राजेन्द्र सोनावने पिछले 20 वर्षों से मुंबई के लालबाग़ इलाक़े में अपनी चिकन शॉप चला रहे हैं। आज के दिन उनके यहाँ चार कर्मचारी हैं जिनकी मदद से वे काम-धाम को चलाते हैं। लेकिन जैसे ही कोरोनावायरस संकट की ख़बर हर तरफ़ फैल रही है, इसके चारों तरफ़ की अफ़वाहों के चलते वे अपने काम-धाम को लेकर बेहद चिंतित हैं। उनको डर है कि इन अफ़वाहों के चलते उनके लिए अपने यहाँ काम पर लगे कर्मचारियों की तनख़्वाह दे पाना ही कहीं भारी न पड़ जाये।
इससे पहले जब 2005-06 के दौरान बर्ड फ़्लू का संकट छाया था, उस समय उनका धंधा गिरकर 40% रह गया था। लेकिन अब तो यह मुश्किल से 10% ही रह गया है। न्यूज़क्लिक से बात करते हुए राजेन्द्र ने बताया “लोग इतने ज़्यादा डरे हुए हैं कि अब तो वे किसी की सलाह भी सुनने को तैयार नहीं हैं, जिसमें बताया जा रहा है कि मांसाहारी भोजन खाने से कोरोनावायरस बीमारी नहीं होती।” उनका दावा है कि अफ़वाहों और विश्व भर में फैले COVID-19 के डर से पिछले एक महीने में उन्हें 2 लाख का नुकसान हो चुका है।
इस उद्योग में सबसे बड़ा योगदान देश में अगर किसी प्रदेश का है तो उसमें महाराष्ट्र नंबर 1 पर है। पशुपालन विभाग से प्राप्त आँकड़े बताते हैं कि वर्तमान में राज्य भर में संगठित तौर पर पोल्ट्री व्यवसाय से जुड़े लोग करीब 5 करोड़ मुर्गियाँ पाल रहे हैं। असंगठित क्षेत्र में यह संख्या 2 करोड़ के क़रीब बैठती है। करीब 50 लाख लोगों की गुजर-बसर इसी व्यवसाय के सहारे चल रही है, जिनमें चिकन विक्रेता, मीट विक्रेता और इस व्यवसाय से जुड़े ट्रांसपोर्टर्स हैं। इसके अलावा दो से पाँच लाख ऐसे हैं जो मुर्गियों के भोजन सम्बन्धी व्यवसाय से सम्बद्ध हैं। जबसे यह अफ़वाह फैलनी शुरू हुई है कि मांसाहारी भोजन और खासकर चिकन खाने से कोरोनावायरस की बीमारी फैलती है - इन सभी लोगों की आजीविका पर निश्चित तौर पर बेहद बुरा असर पड़ा है।
किसी भी ब्रायलर मुर्गी को पूरे तौर पर विकसित होने में तकरीबन 35 दिन लगते हैं। अगले 10 दिनों के भीतर उन्हें बेच देना होता है। किसी भी पूर्ण विकसित पक्षी पर कम से कम 80 रूपये खर्च करने पड़ते हैं। इस प्रकार पूरे राज्य में इन पाँच करोड़ मुर्गियों पर पहले से ही 400 करोड़ का निवेश हो चुका है। यदि हम पिछले डेढ़ महीनों का हिसाब करें तो यह आँकड़ा 600 करोड़ रुपयों के नुकसान का बैठता है।
शुरुआती 35 दिनों के बाद इन मुर्गियों की क़ीमत में गिरावट आने लगती है। और चूँकि पूर्ण रूप से विकसित मुर्गियों को भोजन भी अधिक चाहिए होता है तो इस प्रकार इन पर लागत भी ज्यादा आणि शुरू हो जाती है। आम तौर पर पोल्ट्री मालिक इन्हें पालने से लेकर बेचने तक के पूरे चक्र को 45 दिनों के भीतर-भीतर सम्पन्न करा देते हैं। लेकिन अफ़वाहों और गलत सूचना के चलते यह सारा चक्र ही पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका है।
