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राजनीति
अमेरिका
नोम चोमस्की :अमेरिकी विदेश नीति
नोम चोमस्की, सौजन्य: TomDispatch.com
17 Aug 2014

यह कहने की जरुरत नहीं है कि राष्ट्रीय सुरक्षा समिति के अगुआ एडवर्ड स्नोडेन द्वारा उनके विषय में किए गए अनेक खुलासों से खुश नहीं थे।और यह बात पिछले एक साल से इन संस्थानों के पूर्व अध्यक्षों, सम्बंधित नेताओं और कर्मचारियों के कड़वे और अपमानजनक टिप्पणियों से स्पष्ट हो गई है। जो सबसे सभ्य बात अगर किसी ने स्नोडेन के लिए कही गई है वो या तो ‘गद्दार’ या रूस का ‘जासूस’ है( हालाकि स्टेट ने उसे कई दिनों तक मोस्को हवाईअड्डे के पारगमन बैठक में बिना पासपोर्ट के कैद रखा)। और यह तो बेहद मामूली बात है, इनमे से कई ने तो उसे ओक के पेड़ से लटकाकर फांसी देने की भी मांग की। इस तरह डरा देने वाले कई संयुक्त कारनमे नफरत के शब्द को एक नया अर्थ देने में सफल हुए हैं।

स्नोडेन द्वारा जारी किए गए राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद् के अनेक कागजातों के बदले ग्लेन ग्रीनवल्ड, फिल्म निर्देशक लौरा पोत्रस और वाशिगटन पोस्ट के बार्टन गेलमैन को दिए गए यह जवाब प्रत्रिक्रिया के योग्य हैं। और मेरा जवाब यह है कि एन एस ए द्वारा निर्मित किए गई वैश्विक निगरानी तकनीकी के निर्माण के पीछे का उदेश्य भले ही काल्पनिक या भयावाह हो( जैसे आप देखना चाहते हो)  पर दोनों ही स्थिति में यह सर्वाधिकारवादी जरूर है। इससे जुड़े उच्च अधिकार इस तकनीक के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक और ऑनलाइन, वह सभी माध्यम जिससे एक व्यक्ति दुसरे से संपर्क करता है, को अपने घेरे में लाकर दुनिया के हर व्यक्ति पर नजर रखना चाहते थे, चाहे फिर वो  जर्मन चांसलर एंजेला मोर्केल से लेकर ब्राज़ील के राष्ट्रपति दिल्मा रौस्सेफ़ हो या फिर अफगानिस्तान के किसी वीरान में फ़ोन पे बात कर रहा एक किसान।(अमेरिकी नागरिकों की कही बात नहीं की गई) किसी को भी नहीं छोड़ा जायेगा और कोई भी भेद भाव नहीं होगा। ताजुब की बात यही है कि एजेंसी इस लक्ष्य को हासिल करने के बेहद करीब भी पहुँच गई थी।

चाहे फिर ये जान बुझ कर किया गया हो या नहीं, पर अमेरिकी गुप्तचर संस्था के नुमाइदो ने एक अपवाद छोड़ दिया था और वह केवल वे खुद थे। उनके दायरे से बाहर और किसी को नहीं पता था कि वे क्या कर रहे हैं। पुरे ग्रह पर बस वही थे जिनकी कोई जासूसी नहीं कर रहा था। यह अपमानजनक शब्द और प्रतिक्रिया शायद स्नोडेन द्वारा किए गए खुलासों से मिले झटके  और यह धारणा कि उनकी जासूसी कोई नहीं कर सकता, से निकलकर आ रही थी। उनकी मूल योजना का खुलासा कर स्नोडेन यूँ तो सामान शब्दों में कुछ दावं पर नहीं लगाया था पर उसकी इस हरकत ने उस दुनिया के लिए स्नोडेन को गद्दार जरूर बना दिया था। स्नोडेन ने यह सुनिश्चित कर दिया कि जैसे वे हमारी जासूसी करे, हम उन्हें कुछ अर्थ में पकड़ सकते हैं। अगर दुसरे शब्दों में कहा जाए तो स्नोडेन के कार्य ने उन्हें हमारे साथ एक आम इंसान बना दिया था जो शायद उनके लिए सबसे अपमानजनक था।

topdispatch.post में नोआम चोमस्की द्वारा दिए विचार को समझा जा सकता है। अगर राष्ट्रीय सुरक्षा में “सुरक्षा” का मतलब अमेरिकी जनता कि रक्षा नहीं बल्कि एजेंसी के अधिकारीयों के रक्षा है, और अगर गोपनियता शक्ति का भाव है तो स्नोडेन ने इस गोपनियता के कानून को तोड़कर सत्ता को भरे उजाले में विभत्स तरीके से बे आबरू कर दिया है। और उसके लिए की गई अपमानजनक टिप्पणिया इसी का नतीजा थी। चोमस्की का खुद भी सत्ता के अनेक ध्रुवों और विशेषतः अमेरिकी सत्ता को बेनकाब करने का अपना तरीका है। और वे आधी शताब्दी से यही बखूबी करते आ रहे हैं।

किसकी सुरक्षा? वाशिंगटन खुद की और कारपोरेट क्षेत्र की रक्षा कैसे करता है – नोम चोमस्की

विदेश नीति निर्धारित करने की प्रक्रिया का सवाल विश्व मामलों में एक महत्वपूर्ण सवाल है। इन टिप्पणियों में, मैं सिर्फ मैं इस संयुक्त राज्य अमेरिका को कई कारणों के लिए ध्यान में रखते हुए, केवल कुछ संकेत दे सकता हूँ ताकि इस सम्बन्ध में कुछ परिणामों पर पहुंचा जा सके। सबसे पहला कि अमेरिका अपनी वैश्विक महत्व और प्रभाव में बेमिसाल है। दूसरा,  यह असामान्य रूप से खुला समाज है, संभवतः अनोखा, जिसका मतलब है कि जैसे हम इसके बारे में अधिक जानते हैं। अत: यह स्पष्ट है कि  अमेरिकियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण है कि वे अमेरिका में नीति सम्बन्धी विकल्पों को प्रभावित करने में सक्षम हैं - और वास्तव में अब तक दूसरों के लिए,  उनके कदम ऐसे विकल्पों को प्रभावित कर सकते हैं। सामान्य सिद्धांतों का तकाजा ही सही लेकिन,  अन्य प्रमुख शक्तियों का विस्तार करने, और मंशा उससे कहीं ज्यादा है।

