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भारत
राजनीति
नियुक्ति में विभागवार आरक्षण पर SC के फैसले से क्यों नाखुश हैं शिक्षक?
डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट ने केंद्र सरकार से नियुक्तियों में आरक्षण के लिए विश्वविद्यालय को एक इकाई के रूप में मानने के लिए अध्यादेश जारी करने की मांग करते हुए विभागवार आरक्षण बंद करने और पुराना नियम लागू करने कि मांग की है |

न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
23 Jan 2019
DUTA
सांकेतिक तश्वीर

सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2017 के फैसले के खिलाफ दायर की गई केंद्र सरकार की स्पेशल लीव पेटिशन (SLP) को खारिज कर दिया। केंद्र ने उच्च न्यायालय के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमें शिक्षकों की भर्ती में  आरक्षण  को विभागों को इकाई के रूप में मान्यता दी थी न कि  विश्वविद्यालय को। 

डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट (DTF) ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर निराशा जताते हुए मांग की है कि सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए  अध्यादेश लाए जिससे आरक्षण को विश्वविद्यालय को एक इकाई के रूप में माना जाए।

सरकार पर इस मामले को गंभीरता से न लेने का आरोप लगाते हुए DTF की प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि “सरकार ने DUTA और कई अन्य संगठनों द्वारा UGC की अधिसूचना के विरोध में 5 मार्च 2018 को विरोध प्रदर्शन करने के बाद ही SLP दायर की थी।

सरकार की मंशा पर प्रश्नचिह्न?

मानव संसाधन एवं विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में कहा था कि अगर न्यायालय का फैसला उनके पक्ष में नहीं आएगा तो वे अध्यादेश लाएँगे परन्तु मंत्री अध्यादेश लाने की बात से पलट रहे हैं। इसको लेकर विपक्षी दलों ने सरकार के मंशा पर गंभीर सवाल खड़े किये हैं। उनका कहना है कि  SC/ST एक्ट की तरह सरकार ने यहाँ भी धोखा दिया है। जानबूझकर न्यायलय में अपना पक्ष कमजोर किया। इसके साथ ही उनका कहना है कि सवर्ण आरक्षण बिल तो एक चुटकी में पास कर दिया गया, परन्तु दलित-बहुजनों के साथ मोदी सरकार  धोखाधड़ी कर रही है।

इसके साथ ही भाजपा के खुद के सांसद और कई नेताओं ने  विभागवार आरक्षण बंद करने और पुराना नियम लागू करने कि मांग की है। ऐसे ही एक नेता और दिल्ली के नार्थ वेस्ट इलाके से सांसद उदित राज ने भी ट्वीट कर उच्चतम न्यायलय के इस फैसले पर नाराज़गी ज़ाहिर की और इस फैसले को आरक्षण को खत्म करने वाला बताया।

इसे भी पढ़े :- रोस्टर के नाम पर सामाजिक न्याय से खिलवाड़

आरक्षण के लिए विभाग को एक इकाई के रूप में लेने के प्रभाव पर प्रकाश डालते हुए, डीटीएफ ने कहा; “एडहॉक के रूप में लंबे समय से दिल्ली विश्वविद्यालय में काम कर रहे 4000 से अधिक शिक्षकों के लिए गंभीर संकट का समय आने वाला है। इनकी नियुक्ति हर 4 महीने में नवीनीकृत होती है, अब आरक्षण रोस्टर में बदलाव से प्रत्येक पद की प्रकृति बदल जाएगी। इसके कारण आरक्षित पद अनारक्षित हो जाएंगे, अनारक्षित पद आरक्षित हो जाएंगे और विभिन्न आरक्षित पद में भारी कमी आएगी। इससे बड़े पैमाने पर अव्यवस्था होगी  और नौकरियों का तो नुकसान होगा ही | "

पूरा मामला ?                                                                              

