NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
मोदी के मौन से भाजपाई भी भ्रमित
वीरेन्द्र जैन
08 Jul 2015
पिछले दिनों प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी राष्ट्रीय स्तर पर केवल दो सरकारी कार्यक्रमों में बोलते हुए सुनायी दिये उनमें से एक अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का कार्यक्रम था और दूसरा डिजीटल इंडिया के प्रारम्भ करने का कार्यक्रम था। दोनों ही कार्यक्रमों में वे धारा प्रवाह बोलने वाले पुराने स्वरूप में नजर नहीं आये अपितु ऐसा लगा जैसे कि उन्होंने लिखा हुआ भाषण पढ दिया हो। इस रूप में वे राजनीतिक सक्रियता के पूर्वार्ध की श्रीमती सोनिया गाँधी या उत्तरार्ध की मायावती की तरह लगे। किसी भी राजनेता की अपनी विशिष्ट पहचान होती है और श्री मोदी ने जिस रूप में अपनी पहचान बनायी थी वह पहचान इन दिनों खो गयी सी लगी।
                                                                                                                             
 
यह किंकर्तव्यविमूड़ता वाली स्थिति उनकी पार्टी के विभिन्न राजनेताओं पर लगे घोटालों के आरोपों के बाद बनी है। पिछले दशकों में देश में जो राजनीतिक संस्कृति विकसित हुयी है उसमें लगाये गये आरोपों जैसी घटनाएं असामान्य नहीं हैं किंतु यह असामान्यता श्री मोदी के चुनावी भाषणों में किये गये वादों और भिन्न तरह की सरकार होने की थोथी और बड़बोली घोषणाओं के कारण बनी है। जब उन्होंने गरज के साथ यह घोषणा की थी कि न खाऊँगा और न खाने दूंगा तब शायद उन्होंने अपनी पार्टी के स्वरूप और जुटाये गये समर्थन को ध्यान में नहीं रखा था। उनके प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी के रूप में चयन को जिस तरह से पार्टी के लोगों ने थोड़े से ना-नुकर के बाद स्वीकार कर लिया था और उन्हें टिकिट वितरण से लेकर दलबदलुओं समेत विभिन्न फौज, पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों को आयात करने तक का अधिकार दे दिया था उससे शायद उन्हें यह गलतफहमी हो गयी होगी कि आगामी पाँच साल इसी तरह उनकी तूती बोलती रहेगी। अब शायद उन्हें अपनी भूल महसूस हो रही है जो उनके मौन हो जाने में प्रकट हो रही है। चुनावपूर्व के अन्धसमर्थन के पीछे सत्ता से दूर पार्टी के लोगों में इस उम्मीद का पैदा होना था कि एक यही व्यक्ति है जो हमें केन्द्र में सत्ता दिलवा सकता है क्योंकि गुजरात में इसने न केवल डूबती हुयी पार्टी को उबार दिया अपितु उसकी जड़ें मजबूत कर दीं।
 
इस रूप में चुनाव जीतने का भरोसा शायद श्री मोदी को भी नहीं रहा होगा इसलिए उन्होंने न केवल पूरे न हो सकने वाले वादे ही किये अपितु विभिन्न दलों के उन अवसरवादी लोगों को भी प्रवेश दिया जिनकी राजनीति केवल पद और पैसा बनाने से ऊपर नहीं जाती। चुनाव में जीत हासिल करने के लिए येदुरप्पा जैसे अनेक लोगों को जिन्होंने कभी अलग पार्टी बना ली थी न केवल दल में शामिल कर लिया अपितु टिकिट भी दिया गया। ऐसे अन्य अनेक लोग उनके दल में पहले से ही मौजूद थे और मजबूत समर्थन से सत्ता ग्रहण करने के बाद उन्हें दल में सफाई अभियान प्रारम्भ करके अपना मानक स्थापित करना चाहिए था किंतु उन्होंने उक्त सफाई अभियान करने की जगह सड़कों की सफाई अभियान का अभियान प्रारम्भ किया जिसमें उनकी ही पार्टी के लोग लाये हुए कचरे को फैलाने के बाद झाड़ू लगाने की फोटो खिंचवाते हुए सामने आये। स्वच्छता अभियान नेतृत्व में भरोसे की परख के लिए एक अच्छा जनमत संग्रह हो सकता था जिसकी असफलता ने ही संकेत दे दिया था कि उनके समर्थक किसी नई ज़मीन को तोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं अपितु पुराने खेत में बोयी गयी फसल को काट कर अपने घर ले जाने के लिए ही तैयार हो कर निकले हैं।
 