शैक्षणिक छात्रवृत्ति, सरकार की घोषणाओं और सार्वजनिक बहस कि तर्ज़ पर पहले से ही यहाँ "प्राप्त मानक संस्करण,"  मौजूद है यानी सबकुछ पहले से ही तय है। इसके मुताबिक़ सरकारों की प्रमुख प्रतिबद्धता सुरक्षा सुनिश्चित करने की है और 1945 से ही अमेरिका और उसके सहयोगी दलों की प्राथमिक चिंता का विषय रूसी खतरा था।

सिद्धांत का मूल्यांकन करने के कई तरीके मौजूद हैं। एक स्वाभाविक सा प्रश्न है: कि तब क्या हुआ जब 1989 में रूसी खतरा नदारद हो गया था? फिर भी सब कुछ उसी तरह जारी रहा।

अमरीका ने तुरंत ही पानामा में घुसपैठ कर दी, हजारों लोगो को मौत के घाट उतार दिया और अपनी पिट्ठू सरकार बैठा दी। अमरीका के प्रभाव वाले क्षेत्रों में यह अनवरत चलने वाला अभ्यास था – लेकिन इस मामले में यह सर्वथा चलने वाला अभ्यास नहीं था। पहली बार, एक तथाकथित रूसी खतरे या हमले के मामले में  प्रमुख विदेश नीति के कानून को जायज नहीं माना गया था।

इसके बजाय, आक्रमण पर सफाई देने के लिए धोखाधड़ी और मनगढ़ंत कई किस्से गढ़े गए लेकिन वे जांच के किसी भी धरातल पर टिक नहीं पाए। मीडिया काफी उत्साह में पनामा को हराने की शानदार उपलब्धि की सराहना कर रह था बिना यह जाने कि हमला करने के बहाने ऊटपटांग थे और यह कदम अंतरराष्ट्रीय कानून का मौलिक उल्लंघन था, और इसकी सभी ने कड़ी भर्त्सना कि थी, इस हमले कि आलोचना सबसे ज्यादा लैटिन अमरीका में हुई। अमेरिका ने सर्वसम्मत सुरक्षा परिषद के उस प्रस्ताव की भी अवहेलना कर दी और वीटो कर दिया जिसमें घुसपैठ के वक्त अमरीकी सेना द्वारा किये गए अपराधों की भर्त्सना की थी, जिस पर अकेले ब्रिटेन तटस्थ था। सब निरंतर चलने वाली प्रक्रिया और सभी कुछ भुलाने वाला (यह भी निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है)।

एल सल्वाडोर से रुसी सीमा तक

जॉर्ज एच. डब्ल्यू बुश के प्रशासन ने वैश्विक दुश्मन के खात्मे की प्रतिक्रिया में एक नई राष्ट्रीय सुरक्षा नीति और रक्षा बजट का प्रावधान किया। यह बहुत ज्यादा पहले जैसा ही था,  हालांकि कुछ नए बहाने के साथ। इसमें यह पाया गया कि संयुक्त दुनिया में जितनी सैन्य ताकत है उसके मुकाबले में अपनी ताकत को बनाए रखना जरूरी है और वह भी नयी तकनीकी परिष्कार के आधार पर उसे जारी रखे - लेकिन अब अस्तित्वहीन सोवियत संघ के खिलाफ रक्षा के लिए नहीं। बल्कि अब बहाना यह था कि तीसरी दुनिया की ताकतों में “तकनिकी परिष्कार” बढ़ रहा है इसलिए ऐसा करना जरूरी है। अनुशासित बुद्धिजीवियों ने समझा कि इस पर सवाल उठाना सही नहीं होगा इसलिए उन्होंने इस पर चुप्पी बनाए रखी।

अमेरिका का नया कार्यक्रम में जोर देकर कहता है कि वह  अपने "रक्षा औद्योगिक आधार" को बनाए रखे। यह , एक व्यंजना है,  आम तौर पर उच्च तकनीक उद्योग की चर्चा करते हुए, जो अनुसंधान और विकास के लिए व्यापक राज्य के हस्तक्षेप पर काफी निर्भर करता है, अक्सर पेंटागन की आड़ में, जिसे अक्सर अर्थशास्त्री अमेरिकी को "मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था।" बुलाते है।

नई योजनाओं के सबसे दिलचस्प प्रावधानों में से एक का मध्य पूर्व देशों से लेना देना है। वहाँ, इस बात की घोषणा की गयी, कि  वाशिंगटन महत्वपूर्ण क्षेत्र में लक्षित हस्तक्षेप के लिए वहां बलों को बनाए रखे जहाँ प्रमुख समस्याओं के सम्बन्ध में  "क्रेमलिन का कई लेना-देना न हो।"

50 साल की धोखाधड़ी के विपरीत, यह माना जा सकता है कि मुख्य चिंता रूस नहीं था, बल्कि “कट्टरपंथी राष्ट्रवाद था", मतलब ऐसा राष्ट्रवाद जो अमरीका के नियंतरण में नहीं था। अगर इसके मानक संस्करण को छोड़ दें तो यह पहले से ही जाहिर था, लेकिन बेध्यानी में गुजर गया – या शायद, इसलिए कि इसपर किसी का ध्यान ही नहीं गया।

अन्य महत्वपूर्ण घटनायें शीत युद्ध समाप्त होने एवं बर्लिन की दीवार के पतन के तुरंत बाद हुई। एक अल साल्वाडोर, जो अमेरिकी सैन्य सहायता का अग्रणी प्राप्तकर्ता बना - इसराइल, मिस्र के अलावा, एक अलग श्रेणी का – पूरी दुनिया में सबसे खराब मानवाधिकार रिकॉर्ड वाला बना। यह एक जाना माना तथ्य है और इसका इससे बहुत करीबी संबंध है।

