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मोदी-अक्षय इंटरव्यू : अराजनीतिक के नाम पर राजनीतिक प्रहसन!
“ऐसे वक्त में जब चुनाव आचार संहिता लागू है ये सवाल जायज़ हो जाता है कि मोदी जी के उस 'एपोलिटिकल' इंटरव्यू के पीछे कौन है? वो कौन है जो चाहता है कि आप ये सुनें कि मोदी जी ने बचपन में कितनी ग़रीबी का सामना किया।”
न्यूज़क्लिक डेस्क
24 Apr 2019
स्क्रीन शॉट

चुनाव चरम पर हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिन में कई-कई सभाएं कर रहे हैं, जिनका टेलीविज़न पर सीधा प्रसारण होता है। वेबसाइट और अख़बारों में पूरा ब्योरा छपता है। इसके अलावा सड़क से लेकर टीवी-अख़बार सभी जगह उनके विज्ञापन भी छाए हुए हैं, लेकिन शायद इससे भी उनके चुनाव या प्रचार की पूर्ति नहीं हो रही तभी वे अपने प्रचार और विज्ञापन के नये-नये तरीके ढूंढ रहे हैं। ऐसा ही एक तरीका आज आज़माया गया जिसे नाम दिया गया ‘एपोलिटिकल इंटरव्यू’ यानी अराजनीतिक साक्षात्कार। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार को एक लंबा इंटरव्यू दिया जिसे समाचार एजेंसी एएनआई के ज़रिये जारी किया गया और एक घंटे से से भी ज़्यादा के इस इंटरव्यू को देश के ज़्यादातर न्यूज़ चैनलों ने बुधवार सुबह प्रसारित किया और उसके बाद पूरे ‘उत्साह’ के साथ इसपर चर्चा की।  

बीच चुनाव इस तरह के इंटरव्यू को लेकर कई तरह के सवाल भी उठे हैं। इस इंटरव्यू ने अक्षय ने मोदी जी से बहुत हल्के-फुल्के सवाल जैसे उनकी दिनचर्या क्या है, क्या उन्हें आम पसंद हैं, क्या वे संन्यासी बनना चाहते थे, क्या वे सेना में जाना चाहते थे, वे कितनी देर सोते हैं... जैसे सवाल पूछे हैं। इसे लेकर सोशल मीडिया ख़ासकर फेसबुक और ट्वीटर पर लोगों ने कई गंभीर सवाल पूछे हैं और कई तरह के व्यंग्य भी किए हैं।

जमशेद क़मर सिद्दीकी (Jamshed Qamar Siddiqui) अपने फेसबुक वॉल पर लिखते हैं :

“कोई कार्यक्रम जब किसी एक चैनल पर आता है तो ये बात आसानी से समझ आती है कि इसका प्रोडक्शन चैनल ने अपने कॉटेंट के तौर पर किया है। लेकिन जब एक कार्यक्रम सभी चैनलों पर एक साथ दिखाया जाता है तो ये बात साबित हो जाती है कि जिन चैनलों पर उसे प्रसारित किया जा रहा है वो सिर्फ ब्रॉडकास्टर हैं, निर्माता नहीं। ऐसे वक्त में जब चुनाव आचार संहिता लागू है ये सवाल जायज़ हो जाता है कि मोदी जी के उस 'एपोलिटिकल' इंटरव्यू के पीछे कौन है? वो कौन है जो चाहता है कि आप ये सुनें कि मोदी जी ने बचपन में कितनी ग़रीबी का सामना किया। वो कौन है जो चाहता है कि आप जाने कि वो जवानी के दिनों में देश के लिए कुर्बान हो जाना चाहते थे, आपके ये जानने से किसे फायदा है कि वो सिर्फ चार घंटे सोते हैं। इसके जवाब में आप खामोश रहना चाहें तो कोई बात नहीं लेकिन ये सवाल फिर भी अपनी पूरी ताकत से गूंजेगा कि वो चुनाव आयोग, जिसने सन् 84 में अमिताभ बच्चन की फ़िल्मों पर इसलिए रोक लगा दी थी क्योंकि वो इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में चुनावी मैदान में थे, आज इतना कमज़ोर और अपाहिज कैसे हो गया।

