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भारत
राजनीति
मंदिर राग : तयशुदा स्क्रिप्ट के मुताबिक आगे बढ़ रहे हैं आरएसएस और मोदी
मोदी सरकार के शपथ ग्रहण के साथ ही तय हो गया था कि चौथे साल में विकास के नारे को त्याग दिया जाएगा और चुनाव से छह-आठ महीने पहले मंदिर या पाकिस्तान का राग जोरशोर से शुरू हो जाएगा।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
05 Nov 2018
mandir raga

जैसा कि तय था कहानी बिल्कुल स्क्रिप्ट के अनुसार आगे बढ़ रही है। सभी पात्र अपने अपने-अपने डायलॉग शानदार तरीके से बोल रहे हैं।

26 मई 2014 को मोदी सरकार के शपथ ग्रहण के साथ ही तय हो गया था कि चौथे साल में विकास के नारे को त्याग दिया जाएगा और चुनाव से छह-आठ महीने पहले मंदिर या पाकिस्तान का राग जोरशोर से शुरू हो जाएगा।

अंदाज था कि नरेंद्र मोदी, अटल बिहारी वाजपेयी वाली गलती नहीं दोहराएंगे। जिस तरह अटल अपने ‘इंडिया शाइनिंग’ और ‘फील गुड’ के गुब्बारों के साथ 2004 के आम चुनाव में गए और बुरी तरह धराशाही हो गए, उसी तरह मोदी ऐसा कोई जोखिम नहीं लेंगे। वे 2019 के आम चुनाव में विकास, रोज़गार, काला धन, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों को लेकर अपनी सरकार का रिपोर्ट कार्ड पेश नहीं करेंगे, बल्कि फिर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की मदद से राम की शरण में जाने का फैसला करेंगे।

और यही हो रहा है। आरएसएस से लेकर सभी छोटे-बड़े कथित साधु-संत और धर्म सम्मेलनों के बयान और फरमान इसी की पुष्टि कर रहे हैं।

अभी रविवार, 4 नवंबर को साधु-संतों ने दिल्ली में संत समागम में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए सरकार से अध्यादेश लाने या कानून बनाने की मांग की। संतों ने इस बात पर जोर दिया कि अदालत को भी जन-भावनाओं का आदर करना चाहिए। इससे एक दिन पहले आरएसएस ने भव्य राम मंदिर निर्माण के लिए 1992 की तरह फिर नया आंदोलन छेड़ने का संकेत दिया था। 

दिल्ली में हुए दो दिन के इस संत समागम 'धर्मादेश' में मंदिर निर्माण के लिए आगे की रणनीति तय की गई, जिसके अनुसार, अयोध्या, दिल्ली, बेंगलुरू और नागपुर समेत विभन्न शहरों में अगले दो महीने तक विशाल जनसभाओं का आयोजन कर जनभावना जगाई जाएगी। 

संत समिति ने कांग्रेस समेत अन्य धर्मनिरपेक्ष दलों की आलोचना करते हुए कहा कि वे मंदिर निर्माण की राह में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं। 

कार्यक्रम के आयोजक अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय सचिव जितेंद्रानंद सरस्वती ने मीडिया से बातचीत में कहा कि जनभावनाएं उभरती है तो दुनियाभर की अदातलें मसले पर रातभर में विचार करती हैं।

उन्होंने कहा, "सरकार व्यवस्था बनाती है। अदालत का काम कानून की व्याख्या करना है न कि उसका निर्माण।"

इससे साफ है कि 1992 की तरह माहौल एक बार फिर चार्ज करने की तैयारी है। और इसका परिणाम हम सब जानते ही हैं...। हिंसा की आग में देश को एक बार फिर झुलसाया जा सकता है।   
इस बार भी संविधान और न्यायपालिका  को ताक पर रखा जा रहा है। 

