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मिडिल ईस्ट के कुलीन वर्ग ने भारत को याद दिलाया है कि हिंदुत्व की एक क़ीमत होती है
भारत के सामाजिक ताने-बाने में जो गांठ पड़ गई, उसे थाली पीटवाकर और घंटी बजाकर सही नहीं किया जा सकता।
एजाज़ अशरफ़
22 Apr 2020
hindutva

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नोवेल कोरोना वायरस के सांप्रदायिकरण के ख़िलाफ़ देश को दी जाने वाली चेतावनी की एक मुमकिन वजह पिछले कुछ दिनों में मध्य-पूर्व से आने वाले हिंदुत्व विरोधी ट्वीट्स की आंधी भी हो सकती है। इन ट्वीटों में नोवल कोरोनावायरस की वजह से होने वाली बीमारी Covid-19 को फ़ैलने के पीछे मुसलमानों को दोषी ठहराने, निंदा करने और निशाना बनाने की भारत में बढ़ती प्रवृत्ति के ख़िलाफ़ नाराज़गी ज़ाहिर हुई है।

एक लोकप्रिय सोशल नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म लिंक्डइन पर हालिया पोस्ट में मोदी ने लिखा, " अपनी चपेट में लेते समय यह वायरस जाति, धर्म, रंग, नस्ल, पंथ, भाषा या सीमा को नहीं देखता है।" उनकी यह टिप्पणी मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा या उनके सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार से जुड़ी कई घटनाओं के मद्देऩजर आयी है।

जब से तब्लीग़ी जमात के कार्यकर्ताओं को मार्च के आख़िर में निज़ामुद्दीन पश्चिम, दिल्ली के उनके मुख्यालय से बाहर निकाला गया था, और उनमें से कुछ को Covid-19 टेस्ट में पोजिटिव पाया गया था, तबसे कुछ मीडिया प्लेटफ़ॉर्म हद से आगे निकलते हुए उन पर यह दोष मढ़ने लगे  हैं कि भारत में Covid-19 के फैलने के पीछे मुसलमानों का हाथ है।

केंद्र सरकार भी अपनी रोज़-ब-रोज़ की ब्रीफिंग में इस ग़लत धारणा को आगे बढ़ाने में एक तरह की सहयोगी की भूमिका निभाती रही थी। यहां तक कि हाल ही में पिछले सप्ताह की तरह इस सप्ताह भी सरकार की तरफ़ से जारी ब्रीफिंग में तब्लीग़ी जमात से जुड़े मामलों की अलग से जानकारी दी गयी है।

फ़ेक वीडियो और सोशल मीडिया पोस्ट ने कोरोनावायरस को "जिहादी वायरस" का नाम दे दिया, जिससे हिंदू और मुसलमानों के बीच की दरारें बढ़ती गयीं। मुसलमानों और इस्लाम के ख़िलाफ़ ज़हर उगलने वालों में प्रवासियों का एक वर्ग भी शामिल हो गया। ऐसा होते देख मध्य-पूर्व के नागरिकों ने भारत के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय को किसी शैतान की तरह पेश किये जाने के ख़िलाफ एक ग़ैरमामूली नाराज़गी जतायी है।

हिंदुत्व ब्रिगेड की निंदा करने वाले इन मध्य-पूर्व के नागरिकों में न केवल आम लोग हैं, बल्कि शाही और अमीर परिवार के सदस्य, वक़ील, मानवाधिकार कार्यकर्ता और भारतीय प्रवासी, हिंदू और मुसमान जैसे सभी वर्गों के लोग भी हैं। उनमें से कुछ ट्वीट राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर भारत में मुसलमानों को आतंकित करने का आरोप लगाने वाले भी हैं।

इन सबसे मोदी को परेशान तो होना ही चाहिए था, जिन्होंने मध्य-पूर्व के देशों के साथ भारत के रिश्तों को सुधारने में अपनी अकूत ऊर्जा लगायी है। इसके बदले  उन देशों ने मोदी को पुरस्कारों से नवाज़ा था, और उन भगोड़ों को भारत को सौंप दिया था,जिनकी तलाश भारत को आपराधिक मामलों में थी। (भारत के विदेश मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि फ़रवरी 2002 से जनवरी 2019 के बीच भारत में किये जाने वाले 74 प्रत्यर्पणों में से 23 प्रत्यर्पण अकेले संयुक्त अरब अमीरात से थे।)

