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मुफ्त इंटरनेट के जरिये कब्ज़ा जमाने की फेसबुक की नाकाम कोशिश?
जो काम फेसबुक ने कई देशों में कर दिया था, वह करने में फेसबुक भारत में नाकाम कैसे हो गई!
सिरिल सैम, परंजॉय गुहा ठाकुरता
08 Mar 2019
सांकेतिक तस्वीर

भारत में फेसबुक द्वारा कार्यालय खोले जाने के दो साल बाद यह एक ऐसा प्लेटफॉर्म बन गया है जिसके जरिये अधिकांश लोग ऑनलाइन राजनीतिक संवाद करने लगे। खास तौर पर युवा वर्ग। इस वजह से फेसबुक इस्तेमाल करने वालों की संख्या में काफी वृद्धि हुई। 2011 में 1.5 करोड़ लोग फेसबुक इस्तेमाल करते थे। उसके अगले साल फेसबुक इस्तेमाल करने वालों की संख्या 2.8 करोड़ हो गई। इनमें से अधिकांश लोग 17 से 35 साल आयु वर्ग वाले थे। 

अक्टूबर, 2014 में फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग हरियाणा को चंद्रौली गांव में हेलीकॉप्टर से पहुंचे। वे वहां यह पता करने के लिए पहुंचे कैसे इंटरनेट और सोशल मीडिया से आम लोगों की जिंदगी बदल रही है। अपनी उसी यात्रा में दिल्ली में उनकी मुलाकात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हुई। जुकरबर्ग डिजिटल इंडिया योजना को लेकर बेहद उत्साहित दिखे।

कुछ महीने बाद मार्च, 2015 में फेसबुक ने अपनी योजना इंटरनेट डॉट ओआरजी की घोषणा की। इसके तहत कंपनी तीन दर्जन वेबसाइट लोगों को बगैर पैसे के उपलब्ध कराने वाली थी। उस योजना को फेसबुक रिलायंस मोबाइल के साथ मिलकर लागू कर रही थी। इस कंपनी ने अपने विज्ञापन में लिखा, ‘सूरज की रौशनी के पैसे नहीं लगते। न तो हवा के। तो फिर इंटरनेट निशुल्क क्यों नहीं होना चाहिए?’

उस वक्त फेसबुक को इस बात का अंदाज नहीं था कि यह योजना खारिज कर दी जाएगी। भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण यानी ट्राई ने इस योजना पर लोगों की टिप्पणियां आमंत्रित कीं। फेसबुक की इस ‘फ्री बेसिक्स’ योजना का विरोध होने लगा। इस योजना का मजाक उड़ाने वाले एआईबी की कॉमेडी कार्यक्रम को 35 लाख लोगों ने देखा। फिर भी फेसबुक ने इस योजना को लागू करने की कोशिश की। इसके लिए कंपनी ने जो प्रचार अभियान चलाया, उस पर 250 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान लगाया गया।

सितंबर, 2015 में कैलिफॉर्निया के सिलिकन वैली में फेसबुक मुख्यालय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी टाउनहॉल बैठक को संबोधित करने गए। वहां वे जुकरबर्ग से गले मिले। फेसबुक के प्रवर्तक ने अपने पोस्ट में लिखा, ‘भारत, इंडोनेशिया, यूरोप और अमेरिका, सब जगह के अभियानों में यह देखने में आ रहा है कि जिसके सबसे अधिक फेसबुक फॉलोअर हैं, वही चुनाव जीत रहा है।’

महीने भर के अंदर जुकरबर्ग एक बार फिर भारत आए। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली में उन्होंने इंटरनेट उद्यमियों को संबोधित किया। फेसबुक की फ्री बेसिक्स योजना को लेकर कई लोगों में कई तरह के संदेह थे। इन्हें यह ठीक नहीं लग रहा था कि कुछ वेबसाइटों के प्रति भेदभावपूर्ण बर्ताव अपनाने की योजना है। यह कुछ उसी तरह की बात है जैसे किसी पुस्तकालय में यह बताया जाए कि कुछ खंडों की पुस्तकें पाठक बगैर कोई शुल्क दिए पढ़ सकते हैं।

ट्राई द्वारा लोगों की राय आमंत्रित किए जाने की समय सीमा खत्म होने के दो दिन पहले जुकरबर्ग ने टाइम्स ऑफ इंडिया में एक लेख लिखा। 1.6 करोड़ फेसबुक उपभोक्ताओं को परोक्ष रूप से इस बात के लिए प्रेरित किया गया कि वे ‘फ्री बेसिक्स’ के समर्थन में ट्राई को पत्र लिखें।

इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन के अपार गुप्ता उस दौर को याद करते हुए कहते हैं कि फेसबुक प्रतिनिधियों से उनके गहरे मतभेद रहते थे। वे कहते हैं, ‘हम लोग फेसबुक के लोगों को कहते थे कि अपनी बात लोगों के सामने या सरकार के सामने रखने का यह तरीका नहीं है, लेकिन वे यह मानने को तैयार नहीं थे।’

हालांकि, फेसबुक की सारी कोशिशें नाकाम हो गईं और ‘फ्री बेसिक्स’ योजना को मंजूरी नहीं मिली। जबकि इसी तरह की योजना को कोलंबिया, घाना, कीनिया, नाइजीरिया, मैक्सिको, पाकिस्तान और फीलिपिंस में स्वागत किया गया था। ट्राई के फैसले का काफी लोगों ने स्वागत किया। फेसबुक ने अपनी इस योजना को 8 फरवरी, 2016 को बंद कर दिया।

उसके कुछ समय बाद जून, 2016 में उमंग बेदी भारत में फेसबुक के प्रमुख बनाए गए। वे लंबे समय तक टिक नहीं पाए। 15 महीने बाद अक्टूबर, 2017 में उनकी जगह संदीप भूषण ने ले ली। 

उसी साल मई में फेसबुक ने एक्सप्रेस वाईफाई योजना शुरू की थी। इसके लिए उसने भारती एयरटेल से हाथ मिलाया था। इस योजना के तहत पूरे भारत में 20,000 वाईफाई हॉटस्पॉट लगाए जाने थे। हमने बेदी की राय जानने के लिए उनसे संपर्क किया। लेकिन अपने पूर्व नियोक्ता से अनुबंध की गोपनीयता का हवाला देकर उन्होंने कुछ नहीं बताया। 

हमारे सोशल मीडिया सीरीज़ के अन्य आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :-

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सोशल मीडिया की अफवाह से बढ़ती सांप्रदायिक हिंसा

 

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