NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
मज़दूर-किसान
समाज
भारत
राजनीति
महाराष्ट्र में किसानों की हड़ताल का केंद्र दो साल बाद भी कर रहा है संघर्ष
अहमदनगर ज़िले के पुणतांबा गांव के किसानों ने 1 जून 2017 को किसानों की हड़ताल का आह्वान किया था। स्वतंत्र भारत में उस अभूतपूर्व आंदोलन की यह दूसरी वर्षगांठ है लेकिन धरातल पर चीज़ें अभी भी बदली नहीं हैं।
अमेय तिरोदकर
01 Jun 2019
Amey

यह वही गाँव है जिसने भारत में इतिहास रचा था। पुणतांबा के किसानों ने मार्च-अप्रैल 2017 में एकजुट होकर एक 'शेती बंद' (कृषि हड़ताल) आंदोलन का आह्वान किया था। ये हड़ताल महाराष्ट्र के साथ-साथ भारत के लिए भी बिल्कुल नए क़िस्म की थी, क्योंकि यहाँ किसान हड़ताल करने जा रहे थे। यह असहनीय कृषि संकट था जिसने अहमदनगर गाँव के किसानों को इसके लिए उत्तरी महाराष्ट्र यानी मराठवाड़ा क्षेत्र की सीमा पर लाया। उन्हें राज्य भर से काफ़ी प्रतिक्रिया मिली। एक के बाद एक ग्राम सभाओं ने इस हड़ताल के पक्ष में प्रस्ताव पारित करना शुरू कर दिया। इसने तो पहले महाराष्ट्र को और बाद में पूरे देश को हिला दिया। न्यूज़क्लिक ने दो साल बाद पुणतांबा का दौरा करने का फ़ैसला यह देखने के लिए किया कि ग्रामीण आंदोलन को किस तरह देख रहे हैं और उनका जीवन कैसा है।

Amey 2.JPG

धनंजय धोरादे तथा पुणतांबा के सरपंच डॉक्टर धनंजय धनवाते ने कहा, "उन दिनों डॉक्टर हड़ताल पर थे। आंगनवाड़ी कार्यकर्ता भी हड़ताल पर चली गई थीं। फिर ग्राम पंचायत कार्यकर्ताओं ने भी हड़ताल कर दी। तब सरकार उनकी समस्याओं को सुन रही थी और उनसे बातचीत कर रही थी। इससे हमें किसानों की हड़ताल का विचार आया। अगर हम लोगों ने हड़ताल कर दी तो सरकार को हमारी मांगों को स्वीकार करना होगा, यही विचार था।" 
यही वो दो लोग थे जिन्होंने सबसे पहले इस हड़ताल के प्रस्ताव के बारे में बात की थी।

दिलचस्प बात यह है कि ये दोनों लोग अतीत में किसानों द्वारा किए गए हड़ताल से अनजान हैं। दरअसल, डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने 1935 में कृषि हड़ताल का आह्वान किया था और महात्मा ज्योतिबा फुले ने भी 1880 के दशक में किसानों के हड़ताल का नेतृत्व किया था।

धनवते कहते हैं, "हम इस इतिहास से अनजान थे। वास्तव में हमने अपने जीवनकाल में किसानों की हड़ताल नहीं देखी थी। इसलिए जब हमने अपने दोस्तों और किसानों से बात की तो वे भी हैरान थें।" प्रारंभिक विचार यह था आगामी खरीफ़ सीज़न के लिए खेतों में बीज नहीं बोना है। वर्ष 2017 में भी किसानों ने अपनी सब्ज़ियों को ज़िले से बाहर न बेचने और दूध को गाँव या तहसील से बाहर न बेचने का फ़ैसला किया।

धोरादे ने कहा, "कुछ दिनों में हमने महसूस किया कि यह सफ़ल नहीं होगा यदि यह सिर्फ़ एक गाँव तक ही सीमित रहेगा। हमने पड़ोस के गाँवों तक पहुँचने का फ़ैसला किया।" वह ख़ुद एक पड़ोसी गाँव डोंगांव से हैं। लेकिन उनका गाँव न केवल औरंगाबाद ज़िले में है बल्कि एक अन्य क्षेत्र मराठवाड़ा में पड़ता है। पुणतांबा गोदावरी नदी के दाईं ओर स्थित है जबकि डोंगांव इसके बाएँ किनारे पर स्थित है। जब दोनों गाँव हड़ताल के लिए तैयार थे तो इन दोनों गाँव ने एक आंदोलन की शुरुआत की और मीडिया को सूचित किया।

धनवाते ने कहा, "हमने महाराष्ट्र के किसानों को एकजुट होने और 1 जून 2017 से हड़ताल करने की अपील की। ये अपील राज्य के हर हिस्से में चली गई और हमें अचानक बहुत बड़ा समर्थन मिला। लगभग 400 गाँवों ने तुरंत हड़ताल का समर्थन करने और भाग लेने के लिए संकल्प पारित किए। किसानों को एकजुट होता देखकर यह बहुत अच्छा लगा था।" 1 जून से 12 जून तक 12 दिनों की हड़ताल ने महाराष्ट्र सरकार को हिला दिया। तब तक मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस तुरंत क़र्ज़ माफ़ी की घोषणा नहीं करने को लेकर अड़े थे। लेकिन इस हड़ताल ने उन पर दबाव डाला और उन्होंने इन मांगों को मान लिया। किसानों के लिए 34,022 करोड़ रुपये की छूट योजना की घोषणा की गई। लेकिन, ...