मध्य-पूर्व के इन अभिजात वर्ग के ट्वीट की अपनी अहमियत है, क्योंकि वे उन क्षेत्रों में सरकार की नीतियों पर ज़बरदस्त असर डालने वालों में से हैं, जिनमें बड़े पैमाने पर लोकतंत्र की कमी है। भारत में अंग्रेज़ी बोलने वालों उदार-धर्मनिरपेक्षतावादियों के मुक़ाबले उन अभिजात वर्ग के आवाज़ मध्य-पूर्व के देशों में ज़्यादा सुनी जाती हैं।

मोदी सरकार के कान तब खड़े हुए होंगे,जब संयुक्त अरब अमीरात के सात अमीरात में से एक शारजाह के शाही परिवार के सदस्य, राजकुमारी हेंड अल क़ासिमी ने एक व्यापारी सौरभ उपाध्याय का ट्विटर पर जवाब दिया था। मिसाल के तौर पर उनका एक जवाब कुछ ऐसा था; उन्होंने तबलीग़ी जमात और मुसलमानों को लेकर उपाध्याय के घृणा से भरे ट्वीट के स्क्रीनशॉट को टैग करते हुए 16 अप्रैल को लिखा,“जो भी यूएई में खुले तौर पर नस्लवादी और भेदभाव करने वाले लोग हैं, उन पर जुर्माना लगाया जायेगा और उन्हें देश छोड़ने के लिए कहा जायेगा”। 

 

राजकुमारी के फटकार लगाते ही लगता है कि उपाध्याय ने अपने सभी सोशल मीडिया अकाउंट डिलीट कर दिये, इस बात का सुबूत पत्रकार रिफ़त जावेद के ट्वीट से मिलता है,जिसमें वे लिखते हैं: “दुबई में मल्टी-मिलियन कंपनी चलाने वाला और इस्लाम से हिक़ारत करने वाला कारोबारी अब शरण के लिए भाग रहा है। उसने अपनी कंपनी की वेबसाइट, लिंक्डइन प्रोफ़ाइल, ट्विटर और फ़ेसबुक एकाउंट को डिएक्टीवेट कर दिया है। यह सब राजकुमारी हेंड अल क़ासिमी द्वारा फटकार लगाए जाने के कुछ ही मिनटों के भीतर हुआ ! ” क़ासिमी ने अपने 98,000 फ़ोलोअर के साथ जावेद के रीट्वीट को शेयर कर दिया।

ऐसा लगता है कि उन प्रवासी हिंदुओं को संदेश देने के लिए ही ऐसा किया गया है, जिनमें से कई संयुक्त अरब अमीरात में फल-फूल रहे हैं, क़ासिमी ने शारजाह शाही परिवार और भारत के बीच के मधुर रिश्तों पर ज़ोर दिया। हालांकि, वह ऐसे ही नहीं,बल्कि तमतमाते अंदाज़ में कहती गयीं, “…एक शाही के रूप में आपकी बेअदबी का स्वागत नहीं किया जायेगा... आप जिस ज़मीन से अपनी रोटी-रोटी कमाते हैं, उसी से आप नफ़रत करते हैं और ऐसे में आपकी अशिष्टता को नज़रअंदाज़ नहीं किया जायेगा।"

क़ासिमी के ट्वीट का संयुक्त अरब अमीरात में रह रहे उपाध्याय जैसे लोगों के लिए निहित संदेश यही है कि अगर वे इस्लाम और उसके अनुयायियों को बदनाम करने की कोशिश करेंगे,तो उन्हें इसकी प्रतिक्रिया का भी सामना करना पड़ेगा। वह जमात को लेकर चल रहे विवाद से भी भलीभांति परिचित थीं। मिसाल के तौर पर, राजकुमारी ने 9 मार्च से 20 मार्च के बीच आयोजित अलग-अलग ग़ैर-इस्लामिक आयोजनों को सूचीबद्ध करते हुए एक ट्वीट पोस्ट किया, जिसमें साफ़ तौर से बताया गया है कि तब्लीग़ी जमात पर Covid-19 को जानबूझकर फैलाने की तोहमत नहीं लगायी जा सकती है।

