NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
मोदी भारत के ‘विनाश पुरुष” हैं: रामचन्द्र गुहा
गुहा ने यह बात शनिवार को “रिक्लेमिंग इण्डिया” नामक एक वर्चुअल कांफ्रेंस के अवसर पर कही, जिसमें उन्होंने भारत की चौतरफा बर्बादी के लिए पीएम को उत्तरदायी ठहराया।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
05 Oct 2020
मोदी भारत के ‘विनाश पुरुष” हैं: रामचन्द्र गुहा

पीएम मोदी को भारत का “मुख्य विनाश पुरुष” घोषित करते हुए प्रसिद्ध इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने कहा है कि मोदी सरकार ने “पहले से ही भारत के नाजुक सामाजिक ताने-बाने को और अधिक छिन्न-भिन्न करने का काम किया है...।” शनिवार को एक वर्चुअल कांफ्रेंस “रिक्लेमिंग इण्डिया” को सम्बोधित करने के दौरान गुहा ने भारत की चौतरफा बर्बादी के लिए पीएम मोदी को इसका कुसूरवार ठहराया।

गुहा के अनुसार “श्रीमान मोदी के शासनकाल के दौरान दलितों, आदिवासियों, महिलाओं और विशेष तौर पर मुसलमानों के खिलाफ भारी पैमाने पर भेदभावपूर्ण व्यवहार में तेजी आई है। जिस प्रकार से कश्मीरियों के उत्पीड़न का क्रम जारी है और [भारतीय संविधान में से] धारा 370 को समाप्त कर दिया गया है, उससे स्पष्ट तौर पर यह संदेश दे दिया गया था कि मोदी के भारत में मुस्लिम बाहुल्य राज्य की परिकल्पना नहीं की जा सकती।”

साथ ही साथ उन्होंने यह भी कहा कि मोदी सरकार की “घातक आर्थिक नीतियों के चलते 30 वर्षों की आर्थिक प्रगति भी बर्बाद हो चुकी है।” गुहा के अनुसार इसकी अन्य विफलताओं में “सार्वजनिक संस्थानों के और अधिक बधियाकरण करने, भ्रष्टाचार सहित हमारे लोकतान्त्रिक लोकाचार में ह्रास, अल्पसंख्यकों पर बढ़ते हमले, और पर्यावरण के विनाश के साथ-साथ आख़िरकार पडोस एवं विश्व में एक देश के तौर पर हमारी घटती हैसियत शामिल है।” उन्होंने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि भारत को “आज सिर्फ राजनीतिक विपक्ष की ही आवश्यकता नहीं है बल्कि उसे एक नैतिक, बौद्धिक एवं विचारधारात्मक विपक्ष की भी जरूरत है।”

सम्मेलन में भाग ले रहे अनेकों भारतीय कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों एवं शिक्षाविदों ने भारत के संवैधानिक लोकतंत्र पर बढ़ते हिन्दू राष्ट्रवाद के खतरे को लेकर अपनी सहमति दर्ज की। संयुक्त राज्य अमेरिका एवं भारत से शामिल कई वक्ताओं ने दोनों ही देशों में नागरिक स्वतंत्रता पर जारी हमलों के बीच की समानता को रेखांकित किया और कहा कि दोनों समाजों में कार्यकर्ताओं के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे इस लड़ाई में एक साथ मिलजुलकर सामने आयें।

दलित अधिकार कार्यकर्ता और राबर्ट एफ़. कैनेडी मानवाधिकार पुरस्कार विजेता मार्टिन मैकवान का इस सम्बंध में कहना था “भारत में हमारे पास दो कानून हैं, इसमें से एक संविधान का शासन तो दूसरा जाति आधारित शासन है। संविधान के जरिये जाति के शासन को खत्म नहीं किया जा सका है। और इसीलिए जबतक भारत को इस अमानवीय जातीय व्यवस्था से मुक्ति नहीं मिल जाती, तबतक भारत पर अपने दावे को नहीं कह सकते।”

वयोवृद्ध भारतीय इतिहासकार राजमोहन गाँधी ने सम्मेलन में कहा कि हालाँकि अभी तक भारत के संविधान को ही बदलकर रख देने की कोशिशें नहीं हुई हैं, लेकिन “अनौपचारिक तौर पर असमानता को थोपने, विशेषतौर पर मुस्लिमों व ईसाईयों को लक्ष्य कर” घटनाएं पहले से ही जारी थीं। उनके विचार में “लोगों को बिना किसी उचित प्रक्रिया के गिरफ्तार किया जा रहा है और बिना किसी परीक्षण अथवा आरोपों के हिरासत में रखा जा रहा है। भारत में लोकतान्त्रिक अधिकारों के वास्तविक खात्मे को संभव बनाने के लिए एक समूचे प्रचार अभियान को छेड़ रखा गया है।”

प्रसिद्ध अफ़्रीकी अमेरिकी कार्यकर्ता रेव. विलियम बार्बर जो कि अमेरिकी प्रोटोस्टेंट मिनिस्टर के साथ-साथ पुअर पीपल्स कैम्पन के सह-अध्यक्ष भी हैं का कहना था कि 1860 के दशक के दौरान अमेरिकी गृह-युद्ध के फौरन बाद गरीब गोरे लोगों “जिन्हें अश्वेतों से नफरत करना सिखाया गया था ने अंततः पाया कि अन्याय, दासता और अधिनायकवादी शासन हम सबको खत्म कर डालेगा, जो सर्वप्रथम समाज में मौजूद सबसे गरीबों को खत्म करता है क्योंकि युद्ध में लड़ने के लिए दासों के मालिक सबसे गरीब गोरे लोगों को इस्तेमाल में लाते थे।”