सल्वाडोर आलाकमान ने अत्लाकात्ल  ब्रिगेड का आदेश दिया कि वह  जेसुइट विश्वविद्यालय पर आक्रमण करे और छह प्रमुख लैटिन अमेरिकी बुद्धिजीवियों, रेक्टर फादर सहित सभी जेसुइट पादरियों, फ़ादर इग्नेसियो एल्लाकुरियो, और कोई भी गवाह,  मतलब उनकी नौकरानी और उसकी बेटी आदि की हत्या कर दे। ये ब्रिगेड हाल ही में अमरीका की आर्मी के जॉन ऍफ़. केनेडी बेस स्कूल जोकि कैरोलिना के फोर्ट ब्रग्ग में स्थित है से विद्रोह को दबाने का खास प्रशिक्षण लेकर लोटी है और इसने एल सल्वाडोर पर अमरीका द्वारा आयोजित आतंक के तहत हज़ारों लोगो को खून से लथपथ कर उन्हें अपना शिकार बनाया है, पूरे क्षेत्र को आतंक और यातना का व्यापक केंद्र बना दिया। यह बदस्तूर चलने वाला कार्य है। इनके सहयोगियों और अमरीका में इसे भे भुला दिया गया, और बदस्तूर जारी है। अगर हम यथार्थ से भरपूर दुनिया को देखना चाहते हैं तो यह तथ्य हमें उन कारकों के बारे में बताते हैं जिनकी वजह से यह निति बनायीं गयी।

यूरोप में एक और मुख्य घटना घटी। सोवियत राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव ने जर्मनी के एकीकरण और नाटो में उसकी सदस्यता पर सहमती दी, एक शत्रुतापूर्ण सैन्य गठजोड़, हाल के इतिहास की रौशनी में यह एक आश्चर्यजनक सौगात थी। यह एक प्रकार का बदला था। प्रेसिडेंट बुश और गृह सचिव जेम्स बेकर ने यह तय किया था कि नाटो “पूर्व की और एक इंच” भी नहीं बढेगा, मतलब वह ईस्ट जर्मनी को नाटो का हिस्सा नहीं बनाएगा। लेकिन उन्होंने तुरन्त ही नाटो का पूर्व जर्मनी तक विस्तार कर दिया।

गोर्बाचेव बेहद नाराज़ थे, और जब उन्होंने अपनी नाराजगी जताई तो उन्हें वाशिन्गटन ने निर्देश दिया कि यह केवल मौखिक वायदा था, एक महानुभाव का समझौता वह भी बिना किसी बल प्रयोग के। अगर अमेरिकी नेताओं के वचन को स्वीकार करने के लिए इतने अनजान थे तो यह उनकी अपनी समस्या थी।

अमेरिका और पश्चिम में नाटो के विस्तार की मौन स्वीकृति और आम तौर पर मंजूरी के रूप में यह सब भी, अनवरत चलने वाली प्रक्रिया थी। प्रेसिडेंट बिल क्लिंटन ने नाटो को और विस्तार कर उसे रूस कि सीमा तक बाधा दिया। आज, दुनिया में में इन नीतियों का ही परिणाम है कि एक दुनिया एक गंभीर संकट का सामना कर रही है।

गरीबों को लूटने की अपील

एक अन्य सबूत का स्रोत अवर्गीकृत ऐतिहासिक रिकॉर्ड है। यह राज्य की नीति के वास्तविक इरादों का खुलासा करता है। कहानी समृद्ध और जटिल है, लेकिन कुछ लगातार चलने वाले प्रसंग प्रमुख भूमिका निभाते हैं। 1945 में फरवरी माह में मैक्सिको में अमेरिका द्वारा पश्चिमी गोलार्ध में बुलाये एक सम्मेलन में जहाँ अमेरिका ने "अमेरिका के एक आर्थिक चार्टर" को थोपा जिसे “सभी तरह के” आर्थिक राष्ट्रवाद को ख़त्म करने के लिए डिजाइन किया गया था। एक न कहे जाने वाली स्थिति थी कि आर्थिक राष्ट्रवाद अमरीका के लिए तो सही क्योंकि उसकी अर्थव्यवस्था राज्यों में बड़े पैमाने पर के हस्तक्षेप पर निर्भर है।

उस समय दूसरों के लिए आर्थिक राष्ट्रवाद के खात्मा की नीति और उसके प्रति लैटिन अमेरिकी का रुख टकराव का था, जिसे अमरीका के गृह अफसरों ने “नये राष्ट्रवाद का सिद्धांत का नाम दिया जो ऐसी नीतियों को डिजायन करने के पक्ष है जिसमे संपत्ति के व्यापक वितरण और आम जनता के जीने के स्तर में सुधार की वकालत करता है।” अमेरिकी नीति विश्लेषकों ने कहा कि, "लैटिन अमेरिका के लोग इससे आश्वस्त है कि देश के संसाधनों के विकास के लाभार्थी देश के लोगों को होना चाहिए।”

 ज़ाहिर है, यह गले नहीं उतरेगा, क्योंकि वाशिंगटन यह समझता है कि लैटिन अमेरिका में अपनी सेवा कार्य पूरा करते हुए “पहला लाभार्थी” उसकी नज़र में उसके निवेशक हैं। यह चलेगा नहीं और दोनों ट्रूमैन और आइजनहावर प्रशासन को यह स्पष्ट करना होगा,  कि "अत्यधिक औद्योगिक विकास" अमेरिका के हितों का उल्लंघन हो सकता है। इस प्रकार ब्राजील, कम गुणवत्ता वाले स्टील का उत्पादन कर सकता है जिससे अमेरिका के निगमों को कोई परेशानी नहीं है, लेकिन अगर वे अमेरिकी की कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा करेंगें तो "ज्यादती" होगी।