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क़ासिमी ने भारत के सोशल मीडिया के लड़ाकों को गांधी की याद दिलाते हुए बताया कि गांधी आख़िर यही कुछ  तो चाहते थे। उनके ट्वीट का नमूना: “गांधी सभी लोगों के हक़ और सम्मान का एक निडर समर्थक थे, दिल और दिमाग़ पर जीत हासिल करने के लिए उन्होंने अहिंसा का लगातार और अटूट प्रचार-प्रसार किया था,उनकी इस कोशिश ने हमेशा के लिए दुनिया पर अपनी अमिट छाप छोड़ दी है। उन्होंने मेरा दिल जीता हुआ है और मैं नफ़रत से निपटने के लिए उनके अमन-चैन वाले नज़रिये में पूरा यक़ीन करती हूं।”

अल ग़ुरैर समूह को चलाने वाले परिवार के नूरा अल ग़ुरयर ने दुबई स्थित एक शीर्षस्थ फ़र्म की कार्यकारी निदेशक प्रीति गिरि को आड़े हाथों लेते हुए कहा,  "तो आपकी हिक़ारत भरी दलील के मुताबिक़ भारत में मुसलमानों के ख़िलाफ़ चलाये जा रहे दुष्प्रचार की वजह से सुन्नी संगठन आतंकवादी हो जाता है ? क्या आपको पता है कि जिस देश में आप रह रही हैं, उसके सभी शासक सुन्नी हैं ? क्या आप हमारा बहिष्कार करना चाहती हैं ? क्या आपको पता है कि दुबई पुलिस हेडक्वार्टर में सुन्नी अफ़सर हैं ? मैं भी सुन्नी हूं ?”

प्रीति गिरि ने भी अपने सभी सोशल मीडिया अकाउंट डिलीट कर दिये।

नूरा अल ग़ुरैर ने भारतीय जनता पार्टी के सदस्य तेजस्वी सूर्या के उस अपमानजनक और लिंगभेद वाले पुराने ट्वीट का भी जवाब दिया, जो सोशल मीडिया के इस दौर में कई लोगों के दिलों में ख़ौफ़ पैदा कर रहा है। ग़ुरैर ने सूर्या को अरब जगत का दौरा न करने की सलाह दी।उन्होंने कहा, “तेजस्वी सूर्या,आपकी परवरिश पर तरस आता है कि भारत में कुछ महान महिला नेताओं के होने के बावजूद महिलाओं के प्रति आपके भीतर कोई सम्मान नहीं है। कृपया इस बात को लिखकर रख लें कि यदि किसी दिन सरकार आपको विदेश मंत्रालय की ज़िम्मेदारी सौंप देती है, तो अरब जगत का दौरा करने से परहेज कीजियेगा। यहां आपका स्वागत नहीं होगा। इसे याद रखियेगा।”

असल में, कुवैत स्थित एक वक़ील, जो ट्विटर हैंडल @MJALSHRIKA का इस्तेमाल करता है, और जिसके लगभग 45,000 फ़ॉलोअर हैं, उसने एक सवाल के साथ मोदी को टैग करते हुए लिखा, “क्या आप अपने सांसदों को सार्वजनिक रूप से हमारी महिलाओं को अपमानित करने की अनुमति देते हैं ? हम उनकी अपमानजनक टिप्पणी के लिए आपकी तरफ़ से तत्काल दंडात्मक कार्रवाई की उम्मीद करते हैं।”

