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भारत
राजनीति
मिजोरम विधानसभा चुनाव 2018: एक राजनीतिक पृष्ठभूमि
परम्परागत तौर पर मिजो नेशनल फ्रंट और कांग्रेस मिजोरम की राजनीति में दो मुख्य दल रहे हैं; सवाल यह है कि क्या यह रीति जारी रहेगी।
विवान एबन
06 Nov 2018
mizoram elections 2018

चालीस सदस्यों वाली मिजोरम विधानसभा के लिए चुनाव होने जा रहा है। यहाँ इसी साल 28 नवंबर को मतदान होगा। राजनीतिक पार्टियों ने प्रचार तेज़ कर दिया है, वहीं सिविल सोसाइटी संगठन पीछे नहीं हैं। इस साल मई महीने में एक चर्च संगठन तथा एक छोटे राजनीतिक दल ने राज्य के नए गवर्नर के रूप में कुम्मानम राजशेखरन की नियुक्ति का विरोध किया था। पूर्व में राजशेखरन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और केरल में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सदस्य थे, यही कारण है कि उनकी नियुक्ति का विरोध किया गया था। हालांकि, विरोध को लेकर उनकी नियुक्ति की ओर ध्यान देने के बजाय केंद्र सरकार ने उनका शपथ ग्रहण कराया।

इस बार खब़र यह है कि ग़ैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) के एक समूह ने मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) एसबी शशांक को हटाने के लिए दबाव बनाया है, क्योंकि उन्होंने उन पर लोगों का विश्वास खोने का आरोप लगाया है। यह तब हुआ जब ड्यूटी में लापरवाही और चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने के लिए चुनाव आयोग ने प्रधान सचिव (गृह) ललनुमावला चुऔंगो को हटा दिया था। आरएसएस और बीजेपी से ज्ञात रिश्तों के बीचसीईओ और राज्यपाल के ख़िलाफ आरोप से किसी को भी यह विश्वास हो सकता है कि भगवा पार्टी ईसाई बहुल राज्य में चुनावी चाल चलने का प्रयास कर रही है। हालांकि, इन हथकंडों के बावजूद हो सकता है कि मेघालय विधानसभा चुनावों की तुलना में भगवा पार्टी को कम सफलता मिले जहां इसने केवल दो सीट पर जीत हासिल कर नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) की अगुवाई वाली सरकार में शामिल है।

राजनीतिक परिदृश्य

मिजोरम के राजनीतिक परिदृश्य में केवल दो बड़े नाम मिजो नेशनल फ्रंट और कांग्रेस हैं। दोनों ही पार्टियों ने 1987 में मिजोरम राज्य के गठन बाद से दो बार पांच-पांच साल तक शासन किया है। लाल थन्हावला के नेतृत्व में कांग्रेस ने पहली दो सरकार बनाई, फिर बाद में 1998 से एमएनएफ ने दो बार सरकार बनाई। वर्तमान में, लाल थन्हावला की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार अपने दूसरे कार्यकाल के आख़िरी चरण में है।

मिज़ो नेशनल फ्रंट

1959 -60 के मौतम के दौरान एमएनएफ एक एनजीओ मिजो नेशनल फेमाइइन फ्रंट से उत्पन्न हुआ। दिल्ली और साथ ही असम सरकार -मिजो / लुशाई हिल्स असम का हिस्सा थे- की कथित उपेक्षा के कारण ये फेमाइन फ्रंट जल्द ही एमएनएफ के रूप में भारत संघ से अलग होने का फैसला कर लिया। एक निरंतर गुरिल्ला अभियान शुरू किया गया था जिसमें एमएनएफ ने एक स्थान पर इन पहाड़ियों के सभी शहरी केंद्रों पर नियंत्रण कर लिया था, जिसने केंद्र सरकार को एयर फोर्स का इस्तेमाल कर आईजॉल पर हमला करने के लिए मजबूर किया था। उस समय केंद्र सरकार ने दावा किया था कि वायु सेना का इस्तेमाल केवल भोजन गिराने के लिए किया जा रहा था।

वर्ष 1972 में मिजोरम संघ शासित प्रदेश बनाया गया था और 1986 में एमएनएफ के प्रमुख लालदेंगा ने एक समझौता पर हस्ताक्षर किया जिसे आज मिजो समझौता कहा जाता है, और इस तरह एमएनएफ राजनीतिक दल के रूप में प्रकट हुआ। साल 1987 में मिजोरम राज्य का गठन किया गया जहां लालदेंगा राज्य के पहले मुख्यमंत्री और लाल थन्हावला उपमुख्यमंत्री बने। वर्ष 1989 में लाल थन्हावला के नेतृत्व में कांग्रेस ने सरकार बनाई।

एमएनएफ ने पहली बार ज़ोरमथंगा के अधीन 1998 में चुनाव जीता था। उस समय, ये पार्टी संसद में बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का हिस्सा थी। राज्य में चर्च द्वारा संचालित शक्ति को ध्यान में रखते हुए, बीजेपी के साथ गठबंधन करने का कारण विचारधारा के बजाय वास्तविक नीतियों के साथ अधिक था क्योंकि राज्य में एकमात्र विपक्षी दल कांग्रेस थी। हालांकि, इस बार एमएनएफ अकेले मैदान में रहने को लेकर आश्वस्त लगती है, और संकेत दिया है कि वह चुनाव पूर्व या बाद किसी भी गठबंधन नहीं करेगी।