द्वितीय विश्व युद्ध की अवधि के दौरान इसी तरह की चिंताएं उभरी। वैश्विक प्रणाली जिसपर अमेरिका का प्रभुत्व कायम होना था उसे आंतरिक दस्तावेजों ने जिसे कि "कट्टरपंथी और राष्ट्रवादी शासन" कहा गया और जो स्वतंत्र विकास के लिए लोकप्रिय दबावों कि वकालत की धमकी देता था। यही वह चिंता थी जिसने 1953 और 1954 में ईरान और ग्वाटेमाला के संसदीय सरकारों और न जाने कितनी अनगिनत सरकारों को उखाड़ फेंकने के लिए प्रेरित किया। ईरान के मामले में एक प्रमुख चिंता का विषय था मिस्र पर ईरानी स्वतंत्रता के संभावित प्रभाव, और ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रथा में उथलपुथल का। ग्वाटेमाला में, किसान बहुमत को सशक्त बनाने के लोकतंत्र के अपराध के अलावा और यूनाईटेड फ्रूट कंपनी की संपत्ति का उल्लंघन - काफी आक्रामक था – और वाशिंगटन की चिंता मजदूरों में फैली अशांति और उनकी लोकप्रिय लामबंदी थी वह अमरीका द्वारा समर्थित तानाशाही वाले पडोसी देश में। 

दोनों ही मामलों में उनके परिणाम वर्तमान में सामने आ गए। 1953 से एक भी दिन ऐसा नहीं गया जब जब अमरीका ने इरान के लोगों को यातना न दी हो। गुआटेमाला दुनिया में सबसे खराब सबसे बड़ा भय का केंद्र बन गया। आज तक, मायनस सरकार के सैन्य अभियानों के तहत हाइलैंड्स में नरसंहार के प्रभाव से भाग रहे हैं जिसे कि राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन और उनके शीर्ष अधिकारियों का समर्थन प्राप्त है। ऑक्सफेम, कंट्री निदेशक के रूप में कार्यरत एक ग्वाटेमेले चिकित्सक ने हाल ही में बताया कि, "राजनीतिक, सामाजिक, और आर्थिक संदर्भ में एक नाटकीय गिरावट आई है। पिछले साल के दौरान मानव अधिकार कि रक्षा करने वालो पर हमले कि घटनाओं में 300 प्रतिशत कि बढ़ोतरी हुई है। इस बात के स्पष्ट सबूत है कि निजी क्षेत्र और सेना बहुत अच्छी तरह से आयोजित की रणनीति के तहत काम कर रहें है। दोनों ने सरकार पर कब्जा कर लिया है ताकि यथास्थिति को बरकरार रखा जा सके और  निष्कर्षण आर्थिक मॉडल को थोपा जा सके, खनन उद्योग, अफ्रीकी पाम और गन्ना वृक्षारोपण के लिए वहां के देशज लोगों को अपनी ही जमीन से नाटकीय ढंग से दूर कर दिया गया। इसके साथ ही सामाजिक आन्दोलन जो उनके पक्ष में खड़े थे उन पर अपराधिक मुक़दमे थोप कर या तो जेल में डाल दिया गया या फिर उन्हें मार दिया गया”।

संयुक्त राज्य अमेरिका में इस बारे में कोई कुछ भी नहीं जानता और इसके बहुत स्पष्ट कारण है कि इस सच्चाई को कैसे दबा दिया गया।

1950 के दशक में, राष्ट्रपति आइजनहावर और विदेश मंत्री जॉन फॉस्टर डलेस काफी स्पष्ट रूप से अमेरिका को जिस दुविधा का सामन करना पड़ा उसके बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने शिकायत की की कम्युनिस्टों को अनुचित लाभ मिल रहा है। उनमे "आम जनता को लिए सीधे अपील" और "जन आंदोलनों पर नियंत्रण और हम में ऐसा कुछ करने की कुवत नहीं है। वे गरीब लोगों ही हैं जिन्हें वे  अपील करते हैं और वे हमेशा समृद्ध लोगों को लूटना चाहते है”,यह समस्या पैदा करता है। अमेरिका के लिए यह मुश्किल है कि वह गरीब को अपील करे क्योंकि उसका सिद्धांत कहता है कि अमीर गरीब को लुटे।

क्यूबा का उदहारण

जब 1959 में क्यूबा को स्वतंत्रता प्राप्त हुई इसका सबसे स्पष्ट उदहारण क्यूबा था। चंद महीनों के भीतर ही द्वीप पर सेनी हमले शरू हो गए। कुछ ही समय बाद, आइजनहावर प्रशासन ने क्यूबा सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए एक रहस्यमय फैसला किया। फिर जॉन ऍफ़। केनेडी राष्ट्रपति बने। वे अपना ज्यादातर ध्यान लैटिन अमरीका पर लगाना चाहते थे और दफ्तर में आने के बाद उन्होंने नीतियों को विकसित करने के लिए इतिहासकार आर्थर स्च्लेसिंगेर कि अध्यक्षता में एक “अध्यन समूह की स्थापना की, जिसने आने वाले राष्ट्रपति के लिए निष्कर्षों को संक्षेपित किया।

स्च्लेसिंगेर स्पष्ट करते हैं कि एक आज़ाद क्यूबा में सबसे बड़ा खतरा “कास्त्रो द्वारा हर मसले को अपने हाथ में लेना है।” यह एक ऐसा आईडिया था जिसे दुर्भाग्यपूर्ण रूप से लैटिन अमरीका की उस आबादी को पसंद आया जहाँ “ जमीन का बंटवारा और राष्ट्रिय संपत्ति के अन्य रूप ज्यादातर धनी लोगों के पक्ष में थे, और गरीब और हाशिये वाली जनता क्यूबन क्रांति से इतना उत्साहित हुए कि उन्होंने अपने लिए बेहतर जीवन के लिए अवसरों की मांग शुरू कर दी। यह वाशिंगटन के लिए एक सर दर्द बन गया।

 सीआईए ने समझाया कि  "'कास्त्रोइज्म' का इतना व्यापक असर  केवल क्यूबन सत्ता के ही प्रभाव से नहीं है।कास्त्रो का व्यक्तितिव इस लिए बड़ा है कि लैटिन अमेरिका की सामाजिक और आर्थिक स्थिति, और वहां की "सत्तारूढ़ सरकारों के विरुद्ध विरोध को आमंत्रित करती है और क्रांतिकारी परिवर्तन के लिए आंदोलन को प्रोत्साहित करता है, और उसका क्यूबा इसके लिए एक मॉडल प्रदान करता है। केनेडी को खतरा था कि कहीं सोवियत सहायता क्यूबा को एक विकसित देश का “शोकेस” बना सकता है जो शोवियत को पूरे लैटिन अमरीका में उनका चहेता बना देगा।

