NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
मास्को की नपी-तुली कूटनीति काम कर रही है
यूक्रेन पर रूसी हमले की संभावना सही मायने में कभी थी ही नहीं। हालांकि, अगर यूक्रेनी सेना अलगाववादी ताक़तों पर हमला करती है, तो डोनबास क्षेत्र में मास्को के हस्तक्षेप का होना सौ फ़ीसदी तय है।
एम. के. भद्रकुमार
21 Feb 2022
Olaf Scholz
जर्मन चांसलर ओलाफ़ स्कोल्ज़ ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ 15 फ़रवरी, 2022 मास्को के साथ एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया | प्रतीकात्मक फ़ोटो। फ़ोटो:साभार: विकिमीडिया कॉमन्स

गुरुवार को सुरक्षा गारंटी के सिलसिले में वाशिंगटन को भेजी गयी रूसी प्रतिक्रिया का नतीजा ऐसा लग सकता है कि यह गतिरोध युद्ध की तरफ़ बढ़ रहा है। मास्को ने चल रहे इस ‘गतिरोध में तीव्रता की कमी’ को लेकर अमेरिका के आह्वान को यह कहकर खारिज कर दिया है कि रूसी सैनिक रूसी इलाक़ों में तैनात है; यह प्रतिबंधो के उस ख़तरे को भी खारिज करता है, जो कहता है कि यह "सुरक्षा गारंटी को लेकर रूस के प्रस्तावों पर दबाव डालने और उसे कमतर बताने" की एक कोशिश है।

दूसरी बात कि जहां रूस "सीधे रूसी सीमाओं के पास संयुक्त राज्य अमेरिका और नाटो की बढ़ती सैन्य गतिविधि से चिंतित है, वहीं उसके 'रेड लाइन' और मुख्य सुरक्षा हितों के साथ-साथ उन हितों की सुरक्षा करने के रूस के संप्रभु अधिकार को अब भी नज़रअंदाज़ किया जा रहा है।"  

तीसरी बात कि रूस का मानना है कि यूक्रेन के आसपास की जो स्थिति है,उसे नरम करने के लिए यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति को रोकने, उसके सभी पश्चिमी सलाहकारों और प्रशिक्षकों को वापस बुलाने सहित यूक्रेनी सशस्त्र बलों के साथ नाटो देशों के संयुक्त अभ्यास को ख़त्म करने जैसे कई क़दमों को ज़मीन पर उतारना "बुनियादी तौर पर अहम है।"  

आख़िर में रूस ने इस बात को बार-बार कहा है कि कानूनी रूप से बाध्य गारंटी (नाटो के विस्तार को रोकना, रूसी सीमाओं के पास मारक हथियार प्रणालियों के इस्तेमाल से इनकार, और 1997 में यूरोप के इस ब्लॉक के सैन्य बुनियादी ढांचे को उसकी स्थिति में लौटाने) की उसकी मांगों को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है।

हालांकि, मास्को का हालिया बयान यही है कि यूरोपीय सुरक्षा मुद्दों पर बातचीत जारी रहेगी, जबकि मास्को की मुख्य मांगों को पूरा नहीं किया गया है। रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव और अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन के बीच अगले हफ़्ते किसी यूरोपीय स्थल पर एक बैठक को आयोजित किये जाने को तय किया जा रहा है।

यह एक व्यावहारिक फ़ैसला है। मास्को के लिए सैन्य सुरक्षा, हथियार नियंत्रण और रणनीतिक स्थिरता के मुद्दों से जुड़े दूसरे मुद्दे आम तौर पर हल करने लायक़ मुद्दे लगते हैं और यहां तक कि एक समझौते के रूप में इन्हें एक साथ रखा जा सकता है। आख़िरकार, ये मुद्दे बुनियादी तौर पर रूसी प्रस्ताव थे, जिन्हें वाशिंगटन ने पहले तो नज़रअंदाज़ कर दिया था,लेकिन अब उन मुद्दों पर चर्चा करने को तैयार है।

अमेरिका के लिए भी यह एक यथार्थवादी नज़रिया इसलिए है, क्योंकि, आखिरकार रूस के हाइपरसोनिक मिसाइलों के विकास ने रूस के पक्ष में रणनीतिक संतुलन को बदल दिया है और बदले हुए हालात में यूरोप के मध्यवर्ती परमाणु बलों को तैनात करने का कोई मतलब नहीं रह गया है !