इससे पहले आरएसएस के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल सम्मेलन में राम मंदिर के लिए सरकार पर फिर दबाव बनाया गया। महाराष्ट्र में भायंदर कस्बे के उट्टन बीच के निकट हुए इस सम्मेलन के बाद आरएसएस महासचिव (सरकार्यवाह) सुरेश भैयाजी जोशी ने मीडिया से कहा कि, "हमें भरोसा है कि राम मंदिर जल्द बनेगा। हम पहले ही लंबा इंतजार कर चुके हैं और अनिश्चित काल तक इंतजार नहीं कर सकते। अगर जरूरी हुआ तो हम मंदिर के लिए एक जन आंदोलन शुरू करेंगे।"

उन्होंने कहा, "सर्वोच्च न्यायालय ने इसे प्राथमिकता का मामला न मानकर मामले में सुनवाई जनवरी तक के लिए टाल दिया, जिससे हिंदुओं की भावना को ठेस पहुंची है। यह गंभीर वेदना का विषय है।"

दिलचस्प है कि इस मुद्दे पर कोर्ट से जल्द सुनवाई या फैसला करने की दुहाई वे लोग और संगठन कर रहे हैं जो केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ हैं और उसे किसी भी सूरत में लागू नहीं होना देना चाहते।

सबरीमाला मंदिर विवाद पर जोशी ने कहा कि आरएसएस सभी मंदिरों में महिलाओं को प्रवेश दिए जाने का पक्षधर है, लेकिन किसी खास मंदिर की रीति-रिवाज व परंपराओं का सम्मान किया जाना चाहिए।

आरएसएस के संयुक्त महासचिव मनमोहन वैद्य ने भी कहा कि राम मंदिर का निर्माण राष्ट्रीय गौरव का विषय है और अभी तक अयोध्या विवाद का हल अदालतों में नहीं निकला है।
तीन दिवसीय इस अखिल भारतीय कार्यकारिणी मंडल का का उद्घाटन आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने किया था।

इससे पहले संघ प्रमुख भागवत ने नागपुर में 18 अक्टूबर को अपनी वार्षिक दशहरा रैली में मंदिर निर्माण के लिए कानून बनाने की मांग पहली बार उठाई थी। 

आरएसएस के अनुषांगिक संगठन विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने भी मंदिर के निर्माण के लिए कानून बनाने की मांग की। विहिप प्रवक्ता विनोद बंसल ने कहा, "जिस तरह से गुजरात में सोमनाथ मंदिर का सरदार पटेल ने पुनर्निर्माण कराया था, प्रधानमंत्री को भी आगामी शीत सत्र में एक कानून लाने का साहस दिखाना चाहिए।"

अयोध्या में एक बार फिर भव्य दीपावली मनाने की तैयारी कर रहे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने भी कहा है कि देश में बहुसंख्यक समुदाय रामजन्म भूमि विवाद मामले पर सर्वोच्च न्यायालय के जल्द फैसले की राह देख रहा है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मामले की सुनवाई जनवरी 2019 तक टालने के बाद आदित्यनाथ ने ट्वीट कर कहा, "समय पर मिला न्याय, उत्तम न्याय माना जाता है लेकिन न्याय में देरी कभी-कभी अन्याय के समान हो जाती है।"
उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी बयान देने में उनसे पीछे नहीं रहे। उन्होंने भी रविवार को लखीमपुर खीरी में पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण होगा, इससे कम किसी भी बात पर भाजपा समझौता नहीं करेगी। 

मौर्य ने कहा कि अयोध्या में बाबर के नाम की एक ईंट भी लगने नहीं दी जाएगी। राम मंदिर करोड़ों हिंदुओं की आस्था का प्रश्न है और भारतीय जनता पार्टी हमेशा से इसके पक्ष में खड़ी रही है। 

हमेशा विवादित बयानों कि लिए चर्चा में रहने वाले बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने बिहार में अपने संसदीय क्षेत्र नवादा में मीडिया से कहा, "दुनिया की कोई भी शक्ति राम मंदिर के निर्माण को नहीं रोक सकती क्योंकि लोगों के सब्र का बांध टूट रहा है।"