विदेश विभाग के नीति नियोजन परिषद ने "चेतावनी दी कि हमें कास्त्रो में जो प्राथमिक खतरा देखते हैं वह है।।। लैटिन अमरीका के देशों में उसके निजाम का असर वहां के वामपंथी आन्दोलनों पर काफी है।।।।इस व्यापक समर्थन का साधारण सा उदहारण है कि कास्त्रो अमरीका के खिलाफ है, यह अमरीका की डेढ़ सौ साल पुरानी गोलार्द्ध नीति का निरस्तीकरण” - 1823 के मुनरो सिद्धांत से ही जब अमेरिका ने गोलार्द्ध पर हावी होने के अपने इरादे की घोषणा की थी।

क्यूबा को दखल करने का उसका सबसे पहला मकसद था, लेकिन ब्रिटिश दुश्मन की ताकत की वजह से इसे हासिल नहीं किया जा सका। फिर भी, बड़े रणनीतिकार जॉन क्विंसी  एडम्स, मोनरो सिद्धांत और प्रकट भाग्य का जो बौद्धिक पिता था,  अपने सहयोगियों को बताता है कि क्यूबा "राजनीतिक गुरुत्वकर्षण के कानून," के तहत हमारे हाथ में गिर जाएगा जैसे एक सेब के पेड़ से गिर जाता है। कहने का मतलब यह था कि अमरीका कि ताकत बढ़ेगी और ब्रिटेन की कम होगी।

1898 में एडम प्रोग्नोसिस ने मान लिया। अमेरिका मुक्ति की आड़ में क्यूबा पर आक्रमण करेगा। वास्तव में,  इतिहासकारों अर्नेस्ट मई और फिलिप ज़ेलिकोव  के संधर्भ में तथ्य यह है कि इसने द्वीप की मुक्ति स्पेन के हाथो जाने से इस रोका और इसे "वास्तविक कॉलोनी" में बदल दिया। क्यूबा ऐसा ही था जब तक जनवरी 1959 में उसे आजादी नहीं मिल गयी, उसी समय से ही क्यूबा को अमरीकी आतंक युद्ध में धकेल दिया, खासतौर पर केनेडी के प्रशासन के समय उसका रूप से आर्थिक गला घोंटने के लिए। रूसियों की वजह से नहीं।

आम तौर पर एक बेतुकी व्याख्या – यह दिखावा ही था कि हम रूसी खतरे से खुद का बचाव कर रहे थे। यह थीसिस का असली इम्तिहान तब हुआ जब रुस का काल्पनिक खतरा गायब हो गया। क्यूबा के प्रति अमरीका कि निति और कठोर हो गयी, जिसे उदार डेमोक्रेट्स जैसे क्लिंटन ने भी आगे बढ़ाया जिसने 1992 के चुनाव में बुश को सत्ता से हटा दिया था। इन घटनाओं के मद्देनज़र विदेश नीति की चर्चा के लिए सैद्धांतिक ढांचे की वैधता पर उसका असर और इसे प्रोत्साहित करने वाले कारको पर होना चाहिए। एक बार फिर, तथापि, प्रभाव मामूली रहा।

राष्ट्रवाद का वायरस

हेनरी किसिंजर की शब्दावली के मुताबिक़, स्वतंत्र राष्ट्रवाद एक "वायरस" है जो "छूत कि तरह फैल गया है।" किसिंजर साल्वाडोर के एल्लेंडे निजाम के सन्दर्भ में कह रहे थे। वायरस एक ऐसा विचार था जिसके तहत यह मन गया कि समाजवादी लोकतंत्र के लिए संसदीय रास्ता भी हो

सकता है। ऐसे खतरे से निपटने के लिए वायरस को नष्ट कर दो और जो लोग उससे संक्रमित है उन्हें लोग टीका दो। उनपर आमतौर पर जानलेवा राष्ट्रीय सुरक्षा का कानून थो दो। चिली के सन्दर्भ में इसे हासिल कर लिया गया। लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि यह सोच दुनिया भर में है।

उदहारण के तौर पर 1950 के दशक में वियतनामी राष्ट्रवाद का विरोध करते हैं और अपने पूर्व उपनिवेश पर फिर जीत दर्ज करने के लिए फ्रांस के प्रयास का समर्थन करने के निर्णय के पीछे यही तर्क था। यह एक भय था स्वतंत्र वियतनामी राष्ट्रवाद संसाधन संपन्न इंडोनेशिया सहित आसपास के क्षेत्रों में यह एक वायरस छुआ-छूत की तरह फैल जाएगा। यही कारण है कि यहां तक ​​कि जापान के नेतृत्व में - एशिया विद्वान जॉन दहेज द्वारा जिसे "सुपेर्डोमिनो" कहा जाता है – की तरह शाही जापान की एक स्वतंत्र नई व्यवस्था के औद्योगिक और वाणिज्यिक केंद्र बन गया जिसे स्थापित करने के लिए वह हाल ही में लड़ा था। जिसका सीधा मतलब है कि  अमेरिकी प्रशांत युद्ध हार गया, जिस विचार को 1950 में एक विकल्प के रूप नहीं देखा गया। समाधान बहुत ही स्पष्ट था – और ज्यादातर हासिल कर लिया गया था। वियतनाम को लगभग नष्ट कर दिया गया था और सैन्य तानाशाही से रोंद दिया गया जिसने "वायरस"  के द्वारा छुआ-छूत फैलने रोक दिया था। पीछे मुड़कर देखें, कैनेडी जॉनसन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मैक जॉर्ज बंडी का मानना था कि , वाशिंगटन को 1965 में वियतनाम युद्ध को समाप्त कर देना चाहिए था, बेइंतहा नरसंहार के साथ जब इंडोनेसिया में सुहार्तो कि तानाशाही स्थापित कि गयी, तो सी।आई।ए। ने इसकी तुलना हिटलर, स्टालिन और माओ से की। बहरहाल, अमेरिका और पश्चिम में स्वेच्छापूर्ण उत्साह के साथ इनका स्वागत किया गया और आम तौर पर प्रेस ने "चौंका देने वाला खूनखराबे," जी-जान से वर्णित किया, इसी के साथ छुआ-छूत का खतरा समाप्त हो गया और पश्चिमी शोषण करने के लिए इंडोनेशिया की समृद्ध संसाधन को खोल दिया गया। उसके बाद बंडी के अनुसार वियतनाम को नष्ट करने के लिए युद्ध ज़रूरत से ज़्यादा था।