दो साल के बाद भी किसानों के जीवन में कुछ भी नहीं बदला है। पुणतांबा के किसान अभी भी उस न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं जिसके लिए उन्होंने संघर्ष किया था।

धनवाते ने कहा, "हमारी दो प्रमुख मांगें थीं हर फसल के लिए क़र्ज़ माफ़ी और न्यूनतम समर्थन मूल्य। आज तक हमारे गाँव के लगभग 50% किसान क़र्ज़ माफ़ी का इंतज़ार कर रहे हैं। हम निष्फल महसूस करते हैं। दो साल में कुछ भी नहीं बदला है।"

पुणतांबा 17,000 की आबादी वाला गांव है। यह अहमदनगर ज़िले में रहटा तहसील का राजस्व देने वाला सबसे बड़ा गाँव है। प्रसिद्ध शिरडी शहर से सिर्फ़ 15 किमी दूर है और दौंड मनामद रेलवे लाइन पर रेलवे जंक्शन भी है। गाँव की आबादी में हिंदू, मुस्लिम, ईसाई और बौद्ध के 14 जातियों के लोग रहते हैं। गाँव में कृषि योग्य भूमि लगभग 4,500 हेक्टेयर यानी 11,119.5 एकड़ है। उगाई जाने वाली मुख्य फसल प्याज़ है। गन्ना, गेहूँ, कपास, चना दाल, सोयाबीन अन्य फसलें हैं जो उगाई जाती हैं। दूध भी किसानों का मुख्य व्यवसाय है।

जून 2017 में हड़ताल के दौरान महिला किसानों के विरोध में शामिल संगिता भोरकाडे ने कहा कि उन्हें उम्मीद थी कि राज्य सरकार उनके समुदाय की मदद करेगी। वे कहती हैं, "ऋण माफ़ी योजना को छोड़कर पिछले दो वर्षों में कुछ भी नहीं बदला है। हम भाग्यशाली हैं कि हमारा ऋण माफ़ कर दिया गया है। यह 1 लाख रुपये था। लेकिन गाँवों में ऐसे परिवार हैं जिनके ऋण अभी भी हैं और इनके लिए राज्य सरकार ने कुछ भी नहीं कहा है।" वे चने की दाल और सोयाबीन उगाती हैं। वह कहती हैं, "इस साल भी सूखा है। अब हम पीने के लिए पानी ख़रीद रहे हैं। इस वर्ष न तो खरीफ़ की फसल है और न ही राबी की फसल। ऐसा पहली बार हो रहा है जब दोनों सीज़न पूरी तरह बर्बाद हो गए हैं।"
Amey 3.JPG
महाराष्ट्र की प्रमुख फसलों में से एक सोयाबीन की वास्तविकता जानने के लिए हमने पुणतांबा के प्रसाद बोडखे से मुलाक़ात की। लेकिन न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पाने में असफ़ल होना किसानों की सबसे बड़ी चिंता है। उन्होंने प्रसाद ने कहा, "इस वर्ष एमएसपी 3,400 रुपये प्रति क्विंटल था। लेकिन सरकार किसानों की रक्षा करने में विफ़ल रही। सरकारी ख़रीद केंद्रों में सोयाबीन का कोटा भी है। लेकिन सरकार द्वारा कुल सोयाबीन ख़रीदने की कोई गारंटी नहीं है। इसलिए किसानों के पास कोई विकल्प नहीं है और इसे प्राइवेट व्यापारी को बेचते हैं जो हमें प्रति क्विंटल केवल 2,900-3,000 रुपये देते हैं।" उन्होंने आगे कहा, "एमएसपी किसानों की सबसे महत्वपूर्ण मांगों में से एक थी। केंद्र सरकार ने अपने 2018 के बजट में किसानों को एमएसपी के साथ-साथ 50% अधिक दर की घोषणा की। लेकिन यह धरातल पर लागू नहीं किया गया है।"

डोंगांव के दिलीप डोके ने इस साल प्याज़ की फसल उगाई थी। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि इस सीज़न में प्याज़ की दर सबसे कम हो गई है। डोके ने कहा कि उनके पास इस समय लगभग 150 क्विंटल प्याज़ है लेकिन उन्होंने सीज़न की शुरुआत में इसे बेच दिया जब क़ीमत लगभग 700 रुपये प्रति क्विंटल से काफ़ी कम थी। उन्होंने कहा, "मुझे अपनी भतीजी की शादी के लिए पैसे की ज़रूरत थी इसलिए मेरे पास इसे सबसे कम क़ीमत में बेचने के अलावा कोई चारा नहीं था। किसानों के हितों को सरकार द्वारा संरक्षित करने की आवश्यकता है।"

