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भारत
राजनीति
जीएसटी मसले पर मोदी निज़ाम का रुख संघवाद पर एक बड़ा हमला है
राज्य को कमज़ोर बनाने से संतुष्ट न होकर अब केंद्र राज्य की वित्त प्रणाली पर हमला कर रहा है, जो ग़ैरक़ानूनी तो है साथ ही ग़लत भी है।
सूहीत के सेन 
31 Aug 2020
Translated by महेश कुमार
जीएसटी

28 अगस्त को, तीन राज्यों ने केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा माल और सेवा कर (जीएसटी) मुआवजे के संबंध में दिए प्रस्ताव को स्पष्ट रूप से ठुकरा दिया हैं। दिल्ली, केरल और पंजाब ने वित्त मंत्रालय द्वारा जारी विस्तृत ब्योरे से पहले ही उल्लिखित दो विकल्पों को खारिज कर दिया क्योंकि दोनों ही आगे कर्ज लेने की बात करते हैं। 

व्यवस्था भ्रष्टाचार, कुप्रबंधन और कुप्रशासन के बोझ तले चरमरा रही है, और इससे भी खराब बात यह है कि शासन के लगभग सभी क्षेत्रों में देश के संघीय संबंधों की संपूर्ण कड़ी टूटने के कगार पर है। जीएसटी की गुत्थी मोदी निज़ाम द्वारा वित्तीय और राजकोषीय संघवाद को व्यवस्थित ढंग से तोड़फोड़ रही है।

27 अगस्त को जीएसटी परिषद की आयोजित 41 वीं वर्चुअल बैठक में, सीतारमण ने एडवोकेट जनरल केके वेणुगोपाल द्वारा तैयार एक नोट पेश किया, जिसमें प्रस्ताव दिया गया कि राज्यों को फिलहाल भारतीय रिज़र्व बैंक से उधार ले लेना चाहिए, क्योंकि जीएसटी संग्रह में अपेक्षित कमी करीब 2,35,000 करोड़ रुपए की आँकी गई है। इसके लिए दो योजनाओं का सुझाव दिया गया था: एक, राज्य 97,000 करोड़ रुपये उधार ले सकते हैं या फिर पूरा पैसा भी उधार ले सकते हैं, जिसे केंद्र "जीएसटी कार्यान्वयन", के दौरान संग्रह में आई कमी कहता है। इसके लिए किसी भी तरह के आंकड़े या गणना का हवाला दिए बिना, मोदी सरकार एकतरफा दावा कर रही है कि बाकी 1,38,000 करोड़ रुपए, कोविड-19 संकट की वजह से प्राभावित हुए हैं, इसे उन्होने ‘एक्ट ऑफ खुदा’ बताया है, इसलिए, केंद्र जिस फोर्मूले पर सहमत हुआ था उसके मुताबिक वह भुगतान नहीं करना चाहता है।

जुलाई 2016 में 101वें संविधानिक संसोधन के माध्यम से, जिसके आधार पर जुलाई 2017 में जीएसटी निज़ाम को लागू किया गया था, उस पर आगे बने कानून और समझौतों के तहत तय पाया गया था कि केंद्र 2022 तक राज्यों की राजस्व को केंद्र को सौंपने से हुई क्षतिपूर्ति को पूरा करने की जिम्मेदारी लेगा, फिर चाहे जीएसटी संग्रह की जो भी राशि हो,  2016-17 में आधार वर्ष के रूप में जो गणना की गई वर्ष दर वर्ष 14 प्रतिशत की वृद्धि थी। इस प्रकार एक क्षतिपूर्ति उपकर लगाया गया था।

ऐसा नहीं है कि सीतारमण द्वारा अपनी सरकार के दायित्व को निभाना गैरकानूनी या खराब व्यवस्था है, इसके साथ जो समस्या जुड़ी हुई है वह यह कि जिस तरह से उन्होंने पिछले गुरुवार की बैठक में ऐसा करने की कोशिश से पता चलता है कि वेणुगोपाल के नोट में मोदी सरकार का इरादा गलत था और उसे नोट को राज्यों को पहले से मुहैया नहीं कराया गया था ताकि इस पर ठीक से चर्चा की जाती उल्टे नोट को बैठक के अंत में पेश किया गया ताकि सूचना के आधार  पर चर्चा को प्रभावी ढंग से चलाया जाता।

कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने इस प्रस्ताव को खारिज करने के लिए राज्यों को समझाया। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) जिन राज्य सरकारों को नहीं चलाती हैं, उन सभी ने कहा कि वे ठीक सही कॉपी मिलने के बाद इसे अस्वीकार कर देंगे, जिस नोट को अंततः बाँटा गया। हालांकि, यह भी असंभव नहीं है कि कुछ भाजपा सरकारें भी अपनी नाराजगी जताएँ, भले ही वे इसे खारिज न करें। भाजपा के सुशील मोदी, बिहार के उपमुख्यमंत्री और वित्त मंत्री पहले ही कह चुके हैं कि केंद्र नैतिक रूप से, यदि कानूनी तौर पर नहीं, तो राज्यों को मुआवजा देने के लिए बाध्य है, हालांकि उन्होंने 29 अगस्त को अपनी बयानबाजी वापस ले ली थी। जीएसटी मुद्दा एक ऐसा संकट है जिससे केंद्र आसानी से पीछा नहीं छुड़ा पाएगा, जिसके लिए केंद्र को बड़ी कीमत चुकानी होगी। 

आइए इसकी पृष्ठभूमि पर नजर डालते हैं। अकेले राजकोषीय और वित्तीय संघवाद के क्षेत्र में, वर्तमान सरकार ने राज्यों को कुचलने के लिए भाजपा लोकसभा में अपने मज़बूत बहुमत का इस्तेमाल किया है। राज्य सरकारें महामारी से निपटने के गंभीर प्रयास कर रही हैं, जबकि मोदी के नेतृत्व में केंद्र, सिर्फ प्रवचन दे रहा है, अपनी विफलता को नाकामयाब ढंग से ढंकने की कोशिश कर रहा है और अर्थहीन नारों और प्रतीकात्मक कार्यक्रमों का सहारा ले रही है। कई राज्य प्राकृतिक आपदाओं की चपेट में आए हैं, जिनके लिए केंद्र की तरफ से सहायता असमान और शुद्ध रूप से पक्षपातपूर्ण रही है।

उदाहरण के लिए, पश्चिम बंगाल में चक्रवात अम्फान अप्रैल महीने में आया था। अब राज्य के कुछ हिस्सों को भारी बारिश के कारण बाढ़ का सामना करना पड़ रहा है। असम और बिहार गंभीर बाढ़ से ग्रस्त हैं जो महामारी से लड़ाई को जटिल बना रहे हैं। हालांकि, सरकारी तंत्र द्वारा पक्षपातपूर्ण आर्थिक साहायता गंभीर चिंता का विषय है, जिसने संघीय ढांचे की परियोजना पर प्रश्न्नचिन्ह लगा दिया है।

पश्चिम बंगाल सरकार के अनुमान से अम्फान में हुई क्षति करीब एक लाख करोड़ रुपये से अधिक है। सुपर-साइक्लोन के तत्काल बाद में, केंद्र ने अग्रिम सहायता में 1,000 करोड़ रुपये जारी किए थे, जो कि कुल छती का 1 प्रतिशत बैठती है। वास्तव में पश्चिम बंगाल को केंद्र से कुछ भी नहीं मिला है। यह बात अलग है कि केंद्र सरकार पर पश्चिम बंगाल के 53,000 करोड़ रुपए हैं और 4,135 करोड़ जीएसटी मुआवजे के हैं। इसमें से फिलहाल कुछ नहीं मिल रहा है। मैं पश्चिम बंगाल का हवाला इसलिए दे रहा हूं क्योंकि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी केंद्र से बकाए की याद दिलाती रहती हैं, जैसा कि हाल ही में 11 अगस्त को मोदी के साथ एक वीडियो-कांफ्रेंस में उन्होने इसका जिक्र किया था। जुलाई में असम को 346 करोड़ रुपये दिए गए थे, वह भी अधिक धन देने के वादे के साथ, उल्टे उन्हे धन की जगह प्रस्ताव अधिक भेजे गए। 