उसी साल में लैटिन अमेरिका के मामले में भी यही सत्य था: एक के बाद एक वायरस पर दुष्टातापुर्वक हमला किया गया या उसे नष्ट कर दिया गया या उसे इस हद तक कमजोर कर दिया ताकि वह केवल जीवित रहने के अलावा ओर कुछ न कर सके।1960 के दशक कि शुरुवात में, महाद्वीप में दमन का ऐसा उत्पात थोपा गया जिसका गोलार्द्ध के हिंसक इतिहास में कोई मिसाल नहीं मिलती है,जिसे १९८० में रोनाल्ड रीगन के न्रेतत्व में मध्य अमरीका तक बाधा दिया गया, एक ऐसा मुद्दा जिसकी समीक्षा करने कि कोई जरूरत महसूस नहीं कि गयी।

मध्य पूर्व में ऐसा ही कुछ सच देखने को मिला। मौजूदा स्वरुप में ही इजरायल के साथ 1967 में अमेरिका के साथ उस वक्त अनूठा संबंध स्थापित किया गया, जब इसराइल ने मिस्र को, उसके धर्मनिरपेक्ष अरब राष्ट्रवाद के केंद्र के लिए मुंहतोड़ जवाब दिया गया। ऐसा कर उसने अमरीका के सहयोगी सऊदी अरबिया को बचा लिया और फिर मिश्र को यमन में सैन्य टकराव में व्यस्त कर लिया। सऊदी अरबिया असल में सबसे ज्यादा कट्टरपंथी इस्लामी राज्य है, और एक मिशनरी राज्य भी है, जो अपनी सीमाओं से परे अपने वहाबी-सलाफी सिद्धांतों की स्थापना के लिए भारी रकम खर्च करता है। यहाँ यह याद रखना न्यायसंगत होगा कि अमेरिका, जैसा इससे पहले ब्रिटेन ने किया था कि उसने धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद की जगह हमेशा कट्टरपंथी इस्लाम को समर्थन किया है, आमतौर पर लगता है कि यह स्वतंत्रता और छुआ-छूत के लिए खतरा साबित होगी।

गोपनीयता का मूल्य

कहने के लिए बहुत कुछ है, लेकिन ऐतिहासिक रिकॉर्ड स्पष्ट रूप से दर्शाता हैं कि मानक सिद्धांत की योग्यता थोड़ी है कि। सामान्य अर्थ में सुरक्षा नीति निर्माण में एक प्रमुख कारक नहीं है।

सामान्य अर्थ में,  इसे दोहराना हो कहेंगें। लेकिन मानक सिद्धांत के मूल्यांकन के आधार पर हमें वास्तव में यह पूछना होगा कि 'सुरक्षा' का मतलब क्या है: किसके लिए सुरक्षा?

एक जवाब तो यह है: राज्य सत्ता के लिए सुरक्षा। इसके कई उदहारण हैं। अभी का उदहारण ले लो। मई महीने में अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के उस प्रस्ताव का समर्थन कर दिया जिसमे अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय के तहत सीरिया में युद्ध अपराधों की जांच के लिए प्रस्ताव किया गया है, लेकिन एक प्रावधान के साथ: जिसमे उसने स्पष्ट किया कि इसराइल द्वारा संभव युद्ध अपराधों में कोई पूछताछ नहीं हो सकती है। और न ही वाशिंगटन पर, हालांकि यह आखरी शर्त यहाँ रखने कि जरूरत नहीं थी। अमरीका ने अपने आपको अंतर्राष्ट्रीय कानून व्यवस्था प्रतिरक्षित किया हुआ है। वास्तव में अमरीकी कांग्रेस विधान ने राष्ट्रपति को अधिकृत किया है कि वह किसी भी अमरीकन के "बचाव" के लिए जिसे ट्रायल के लिए हेग लाया जाता है वह सशस्त्र बल का उपयोग कर सकता है – यूरोप में जिसे  कभी "नीदरलैंड आक्रमण अधिनियम," कहा जाता है। यही एक बार फिर से राज्य की सत्ता की सुरक्षा की रक्षा करने के महत्व को दिखाता है।

लेकिन किससे रक्षा? वास्तव में, एक मजबूत मामला बनता है कि सरकार की प्रमुख चिंता राज सत्ता की सुरक्षा आबादी से करनी है। अभिलेखागार के माध्यम से जो खोज करते हैं उन लोगों को पता होना चाहिए, सरकार की गोपनीयता इस बात के लिए बनी रहती कि उसे सुरक्षा के लिए एक वास्तविक जरूरत है, लेकिन यह निश्चित रूप से जन मानस को अंधेरे में रखने के लिए कारगर होती है। और अच्छे कारण के लिए, जो स्पष्टतापूर्वक प्रमुख उदार विद्वान और हार्वर्ड विश्वविद्यालय में सरकार के विज्ञान के प्रोफेसर और सरकार के सलाहकार सैमुअल हटिंगटन के द्वारा समझाया गया है। उनके शब्दों में: "संयुक्त राज्य अमेरिका में बिजली के आर्किटेक्टस को एक ऐसा बल बनाना होगा जिसे महसूस तो किया जा सके लेकिन नहीं देखा जा सकता हो। सत्ता तभी मजबूत होती है जब वह अंधेरे में होती है; क्योंकि सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आते ही यह लुप्त हो जाती है।"