डोके ने कहा कि अभी प्याज़ की क़ीमत लगभग 900 रुपये है और कुछ बाज़ारों में 1,100 रुपये तक है। लेकिन अब किसानों ने अपना प्याज़ बेच दिया है और इस बात की चर्चा है कि जिन व्यापारियों ने सिर्फ़ 700 रुपये में प्याज़ ख़रीदा था वे अब इसे 1,100 - 1,200 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बाज़ार में बेच रहे हैं।

धोरादे ने कहा, "यह हर फसल के साथ हो रहा है। किसान कड़ी मेहनत करते हैं लेकिन व्यापारी उन्हें धोखा देते हैं। वे अपने पैरों में मिट्टी लगाए बिना भी अधिक पैसा कमाते हैं। इस प्रणाली को बदलने की आवश्यकता है।"

2017 के आंदोलन के दौरान देश ने किसानों को सड़कों पर दूध फेंकते देखा था। इसकी आलोचना हुई थी कि वे अपने उत्पादों को बर्बाद कर रहे हैं। उस समय इसकी क़ीमत 25 रुपये प्रति लीटर थी। किसान अधिक क़ीमत की मांग कर रहे थें। दो साल बाद क्या हुआ?

हमने दूध का उत्पादन करने वाले किसान किरण रोकाडे और प्रशांत रोकाडे से मुलाक़ात की। उनका दैनिक उत्पादन 125-135 लीटर तक हो जाता है। रोकडे ने कहा, "आज प्रति लीटर की दर 21-22 रुपये के आसपास है। यह पिछले दो महीनों में कम हो कर 18 रुपये तक हो गई। राज्य सरकार ने डेयरी चलाने वाले लोगों को किसानों को अनिवार्य दर के रूप में 25 रुपये देने के लिए कहा है। लेकिन कोई क्रियान्वयन नहीं हुआ है। हमारे पास अपने दूध की मूल क़ीमत को वापस पाने के लिए फिर से आंदोलन करन था। 5 रुपये प्रति लीटर की सब्सिडी के लिए हम अभी 22/23 रुपये पा रहे हैं।" जब उनसे पूछा गया कि अगर यही हालत है तो उन्हें आंदोलन से आखिर क्या हासिल हुआ तो वे चुप रहे। उन्होंने कहा, "हड़ताल के बाद सबसे ज्यादा प्रभावित दूध का कारोबार हुआ है। हमें लगता है कि पहले की स्थिति बेहतर थी।"

लेकिन पुणतांबा के सरपंच धनवाते ने स्पष्ट रूप से कहा: "यह सच है कि राज्य सरकार ने दिए गए अपने आश्वासनों को पूरा नहीं किया है। क़र्ज़ माफ़ी भी कुछ ही किसानों तक सीमित है। बहुत किसान अभी भी वंचित हैं। लेकिन हमारे आंदोलन ने राजनीतिक व्यवस्था को एक महत्वपूर्ण संदेश भेजा है। अब वे किसानों को पहले की तरह नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते हैं। किसान एकजुट हैं और उन्होंने अपनी ताक़त का एहसास किया है। किसानों के बीच ये विश्वास अधिक महत्वपूर्ण है।“

यह विडंबना है कि आज़ादी के 70 साल बाद भी किसानों को अपने मुद्दों की ओर सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए हड़ताल का रास्ता अपनाना पड़ा। एक तरफ़ यह सरकार की तरफ़ से उदासीनता दिखाई देता है जबकि दूसरी तरफ़ यह किसानों की दुर्दशा को दर्शाता है। उस ऐतिहासिक हड़ताल के दो साल बाद भी उस क्रोध का केंद्र अभी भी शांत नहीं है।

farmer crises
farmer strike
Maharashtra Farmers
agrarian crisis
Agrarian Issues
Onion Farmers
Onion Crisis

Related Stories

हिसारः फसल के नुक़सान के मुआवज़े को लेकर किसानों का धरना

किसानों और सरकारी बैंकों की लूट के लिए नया सौदा तैयार

देशभर में घटते खेत के आकार, बढ़ता खाद्य संकट!

लखीमपुर के बाद अंबाला में भी भाजपा नेता पर लगे किसानों को गाड़ी से कुचलने का आरोप

‘एफसीआई बचाओ, पीडीएस बचाओ’: किसानों ने देश भर में विरोध प्रदर्शन कर केंद्र को चेताया

आज़ाद मैदान की चेतावनी : मांगें पूरी न हुईं तो और तीखा किया जाएगा आंदोलन

लड़ेंगे और जीतेंगे: महाराष्ट्र के किसान

किसान आंदोलन: अब जुड़ेंगे महाराष्ट्र के किसान भी

भूख हड़ताल पर किसान, बीजेपी की सुई टुकड़े -टुकड़े गैंग पर अटकी!

यह पूरी तरह से कमज़ोर तर्क है कि MSP की लीगल गारंटी से अंतरराष्ट्रीय व्यापार गड़बड़ा जाएगा!


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License