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नये रेल समझौतों में मध्य एशिया के तेज़ एकीकरण की रूपरेखा का संकेत
चीन, उज़्बेकिस्तान और पाकिस्तान जैसे प्रमुख क्षेत्रीय किरदारों के बीच इस बात का पूरा-पूरा अहसास है कि अफ़ग़ानिस्तान में क्षेत्रीय संपर्क और दीर्घकालिक शांति और स्थिरता आपस में एक दूसरे से जुड़े हुए हैं।
एम. के. भद्रकुमार
18 Nov 2021
New Rail Agreements
Image courtesy : DNA India

सूचना-युद्ध आजकल इतना तेज़ है कि नहीं गायी जाने वाली धुनें अक्सर गायी जाने वाली धुनों के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा आकर्षक होती हैं। ऐसे में अंग्रेज़ी कवि पीबी शेली की मशहूर कविता 'ओड टू ए स्काईलार्क' की ये पंक्तियां दिमाग़ में एकदम से कौंध जाती हैं- ' दिन के गहन उजाले में / तेरा फ़न तो अनदेखा है, फिर भी मैं तुम्हारी कर्णभेदी लहर को सुन लेता हूं ...' 

पिछले पखवाड़े हुई दो घटनाओं से अफ़ग़ानिस्तान के भविष्य को लेकर बढ़ती आशावाद का संकेत मिलता है। दोनों घटनाक्रम इस बात का संकेत देते हैं कि बेहतर क्षेत्रीय संपर्क, आर्थिक विकास और शासन के लिए एक ऐसा ढांचा बन रहा है, जिसकी चर्चा काफ़ी हद तक नहीं हुई है।

कोई शक नहीं कि पाकिस्तान के एनएसए मोईद युसूफ़ की दावत पर उज़्बेकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार लेफ़्टिनेंट जनरल विक्टर मखमुदोव की नवंबर की शुरुआत में इस्लामाबाद की तीन दिवसीय यात्रा को अपेक्षाकृत उतनी अहमियत नहीं मिली,जितनी कि मिलनी चाहिए थी। प्रधान मंत्री इमरान ख़ान और सेना प्रमुख जनरल क़मर बाजवा ने इस उज़्बेक प्रतिनिधिमंडल का स्वागत किया था।

सोवियत संघ के विघटना के बाद उज़्बेकिस्तान देश बनने का एक उन्नत मॉडल है। राष्ट्रपति की अध्यक्षता में ताशकंद में राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद संस्था के साथ निहित राष्ट्रीय सुरक्षा शक्तियों का इस्तेमाल करने वाला पूर्ण नियंत्रण देश की नीतियों को उल्लेखनीय स्थिरता देता है। मखमुदोव 2013 से इस पद पर हैं। 

अब्दुलअज़ीज़ कामिलोव 2012 से ही उज़्बेकिस्तान के विदेश मंत्री हैं और अगर 1994 से 2003 के उनके पिछले कार्यकाल के नौ सालों को ध्यान में रखा जाये,तो वह शायद दुनिया के सबसे अनुभवी विदेश मंत्री ठहरते हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि एक चुनौतीपूर्ण बाहरी परिवेश के बीच उज़्बेक विदेश नीतियां बहुत शानदार प्रदर्शन कर रही हैं। 

मखमुदोव की यात्रा के दौरान उज़्बेकिस्तान के साथ एक प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर करके पाकिस्तान ने अच्छा किया है, जैसा कि एनएसए मोईद यूसुफ़ ने एक ट्वीट में लिखा था कि यह समझौता "हमारे दो बिरादराना मुल्कों के बीच सुरक्षा और क्षेत्रीय संपर्क के समन्वय को मज़बूत करने में मदद करेगा।"  

इस्लामाबाद में जारी आधिकारिक बयान में कहा गया है कि इस प्रोटोकॉल में "पारस्परिक हित के व्यापक सुरक्षा-सम्बन्धी मामले शामिल हैं और दो राष्ट्रीय सुरक्षा परिषदों के बीच समन्वय तंत्र स्थापित करता है।"  

