NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
मोदी सरकार प्रमुख भारतीय संस्थानों को तबाह कर रही है
सर्वोच्च न्यायालय से आरबीआई तक, सीबीआई से चुनाव आयोग तक, भारत में लोकतंत्र विभिन्न स्तंभों पर विनाश का खतरा मंडरा रहा है।

सुबोध वर्मा
29 Oct 2018
Translated by महेश कुमार
Narendra modi

चूंकि मोदी सरकार अपने कार्यकाल के अंत के करीब आ गई है, संवैधानिक और वैधानिक संस्थान जो इसके विनाशकारी हस्तक्षेप को सहन करने में असमर्थ हैं, वे खुले तौर पर सरकार के  विरोध में आ गए हैं। यह सूची दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। हाल ही में इस संघर्ष में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) भी जुड़ गया है, जिसके उप निदेशक विरल आचार्य ने आरबीआई की आज़ादी में हस्तक्षेप करने के लिए मोदी सरकार को दोषी ठहराया है।

उन्होंने कहा कि "सरकारें जो केंद्रीय बैंक की स्वतंत्रता का सम्मान नहीं करती हैं, उन्हें जल्द ही या कुछ के वक्त बाद वित्तीय बाजारों के गुस्से को झेलना पड़ेगा। जिससे आर्थिक आग भड़केगी, और जिस दिन उन्होंने इस तरह की महत्वपूर्ण नियामक संस्था को कमज़ोर कर दिया, उस दिन यह सब सच हो जाएगा।"
मोदी के शासन के तहत, एक अभूतपूर्व और गंभीर स्थिति उत्पन्न हुई है, क्योंकि ये प्रमुख संस्थान - गणराज्य के स्तंभ हैं –उनमें हस्तक्षेप इतना बढ़ गया है कि अब बर्दाश्त के बाहर चला गया है। कुछ ने विद्रोह का बैनर उठाया है, कुछ हस्तक्षेप के वज़न के नीचे दबे हुए हैं। यद्यपि इन प्रमुख संस्थानों को हमेशा राजनीतिक शासकों के साथ वार्ता और तालमेल बना कर रखना पड़ता है, अतीत में ऐसा हुआ है जब चीज़ें एक ऐसे मकाम पर पहुंच गई और टकराव की स्थिति पैदा हो गयी, लेकिन पहले कभी भी इतना व्यापक असंतोष लोगों को देखने को नही मिला था। अगर सर्वोच्च न्यायालय, आरबीआई, चुनाव आयोग, सीबीआई, सीआईसी इत्यादि जैसे संस्थानो पर राजनीतिक हितों के हिसाब से काम करने के लिए दबाव डाला जाता है तो देश के लोकतंत्र के लिए यह बड़ा खतरा बन जाएगा। जैसे-जैसे आम चुनावों की तारीख नज़दीक आ रही है, इनमें से कई संस्थान को ऐसा लगता है कि मोदी सरकार हार की ओर बढ़ रही हो सकती है, और इस स्थिति ने उन्हें बोलने के लिए प्रेरित किया है। यह आने वाली स्थिति का एक संकेत है। हो क्या रहा है इसका एक सारांश यहां दिया जा रहा है:

सर्वोच्च न्यायालय 
इस साल जनवरी में, चार सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश द्वारा कुछ मामलों को मनमाने ढंग से दिए जाने के खिलाफ विरोध की आवाज़ उठाई और एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की। ऐसा कदम पहले कभी नहीं उठाया गया था। हालांकि यह एक आंतरिक लड़ाई प्रतीत हो सकती है, असली और अन कहा मुद्दा यह था कि सीजेआई कथित तौर पर मोदी सरकार के अनुरूप मामलों का वितरण कर रहे थे। तीन विद्रोही न्यायाधीश इस प्रक्रिया में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व चाहते थे ताकि भारतीय लोकतंत्र के स्तम्भ में से एक के कामकाज में यह विकृति समाप्त की जा सके। वे यह भी चाहते थे कि कुछ मामलों की जांच की जाए या उन्हें आगे बढ़ाया जाए, जो अदालतों और सरकार की पक्षपातपूर्ण नियुक्तियों के सवाल पर संघर्ष का कारण बने लगते हैं।

आर.बी आई.
आरबीआई के विरल आचार्य द्वारा जारी चेतावनी भरा नोट आरबीआई और सरकार के बीच बिखराव के बिंदुओं की बडी़ श्रृंखला की पृष्ठभूमि में आता है। इनमें शामिल हैं: उच्च तनाव वाली संपत्ति वाले बैंकों के साथ  'त्वरित सुधारक कार्रवाई' (पीसीए) के तहत कैसे निबटा जाए, सामान्य रूप से खराब ऋण या एनपीए से कैसे निपटें, क्या आरबीआई से भिन्न एक अलग भुगतान नियामक बनाया जाना चाहिए, और क्या सरकार को आरबीआई के रिजर्व और पूंजी के इस्तेमाल से अपनी बैलेंस शीट को मजबूत करने के लिए बार-बार सहारा लेना चाहिए।