जब शीत युद्ध दोबारा से तेज हो रहा था तो उन्होंने 1981 में लिखा, और विस्तार से बताया कि “सैन्य कार्रवाई या अन्य हस्तक्षेप के बारे में इस तरह का प्रभाव डालना है कि जैसे हम सोवियत युनियन के विरुद्ध लड़ रहे हैं। ट्रूमैन सिद्धांत से ही अमरीका यह सब कर रहा है।

इन साधारण सच्चाईयों को बमुश्किल ही माना जाता है, लेकिन वे वर्तमान क्षण की गूंज की तर्ज पर, राज्य सत्ता और नीति में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।

राज सत्ता को घरेलु दुश्मन से बचाना होता है; जबकि इसके उलट जन मानस राज सत्ता से सुरक्षित नहीं है। वर्तमान में एक प्रभावशाली चित्रण का मतलब ओबामा प्रशासन के बड़े पैमाने पर निगरानी कार्यक्रम ने संविधान पर कट्टरपंथी हमला किया है। ज़ाहिर है,  इसे "राष्ट्रीय सुरक्षा।" ने जायज़ ठहराया। राज्यों के लगभग सभी कार्यों के लिए यह आम बात है और इनकी जानकारी कम ही दी जाती है।

जब सनोवडेन ने एनएसए के निगरानी कार्यक्रम का खुलासा किया, तो उच्च अधिकारियों ने 54 आतंकवादी वारदातों को रोकने का दावा किया। और जब जांच हुयी तो वह दावा एक दर्ज़न की संख्या पर आ गया। एक उच्च सरकारी दल ने पाया कि दवव किये गए मामलों केवल एक ही केस था: किसी ने 8,500 डॉलर सोमालिया भेजे थे। संविधान और पूरी दुनिया पर इतने बड़े हमले का नतीजा मात्र यही निकला।

ब्रिटेन का व्यवाहर काफी मजेदार रहा। 2007 में, गार्जियन अखबार के हवाले से ब्रिटिश सरकार ने वाशिंगटन के व्यापक खुफिया एजेंसी से कहा कि वह, किसी भी ब्रिटिश नागरिकों के मोबाइल फोन और फैक्स नंबर का विश्लेषण जिसे कि ड्रैगनेट स्वेप कर लेता है को बनाए रखने के लिए कहा। सरकार कि नज़रों में अपने नागरिकों की गोपनीयता और वाशिंगटन की मांग के संधर्भ में यह इससे जुडी महत्तवता का उपयोगी संकेत है।

दूसरी चिंता निजी सत्ता कि सुरक्षा कि है।दूसरी तस्वीर यह है कि भारी व्यापार समझौते पर वार्ता चल रही है, जिसमे ट्रांस प्रशांत और ट्रांस अटलांटिक समझौते शामिल हैं। इन पर बड़े ही गोपनीय ढंग से वार्ता चल रही है-लेकिन पूर्णतया गोपनीय भी नहीं है। उन कॉर्पोरेट वकीलों के लिए रहस्य नहीं हैं जो इनके विस्तृत प्रावधानों काम कर रहे हैं। इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि इसके क्या परिणाम होंगे, और जो भी खबर लीक होकर आती है वे अपेक्षा पर खरे उतरते हैं। नाफ्टा और ऐसे ही अन्य परियोजनाएं, मुक्त व्यापार समझौते नहीं है। यहाँ तक कि ये व्यापार समझौते है ही नहीं, बल्कि निवेशक के हक़ में समझौते है।

फिर,  प्राथमिक घरेलू क्षेत्र के लिए जिनमे सरकारें, कॉर्पोरेट धड़े शामिल हैं की रक्षा के लिए गोपनीयता महत्वपूर्ण है।

मानव सभ्यता की अंतिम सदी?

उल्लेख करने के लिए कई अन्य उदाहरण हैं, अच्छी तरह से स्थापित तथ्यों जिनको मुक्त समाज के प्राथमिक स्कूलों में पढ़ाया जाएगा। घरेलू आबादी से राज्य की सत्ता हासिल करने और केंद्रित निजी सत्ता नीति निर्माण में मुख्य भूमिका में रही है। बेशक, यह इतना आसान नहीं है। कुछ दिलचस्प मामलों भी हैं, जिनमे से कुछ काफी वर्तमान के मामले हैं जहाँ इन प्रतिबध्ताओ में टकराव भी है, लेकिन यह विचार समीपता पर है और मौलिक प्राप्त मानक सिद्धांत के विरुद्ध है।

आओ अब दुसरे प्रशन पर बात करें: आबादी कि सुरक्षा के बारे में क्या ख्याल है? यह कहना आसान होगा कि नीति नियोजकों के लिए यह मामूली चिंता का विषय है। वर्तमान के दो मुख्य उदहारण लो, ग्लोबल वार्मिंग और परमाणु हथियार। किसी अनपढ़ व्यक्ति को भी शक नहीं है कि ये मानवता के लिए बड़ा खतरा है। इन्हें राज्य कि निति में बदल कर वे इन दोनों ही ख़तरों को बढ़ाना चाहते हैं – इसके लिए उनकी प्राथमिक चिंता राज सत्ता कि सुरक्षा और निजी हाथों में इकठ्ठा हुई ताकत की सुरक्षा करना है जो मोटे तौर पर राज्य कि निति का निर्धारण करती है।

ग्लोबल वार्मिंग पर नज़र डाले। "ऊर्जा स्वतंत्रता के 100 वर्ष 'के बारे में संयुक्त राज्य अमेरिका में अब ज्यादा उत्साह नहीं है”, क्योंकि अब हम अगले सौ साल तक सऊदी अरबिया में हैं”- शायद मानव सभ्यता की अंतिम सदी में अगर मौजूदा नीतियों जारी रहती है।

यह पूरी तरह स्पष्ट है कि यहाँ सुरक्षा का जो शगूफा और उसका जो चरित्र है वह आम जनता के लिये नहीं है। यह समकालीन एंग्लो अमेरिकन पूंजीवादी राज्य के नैतिक झुकाव को दिखाता है: हमारे पोते-पोतियों के भाग्य में कुछ नहीं जब हम अधिक लाभ की अनिवार्यता के साथ उसकी तुलना करते हैं।