उस वक़ील की उम्मीद शायद ज़मीनी हक़ीक़त नहीं बन पाये। लेकिन, अगर सूर्या को माफ़ी मांगने के लिए कहा जा जाये, या कम से कम भारतीय मुसलमानों के ख़िलाफ़ उनकी तरफ़ से पोस्ट होने वाले ज़हरीले बयान को बंद कर दिया जाये,तो यह भारत और उसके बाहरी देशों के साथ रिश्ते के हितों को लेकर एक बहुत अच्छी पहल होगी। सूर्या ने भी इस आलोचना के बाद कम से कम ट्विटर से अपनी उस भद्दी टिप्पणी को हटा दिया। मुस्लिम विक्रेताओं के बहिष्कार पर पत्रकार सबा नक़वी का वीडियो अपलोड करते हुए @MJALSHRIKA ने ट्वीट किया: “कोई भी हिंदुत्व के गुंडों द्वारा किये जाने वाले इस अत्याचार को बर्दाश्त नहीं करेगा। हम बुरी तरह से निशाना बनाये जा रहे  ग़रीब मुस्लिम विक्रेताओं की हिफ़ाजत के लिए भारत सरकार से अपील करते हैं ।”

मध्य-पूर्व देशों से भेजे जाने वाले पैसों की अहमियत पर ज़ोर देते हुए अब्दुल रहमान अल-नासर, जिनके क़रीब 2,46,000 हैं, ने ट्वीट किया : “इन देशों में भारतीयों (ज़्यादातर हिंदुओं) के साथ अच्छा बर्ताव किया जाता है। लेकिन, इसके बदले भारत में मुसलमानों के साथ कैसा बर्ताव किया जाता है ?” राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को एक आतंकवादी संगठन के तौर पर नवाजते हुए अल-नासर ने संयुक्त राष्ट्र से एक सवाल करते हुए लिखते हैं: “संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार... भारत # भारत # भारत के मुसलमानों को लेकर आरएसएस पार्टी के आतंकवादी कृत्यों के बारे में आपका क्या रुख़ है ?”

उन्होंने भारतीय अमेरिकी मुस्लिम परिषद के एक पोस्ट को भी रीट्वीट किया, जिसमें बॉलीवुड अभिनेता एजाज़ ख़ान की गिरफ़्तारी का उल्लेख किया गया था,उन्हों लिखा, “मुसलमानों की हिफ़ाज़त को लेकर चिंता जताना भी भारत में एक तरह का अपराध हो गया है। मुसलमानों पर सरकार के आरोप लगाने के खेल पर सवाल उठाने को लेकर भी सेलिब्रिटी को गिरफ़्तार किया गया”

लॉकडाउन के बीच सड़कों पर आने वाले प्रवासी कामगारों की दुर्दशा के बारे में अपने फ़ेसबुक पेज पर बोलने के लिए ख़ान को मुंबई में गिरफ़्तार कर लिया गया था। बताया जाता है कि उन्होंने अपनी पोस्ट में कहा था, “अगर चींटी भी मर जाती है, तो इसके लिए एक मुसलमान ही ज़िम्मेदार है। क्या आपने कभी सोचा है कि इस साज़िश के लिए कौन ज़िम्मेदार है?” 

1947 के बाद यह शायद पहली बार है जब अरब जगत के अभिजात वर्ग भारत में मुस्लिमों पर साधे जा रहे निशाने पर क़रीब से नज़र रख रहा है और टिप्पणी कर रहा है। लेकिन, इससे पहले कभी भी मुसलमानों के ख़िलाफ़ लगातार नफ़रत फैलाने वाला अभियान भी नहीं चलाया गया था, और न ही भारत में शासन करने वाले पार्टी के सदस्यों और अनुयायियों द्वारा इस तरह के अभियान को समर्थन मिल पाया था। शायद उनकी इस पैदा होने वाली चिंता के लिए उस इंटरनेट को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है,जिसने दुनिया को पहले से कहीं ज़्यादा अपने ताने-बाने से एक कर दिया है  ।

यही वजह है कि मुसलमानों के ऊपर हो रहे ज़ुल्म-ओ-सितम सरकारी हल्कों में  भी फैल गया है। 19 अप्रैल को परमानेंट ह्यूमन राइट कमिशन, जिसे इस्लामिक सहयोग संगठन ने सलाहकार वाले दर्जे के साथ एक विशेषज्ञ निकाय के रूप में स्थापित किया है, उसने “# Covid-19 के फैलाने को लेकर  मुसलमानों को बदनाम करने वाले भारत के असभ्य # दुष्प्रचार किया जाने के साथ-साथ मीडिया में उनकी नकारात्मक छवि पेश करने की वजह से उनके साथ होने वाले भेदभाव और हिंसा” की निंदा की। इस्लामिक सहयोग संगठन में 53 मुसलमान बहुल देश और अन्य चार देश शामिल हैं।