दूसरी ओर, दोनों महाशक्तियां अपने हनक के उस दिखावे की अहमियत को समझती हैं, जो निकट भविष्य में राजनीतिक लिहाज़ से कुछ गंभीरत पैदा कर सकते हैं, जो कि बड़े मुद्दों को हल करने में मददगार भी हो सकते हैं।

ऐसे में सवाल है यह कि क्या इसका मतलब यह तो नहीं कि यह संकट अब चरम पर पहुंच गया है ? यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि सही मायने में यूक्रेन पर रूसी हमले की संभावना कभी थी ही नहीं। हालांकि, अगर यूक्रेन की सेना अलगाववादी ताक़तों के ख़िलाफ़ हमला करती है,तो उस सीमा से नीचे डोनबास इलाक़े में रूसी हस्तक्षेप को होना सौ प्रतिशत तय है।

सच तो यही है कि अगर रूसी हस्तक्षेप होता है, तो सभी दांव धरे के धरे रह जायेंगे, क्योंकि तब इस इलाक़े में एक पूरी तरह से अलग गतिविधि दिखायी दे सकती है। क़यास यही लगाये जा रहे हैं कि मास्को यह सुनिश्चित करने को लेकर एक योजना के साथ कार्य करेगा कि यूक्रेन में एक स्थायी समझौता जबतक नहीं हो जाता,तबतक  नस्लीय रूप से लाखों रूसियों (कई रूसी पासपोर्ट धारक) की सुरक्षा फिर कभी ख़तरे में नहीं पड़े, या उन दक्षिणपंथी नव-नाज़ी यूक्रेन की राष्ट्रवादी ताक़तों के बंधक नहीं बनायें जायें, जिन्हें पश्चिमी ख़ुफ़िया की सलाह दी जाती हैं और जो कीव पर हावी हैं।

इसलिए, एक बफ़र ज़ोन बनाने के लिहाज़ से पश्चिम की ओर नीपर नदी तक एक रूसी हमला ज़रूरी हो सकता है। दरअसल, डोनबास से दक्षिणी रूस के रोस्तोव क्षेत्र में बुज़ुर्गों, महिलाओं और बच्चों की निकासी कल से ही शुरू हो गयी है। क्रेमलिन पिछले 48 घंटों में इस ख़तरे की चेतावनी दे रहा है कि डोनबास पर हमले की संभावना "बहुत हद तक हक़ीक़त" है।

डोनबास में दो अलग-अलग "पीपल्स रिपब्लिक" को मान्यता देने के लिए राष्ट्रपति पुतिन को ड्यूमा की सिफ़ारिश को इस तरह के नज़रिये से भी देखे जाने की ज़रूरत है। पुतिन ने कहा है कि उनका इस पर कार्रवाई करने का अभी कोई इरादा नहीं है। असल में अगर यूएस अपनी रणनीति के तहत लंबी बातचीत में रूस को रोक लेता है, या अगर वाशिंगटन सुरक्षा गारंटी के लिए मास्को की मांगों के प्रति अडिग रहता है,तो यही बात डोनबास में संघर्ष की इस स्थिति के लिहाज़ से प्लान बी के लिए आधार देता है।