आपको बता दें कि 29 अक्टूबर को सर्वोच्च न्यायालय ने राम जन्मभूमि विवाद मामले की सुनवाई जनवरी, 2019 तक टाल दी है।

प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति के.एम.जोसेफ की पीठ ने मामले की सुनवाई के लिए किसी उचित पीठ के लिए सूचीबद्ध करने का आदेश दिया और यह उचित पीठ इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा विवादित स्थल को तीन भागों में बांटने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए जनवरी 2019 में तारीख तय करेगी।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 2010 के अपने फैसले में विवादित स्थल को तीन भागों -रामलला, निर्मोही अखाड़ा व मुस्लिम पक्षकारों- में बांटा था।

फैसले के बाद महंत परमहंस दास ने कहा है कि "भाजपा राम मंदिर निर्माण का वादा कर केंद्र और उत्तर प्रदेश की सत्ता में आई। अब वादा पूरा करने का समय आ गया है।"

राम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास ने कहा कि उन्हें इस बात का दुख है कि शीर्ष अदालत द्वारा विलंब किए जाने से भगवान राम को लंबे समय तक तंबू में इंतजार करना पड़ेगा।

इस मामले में मुस्लिम पक्षकार इकबाल अंसारी का कहना है कि हर किसी को सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का इंतजार करना चाहिए और यह दोनों पक्षों को मान्य होगा। 

उधर शिवसेना भी मंदिर को लेकर खुद को बीजेपी से बड़ा हिन्दूवादी और रामभक्त साबित करना चाहती है। इसके लिए शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे 25 नवंबर को अयोध्या पहुंच रहे हैं।

उद्धव के दौरे की तैयारियों के लिए अयोध्या पहुंचे शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत ने कहा कि रामजन्मभूमि मुद्दे के समाधान के लिए सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का इंतजार करना व्यर्थ है क्योंकि अगर अदालत के आदेश का इंतजार किया गया तो इसमें हजारों साल लग जाऐंगे। उन्होंने कहा कि भव्य राम मंदिर निर्माण का एकमात्र रास्ता 'अध्यादेश मार्ग' है।

शिवसेना केंद्र और महाराष्ट्र में भाजपा की सहयोगी भी है।

भारतीय जनता पार्टी के नये-नवेले राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा ने कहा है कि वह संसद में अयोध्या में राम मंदिर के लिए निजी सदस्य विधेयक यानी प्राइवेट बिल लाने पर विचार कर रहे हैं।

जिस मसले पर सरकार से सवाल पूछे जा रहे हैं उस मसले पर राकेश सिन्हा प्राइवेट बिल लाने से पहले ही गेंद विपक्ष के पाले में फेंकना चाहते हैं। राकेश सिन्हा ट्वीट कर पूछते हैं कि "क्या राहुल गांधी, सीताराम येचुरी, लालू प्रसाद, मायावती अयोध्या पर निजी विधेयक को समर्थन देंगे? "

कुल मिलाकर आरएसएस से लेकर बीजेपी, शिवसेना और उनसे जुड़े छोटे-बड़े साधु-संत सभी ने अयोध्या को लेकर बयानबाज़ी तेज़ कर दी है। हालांकि विपक्ष समेत अन्य राजनीति के जानकारों का यही मानना है कि आगामी लोकसभा चुनाव और अभी होने जा रहे राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर ऐसा माहौल बनाया जा रहा है ताकि वोटों का ध्रुवीकरण किया जा सके और जनता बीजेपी सरकार से काम का हिसाब न ले। लेकिन यह तय है कि अगर वोटों की खातिर इन अंगारों को फिर हवा दी गई तो उसका खामियाज़ा पूरे देश को भुगतना पड़ेगा। हालांकि महंगाई और बेरोज़गारी से जूझ रही जनता भी अब बखूबी समझ रही है कि ये सब खेल क्या है और किसकी बातों और वादों में कितना दम है।

(इनपुट आईएएनएस)

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