युसूफ़ ने हस्ताक्षर समारोह के बाद मीडिया से बताया कि दोनों देश इस नये सुरक्षा क़दम के तहत आतंकवाद, अंतर्राष्ट्रीय अपराधों, मादक पदार्थों की तस्करी के ख़िलाफ़ सहयोग का विस्तार करेंगे, मादक द्रव्य विरोधी ताक़त और आपदा प्रबंधन क्षमता निर्माण पर एक दूसरे की सहायता करेंगे और रक्षा और सैन्य सहयोग को भी मज़बूती देंगे।  

बेशक,अफ़ग़ानिस्तान के घटनाक्रम यूसुफ़ और मखमुदोव के बीच आमने-सामने की इस बैठक पर हावी रहे। यूसुफ़ ने कहा कि इस्लामाबाद और ताशकंद ने अफ़ग़ानिस्तान पर "समान रुख को साझा किया" है,यानी कि  काबुल में मौजूदा सरकार के साथ उस मानवीय संकट को रोकने के लिए रचनात्मक जुड़ाव होना चाहिए, जो पड़ोसी देशों को और गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है। 

अपनी भू-आर्थिक नीति के तहत मध्य एशिया तक अपनी पहुंच को बढ़ाना पाकिस्तान का एक अहम मक़सद है। उज़्बेकिस्तान से पाकिस्तान के रास्ते उज़्बेकिस्तान से चार कार्गो ट्रकों के आगमन को देखने के लिए उज़्बेक प्रतिनिधिमंडल ने तोरखम सीमा की यात्रा की थी। इस साल मई में टीआईआर प्रणाली के तहत पाकिस्तान का पहला परिवहन भूमि मार्ग से उज्बेकिस्तान भेजा गया था। 

जैसा कि युसूफ ने कहा, "अफ़ग़ानिस्तान के साथ अपनी नज़दीकी के चलते उज़्बेकिस्तान हमारे भू-आर्थिक प्रतिमान को हासिल करने में एक बहुत ही अहम किरदार है।" यह सचाई को रखने वाला एक बयान है। एक पूर्व सोवियत टेक्नोक्रेट और एक स्पोर्ट्स आइकन और प्लेबॉय असंभव साझेदार बनते हुए दिख रहे हैं, लेकिन असल में उज़्बेक राष्ट्रपति शवकत मिर्जियोयेव और पाकिस्तान के प्रधान मंत्री इमरान ख़ान ने व्यक्तिगत स्तर पर एक गहरी दोस्ती भी बनायी है।

नेतृत्व के स्तर पर इस तरह के व्यक्तिगत समीकरण वाले क़दम भू-रणनीति को आगे बढ़ाने में मददगार होते हैं और दोनों नेता राजनीति और अर्थशास्त्र की उन अनिवार्यताओं को लेकर सचेत हैं, जो उन्हें एक साथ चलने को प्रेरित करते हैं। इस तरह, क्षेत्रीय स्थिरता और आर्थिक विकास को लेकर उज़्बेक-पाकिस्तानी स्वदेशी नज़रिये का जन्म हुआ है।

उज़्बेकिस्तान ने चाबहार मार्ग के बनिस्पत पाकिस्तान के ज़रिये ग्वादर और कराची बंदरगाहों से होते हुए विश्व बाज़ार तक के परिवहन को प्राथमिकता दी है। दरअसल, अमेरिकी विदेश विभाग ने जुलाई में यूएस-अफ़ग़ानिस्तान-उज़्बेकिस्तान-पाकिस्तान क्वाड की घोषणा करते हुए इसे महसूस किया था,जो कि "अफ़ग़ानिस्तान में दीर्घकालिक शांति और स्थिरता" को प्रोत्साहित करते हुए "क्षेत्रीय संपर्क बढ़ाने पर केंद्रित" था। इस अमेरिकी पहल ने मास्को और बीजिंग में ख़तरे की घंटी बजा दी होगी। 