हालांकि,वाशिंगटन ने इन आधारों में से कुछ आधारों को स्वीकार कर लिया है। अमेरिका ने यूरोपीय सुरक्षा के मुद्दों पर चर्चा करने को लेकर तत्परता दिखाने के अलावे यूक्रेन से अपने सैन्य सलाहकारों और प्रशिक्षकों को वापस ले लिया है। बाइडेन ने इस बात को लेकर अपनी प्रतिबद्धता जतायी है कि अमेरिका यूक्रेन में सैन्य हस्तक्षेप नहीं करेगा, भले ही उस पर हमला हो या उसकी हार हो और फिर उसे आत्मसमर्पण का सामना  ही क्यों न करना पड़े, और बाइडेन ने इस बात का भी वादा किया है कि अमेरिका अपनी मिसाइल तैनात नहीं करेगा।

रूस की नपी-तुली कूटनीति काम करती दिख रही है ! समय रूस के पक्ष में इसलिए है, क्योंकि रूस राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर प्रतिबद्ध है, इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि इसके लिए क्या प्रयास करना चाहिए या कब तक ऐसा करते रहना चाहिए। पश्चिमी देशों के प्रचार-प्रसार के बावजूद रूसी जनता पुतिन के फ़ैसले और नेतृत्व पर भरोसा करती है। उनकी सार्वजनिक छवि को कोई नुक़सान नहीं पहुंचा है।

हालांकि,अटलांटिक की दूसरी तरफ अमेरिकी दुष्प्रचार के शोर-शराबे को आम तौर पर अलग रख दें,तो राजनीतिक वास्तविकता यह है कि हालिया सीबीएस सर्वेक्षण के मुताबिक़, 53% अमेरिकियों को लगता है कि अमेरिका को इस संघर्ष में किसी का पक्ष नहीं लेना चाहिए और यूक्रेन के 33% लोग सोचते हैं इसमें अमेरिका का कोई काम ही नहीं है। यहां तक कि अमेरिकी विश्लेषक भी मानते हैं कि रूसी अर्थव्यवस्था में अमेरिकी प्रतिबंधों को झेलने की क्षमता और लचीलापन,दोनों है।

इसलिए, इस लिहाज़ से हम उम्मीद कर सकते हैं,जैसा कि जाने-माने रूसी सुरक्षा विश्लेषक फ़्योदोर लुक्यानोव ने भी कल कोमर्सेंत अख़बार को बताया, "इस दिमाग़ी खेल का अगला चरण कूटनीतिक भी हो सकता है ... कुल मिलाकर, तनाव घटने के एक और चरण की उम्मीद की जा सकती है।" लेकिन यहां भी फ़ायदा रूस को ही है।

शुरुआत रूस को चीन से मिले मज़बूत समर्थन के साथ हुई है और बुधवार को वाशिंगटन ने "सुरक्षा के मुद्दे पर रूस की वैध और मुनासिब चिंताओं को समायोजित करने और सभी पक्षों के लिए दुष्प्रचार और सनसनीख़ेज और तनाव बढ़ाने के बजाय मिन्स्क-2 के आधार पर यूक्रेन के मुद्दे पर राजनीतिक समाधान की तलाश करने को लेकर एक रचनात्मक भूमिका निभाने का आह्वान किया है।”  

इसके उलट, (अगर बाइडेन के शब्दों में कहा जाये,तो) अमेरिका और यूरोपीय सहयोगी "लॉकस्टेप" में आगे बढ़ रहे हैं और अमेरिकी अधिकारियों की ओर से इन सहयोगियों को साथ एक साथ लाने के लिए आगे बढ़ने की रात-दिन की कोशिशों के बावजूद जो तस्वीर उभरती है, वह यह है कि पश्चिमी गठबंधन प्रणाली में हाल के सालों में जो गड़बड़ियां रही हैं, वे बढ़ती जा रही हैं और रूस के साथ टकराव के विशाल रणनीतिक बोझ, यूरोप में युद्ध का डर और बड़े पैमाने पर शरणार्थियों का जमावड़ा, और यूरोप की महामारी के बाद के आर्थिक सुधार के लिए सभी सहायक अनिश्चितताओं के कारण ये दरारें दिखायी दे रही हैं।