यह इस संदर्भ में भी है कि, कांग्रेस की अंतरिम कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और सात गैर-भाजपा मुख्यमंत्रियों- जिसमें भूपेश भगेल, (छत्तीसगढ़), हेमंत सोरेन (झारखंड), उद्धव ठाकरे (महाराष्ट्र), वी नारायणसामी (पुडुचेरी), अमरिंदर सिंह (पंजाब), अशोक गहलोत (राजस्थान) और ममता बनर्जी (प॰ बंगाल) के बीच, जीएसटी परिषद की बैठक से एक दिन पहले 26 अगस्त को एक वीडियो-सम्मेलन के ज़रीए विपक्षी एकता का एक नया प्रयास सामने आया।  

वित्तीय दायित्वों का निर्वहन और सहायता प्रदान करने वाले मुद्दों से जुदा राजनीतिक पूर्वाग्रह के मुद्दों को रखा गया: जिसमें केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल कर राजनीतिक विरोधियों को परेशान करना; राज्य सरकारों को गिराने की साजिश करना; और एक वैचारिक आधिपत्य जमाने का प्रयास करना है। हालांकि बनर्जी और ठाकरे सबसे मुखर थे, लेकिन बैठक में एक आम सहमति थी कि संघीवाद प्रणाली और बहुदलीय व्यवस्था तब तक मुकम्मल नहीं होगी जब तक कि सामूहिक कार्रवाई के लिए एक मंच नहीं बनाया जाता। सोनिया गांधी को इस तरह के मंच के निर्माण करने का नेतृत्व करने के लिए कहा गया।

यह सब अधिक जरूरी है क्योंकि भाजपा के खिलाफ कई क्षेत्रीय ताकतों ने विरोध किया, या विरोध करने की तैयारी में है जबकि भाजपा कार्रवाई में गायब हैं या उसका आत्म-विनाश का इरादा हैं। हिंदी हार्टलैंड में, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी या तो राष्ट्रीय विपक्ष या फिर उत्तर प्रदेश में, जहां सीएम योगी आदित्यनाथ की शिकारी पुलिस व्यवस्था आम जनता पर ज़ुल्म करती दिखाई देती है, बमुश्किल कोई विरोध नज़र आता है। जुलाई में यह बताया गया कि उत्तर प्रदेश सरकार के अनुसार, पुलिस ने 6,237 मुठभेडें की और मार्च 2017 में आदित्यनाथ ने सरकार बनाने के बाद से 122 लोगों को गोली से उड़ा दिया।

बिहार में, जहां कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के संरक्षक लालू प्रसाद ने बेटे तेजस्वी यादव को विपक्ष के गठबंधन में सबसे आगे लीड करने को कहा, ये जो भी आकार लेता है, लेकिन वह राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की मदद कर रहा है। भले ही नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार महामारी के कारण या दिल्ली में बीजेपी सरकार द्वारा महामारी को व्यापक पैमाने पर बढ़ावा दिया गया हो। गठबंधन के एक महत्वपूर्ण सहयोगी ने गठबंधन छोड़ दिया है और कुछ एमएलसी सहित कई नेता आरजेडी से जनता दल (यूनाइटेड) में किनारा कर लिया है।

संघीय ढांचे को कम आंकने की वर्तमान शासन की परियोजना विपक्ष पर इसके हमलों, संस्थानों की तोड़फोड़, विशेष रूप से उच्च न्यायपालिका, संवैधानिक मानदंडों की पूरी अवहेलना और लोकतांत्रिक पुलिस राज्य के गठन के प्रयास का एक टुकड़ा है।

इस नाजुक दौर में, कांग्रेस, एकमात्र विपक्षी राष्ट्रीय पार्टी है, जिसे खुद को सक्रिय कर इस सत्तावादी शासन के खिलाफ पुरजोर का विरोध करने और विपक्ष की एकता की बड़ी जिम्मेदारी है। वर्तमान में, विपक्षी दलों को एक साथ लाने के लिए जीएसटी मुद्दे इस्तेमाल किया जाना चाहिए। अपनी पार्टी को दुरुस्त न रख पाना एक बेवकूफ़ाना कदम है और इस कार्य के लिए खुद को दोबारा तैयार करना कांग्रेस के लिए जरूरी है।

लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार और शोधकर्ता हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Modi Regime’s Stand on GST is a Savage Attack on Federalism

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