इस समय,भारत में मुसलमानों को निशाना बनाने जाने को लेकर अरब जगत में एक बेचैनी देखी जा रही है। मोदी के लिंक्डइन पोस्ट के एक दिन बाद, कुवैत बार एसोसिएशन के निदेशक मंडल के सदस्य ख़ालिद अल-सुवाइफ़न ने ट्वीट किया, " हम अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, विशेषकर संयुक्त राष्ट्र, सुरक्षा परिषद, इस्लामिक सहयोग संगठन और सभी मानवाधिकार संगठनों से भारत # भारत में हमारे मुसलमान भाइयों के ख़िलाफ़ हो रही हिंसा को रोकने के लिए तुरंत हस्तक्षेप करने की मांग करते हैं।" इसे 2,600 बार रीट्वीट किया गया।

मध्य-पूर्व से हिंदुत्व विरोधी ट्वीट्स का तूफ़ान इस कहीं ज़्यादा बेवक्त मौक़े पर आ रहा है। मोदी ने अरब जगत के कई देशों के दौरे किये और भारत ने भी वहां के नेताओं के लिए लाल कालीन बिछा दी थी। मोदी के इन प्रयासों ने पूर्व भारतीय राजनयिक तलमिज़ अहमद को भी प्रेरित किया था, जिन्होंने कई मध्य-पूर्व देशों में राजदूत के रूप में काम किया था, उन्होंने कहा, "भारत के राजनयिक इतिहास में पहले कभी किसी प्रधानमंत्री ने इस क्षेत्र पर इतना ध्यान नहीं दिया था।”

भारत और मध्य-पूर्व के बीच का रिश्ता साथ-साथ चलने वाले का रहा है। जैसा कि अहमद कहते हैं, "यह क्षेत्र भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए बेहद अहम है, जिसमें खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) भारत के तेल आयात का लगभग 50 प्रतिशत उपलब्ध कराती है। खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) सामूहिक रूप से भारत का सबसे बड़ा क्षेत्रीय ब्लॉक ट्रेडिंग पार्टनर भी है, क्योंकि 2017-18 में कुल व्यापार 104 बिलियन डॉलर का था, और भारत-आसियान का व्यापार 81 बिलियन डॉलर का था। वैश्विक व्यापार के लिहाज से भारत के शीर्ष पांच में से दो व्यापार साझेदार खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) -यूएई और सऊदी अरब से ही हैं।”

इसके अलावा, बड़ी संख्या में भारतीय प्रवासी मध्य-पूर्व में काम करते हैं और अरबों रुपये अपने घर भेजते हैं। 2018 में  भारत में भेजे गये धन लगभग 78.6 बिलियन डॉलर का था, जिनमें से भारतीय रिज़र्व बैंक के आवक धन को लेकर अधिकृत डीलरों के सर्वेक्षण के चौथे दौर के मुताबिक़, 26.9% धन संयुक्त अरब अमीरात से आया था, 11.6% सऊदी अरब से, क़तर से 6.5%, और कतर से 5.5% भेजा गया था।

वास्तव में उस मध्य-पूर्व के साथ रार ठानने से भारत के पास खोने के लिए बहुत कुछ होगा, जो मुसलमानों को निशाने पर लेने को लेकर नाराज़ है, और वह भी उस समय जब पूरी दुनिया का ही मौत से सामना है। मोदी के लिंक्डइन पोस्ट का तीन सप्ताह बाद आने से बहुत देर हो चुकी है और शायद भारत के सामाजिक ताने-बाने में जो फटन आयी है, उसकी तुरपाई के लिहाज से भी यह बहुत काफ़ी नहीं है। क्या प्रधानमंत्री मोदी भारत के सामाजिक सौहार्द को बहाल करने के लिए भारतीयों से थाली पीटने और घंटी बजाने के लिए नहीं कह सकते हैं?

(अरबी में किये गये ट्वीट मशीन-अनुवादित हैं।)

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं उनके व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

 

COVID-19 and communalism
covid-19 and hate politics
covid -19 and uae
Communalism

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