अगर उन्हें देश और अपनी पार्टी के लोगों को कोई सन्देश देना था तो सबसे पहले मध्य प्रदेश सरकार में नेतृत्व परिवर्तन करके देने की जरूरत थी जिसके खिलाफ लगे आरोपों के पर्याप्त सबूत थे। किंतु उन्होंने न केवल इस नेतृत्व को ही बनाये रखा जिसके मंत्रीमण्डल का सर्वाधिक महत्वपूर्ण विभाग सम्हालाने वाला मुख्य मंत्री का सबसे विश्वसनीय केबिनेट सदस्य जेल जा चुका था अपितु पिछली सरकार द्वारा नियुक्त राज्यपाल तक को नहीं बदला जिन पर कई आरोप लग चुके थे। उल्लेखनीय है कि इस बीच जिन राज्यपालों पर कोई आरोप नहीं थे उन्हें तक हटा दिया गया था क्योंकि उनकी नियुक्ति पिछली सरकार ने की थी।
 
अंग्रेजी में कहावत है कि – हिट द आयरन व्हेन इट इज हाट। जब उनकी अभूतपूर्व जीत के कारण उनकी चारों ओर जयजयकार हो रही थी तब लिये गये फैसले उनकी जीत के प्रभाव में स्वीकार कर लिये जाते, जैसे कि अडवाणी, मुरली मनोहर जोशी को सरकार से दूर रख कर लिया गया कठोर फैसला स्वीकार कर लिया गया था। पर उनके बाद के फैसले मजबूती से नहीं लिये गये। हर बड़े परिवर्तन के लिए खतरा उठाना पड़ता है। उल्लेखनीय है कि श्रीमती गाँधी ने अगर काँग्रेस का विभाजन करते हुए संगठन के लोगों के खिलाफ कदम उठा कर राष्ट्रपति चुनाव में श्री वी वी गिरि को समर्थन देने का खतरा नहीं उठाया होता तो उन्हें सत्ता से दूर होने में देर नहीं लगती। यदि समाज भ्रष्टाचार जैसी बीमारियों से परेशान हो तो जनता कठोर फैसले लेने वाले शासक को पसन्द करती है। बंगलादेश मुक्ति संग्राम हो या स्वर्ण मन्दिर को आतंकवादियों से मुक्त करने के लिए आपरेशन ब्लू स्टार हो, इनके लिए श्रीमती गाँधी को व्यापक जनसमर्थन मिला था। मोदी को भी जनता ने इसी उम्मीद से देखा था और आशा की थी कि वे अपने वादों के अनुरूप सत्ता सम्हालते ही भ्रष्टाचारियों और ब्लैकमनी वालों के खिलाफ टूट पड़ेंगे, पर ऐसा नहीं हुआ अपितु इसके उलट मोदी सरकार उन्हें बचाती नजर आयी, तो लोगों ने ठगा हुआ महसूस किया। संयोग से जब इसी बात को राम जेठमलानी, अरुण शौरी, गोबिन्दाचार्य, आर के सिंह, आदि अनेक लोगों ने एक साथ कहा तो मोदी समर्थक लोगों को लगा कि उनकी सोच सही है। जब सुषमा, वसुन्धरा, पंकजा मुण्डे और स्मृति ईरानी तक के मामलों में मोदीजी ने चुप्पी साध ली तो लोगों को भरोसा हो गया कि दाल में काला है।
 