ये रह्स्यमयी नीति के मुद्दे हो सकते हैं-और उनके संबंधित गुण और दोष भी हो सकते हैं-लेकिन तथ्य यह है कि सरकार अपने स्वयं के लक्ष्यों के अनुरूप आरबीआई के कामकाज में हस्तक्षेप करने के लिए दृढ़ संकल्प रखती है और वास्तव में वह कुछ मामलों के लिए समानांतर और अधिक विशाल नियामक स्थापित कर इसे कमजोर करने का प्रयास कर एक खतरनाक खेल है। जैसा कि आचार्य ने संकेत दिया है, सरकार को एक दिन इसके लिए पछताना होगा। और, जो कि आचार्य ने नहीं कहा है - देश के लोगों को भविष्य में इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। 

भारतीय रिजर्व बैंक के मामले में, यह विरोध उस अफसोस भरे मामले के बाद आया जब देश में नवंबर 2016 में विनाशकारी नोटबन्दी लागू की गई और जब इस निर्णय के बारे में आरबीआई बोर्ड को सिर्फ कुछ घंटे पहले सूचित किया गया था, बाज़ार में उपलब्ध 86 प्रतिशत मुद्रा को प्रधानमंत्री मोदी ने 8 नवंबर को एक घोषणा के ज़रिये प्रतिबंधित कर दिया था। यह एक दुखद स्थिति थी कि आरबीआई को पूरी तरह से किनारे करते हुए आरबीआई बोर्ड के माध्यम से यह सब किया गया था और देश में आम लोगों पर मुसीबतों का पहाड़ तोड़ दिया था।मोदी सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक बोर्ड में एक आरएसएस विचारधारा से जुड़े एस. गुरूमुर्ती को भी नियुक्त किया है।

सी.बी.आई 
सीबीआई के शीर्ष दो अधिकारियों के बीच हालिया टकराव भी एक आंतरिक मामला दिखाई देता है, लेकिन वास्तव में मोदी सरकार ने जनवरी 2017 में निर्देशक के रूप में अपने पसंदीदा आलोक वर्मा को नियुक्त किया था, और उसके बाद उसका पीछे एक और पसंदीदा राकेश अस्थाना को उनके नंबर दो के रूप में नियुक्त किया ताकि आगे चलकर उसे नंबर एक बनाया जा सके। वर्मा-अस्थाना की लड़ाई खुले में आने के बाद, सरकार ने मनमाने ढंग से, और शायद अवैध रूप से, दोनों को छुट्टी पर भेज दिया, और मौजूदा नंबर तीन अधिकारी - केंद्र के तीसरे पसंदीदा, नागेश्वर राव को - अंतरिम निदेशक बना दिया। केंद्र सरकार की दासी के रूप में सीबीआई की भूमिका, विपक्षी दलों और राजनीतिक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए इसका दुरुपयोग, और इसके अंदर भ्रष्टाचार के संगत विकास ने ऐसी एजेंसी को नष्ट कर दिया है जो उच्च स्थानों में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई की अगुआई में आगे होनी चाहिए थी। सीबीआई के भीतर यह खोखला खेल निस्संदेह दशकों से चल रहा है, मोदी सरकार के आम खुले हस्तक्षेप ने चल रहे विस्फोट को जन्म दिया है। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश में सीवीसी द्वारा वर्मा के खिलाफ आरोपों को जांचने के आदेश से संगठन की भयानक और कमजोर प्रकृति को दिखाता है।

चुनाव आयोग 
यह एक संवैधानिक निकाय है जो मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक सरकार के चंगुल में फंस गया है। निर्वाचन के पक्षपात के कम से कम दो उदाहरण चुनाव आयोग द्वारा प्रदर्शित किए गए हैं: 2017 में गुजरात विधानसभा चुनाव कार्यक्रम की घोषणा में देरी करने का फैसला, और कथित तौर पर प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी को राज्य में बड़े पैमाने पर रिझाने वाली वस्तुओं/योजनाओं के वितरण को जारी रखने की अनुमति देना था; और दुसरा  लाभकारी पद के कार्यालय के मामले पर दिल्ली के 'आप' विधायकों को त्वरित तौर पर अयोग्य घोषित करना था, सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के फैसले को खारिज कर दिया और उसे पूरे मामले को सही ढंग से न देखने के लिए कोसा।ईसी ने अब तक कम से कम, सरकारी दबावों के खिलाफ किसी भी प्रतिरोध को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित नहीं किया है। यद्यपि यह सामान्य रूप से अपने काम को सामान्य स्तर पर जारी रखता है, अलग-अलग स्तरों पर चुनाव आयोजित करता है, आने वाले महीने इसकी तन्दरुस्ती के लिए एक परीक्षा होगी, क्योंकि सभी महत्वपूर्ण विधानसभा चुनाव 2019 में होने जा रहे आम चुनावों के पहले आ रहे हैं।