फ़्रांस और जर्मनी जैसे दो सबसे अहम यूरोपीय खिलाड़ी वाशिंगटन में चिंता पैदा कर रहे होंगे। राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन और चांसलर ओलाफ़ स्कोल्ज़ दोनों ने मास्को का दौरा किया है और पुतिन के साथ लंबी बातचीत की है। मैक्रॉन ने 16 फ़रवरी को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को फ़ोन करके अमेरिका के इस दादागीरी पर अपना असंतोष भी जताया है।

मैक्रों ने ओलंपिक शीतकालीन खेलों के "शानदार और कामयाब उद्घाटन समारोह" के लिए चीन की भरपूर सराहना की है और चीन के इस "ओलंपिक को सफल बनाने की कोशिशों" के लिए फ्रांस की ओर से पूर्ण समर्थन से चीन को अवगत कराया है !

बदले में शी ने मैक्रों की सराहना करते हुए कहा की "इस साल यूरोपीय संघ (EU) की परिषद की बारी-बारी से अध्यक्षता करने के बाद से फ़्रांस ने यूरोपीय संघ की एकजुटता को बढ़ाने और यूरोप की रणनीतिक स्वायत्तता को मज़बूत करने के लिए बहुत कुछ किया है।"

मैक्रॉन ने इस बात को लेकर प्रतिबद्धता जतायी कि "फ़्रांस यूरोपीय संघ और चीन के बीच सकारात्मक एजेंडे को आगे बढ़ाने का हर संभव प्रयास करेगा, और यूरोपीय संघ-चीन के नेताओं की बैठक की कामयाबी को सुनिश्चित करने और यूरोपीय संघ और चीन के बीच के रिश्ते के विकास को आगे बढ़ाने के लिए चीन के साथ मिलकर काम करेगा।” दोनों नेताओं के बीच अगले चरण के सिलसिले में द्विपक्षीय सहयोग को लेकर छह सूत्री एजेंडा पर सहमति बनी।

मैक्रॉन ने 1 अप्रैल को रूस के साथ चीन के गहरे रिश्तों की पृष्ठभूमि और यूक्रेन पर रूसी हमले को लेकर अमेरिका में चल रहे इस युद्ध उन्माद के बीच यूरोपीय संघ-चीन शिखर बैठक का कार्यक्रम निर्धारित करने की पहल की।

इस तरह की रिपोर्टें सामने आयी हैं कि कुछ यूरोपीय देशों के विरोध के चलते वाशिंगटन को प्रतिबंध पैकेज से कथित "परमाणु विकल्प" छोड़ना पड़ा है यानी कि इसे प्रभावी रूप से अंतर्राष्ट्रीय बैंकिंग प्रणाली से काटते हुए स्विफ्ट भुगतान व्यवस्था से रूस के बाहर करने के विकल्प को छोड़ना पड़ा है।

इस खेल में भीतर ही भीतर चल रहे इन सभी तरह के कारकों से बाइडेन प्रशासन पर दबाव पड़ा है। इससे पहले मस्को में रहते हुए वाशिंगटन में स्कोल्ज़ बाइडेन से मिले थे और उन्होंने पुतिन की मौजूदगी में सार्वजनिक रूप से इस बात की पुष्टि कर दी कि जब तक वे सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए बर्लिन और मॉस्को की सत्ता में बने हुए हैं, तब तक नाटो की ओर से यूक्रेन को सदस्य के रूप में स्वीकार करने का कोई सवाल ही नहीं पैदा होता है।