सेंट जॉन फिशर कॉलेज, न्यूयॉर्क में समाजशास्त्र एवं मानव-विज्ञान की प्रोफेसर और दलित सॉलिडेरिटी की संस्थापक रोजा सिंह कहती हैं, “दलित समूहों ने क्या खो दिया है और किसे दोबारा हासिल करने का दावा करना चाहिए के पीछे की केन्द्रीय अंतर्वस्तु दरअसल वैयक्तिक स्वतन्त्रता में छिपी है। एक बार यदि आपके मनुष्य होने को नकार दिया जाता है तो समझिये बाकी सभी चीजों से भी वंचित कर दिया गया है।”

वहीं जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) छात्र संघ की अध्यक्षा आईशी घोष ने कहा कि वर्तमान में भारत “साम्राज्यवाद के एक नए स्वरूप” के अनुभव से गुजर रहा है और भारत के नौजवानों को इस बात को आत्मसात करना होगा कि संविधान ने उन्हें क्या कुछ दिया हुआ है।

इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल के खालिद अंसारी ने हिंदुत्व की “फासीवादी विचारधारा” से उपजे “अस्तित्ववादी खतरे” और इसके क्रोनी पूँजीवाद के बीच की गहरी सांठगाँठ पर अपनी बात को रखा। उनके अनुसार “इस विचारधारा के चलते न सिर्फ धार्मिक अल्पसंख्यकों, दलितों और आदिवासियों को और ज्यादा हाशिये पर धकेल दिया गया है बल्कि इसने महिलाओं, छात्रों एवं श्रमिक वर्गों पर भी आर्थिक विपन्नता को थोपने का काम किया है।” 

इस दो-दिवसीय सम्मेलन का आयोजन पाँच भारतीय अमेरिकी नागरिक अधिकार संगठनों द्वारा किया गया था: जिसमें हिन्दू फॉर ह्यूमन राइट्स, ग्लोबल इंडियन प्रोग्रेसिव अलायन्स, इंडिया सिविल वाच इंटरनेशनल, स्टूडेंट्स अगेंस्ट हिंदुत्व आइडियोलॉजी एवं इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल शामिल थे।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

Modi is India’s ‘Destroyer-in-chief’: Ramchandra Guha

Reclaiming India
Ramchandra Guha
PM MODI
Hindutva
Indian democracy
Caste Atrocities
Aishe Ghosh
Rajmohan Gandhi
constitution
Civil rights
indian economy
Roja Singh

Related Stories

डरावना आर्थिक संकट: न तो ख़रीदने की ताक़त, न कोई नौकरी, और उस पर बढ़ती कीमतें

कानपुर हिंसा: दोषियों पर गैंगस्टर के तहत मुकदमे का आदेश... नूपुर शर्मा पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं!

डिजीपब पत्रकार और फ़ैक्ट चेकर ज़ुबैर के साथ आया, यूपी पुलिस की FIR की निंदा

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति

आर्थिक रिकवरी के वहम का शिकार है मोदी सरकार

विचारों की लड़ाई: पीतल से बना अंबेडकर सिक्का बनाम लोहे से बना स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी

ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली

भारत में संसदीय लोकतंत्र का लगातार पतन

ज्ञानवापी कांड एडीएम जबलपुर की याद क्यों दिलाता है

मनोज मुंतशिर ने फिर उगला मुसलमानों के ख़िलाफ़ ज़हर, ट्विटर पर पोस्ट किया 'भाषण'


बाकी खबरें

  • hisab kitab
    न्यूज़क्लिक टीम
    लोगों की बदहाली को दबाने का हथियार मंदिर-मस्जिद मुद्दा
    20 May 2022
    एक तरफ भारत की बहुसंख्यक आबादी बेरोजगारी, महंगाई , पढाई, दवाई और जीवन के बुनियादी जरूरतों से हर रोज जूझ रही है और तभी अचनाक मंदिर मस्जिद का मसला सामने आकर खड़ा हो जाता है। जैसे कि ज्ञानवापी मस्जिद से…
  • अजय सिंह
    ‘धार्मिक भावनाएं’: असहमति की आवाज़ को दबाने का औज़ार
    20 May 2022
    मौजूदा निज़ामशाही में असहमति और विरोध के लिए जगह लगातार कम, और कम, होती जा रही है। ‘धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाना’—यह ऐसा हथियार बन गया है, जिससे कभी भी किसी पर भी वार किया जा सकता है।
  • India ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    ज्ञानवापी विवाद, मोदी सरकार के 8 साल और कांग्रेस का दामन छोड़ते नेता
    20 May 2022
    India Ki Baat के दूसरे एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, भाषा सिंह और अभिसार शर्मा चर्चा कर रहे हैं ज्ञानवापी विवाद, मोदी सरकार के 8 साल और कांग्रेस का दामन छोड़ते नेताओं की। एक तरफ ज्ञानवापी के नाम…
  • gyanvapi
    न्यूज़क्लिक टीम
    पूजा स्थल कानून होने के बावजूद भी ज्ञानवापी विवाद कैसे?
    20 May 2022
    अचानक मंदिर - मस्जिद विवाद कैसे पैदा हो जाता है? ज्ञानवापी विवाद क्या है?पक्षकारों की मांग क्या है? कानून से लेकर अदालत का इस पर रुख क्या है? पूजा स्थल कानून क्या है? इस कानून के अपवाद क्या है?…
  • भाषा
    उच्चतम न्यायालय ने ज्ञानवापी दिवानी वाद वाराणसी जिला न्यायालय को स्थानांतरित किया
    20 May 2022
    सर्वोच्च न्यायालय ने जिला न्यायाधीश को सीपीसी के आदेश 7 के नियम 11 के तहत, मस्जिद समिति द्वारा दायर आवेदन पर पहले फैसला करने का निर्देश दिया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License