वर्तमान में, एमएनएफ का सशक्त दिख रही है क्योंकि आर लालज़र्लियाना ने सितंबर में एमएनएफ में शामिल होने के लिए कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था। मिजोरम मेंगठबंधन और समझौता करने की उनकी क्षमता के लिए लालजर्लियाना को कांग्रेस के हिमांता बिस्व शर्मा के रूप में जाना जाता है। एमएनएफ में शामिल होने के बाद यह चर्चा तेज़ है कि कांग्रेस के और सदस्य अलग हो रहे हैं। एमएनएफ वादा कर रही है कि वह अगर सत्ता में आती है तो राज्य में असम जैसे नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (एनआरसी)पर काम करेगी। हालांकि, एमएनएफ का भरोसा राज्य के पिछले चुनावी पैटर्न पर आधारित हो सकता है।

कांग्रेस

मिजोरम के लिए कांग्रेस का अपेक्षाकृत शर्मनाक इतिहास रहा है। तत्कालीन कांग्रेस के प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आदेश पर आईजॉल पर बम गिराया गया था। यह 'जवाबी-विद्रोह' अभियान के दौरान हुआ था। वर्तमान मुख्यमंत्री लालथन्हावला युवा व्यक्ति के रूप में घिरे थे, और उन्हें अमानवीय स्थितियों में हिरासत में लिया गया था। मुख्यमंत्री ने मिजोरम के 'कठिन' वर्षों, पर बनी संजय हज़ारिका की डॉक्यूमेंट्री रंबुई में इस तथ्य का खुलासा किया।

वर्तमान में लालथनाहवला की कांग्रेस न केवल सत्ता-विरोधी कारकों जूझ रही है बल्कि सरकार के मौजूदा सदस्यों पर भ्रष्टाचार के आरोपों का भी सामना कर रही है। इस समय अन्य समस्या जिसका सामना कांग्रेस ने किया है वह असफल दूसरी बार कांग्रेस की संभावनाओं का सामना करने वाली दूसरी समस्या असफल ब्रू प्रत्यावर्तन है, जिसे बाद की तारीख में शायद एक और समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद फिर से शुरू करना होगा। इस पृष्ठभूमि में, शायद यह उल्लेखनीय है कि नस्लीय हिंसा जिसने ब्रू लोगों को विस्थापित कर दिया था और सशस्त्र राजनीतिक हिंसा के फलस्वरूप घटित हुआ वर्ष 1997 में आरंभ हुआ जो कांग्रेस शासन के अंतिम वर्ष था। वर्तमान में कांग्रेस ने एमएनएफ के लिए वोट देने को कुछ प्रवासी ब्रू लोगों को निर्देश देने के लिए 'गुप्त संगठन' का इस्तेमाल करने का एमएनएफ पर आरोप लगाया है। ये कथित कार्यकर्ता क्रमशः ब्रू क्रांतिकारी सेना और पीस अकॉर्ड एमएनएफ रिटर्निज एसोसिएशन हैं।

हालांकि, कांग्रेस की लिए एक सफलता यह है कि हमार पीपुल्स कन्वेंशन (डेमोक्रेटिक) [एचपीसी (डी)] का सफल आत्मसमर्पण है जो अप्रैल में पूरा हुआ था। इस घटना को स्थानीय मीडिया में व्यापक जगह मिली और कार्यकर्ताओं को सरकार से पर्याप्त सम्मान भी मिला।

नेशनल पीपुल्स पार्टी

कॉनराड संगमा की नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) ने भी इस चुनाव में लड़ने का एलान किया है। एनपीपी पूर्वोत्तर में एक सापेक्ष नगण्य थी। हालांकि, संगमा परिवार के अधीन एनपीपी संसद में एनडीए का सहयोगी है, और जूनियर पार्टनर के रूप में मणिपुर और नागालैंड में बीजेपी के साथ गठबंधन में है। मेघालय में, एनपीपी गठबंधन का बड़ा सहयोगी है। मिजोरम में एनपीपी ने घोषणा की है कि वह 25 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है और संकेत दिया है कि वह किसी भी गठबंधन में सहयोगी नहीं होगा। हालांकि, पार्टी के ट्रैक रिकॉर्ड पर विचार करते हुए यह संभावना है कि वह बीजेपी के साथ गठबंधन करेगी।

भारतीय जनता पार्टी

मिजोरम में बीजेपी नगण्य है। राज्य की ईसाई आबादी ने बार-बार भगवा पार्टी को ख़ारिज किया है। बीजेपी ने पहले चुनाव लड़ने के लिए 13 नामों की एक सूची जारी की। हालांकि, दूसरी सूची में ये संख्या बढ़कर 24 हो गई है। बीजेपी चकमा क्षेत्रों को चिन्हित करने की कोशिश कर सकती है, और संभवतः ब्रू के बीच पक्षपात करने की कोशिश कर सकती है। चूंकि दोनों समुदाय अधिकतर ग़ैर- ईसाई हैं, चकमा बौद्ध हैं और ब्रू एनिमिस्ट हैं। हालांकि, ब्रू के असफल प्रत्यावर्तन से बीजेपी और कांग्रेस को परेशान करने की संभावना है, क्योंकि यह केंद्र सरकार के अनुग्रह की कमी थी कि उसने त्रिपुरा में शिविरों तक राशन पहुंचने से रोक दिया था।

Mizoram elections 2018
Assembly elections 2018
Mizo National Front
Bru Repatriation
Chakma
Zoramthanga

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