच्च जाति द्वारा उत्पीड़न के मामलों में: 45 हत्याएँ, 60 मामले हत्या के प्रयास के, 35 को गंभीर चोटों के मामले, महिलाओं पर 352 हमले, 40 अपहरण, 220 बलात्कार, 235 दंगों के मामलों आदि के साथ, दलित अत्याचार (अत्याचार निवारण अधिनियम, पी.ओ.ए.) से निपटने के लिए विशेष कानून के साथ आई.पी.सी. के तहत कुल 1,518 मामले सामने आये। इन मामलों के अलावा, दलितों के खिलाफ भेदभाव को रोकने के लिए 218 मामले केवल पी.ओ.ए. के तहत पंजीकृत किए गए, सिविल राइट्स संरक्षण अधिनियम के तहत 14 अन्य मामले दर्ज किये गए। इस तरह सिर्फ एक वर्ष में ऐसे 1,750 मामले सामने आए जिनमें 1,839 दलित पीड़ित पर हुए। इस संख्या के हिसाब से हर दिन दलितों के खिलाफ उत्पीड़न के लगभग पाँच मामले होते है।

ज़ाहिर है महाराष्ट्र में दलित सुरक्षित नहीं। दलितों के खिलाफ हिंसा के मामलों को आमतौर पर दर्ज़ ही नहीं किया जाता और न ही उन्हें सार्वजनिक संज्ञान में लाया जाता । दलितों के खिलाफ हिंसा के असली मामलों के मुकाबले केवल उसका एक छोटा अंश ही दर्शाया जाता है उसके बावजूद इससे कोई इनकार नहीं किया जा सकता कि जितने भी मामले दर्ज़ किये जाते हैं उनके आँकड़े एक तथाकथित उन्नत राज्य के संबंध में अचंभित करने वाले हैं I राजनीतिक और आर्थिक रूप से प्रमुख लेकिन जातिय क्रमबद्धता के तौर पर ‘पिछड़ी’ जाति के मराठाओं का विरोध अजीब है क्योंकि एन.सी.आर.बी. आंकड़ों से पता चलता है कि दलितों के लिए विशेष कानूनों के तहत दर्ज़ मामलों में सज़ा दर 10% से अधिक नहीं है। मराठाओं के विरोध वास्तव में अपराध बोध झलकता है। यह कोई संयोग नहीं कि सभी रैलियों को भगवा झंडे के दिखे और ये रैलियाँ न केवल शिवाजी के साथ बल्कि समकालीन हिंदुत्व के साथ भी साफ़-साफ़ खड़ी नज़र आती हैं।

यह आश्चर्य की बात नहीं है कि महाराष्ट्र के दलितों के बीच घुटन है और उनमें गुस्सा बढ़ रहा है। इसलिए सिर्फ एक चिंगारी की आवश्यकता है - जैसे कि 1 जनवरी को भीम कोरेगाँव की घटना से देखने को मिला जो राज्यव्यापी स्तर पर भावनाओं को जगाने और लोगों को सड़कों पर लाने के लिए काफी थी। लेकिन कहानी यहाँ खत्म नहीं होती।

कुछ और तथ्यों पर विचार करें (अंतिम श्रम ब्यूरो रिपोर्ट से):

• 2016 में शहरी महाराष्ट्र में दलित पुरुषों के बीच बेरोज़गारी की दर तथाकथित ऊँची जातियों से दोगुनी थी। ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों को मिलाया जाये तो दलितों में बेरोज़गारी की दर तथाकथित ऊँची जातियों की तुलना में 13% अधिक थी।

• दलित मजदूरों में 40% से ज़्यादा लोग पूरे वर्ष काम नहीं मिलता। अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) में ऐसे श्रमिकों का हिस्सा 32% है और उच्च जातियों में 26%।

यह दिखाता है कि मौजूदा रोज़गार संकट के तहत दलित समुदाय दूसरों की तुलना में अधिक पीड़ित है। इनकी नौकरी पाने की संभावना न केवल कम है, बल्कि नौकरी न पाने की लंबी अवधि के बीच उनके लिए पर्याप्त रोज़गार भी नहीं है। यह बेरोज़गारी प्रच्छन्न है और भारतीय अर्थव्यवस्था का अभिशाप भी।

महाराष्ट्र में सारे विकास के बावजूद दलितों को नौकरियों की कमी जैसी गंभीर और निरंतर समस्या का सामना करना पड़ रहा है। अन्य जातियों के मुकाबले यह उनमें निराशा और गुस्से का प्रसार करता है क्योंकि उनके पास बहुत कम संपत्ति है (जैसे भूमि)। ऐसा अनुमान है कि 55% दलित परिवारों के पास कोई भूमि नहीं है।

उच्च शहरीकरण और सोशल मीडिया के प्रसार के साथ असमानता बहुत साफ़ तौर से देखने को मिल रही है। मुंबई के उज्जवल मॉल और लक्ज़री से सराबोर मकान सभी वंचितों को दिन-रात नज़र आते रहते हैं । लेकिन सामाजिक और आर्थिक रूप से दलित समुदायों को इनमें निहित अन्याय ज़्यादा महसूस होता है।