अगर दूसरे शब्दों में कहा जाये, तो जब तक रूस यूक्रेन की नाटो सदस्यता को युद्ध भड़काने या उचित ठहराने वाला कार्य या स्थिति मानता है, तब तक गठबंधन उस दिशा में आगे नहीं बढ़ेगा। कहने का मतलब यह है कि जब तक मास्को अपना मन नहीं बदलता, तब तक यूक्रेन (या जॉर्जिया) के लिए नाटो की सदस्यता मुमकिन नहीं है। बहरहाल,हम जमी हुई झील पर बर्फ़ के दरकने की कर्कश आवाज़ सुन सकते हैं।

एमके भद्रकुमार एक पूर्व राजनयिक हैं। वह उज़्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत थे। इनके विचार निजी हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Moscow’s Coercive Diplomacy is Working

ukraine
RUSSIA-GERMANY
USA
NATO
Olaf Scholz
vladimir putin
Ukraine crisis

Related Stories

भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल

बाइडेन ने यूक्रेन पर अपने नैरेटिव में किया बदलाव

पश्चिम बैन हटाए तो रूस वैश्विक खाद्य संकट कम करने में मदद करेगा: पुतिन

और फिर अचानक कोई साम्राज्य नहीं बचा था

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन में हो रहा क्रांतिकारी बदलाव

अमेरिकी आधिपत्य का मुकाबला करने के लिए प्रगतिशील नज़रिया देता पीपल्स समिट फ़ॉर डेमोक्रेसी

90 दिनों के युद्ध के बाद का क्या हैं यूक्रेन के हालात

यूक्रेन युद्ध से पैदा हुई खाद्य असुरक्षा से बढ़ रही वार्ता की ज़रूरत

खाड़ी में पुरानी रणनीतियों की ओर लौट रहा बाइडन प्रशासन

फ़िनलैंड-स्वीडन का नेटो भर्ती का सपना हुआ फेल, फ़िलिस्तीनी पत्रकार शीरीन की शहादत के मायने


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली उच्च न्यायालय ने क़ुतुब मीनार परिसर के पास मस्जिद में नमाज़ रोकने के ख़िलाफ़ याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार किया
    06 Jun 2022
    वक्फ की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि यह एक जीवंत मस्जिद है, जो कि एक राजपत्रित वक्फ संपत्ति भी है, जहां लोग नियमित रूप से नमाज अदा कर रहे थे। हालांकि, अचानक 15 मई को भारतीय पुरातत्व…
  • भाषा
    उत्तरकाशी हादसा: मध्य प्रदेश के 26 श्रद्धालुओं की मौत,  वायुसेना के विमान से पहुंचाए जाएंगे मृतकों के शव
    06 Jun 2022
    घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद शिवराज ने कहा कि मृतकों के शव जल्दी उनके घर पहुंचाने के लिए उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से वायुसेना का विमान उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था, जो स्वीकार कर लिया…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आजमगढ़ उप-चुनाव: भाजपा के निरहुआ के सामने होंगे धर्मेंद्र यादव
    06 Jun 2022
    23 जून को उपचुनाव होने हैं, ऐसे में तमाम नामों की अटकलों के बाद समाजवादी पार्टी ने धर्मेंद्र यादव पर फाइनल मुहर लगा दी है। वहीं धर्मेंद्र के सामने भोजपुरी सुपरस्टार भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं।
  • भाषा
    ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉनसन ‘पार्टीगेट’ मामले को लेकर अविश्वास प्रस्ताव का करेंगे सामना
    06 Jun 2022
    समिति द्वारा प्राप्त अविश्वास संबंधी पत्रों के प्रभारी सर ग्राहम ब्रैडी ने बताया कि ‘टोरी’ संसदीय दल के 54 सांसद (15 प्रतिशत) इसकी मांग कर रहे हैं और सोमवार शाम ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में इसे रखा जाएगा।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 
    06 Jun 2022
    देश में कोरोना के मामलों में आज क़रीब 6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है और क़रीब ढाई महीने बाद एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 25 हज़ार से ज़्यादा 25,782 हो गयी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License