NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
मोदी का उच्च जातियों को कोटा डॉ. अंबेडकर का अपमान है
एक तरफ तो आरएसएस अंबेडकर को अपनाने का स्वांग रचता है, जबकि दूसरी तरफ वह दलित जातियों के आरक्षण की आवश्यकता पर उनकी बुनियादी सोच को ही खारिज करता है।
12 Jan 2019
Translated by महेश कुमार
सांकेतिक तस्वीर
Image Courtesy : Indian Culture Forum

यह तो समय ही बताएगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का निर्णय एक 'मास्टरस्ट्रोक' है या 'जुमला' (एक ओर खोखला वादा) है। लेकिन इस निर्णय ने निश्चित तौर पर संघ परिवार नवें असमान पर पहुंच गया लगता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने लगातार जाति आधारित आरक्षण का विरोध किया है और संविधान में आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण की वकालत की है। मोदी का यह कदम उसी दिशा में है। आज तक, आरएसएस ने, बड़ी ही धूर्तता से, और कभी-कभी खुले तौर पर भी, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से घृणा की है, यहां तक कि उन्हें ‘सरकारी ब्राह्मण’ भी कहा। अब जब मोदी ने इस कदम को आगे बढ़ा दिया है, तो योग्यता के मिथक से भरा यह तर्क हमारा आगे भी पीछा करेगा।

कहने की जरूरत नहीं है कि आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग को 10 प्रतिशत आरक्षण का वादा एक राजनीतिक चाल है। घटती लोकप्रियता, बढ़ते कृषि संकट और बेरोजगारी के बढ़ने से मोदी की साख इस समय एक दम दलदल में धंसी हुयी है। अर्थव्यवस्था को नुकसान हो रहा है और तथाकथित गौ रक्षक समूहों ने (गाय सतर्कता) आतंक मचाया हुआ है।

आज तक मोदी 2014 में किए गए वादों को पूरा नहीं कर पाए हैं, और रफ़ाल सौदे के आसपास के शोर ने राम मंदिर के आह्वान को भी ध्वस्त कर दिया है। ‘सवर्ण जाति का आरक्षण मौजूदा स्थिति से ध्यान हटाने के लिए सिर्फ एक पैनिक पैदा करने की रणनीति है। भले ही इस आरक्षण में मुस्लिम और ईसाई भी शामिल हैं, लेकिन मोदी के मंत्री केवल आर्थिक रूप से पिछड़ों के आरक्षण के लिए जिसमें बनिए, भूमिहार, राजपूत और सबसे महत्वपूर्ण, ब्राह्मणों की जीत के रूप में इसे प्रचारित कर रहे हैं।

मोदी मुख्यत: 1989 के पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह की प्लेबुक से सबक ले रहे लगते हैं, जिन्होंने 29 साल पहले मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू किया था। सिंह को बड़ी उम्मीद थी कि मंडल आयोग को लागू करने से ओबीसी राम मंदिर आंदोलन से अलग हो जाएंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यह अगले चुनावों में वी.पी. सिंह की मदद नहीं कर पाये। हालांकि, 1992 में इसके लागू होने के बाद इसका व्यापक सामाजिक-राजनीतिक प्रभाव पड़ा था। मोदी का कोटा तो उस प्रभाव को भी नही बढ़ा पाएगा।

सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (CSDS) के संजय कुमार के अनुसार, 2014 में उच्च जाति के वोट काफी हद तक मोदी के पास गए थे, इस हद तक गए कि भाजपा 2019 में इन्हें और अधिक जोड़ने की उम्मीद नहीं कर सकती थी। यह लॉलीपॉप ही हो सकता है जो एंटी-इनकंबेंसी पर अंकुश लगाने और भ्रमित उच्च जाति के वोट को बरकरार रखने में मदद कर सके। दूसरी तरफ, यह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खिलाफ ओबीसी और एससी/एसटी मतदाताओं की एकता को मज़बूत कर सकता है और वे इसे मोदी के खिलाफ इस्तेमाल करें इसकी संभावना है। वास्तव में, दलित युवा नेता जिग्नेश मेवानी ने पूछा है कि क्या यह आरएसएस द्वारा उनके आरक्षण को निगल जाने की की साजिश है?