क्या ये समझने के लिए इंटायर पॉलिटिकल साइंस की डिग्री चाहिए कि ये इंटरव्यू खुले तौर पर चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन है और इसे जानबूझ कर किये गए उल्लंघन के तौर पर नरेंद्र मोदी की चुनाव में भाग लेने की अहर्रता रद्द होनी चाहिए।

न्यूज़ चैनलों को बताना चाहिए कि इस प्रायोजित इंटरव्यू को चलाने की फीस उन्हें किसने और किस तरह दी। अगर नहीं, तो फिर ये लोकतांत्रिक प्रकिया का ढोल पीटने वाले चुनाव के तमाशा की ज़रूरत क्या है। क्यों बेवजह चुनाव-चुनाव का ये मंहगा खेल खेलकर जनता का समय और पैसा दोनों बर्बाद किया जा रहा है। ऐसा क्यों न किया जाए कि सब लोग एक दिन इंडिया गेट पर जमा होकर ये तय कर लें कि मोदी जी को बिना चुनाव के फिर से प्रधानमंत्री बना दिया गया है। क्या ज़रूरत है इस चुनाव-वुनाव के ढोंग की। जिस देश के चुनाव आयोग की रीढ़ की हड्डी गल गई हो वहां के नागरिक चुनी हुई सरकारों के हक़दार नहीं होते।”

पत्रकार जितेंद्र कुमार (Jitendra Kumar) अपनी फेसबुक वॉल पर लिखते हैं :  

“एक ‘अराजनीतिक’ इंटरव्‍यू में मोदी ने अपने सबसे बड़े राजनीतिक झूठ को खुद बेनकाब कर दिया!

जब नरेन्द्र मोदी 2014 के लोकसभा चुनाव में संसदीय दल के नेता चुने गए और प्रधानमंत्री बनकर पहली बार संसद भवन पहुंचे तो उन्होंने संसद भवन के गेट पर माथा टेका था। सेवकजी ने आंखों में आंसू लाकर पूरी दुनिया को बताया था कि उन्होंने लोकतंत्र के इस मंदिर में आजतक कदम नहीं रखा था। पांच साल बाद अक्षय कुमार को दिए इंटरव्‍यू में अब उन्‍होंने अपना झूठ खुद कुबूल कर लिया है।

संसद के सेंट्रल हॉल में बीजेपी संसदीय दल की पहली बैठक में उन्‍होंने अपने पहले भाषण में 2014 में कहा था कि वह जिंदगी में पहली बार संसद भवन में तब प्रवेश कर रहे हैं जब एमपी और प्रधानमंत्री चुने गए हैं। उस वक्‍त हम सबने सेवकजी की लोकतंत्र में गहरी आस्था के लिए दुहाई दी थी, उनकी प्रतिबद्धता पर तालियां बजाई थीं। अखबारों और टेलीविजन चैनलों ने सेवकजी के आप्त वचन को उसी रूप में छापकर, दिखाया भी था कि दिल्ली की राजनीति में इतना लंबा वक्त गुजारने के बावजूद उस व्यक्ति ने कभी संसद भवन में कदम नहीं रखा था। उनके उस कथन को हमारे देश के सभी चारण पत्रकारों ने मोदी जी के इस कर्म को रेखांकित करते हुए समझाया था कि कैसे वह इतिहास में दर्ज हो गया है।

उस समय भी हालांकि कई ऐसे पत्रकार थे जो बातचीत में बता रहे थे कि मोदी जी झूठ बोल रहे हैं क्योंकि उन्होंने खुद कई बार उनको संसद भवन में देखा है, लेकिन वही बात वह पत्रकार खुद न लिखने के लिए अभिशप्त था। उनका संपादक, उनका ब्यूरो चीफ या फिर उनका मालिक मोदी के बारे में कोई ऐसी बात नहीं लिखने की इजाजत दे रहा था जो उनकी गढ़ी जा रही ’स्टेट्समैन’ की छवि को नुकसान पहुंचाए! सबने मान लिया कि नरेन्द्र दामोदर भाई मोदी ने सचमुच संसद भवन में कदम नहीं रखा था।