यह इस तरह पल-पल बदल रही उस पृष्ठभूमि की ऊपज का नतीजा है कि 8 नवंबर को इस महीने के दूसरे घटनाक्रम का भी मूल्यांकन करने की ज़रूरत है और वह घटनाक्रम यह है कि किर्गिस्तान के प्रधान मंत्री अकीलबेक झापरोव की ओर से की गयी यह नाटकीय घोषणा कि बिश्केक बीजिंग की ओर से एक लंबे समय से चली आ रही उस परियोजना को लेकर आगे बढ़ने के लिए तैयार है,जिसमें चीन को उज्बेकिस्तान से जोड़ने के लिए रेलवे लाइन का निर्माण किया जाना है।

उज़्बेक प्रतिनिधिमंडल की इस्लामाबाद यात्रा के तुरंत बाद की गयी यह घोषणा अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के अधिग्रहण की "बड़ी तस्वीर" पर काम कर रहे बीजिंग के कौशल की ओर इशारा करती है। बीजिंग (और मास्को) ने अफ़ग़ानिस्तान में वापसी को लेकर इसी छटपटाते एंग्लो-अमेरिकन मिशन का ध्यान रखा होगा। 

वह पश्चिमी मीडिया, जो बीजिंग की छींक को भी अपनी रिपोर्ट में ख़ूब जगह देता है,उसने इस रेलवे परियोजना के सिलसिले में बिश्केक में झापरोव की इस घोषणा पर ज़बरदस्त रिपोर्टिंग की है। झापरोव ने कहा कि उनकी सरकार ने इसस रेलवे परियोजना के सिलसिले में सभी बाक़ी मुद्दों पर ताशकंद के साथ एक समझौता किया है और उम्मीद है कि निकट भविष्य में संभवतः चीन की राजधानी की उच्च स्तरीय यात्रा के दौरान बीजिंग के साथ भी ऐसा ही होगा। 

चीन इस बात की सराहना करता है कि उज़्बेकिस्तान में एक बहुत ज़्यादा विकसित आंतरिक रेलवे नेटवर्क है और उसमें एक क्षेत्रीय केंद्र के रूप में विकसित होने की बड़ी संभावना है। इस तरह, अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के हिस्से के रूप में चीन के पास झिंजियांग से किर्गिस्तान से उज़्बेकिस्तान और आगे तुर्कमेनिस्तान (और ईरान) तक एक रेलवे लाइन बनाने की योजना है। बीजिंग ने ज़ोर देकर कहा कि मुख्य अड़चन यही रही है कि इस नयी रेल लाइन को 1,435 मिलीमीटर चौड़ाई वाली पटरियों की ज़रूरत है, जिसका चीन और दुनिया के ज़्यादातर देश इस्तेमाल करते हैं, जबकि मध्य एशिया में सोवियत काल के 1,520 मिलीमीटर के रूसी गेज प्रचलित हैं।

बड़ी रूसी ट्रैकिंग के अंदर चलने वाले संकरे अंतर्राष्ट्रीय गेज वाले डबल-ट्रैकिंग से तकनीकी समाधान खोजने को लेकर इस चीनी सरलता पर भरोसा करना चाहिए, जो चीनी-किर्गिस्तान और तुर्कमेनिस्तान-ईरानी सीमाओं से गुज़रने की ज़रूरत को ख़त्म करते हुए परियोजना की लागत को भी कम कर देगा।

दरअस्ल, चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड पहल के तहत पूरी की गयी नवीनतम परियोजना, अमूर नदी के पार 2.2 किलोमीटर लंबा चीन-रूसी तोंगजियांग-निज़नेलिनिनस्कॉय रेलवे पुल  इस डबल ट्रैकिंग की  नयी पद्धति का इस्तेमाल करके "प्रौद्योगिकी प्रदर्शक" बन गयी है।