तो क्या आरक्षण और अन्य नीतियों से कोई मदद नहीं हुई है? ऐसा निश्चय ही प्रतीत होता है 2015 में टी.आई.एस.एस. द्वारा किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि लगभग 8% दलित घरों में आरक्षण के माध्यम से शैक्षिक संस्थानों में प्रवेश मिला था। लगभग 67% ने कहा कि 'प्रशासनिक समस्या' के कारण उन्होंने अवसर खो दिया और केवल 18% ने पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति का लाभ उठाया है और 22% को किसी भी प्रकार की फ्रीशिप या छात्रवृत्ति नहीं मिली थी।

इस सबके बावजूद महाराष्ट्र में दलितों के लिए उच्च शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात 30% था जो राष्ट्रीय औसत 20% से अधिक है। शिक्षित होने के लिए दलितों ने अब तक की तुलना में थोड़ा बेहतर जीवन जीने की उम्मीद में सभी बाधाओं के विरुद्ध संघर्ष किया है। इसलिए महाराष्ट्र में शिक्षित दलित युवाओं की एक बड़ी संख्या है। ये अत्याचार, अन्याय और असमानता के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार है।

 

दलित प्रतिरोध
भीमा कोरेगाँव
Dalit movement
unemployment
Maharastra
BJP-RSS
Devendra Fednavis

Related Stories

डरावना आर्थिक संकट: न तो ख़रीदने की ताक़त, न कोई नौकरी, और उस पर बढ़ती कीमतें

उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा

मोदी@8: भाजपा की 'कल्याण' और 'सेवा' की बात

UPSI भर्ती: 15-15 लाख में दरोगा बनने की स्कीम का ऐसे हो गया पर्दाफ़ाश

मोदी के आठ साल: सांप्रदायिक नफ़रत और हिंसा पर क्यों नहीं टूटती चुप्पी?

जन-संगठनों और नागरिक समाज का उभरता प्रतिरोध लोकतन्त्र के लिये शुभ है

ज्ञानव्यापी- क़ुतुब में उलझा भारत कब राह पर आएगा ?

वाम दलों का महंगाई और बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ कल से 31 मई तक देशव्यापी आंदोलन का आह्वान

सारे सुख़न हमारे : भूख, ग़रीबी, बेरोज़गारी की शायरी

लोगों की बदहाली को दबाने का हथियार मंदिर-मस्जिद मुद्दा


बाकी खबरें

  • एम. के. भद्रकुमार
    पुतिन की अमेरिका को यूक्रेन से पीछे हटने की चेतावनी
    29 Apr 2022
    बाइडेन प्रशासन का भू-राजनीतिक एजेंडा सैन्य संघर्ष को लम्बा खींचना, रूस को सैन्य और कूटनीतिक लिहाज़ से कमज़ोर करना और यूरोप को अमेरिकी नेतृत्व पर बहुत ज़्यादा निर्भर बना देना है।
  • अजय गुदावर्ती
    भारत में धर्म और नवउदारवादी व्यक्तिवाद का संयुक्त प्रभाव
    28 Apr 2022
    नवउदारवादी हिंदुत्व धर्म और बाजार के प्रति उन्मुख है, जो व्यक्तिवादी आत्मानुभूति पर जोर दे रहा है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    जहाँगीरपुरी हिंसा : "हिंदुस्तान के भाईचारे पर बुलडोज़र" के ख़िलाफ़ वाम दलों का प्रदर्शन
    28 Apr 2022
    वाम दलों ने धरने में सांप्रदायिकता के ख़िलाफ़ व जनता की एकता, जीवन और जीविका की रक्षा में संघर्ष को तेज़ करने के संकल्प को भी दोहराया।
  • protest
    न्यूज़क्लिक टीम
    दिल्ली: सांप्रदायिक और बुलडोजर राजनीति के ख़िलाफ़ वाम दलों का प्रदर्शन
    28 Apr 2022
    वाम दलों ने आरएसएस-भाजपा पर लगातार विभाजनकारी सांप्रदायिक राजनीति का आरोप लगाया है और इसके खिलाफ़ आज(गुरुवार) जंतर मंतर पर संयुक्त रूप से धरना- प्रदर्शन किया। जिसमे मे दिल्ली भर से सैकड़ों…
  • ज़ाकिर अली त्यागी
    मेरठ : जागरण की अनुमति ना मिलने पर BJP नेताओं ने इंस्पेक्टर को दी चुनौती, कहा बिना अनुमति करेंगे जागरण
    28 Apr 2022
    1987 में नरसंहार का दंश झेल चुके हाशिमपुरा का  माहौल ख़राब करने की कोशिश कर रहे बीजेपी नेताओं-कार्यकर्ताओं के सामने प्रशासन सख़्त नज़र आया।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License