अहमदनगर से एक पोल्ट्री के मालिक आनंद रूपावते का कहना है, “इस बात के कोई सबूत नहीं मिले हैं कि चिकन में कोरोनावायरस के कोई लक्षण पाए गए हैं। यह पूरी तरह से अफ़वाह है। लेकिन इसकी वजह से हम बेमौत मारे जा रहे हैं। लोग पूरी तरह से डरे हुए हैं और प्रशासन की ओर से इस बाबत किसी भी प्रकार के स्पष्टीकरण उनके गलों से नीचे नहीं उतर पा रही।”
महाराष्ट्र सरकार ने लोगों से अपील की है कि वे कोरोनावायरस और भोजन के रूप में चिकन की खपत सम्बन्धी अफ़वाहों को फैलाने में अपनी हिस्सेदारी न करें। पशुपालन विभाग के सचिव ने भी साइबर सेल को इस तरह की अफ़वाहों की शिकायत दर्ज कराई है। न्यूज़क्लिक से बात करते हुए विभाग के मंत्री सुनील केदार ने बताया है कि इस सम्बन्ध में महाराष्ट्र पुलिस ने दो आईपी एड्रेस को चिन्हित कर लिया है। सुनील केदार ने बताया है “जो लोग इस प्रकार की अफ़वाह फैला रहे हैं, उनके ख़िलाफ़ कार्यवाही की जायेगी। आमतौर पर लोग तथ्यों से अवगत नहीं हैं। लेकिन यदि कुछ लोग इस बारे में जानबूझकर गलत सूचना को फैलाने का काम कर रहे हैं तो उन्हें बक्शा नहीं जाएगा।”
पोल्ट्री फ़ार्मर्स एंड ब्रीडर्स एसोसिएशन ऑफ़ महाराष्ट्र ने राज्य के साथ-साथ केंद्र सरकार को संबोधित करते हुए इस संबंध में अपनी कई माँगें पेश की हैं। उन्होंने 2006 में आये बर्ड फ्लू की तर्ज पर हर्जाने की माँग रखी है- जैसे कि पिछली बार हर पक्षी पर पोल्ट्री मालिकों को 20 रूपये हर्जाने के रूप में अदा किये गए थे। इसके साथ ही एसोसिएशन ने कर्जों में भी कुछ हद तक राहत दिए जाने की माँग कर रहा है।
एसोसिएशन के चेयरमैन वसंतकुकर सेट्टी का कहना है, “हमें यह राहत मुआवज़े के साथ साथ ऋण के रूप में भी दिए जाने की आवश्यकता है। पोल्ट्री के बिजनेस से कई लोगों का जीवन पूरी तरह से जुड़ा हुआ है जिसमें मुर्गियों के लिए दाना बनाने वालों से लेकर, ट्रांसपोर्टर, उत्पादक, किसान सहित कई लोग सम्बद्ध हैं। इसलिये यदि पोल्ट्री का धंधा चौपट होता है तो इसका असर इन सभी पर पड़ने जा रहा है। इस व्यापक परिदृश्य को देखते हुए सरकार को हमारी मदद अवश्य करनी होगी।”
संतोष पाटिल पश्चिमी महाराष्ट्र में जाने माने होटल उद्योगपति के रूप में मशहूर हैं। उनके होटलों की पहचान ही माँसाहारी व्यंजनों के चलते है। वे बताते हैं, “लोगों ने अब चिकन के आइटम्स का ऑर्डर देना बंद कर दिया है। चिकन के दाम जो अभी तक 120 से 130 रूपये किलोग्राम हुआ करते थे, आज वो 40-45 रूपये किलो तक नीचे चला गया है। लेकिन फिर भी लोग नहीं ख़रीद रहे हैं। इससे सिर्फ़ पोल्ट्री के धंधे पर ही असर नहीं पड़ रहा, बल्कि हमारे होटल उद्योग पर भी इसका काफ़ी बुरा असर पड़ रहा है।”
अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।
Maharashtra: COVID-19 Rumours Hit Poultry Business, Losses Worth Rs 600 Crore?