पहली टेस्ट ट्रेन ने अगस्त में बॉर्डर को पार किया था। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने लंदन के लिए एक रेल लिंक बनाने के लक्ष्य की बात कही है। इस पुल के चालू होने के साथ ही चीन के हेइलोंगजियांग प्रांत से मास्को तक की रेलवे परिवहन की दूरी 809 किलोमीटर तक कम हो जायेगी, जिससे परिवहन के समय में 10 घंटे की कमी आ जायेगी। 

इस पुल से ले जाया जाने वाला मुख्य उत्पाद लौह अयस्क होगा, जिसकी वार्षिक निर्धारित कार्गो क्षमता 21 मिलियन टन है। इसके अलावे,अहम बात यह है कि इस रेलवे पुल में दोहरी ट्रैक प्रणाली है, जो रूसी गेज और चीनी गेज दोनों पर चलने वाली ट्रेनों के मुफ़ीद है !

चीन की इस रेलवे परियोजना के लिए बिश्केक की मंज़ूरी मध्य एशियाई क्षेत्र और अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और ईरान सहित कई क्षेत्रीय देशों की सीमा पार कनेक्टिविटी को अभूतपूर्व रूप से बदल सकती है। इस क्षेत्र की भू-राजनीति फिर कभी वैसी नहीं रह जायेगी,जैसे कि इस समय है।

अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान (ग्वादर और कराची बंदरगाह) का मुख्य प्रवेश द्वार होने के नाते उज़्बेकिस्तान इसका एक बड़ा लाभार्थी होगा और पाकिस्तान यहां की क्षेत्रीय राजनीति के लिए एक अहम देश बन जायेगा।

मार्च में पाकिस्तान, उज़्बेकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान ने काबुल के रास्ते मज़ार-ए-शरीफ़ से पेशावर तक के 573 किलोमीटर के मार्ग के निर्माण के लिए एक रोडमैप पर सहमति व्यक्त की थी। 5 अरब डॉलर की अनुमानित लागत वाली इस परियोजना से अरब की खाड़ी में उज़्बेकिस्तान के लिए पाकिस्तानी बंदरगाह खुल जायेंगे।

रूसी नज़रिये से प्रस्तावित मध्य एशियाई रेल ग्रिड रूसी ग्रिड से जुड़ जाता है। इस रेल लिंक से अफ़ग़ान के पुनर्निर्माण में इस्तेमाल हो रही रूसी क्षमता कई गुनी बढ़ जायेगी। 

अफ़ग़ान स्थिति की गंभीरता मध्य एशियाई देशों को और क़रीब आने के साथ-साथ चीन और रूस क्षेत्रीय सुरक्षा को मज़बूत देने को लेकर अपने सहयोग और समन्वय को और तेज़ करने के लिए मजबूर कर रही है। ताशकंद की पहल पर इनके 30 साल के सीमा विवाद को हल करने वाले मार्च में हुए उज़्बेक-किर्गिज़ समझौते को कम करके नहीं आंका जाना चाहिए, जो चीन-किर्गिस्तान-उज़्बेकिस्तान रेलमार्ग की एक शर्त है।

इसे सुनिश्चित करने के लिए मुख्य क्षेत्रीय किरदारों,और ख़ासकर चीन, उज़्बेकिस्तान और पाकिस्तान के बीच यह चौतरफा अहसास है कि अफ़ग़ानिस्तान में क्षेत्रीय संपर्क और दीर्घकालिक शांति और स्थिरता आपस में एक दूसरे से जुड़े हुए हैं।

यह आलेख इंडियन पंचलाइन और ग्लोबट्रॉटर की साझेदारी में तैयार किया गया है। एम.के. भद्रकुमार एक पूर्व भारतीय राजनयिक हैं। इनके व्यक्त विचार निजी हैं।

स्रोत: ग्लोबट्रॉटर

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

New Rail Agreements Reveal Contours of Central Asia’s Rapid Integration

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