ये निष्कर्ष प्रचार प्रणाली के आधार पर करीब से देखे जा सकते हैं। अमेरिका में एक विशाल जनसंपर्क अभियान है, बड़ी ऊर्जा वाले और व्यापार जगत के लोग काफी खुले तौर पर इसे आयोजित कर रहे हैं, और लोगो को समझाने की कोशिश कर रहें है कि ग्लोबल वार्मिंग या तो असत्य है या यह मानव गतिविधि का परिणाम नहीं है। और इसका कुछ हद तक असर है। अमरीका ग्लोबल वार्मिंग के विषय में चिंतित राष्ट्रों कि श्रक्ख्ला में अन्य देशो से नीचे के पायदान पर है और नतीजे चौकाने वाले हैं: रिपब्लिकन के भीतर, पार्टी संपत्ति और कॉर्पोरेट सत्ता के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है, यह ग्लोबल मानक से भी बहुत नीचे के पायदान पर है।

मौजूदा मुद्दा एक प्रमुख पत्रिका के ताजा अंक की मीडिया आलोचना का है, कोलंबिया जर्नलिज्म रिव्यू में मीडिया में "निष्पक्ष और संतुलित।" सिद्धांत के परिणाम के हवाले से एक दिलचस्प लेख छपा। उदहारण के तौर पर अगर एक पत्रिका किसी एक पक्ष के सिद्धांत या समझ के बारे में कोई लेख छापता है और जिस विषय पर 97 % वैज्ञानिकों सहमती है, वह सीके विरुद्ध उर्जा निगमों के पक्ष को भी उसी तवज्जो से छापता है।

निश्चित तौर ऐसा ही हुआ है, लेकिन वास्तव में इसका कोई "निष्पक्ष और संतुलित" सिद्धांत नहीं है। इसलिए अगर पत्रिकाएं किसी एक विचार को चलाती हैं जिसमे वे क्रिमीआ के आपराधिक दखल करने के लिए रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन कि आलोचना करते हैं साथ ही यह भी समाचार चलाते हैं कि हालांकि यह कदम अपराधिक है लेकिन रूस का क्रिमीआ को दखल करने का केस अमरीका के मुकाबले आज की तारीख में काफी मज़बूत है, जिसने सदियों पहले दक्षिणपूर्वी क्यूबा को दखल किया था और जिसमे देश के मेजर बन्दरगाह शामिल है – और यही नहीं अमरीका ने आज़ादी के वक्त से ही क्यूबा की इन क्षेत्रों कि वापसी की मांग को कभी नहीं माना। बहुत से ऐसे मामलों में भी यही सच है। वास्तविक में जब केंद्रित निजी ताकतें इसमें शामिल होती हैं तो मीडिया का सिद्धांत "निष्पक्ष और संतुलित" की धुन बजाता है।

परमाणु हथियारों के मुद्दे पर रिकॉर्ड बड़ा दिलचस्प है – और डरावना है। काफी साफ़ तौर पर इसका खुलासा होता है कि शुरुवाती दिनों से ही आम जनता की सुरक्षा का मुद्दा कोई मुद्दा ही नहीं था। दहशत भरे रिकार्ड्स कि छान-बीन के लिए वक्त ही नहीं था, लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि यह दृढ़ता से जनरल ली बटलर के विलाप का समर्थन करता है, जोकि परमाणु हथियारों से लैस था,  और जो सामरिक वायु कमान का अंतिम कमांडर। उन्ही के शब्दों में, हम अब तक "कौशल, भाग्य, और दैवी हस्तक्षेप के संयोजन से हम परमाणु के वक्त को पार कर गए हैं , और मुझे संदेह है कि उसका सबसे बड़ा अनुपात होगा।" नीति निर्माताओं का नीति निर्माण में ड्राइविंग कारकों की खोज में प्रजातियों के भाग्य के साथ खेलने के रूप में हम शायद ही निरंतर दैवी हस्तक्षेप पर भरोसा कर सकते हैं।

जैसा कि हम सभी जानते हैं, हमें अब मानव इतिहास में सबसे अधिक अशुभ फैसले का सामना करना होगा। काफी साड़ी सस्यायें हैं जिनका हमें मुकाबला करना पड़ेगा, लेकिन इनमे से दो का अपना बड़ा महत्तव है: पर्यावरण विनाश और परमाणु युद्ध। इतिहास में पहली बार, हम सभ्य अस्तित्व के लिए संभावनाओं को नष्ट करने की संभावना का सामना कर रहे हैं – और वह भी दूर भविष्य में नहीं। इस अकेले कारण की वजह से, यह जरूरी है कि वैचारिक गर्त को दूर काटें और ईमानदारी और वास्तविक तौर पर नीतिगत निर्णय कैसे हो रहे हैं के सवाल का सामना करे, इससे पहले कि बहुत देर हो जाए हमें  हम उन्हें बदलने के लिए क्या कर सकते हैं वह करन नितांत जरूरी है।

नोम चोमस्की मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में भाषा विज्ञान और दर्शनशास्त्र विभाग में संस्थान के प्रोफेसर एमेरिटस है। अपनी हाल की पुस्तकों में हेज्मोनी एंड सर्व्य्वावल, फेल्ड स्टेट्स, पावर सिस्टम्स, ओकुपाई,  और होप्स एंड प्रोस्पेक्ट हैं। उनकी हाल ही किताब है, मास्टर ऑफ़ मैनकाइंड है जिसे जल्द ही हय्मार्केट बुक्स जो इनकी बारह किताबों का दूसरा एडिशन निकालेगा, प्रकाशन के लिए तैयार है।

 इनकी वेबसाइट है: www.chomsky.info

 ग्लेन ग्रीनवल्ड, फिल्म निर्देशक लौरा पोत्रस को ६जून २०१३ को दिए गई साक्षात्कार से

en.wikipedia,org

 

 

डिस्क्लेमर:- उपर्युक्त लेख मे व्यक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं, और आवश्यक तौर पर न्यूज़क्लिक के विचारो को नहीं दर्शाते ।

यूएस
एडवर्ड स्नोडेन
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