यहां तक कि पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने मंडल के बाद माहौल को शांत करने के लिए इस स्टंट को चलाने का प्रयास किया था, लेकिन इसे ऐतिहासिक इंदिरा साहनी बनाम संघीय सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट की नौ-सदस्यीय पीठ ने खारिज़ कर दिया था। यह फैसला इस बात की स्पष्ट व्याख्या करता है कि आर्थिक आधार पर आरक्षण देना संवैधानिक रूप से क्यों संभव नहीं है।

लेकिन मोदी के भरोसेमंद मंत्री अरुण जेटली का कहना है कि सरकार राव के फैसले में कमियों से अच्छी तरह वाकिफ है। आर्थिक आधार पर आरक्षण प्रदान करने की उनकी सरकार की कोशिश ने संविधान के अनुच्छेद 15 (4) और 16 (4) में संशोधन करने का पालन किया है। कुछ ऐसा जो राव की सरकार ने नहीं किया था। फिर भी, कानून विशेषज्ञों का मानना है कि यह शीर्ष अदालत में खारिज़ हो जाएगा।

हमारे संविधान के वास्तुकारों ने जाति आधारित आरक्षण के पीछे के कारणों को स्पष्ट किया है। बाबासाहेब अंबेडकर ने कहा था कि यह गरीबी उन्मूलन योजना नहीं है बल्कि सदियों से उत्पीड़ित लोगों के लिए इसके जरिये उन्हें विशेष अवसर प्रदान करना है। जवाहरलाल नेहरू ने भी इसका समर्थन किया था।

संविधान सभा ने विस्तृत विचार-विमर्श करने के बाद ‘शैक्षणिक सामाजिक पिछड़ेपन के साथ-साथ आर्थिक पिछड़ेपन’ को अंतिम मसौदे में शामिल करने से इनकार कर दिया था। इसका मतलब यह नहीं है कि उनमें गरीबों के प्रति सहानुभूति की कमी थी। उन्होंने आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए अन्य कई प्रावधान किए। लेकिन मोदी मूल रूप से अंबेडकर के आरक्षण के मूल विचार की अवहेलना कर रहे हैं। कुछ लोग इसे अंबेडकर का अपमान भी कह सकते हैं। एक तरफ, आरएसएस अंबेडकर को अपनाने का स्वांग रचता है, और दूसरी तरफ, वह उनकी बुनियादी सोच को खारिज करता है!

राष्ट्रीय जनता दल और दो तमिल पार्टियों - डीएमके और एआईएडीएमके को छोड़कर – अन्य राजनीतिक दलों की मोदी की इस चाल पर उनको कोसने की हिम्मत नहीं हुयी, और उनके पाखंड को उजागर करने की हिम्मत नहीं दिखाई। कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और बीजू जनता दल ने फैसले की आलोचना की, लेकिन सरकार को संविधान से छेड़छाड़ करने के लिए कुछ नहीं कहा और विधेयक के समर्थन में मतदान करने से भी इंकार नहीं किया। प्रकाश अंबेडकर को छोड़कर, मायावती सहित कोई भी दलित नेता बाबासाहेब की विरासत को नहीं जी पाया। लेकिन संविधान की भावना के खिलाफ जाने वाले संशोधन की समीक्षा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की जा सकती है। केशवानंद भारती का 1973 का मामला इस पर स्पष्ट है।

लेकिन मोदी को इसकी चिंता करने की जरूरत नहीं है। भले ही लोकसभा और राज्यसभा ने विधेयक को मंजूरी दे दी है, लेकिन इसे सभी राज्य विधानसभाओं के 50 प्रतिशत मतों को पाने की आवश्यकता है। इसके बाद राष्ट्रपति द्वारा इस पर हस्ताक्षर किए जाएंगे और तब यह एक कानून बन पाएगा। इस बीच, 2019 के आम चुनाव संपन्न हो गए होंगे। इसलिए, अगर कोई उच्चतम न्यायालय के दरवाजे खटखटाता है, तो भी मोदी को चिंता करने की जरूरत नहीं है। मामला तुरंत समाप्त नहीं होगा।

हालांकि, गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में वही मोदी जी कहते थे कि भारत को नौकरियों की जरूरत है, आरक्षण की नहीं। वे उस वक्त  50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण की सीमा को बढ़ाने का विरोध कर रहे थे। आज, उनकी ही पहल ने इसे 59.5 प्रतिशत कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट को अभी तमिलनाडु कोटे के मामले पर अपना फैसला सुनाना है। जब तक वह नहीं आएगा, तब तक यह कोटा अस्पष्ट रहेगा।