पिछले कुछ वर्षों में भाजपा नीति की जगह नेता के अनुसार चलने लगी है इसलिए पार्टी के लोग दिशा पाने के लिए नेता के मुख की ओर मुखातिब होने लगे हैं। जिस इकलौते नेता को सारी जिम्मेवारियां सौंप कर सबको चुप करा दिया गया हो और अगर वही मौन धारण कर ले तो पूरी पार्टी अपाहिज हो जाती है। इस समय भी ऐसी स्थिति आ चुकी है कि प्रवक्ता अपनी बात ठेलते तो रहते हैं किंतु यह तय नहीं कर पाते कि वे कौन सी लाइन लें। मोदीजी जैसे व्यक्ति से यह उम्मीद तो की ही जा सकती है कि वे खतरे उठाते हुए भी सही  फैसले लें।
 
डिस्क्लेमर:- उपर्युक्त लेख में वक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं, और आवश्यक तौर पर न्यूज़क्लिक के विचारों को नहीं दर्शाते ।
भाजपा
नरेन्द्र मोदी
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस
डिजीटल इंडिया
व्यापम

Related Stories

#श्रमिकहड़ताल : शौक नहीं मज़बूरी है..

पेट्रोल और डीज़ल के बढ़ते दामों 10 सितम्बर को भारत बंद

आपकी चुप्पी बता रहा है कि आपके लिए राष्ट्र का मतलब जमीन का टुकड़ा है

अबकी बार, मॉबलिंचिग की सरकार; कितनी जाँच की दरकार!

आरक्षण खात्मे का षड्यंत्र: दलित-ओबीसी पर बड़ा प्रहार

झारखंड बंद: भूमि अधिग्रहण बिल में संशोधन के खिलाफ विपक्ष का संयुक्त विरोध

झारखण्ड भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल, 2017: आदिवासी विरोधी भाजपा सरकार

यूपी: योगी सरकार में कई बीजेपी नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप

मोदी के एक आदर्श गाँव की कहानी

क्या भाजपा शासित असम में भारतीय नागरिकों से छीनी जा रही है उनकी नागरिकता?


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    मुंडका अग्निकांड: सरकारी लापरवाही का आरोप लगाते हुए ट्रेड यूनियनों ने डिप्टी सीएम सिसोदिया के इस्तीफे की मांग उठाई
    17 May 2022
    मुण्डका की फैक्ट्री में आगजनी में असमय मौत का शिकार बने अनेकों श्रमिकों के जिम्मेदार दिल्ली के श्रम मंत्री मनीष सिसोदिया के आवास पर उनके इस्तीफ़े की माँग के साथ आज सुबह दिल्ली के ट्रैड यूनियन संगठनों…
  • रवि शंकर दुबे
    बढ़ती नफ़रत के बीच भाईचारे का स्तंभ 'लखनऊ का बड़ा मंगल'
    17 May 2022
    आज की तारीख़ में जब पूरा देश सांप्रादायिक हिंसा की आग में जल रहा है तो हर साल मनाया जाने वाला बड़ा मंगल लखनऊ की एक अलग ही छवि पेश करता है, जिसका अंदाज़ा आप इस पर्व के इतिहास को जानकर लगा सकते हैं।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    यूपी : 10 लाख मनरेगा श्रमिकों को तीन-चार महीने से नहीं मिली मज़दूरी!
    17 May 2022
    यूपी में मनरेगा में सौ दिन काम करने के बाद भी श्रमिकों को तीन-चार महीने से मज़दूरी नहीं मिली है जिससे उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
  • सोन्या एंजेलिका डेन
    माहवारी अवकाश : वरदान या अभिशाप?
    17 May 2022
    स्पेन पहला यूरोपीय देश बन सकता है जो गंभीर माहवारी से निपटने के लिए विशेष अवकाश की घोषणा कर सकता है। जिन जगहों पर पहले ही इस तरह की छुट्टियां दी जा रही हैं, वहां महिलाओं का कहना है कि इनसे मदद मिलती…
  • अनिल अंशुमन
    झारखंड: बोर्ड एग्जाम की 70 कॉपी प्रतिदिन चेक करने का आदेश, अध्यापकों ने किया विरोध
    17 May 2022
    कॉपी जांच कर रहे शिक्षकों व उनके संगठनों ने, जैक के इस नए फ़रमान को तुगलकी फ़ैसला करार देकर इसके खिलाफ़ पूरे राज्य में विरोध का मोर्चा खोल रखा है। 
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License