यह मुद्दा 25 अगस्त, 2006 के विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के दिशानिर्देशों को एक चुनौती के साथ शुरू हुआ था, जिसके अनुसार विश्वविद्यालय को एक इकाई के रूप में लिया जाना था। 7 अप्रैल, 2017 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के कारण आदेश को चुनौती देने वाली एक याचिका दायर की गई थी। उच्च न्यायालय का तर्क यह था कि विभाग को एक इकाई के रूप में लेने से सभी विभागों में आरक्षित श्रेणियों की उपस्थिति सुरक्षित हो जाएगी, जो विश्वविद्यालय को एक इकाई के रूप में लिया जाने पर संभव नहीं है।

यूजीसी के दिशा-निर्देशों को कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग में 1997 के कार्यालय ज्ञापन के आधार पर तैयार किया गया था। ज्ञापन में मान्यता दी गई है कि ऐसी परिस्थितियां हो सकती हैं जहां किसी विशेष विभाग में केवल एक पद रिक्ति हो। ऐसी परिस्थितियों में, पद को आरक्षित करने से 100 प्रतिशत आरक्षण होगा जो 1992 के सुप्रीम कोर्ट के इंद्रा साहनी जजमेंट के खिलाफ जाता है जहाँ आरक्षण 50 प्रतिशत की ऊपरी सीमा पर लागू किया गया था। दूसरी ओर, ऐसे पदों को सभी के लिए खुला छोड़ना सकारात्मक कार्रवाई के विरुद्ध होगा। इस संबंध में यह सिफारिश की गई थी कि ऐसे सभी खाली पदों को एक साथ जोड़ा जाना चाहिए और उसी के अनुसार आरक्षण लागू किया जाना चाहिए।

3 मार्च, 2018 को, यूजीसी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के अनुरूप 2006 के दिशानिर्देशों के अनुसार एक आदेश जारी किया। विभिन्न शिक्षक संघों  के दबाव के कारण, केंद्र सरकार ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक एसएलपी दायर की। मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय ने यूजीसी को निर्देश जारी किए, जिसके बाद 9 जुलाई, 2018 को सभी विश्वविद्यालयों, कॉलेजों और शैक्षणिक संस्थानों को एसएलपी की अवधि के लिए मार्च के आदेश को रोकने का एक संदेश भेजा गया।

 आरक्षण पर नकारात्मक प्रभाव

पीएस कृष्णन, एक सेवानिवृत्त प्रशासनिक सेवा अधिकारी, जिन्होंने कल्याण मंत्रालय में सचिव के रूप में भी काम किया था, ने दो उदाहरणों पर प्रकाश डाला, जहां यूजीसी के मार्च 2018 के आदेश का नकारात्मक प्रभाव देखा जा सकता है। प्रधानमंत्री को लिखे अपने पत्र में, उन्होंने उल्लेख किया कि इंदिरा गांधी जनजातीय विश्वविद्यालय ने 52 पदों को भरने के लिए एक विज्ञापन जारी किया था। उनके अनुसार, यदि पूरे विश्वविद्यालय को एक इकाई के रूप में लिया गया था, तो इसका मतलब होगा कि 20 पद आरक्षित होंगे। हालांकि, नए दिशानिर्देशों के तहत, केवल एक पद आरक्षित था, और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के उम्मीदवार के लिए तो एक भी  नहीं।

दूसरा उदाहरण बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से संबंधित है। इस मामले में, 1930 रिक्त पदों में से यदि पूरे विश्वविद्यालय को एक इकाई के रूप में लिया जाता है, तो अनुसूचित जाति (एससी), जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण क्रमशः 14.97, 7.41 और 16.06 प्रतिशत होगा। हालाँकि, जब विभागों को इकाइयों के रूप में लिया जाता है, तो आरक्षित पद क्रमशः SC, ST और OBC के लिए 6.17, 1.5 और 11.4 प्रतिशत हो जाते हैं।

इसे भी पढ़े ;- 200 पॉइंट विभागवार रोस्टर के नाम पर सामाजिक न्याय से खिलवाड़

 

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