आज कनाडाई नागरिक व रील अभिनेता अक्षय कुमार के साथ अगंभीर व अराजनीतिक साक्षात्कार में प्रधानसेवक जी ने अपने बनाए झूठ का खंडन करके सत्य को सबके सामने रख दिया। रील अभिनेता अक्षय कुमार के एक प्रश्न कि आपका विपक्षी पार्टी में कोई दोस्त है या नहीं, (वीडियो 19.46 मिनट से), तो इसके जवाब में रीयल अभिनेता नरेन्द्र भाई मोदी कहते हैं- बहुत अच्छे दोस्त हैं, हमलोग साल में एक-आध बार आज भी खाना खाते हैं, खैर वह फॉर्मल होता है…बहुत पहले की बात है तब मैं मुख्यमंत्री भी नहीं था… शायद किसी काम से मैं पार्लियामेंट गया था। गुलाम नबी आज़ाद और मैं बड़े दोस्ताना अंदाज में गप्पे मार रहे थे और हम बाहर निकल रहे थे तो मीडिया वालों ने पूछा कि भाई तुम तो आरएसएस के हो, फिर गुलाम नबी से तुम्हारी दोस्ती कैसे है? फिर गुलाम नबी ने अच्छा जवाब दिया, बहुत अच्छा जवाब दिया! हम दोनों खड़े थे। उन्होंने कहा कि बाहर जो आपलोग सोचते हो, ऐसा नहीं है… शायद एक फैमिली के रूप में हम जुड़े हुए हैं… सभी दलों के लोग, शायद आप बाहर कल्पना नहीं कर सकते।

अब जिन लोगों ने सेवकजी को सत्य की प्रतिमूर्ति कहा था कि वह पहली बार संसद भवन में पहुंचकर भावुक हो गए थे, लोकतंत्र के मंदिर में सर नवा रहे थे, क्या वे और प्रधानसेवक झूठ व फरेब के लिए जनता से माफी मांगेंगे?”

युवा पत्रकार मुकुंद झा ट्वीट करते हैं :
3 चरणों के मतदान के बाद मोदी को समझ में आ गया है कि उनका जाना तय है, इसलिए उन्होंने आज एक ‘विशेष पत्रकार’ को साक्षात्कार दिया जिसमे कई महत्वपूर्ण खुलासे किये
1. उन्हें आम बहुत पसंद हैं
2. ममता दीदी उन्हें कुर्ते भेजती हैं
3. शेख हसीना उन्हें बंगाली मिठाई भेजती हैं

उधर, इस इंटरव्यू के बारे में अभिनेता कमाल आर खान ने ट्विटर पर व्यंग्य किया है। उन्होंने लिखा,  “अक्षय कुमार का इंटरव्यू बहुत ही ख़राब था क्योंकि उन्होंने मोदीजी से नहीं पूछा कि कौन-सा देश बेहतर है? मोदी का भारत या अक्षय कुमार का कनाडा? तो मैं इसे एक स्टार देता हूं, ये इंटरव्यू समय की बर्बादी है!” इस तरह कमाल आर खान ने एक बार फिर अक्षय कुमार की राष्ट्रीयता को लेकर सवाल उठाया है।

Akshay Kumar’s interview is really bad because he didn’t ask Modi Ji that which country is better? Modi’s India or Akshay Kumar’s Canada? So I give 1* to this waste of time interview!?

— KRK (@kamaalrkhan) April 24, 2019

फिल्ममेकर राकेश शर्मा इस इंटरव्यू को चुनाव प्रचार बताते हुए चुनाव आयोग से सवाल करते हैं कि क्या चुनाव आयोग ने इस इंटरव्यू को पास किया है।
 

Dear EC:
This is a promotional interview with candidate Modi, done by a filmstar to maximise PR/Publicity during polls. Direct campaign video splashed across channels.

1. Have you approved it?
2. Are AK fees, Production & 30-min TV slot costs part of personal campaign expenses? https://t.co/tLQzscSjgX

— Rakesh Sharma (@rakeshfilm) April 24, 2019

Narendra modi
Akshy kumar
2019 आम चुनाव
General elections2019
2019 Lok Sabha elections
MODEL CODE OF CONDUCT
different standrad of code of conduct

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