सी.आई.सी.और आर.टी. आई. 
सरकारी दुर्भावना का पर्दाफाश करने के लिए सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के उपयोग को रोकने के लिए मोदी सरकार ने अधिनियम में संशोधन किया है, जो केन्द्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) और राज्य सूचना आयोग (एसआईसी) दोनों में सूचना आयुक्तों के वर्तमान पांच साल की निश्चित अवधि को समाप्त करने प्रावधान देता है। संशोधन केंद्र को कार्यालय, वेतन और भत्ते, और मुख्य सूचना आयुक्तों की सेवा की अन्य नियम और शर्तों, और केंद्रीय और राज्य स्तर दोनों पर सूचना आयुक्तों की अवधि निर्धारित करने में सक्षम बनाता है।
इस मामले में, सरकार ने संशोधन को आगे बढ़ाकर आरटीआई अधिनियम और इसकी मशीनरी को प्रभावित करने का प्रयास किया है - यह पारदर्शिता और जवाबदेही को रोकने का एक विधायी तरीका है। इस प्रक्रिया में, सूचना आयोगों की पूरी व्यवस्था सरकार पर निर्भर होगी, इसे और कमजोर कर दिया जाएगा।

सी.वी.सी.
केन्द्रीय सतर्कता आयोग, एक और वैधानिक निकाय का नेतृत्व 2015 से मोदी द्वारा द्वरा की नियुक्ति केवी चौधरी की अध्यक्षता में किया गया था। उनकी नियुक्ति के समय, कई प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने इसका विरोध किया था और कहा था कि इन साहब की विभिन्न आपराधिक / भ्रष्टाचार के मामलों में भागीदारी के आरोप हैं जिसमें - नीरा राडिया टेप केस, मोइन कुरेशी का मामला (जिसकि लडाई युद्ध में मौजूदा सीबीआई अधिकारी भी शामिल हैं) और अन्य मामले शामिल हैं।हालांकि, सरकार इस नियुक्ति के साथ आगे बढ़ी। मौजूदा सीबीआई गुत्थी को "सुलझाने" में सीवीसी की भूमिका अच्छी तरह से जानी जाती है। सीवीसी सीबीआई के लिए पर्यवेक्षी निकाय है।

यूजीसी से लेकर कई अनुसंधान और अकादमिक निकायों में शीर्ष अधिकारियों को नियुक्त किया और  विश्वविद्यालयों में आपने पसन्द के कुलपति नियुक्त किए थे, मोदी सरकार ने तेजी से, बिना रोक-टोक के अपने समर्थकों की नियुक्ति की है, और यह सब संतुलन को अपने विचारधारात्मक पक्ष में झुकाने के लिए किया गया है। इन नियुक्तियों ने उन संस्थानों में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को नष्ट करने में सक्रिय भूमिका निभाई है, जैसा कि ज्यादातर जेएनयू में बीजेपी के समर्थन वाले वीसी के मामले में सबसे ज्यादा स्पष्ट रूप से सामने आया है।
 
 

Narendra modi
BJP-RSS
CBI
CVC
CIC

Related Stories

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"

सरकारी एजेंसियाँ सिर्फ विपक्ष पर हमलावर क्यों, मोदी जी?


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली उच्च न्यायालय ने क़ुतुब मीनार परिसर के पास मस्जिद में नमाज़ रोकने के ख़िलाफ़ याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार किया
    06 Jun 2022
    वक्फ की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि यह एक जीवंत मस्जिद है, जो कि एक राजपत्रित वक्फ संपत्ति भी है, जहां लोग नियमित रूप से नमाज अदा कर रहे थे। हालांकि, अचानक 15 मई को भारतीय पुरातत्व…
  • भाषा
    उत्तरकाशी हादसा: मध्य प्रदेश के 26 श्रद्धालुओं की मौत,  वायुसेना के विमान से पहुंचाए जाएंगे मृतकों के शव
    06 Jun 2022
    घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद शिवराज ने कहा कि मृतकों के शव जल्दी उनके घर पहुंचाने के लिए उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से वायुसेना का विमान उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था, जो स्वीकार कर लिया…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आजमगढ़ उप-चुनाव: भाजपा के निरहुआ के सामने होंगे धर्मेंद्र यादव
    06 Jun 2022
    23 जून को उपचुनाव होने हैं, ऐसे में तमाम नामों की अटकलों के बाद समाजवादी पार्टी ने धर्मेंद्र यादव पर फाइनल मुहर लगा दी है। वहीं धर्मेंद्र के सामने भोजपुरी सुपरस्टार भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं।
  • भाषा
    ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉनसन ‘पार्टीगेट’ मामले को लेकर अविश्वास प्रस्ताव का करेंगे सामना
    06 Jun 2022
    समिति द्वारा प्राप्त अविश्वास संबंधी पत्रों के प्रभारी सर ग्राहम ब्रैडी ने बताया कि ‘टोरी’ संसदीय दल के 54 सांसद (15 प्रतिशत) इसकी मांग कर रहे हैं और सोमवार शाम ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में इसे रखा जाएगा।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 
    06 Jun 2022
    देश में कोरोना के मामलों में आज क़रीब 6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है और क़रीब ढाई महीने बाद एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 25 हज़ार से ज़्यादा 25,782 हो गयी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License