उसके ऊपर, आर्थिक रूप से पिछड़े होने के मापदंड भी विवादास्पद हैं, कम से कम कहने के लिए तो है। 1,000 वर्ग फीट का एक घर, 8 लाख रुपये के भीतर की वार्षिक घरेलू आय या पांच हेक्टेयर के अंतर्गत खेत का मतलब होगा कि अधिकांश भारतीय इस श्रेणी में आ जाएंगे। सरकार उन नंबरों पर कैसे पहुंची, और 10 प्रतिशत का आंकड़ा अभी भी एक रहस्य बना हुआ है।

हालांकि, सबसे बड़ी विडंबना यह है कि नौकरियां है ही नहीं। सार्वजनिक क्षेत्र से 10 लाख से अधिक नौकरियां मोदी के शासन में खत्म हो गई हैं। अगर 10 लाख सरकारी नौकरियों की मांग को लागू किया जाता है, तो उनमें से केवल 45,000 ही सालाना उपलब्ध होंगी। यदि मोदी वास्तव में एक क्रांतिकारी कदम उठाना चाहते थे, तो उन्हें निजी क्षेत्र में इस आरक्षण को बढ़ाना चाहिए था। लेकिन इसे लागू करने के लिए हिम्मत होनी चाहिए।

शायद टीएमसी सांसद डेरेक ओ'ब्रायन ने मोदी के नए लॉलीपॉप पर सबसे सटीक टिप्पणी की थी। उन्होंने राज्यसभा में कहा, 'मोदी ने अब तक कई कार्यक्रम शुरू किए हैं। स्टैंड अप इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया, मेक इन इंडिया वगैरह। यह एक नया कार्यक्रम है। भारत को धोखा दो। ”

संवेदनशील नागरिक डेरेक से असहमत नहीं होंगे।

Modi’s Forward Quota
10% Quota
Reservation Policy
10% reservation
upper caste reservation
Dr. Ambedkar
Narendra modi
Modi Govt

Related Stories

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"

सरकारी एजेंसियाँ सिर्फ विपक्ष पर हमलावर क्यों, मोदी जी?

भाजपा के लिए सिर्फ़ वोट बैंक है मुसलमान?... संसद भेजने से करती है परहेज़


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली उच्च न्यायालय ने क़ुतुब मीनार परिसर के पास मस्जिद में नमाज़ रोकने के ख़िलाफ़ याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार किया
    06 Jun 2022
    वक्फ की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि यह एक जीवंत मस्जिद है, जो कि एक राजपत्रित वक्फ संपत्ति भी है, जहां लोग नियमित रूप से नमाज अदा कर रहे थे। हालांकि, अचानक 15 मई को भारतीय पुरातत्व…
  • भाषा
    उत्तरकाशी हादसा: मध्य प्रदेश के 26 श्रद्धालुओं की मौत,  वायुसेना के विमान से पहुंचाए जाएंगे मृतकों के शव
    06 Jun 2022
    घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद शिवराज ने कहा कि मृतकों के शव जल्दी उनके घर पहुंचाने के लिए उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से वायुसेना का विमान उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था, जो स्वीकार कर लिया…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आजमगढ़ उप-चुनाव: भाजपा के निरहुआ के सामने होंगे धर्मेंद्र यादव
    06 Jun 2022
    23 जून को उपचुनाव होने हैं, ऐसे में तमाम नामों की अटकलों के बाद समाजवादी पार्टी ने धर्मेंद्र यादव पर फाइनल मुहर लगा दी है। वहीं धर्मेंद्र के सामने भोजपुरी सुपरस्टार भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं।
  • भाषा
    ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉनसन ‘पार्टीगेट’ मामले को लेकर अविश्वास प्रस्ताव का करेंगे सामना
    06 Jun 2022
    समिति द्वारा प्राप्त अविश्वास संबंधी पत्रों के प्रभारी सर ग्राहम ब्रैडी ने बताया कि ‘टोरी’ संसदीय दल के 54 सांसद (15 प्रतिशत) इसकी मांग कर रहे हैं और सोमवार शाम ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में इसे रखा जाएगा।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 
    06 Jun 2022
    देश में कोरोना के मामलों में आज क़रीब 6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है और क़रीब ढाई महीने बाद एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 25 हज़ार से ज़्यादा 25,782 हो गयी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License