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भारत
राजनीति
लव जिहाद और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति
न्यूज़क्लिक प्रोडक्शन
11 Sep 2014

अनेक राज्यों में आने वाले चुनाओं को मद्देनज़र रखते हुए भाजपा और संघ परिवार के अनेक और सदस्य साप्रदायिक तनाव फैलाने की कोशिश कर रहे हैं I “ लवजिहाद” इनके द्वारा छोड़ा गया सबसे नया शिगूफा है I इस मामले पे और अधिक जानने के लिए न्यूज़क्लिक ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया के सयुंक्त संपादक शंकर रघुरमन से बात की I शंकर ने लव जिहाद के इतिहास, भारतीय इतिहास में इसके राजनैतिक प्रयोग, और भाजपा द्वारा इसे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की मुहीम बनाने आदि पर बात की I साथ ही इसके सामाजिक पहलु जैसे कि महिलाओं की स्थिति आदि पर भी शंकर ने अपने विचार रखे I

महेश: नमस्कार न्यूज़क्लिक में स्वागत है। आज हम लव जिहाद के मुद्दे पर चर्चा करेंगे। जैसे की आप लोगो को मालूम है, पिछले काफी सयम से लव जिहाद पर चर्चा चल रही है। इसकी पृष्ट भूमि को जाने के लिए कि इस मुदे को बार बार क्यों  भारतीय समाज में उठाया जाता है और इस पर चर्चा करने के लिए हमारे साथ टाइम्स ऑफ़ इंडिया के एसोसिएट एडिटर मिस्टर शंकर रघुरमन हमारे बीच में हैं ।स्वागत है मिस्टर शंकर।शंकर  जी ये बताइये लव जिहाद का मुदा जो हमारे समाज में बार बार उठाया जाता है। खास कर संघ के जो सगठन है,उनके द्वारा ।इसकी ऐतहासिक  पृष्ठ भूमि क्या है। भारतीय राजनीति में इसका क्या महत्व है। 

शंकर - ये जहां तक मुझे मालूम है। ये मुद्दा 1920 या 1930 के दशक से बार बार उठता रहा है। हर बार उसके कारण अगल हो सकते है। लेकिन एक जो धारा बनी रहती है। वो इस बात से जुडी हुई है कि संघ परिवार के जो लोग है।  वो हमेशा एक असुरक्षा का वातावरण पैदा करना चाहते है, बहुमत के समुदाय के बीच । आपका अस्तीत्व मिट जायेगा यह से धीरे धीरे समाज ईस्लामिक होता जायेगा। मुस्लमानो की सख्या बढ़ती जाएगी। तो ये बड़ा पुराना प्रचार रहा है उनकी तरफ से। यहाँ तक कि वो ये भी कहेंगे कि सेन्सस के जो आंकड़े है वो भी गलत है । मुस्लमानो की संख्या दरसल इससे भी ज्यादा है। असुरक्षा का जो वातावरण होता है। ये बड़ा मुश्किल होता है। जो समुदाय बहुमत में हो उसके बीच आप असुरक्षा का वातावरण पैदा कर दे। तो यह उल्टा ही चल रहा है मामला। कि आप बहुमत को कन्विंस करने की कोशिश कर रहे है कि आप असुरक्षित  है। और सरकारे आपके खिलाफ काम करती रही है। हमेशा तो इस लव जिहाद के मुदे को मेरे ख्याल से इस पृष्ठ भूमि में देखा जाना चाहिए। 

महेश कुमार - आपको नही लगता जैसे तारा शहदेव का मसला उठया है।कुछ और ऎसे मसले उठ रहे है। की हिन्दू बनकर उनके साथ शादी की और बाद में उनको धर्म परिवर्तन के लिए उकसाया गया है। क्या इन घटनाओ ने इस धर्मान्तरण के मामले को और ज्यादा मतलब मेन उस पर लेकर आ गए है। 

शंकर -व्यापक तौर पर देखे तो इसमे लव जिहाद ही शामिल नही है। एक पूरा प्रचार है की हिन्दू तुम खतरे में हो तुम्हारी संख्या घटाई जा रही है तुम्हारे समुदाय से लोगो को निकाल कर दूसरे समुदाय में ले जाया जा रहा है। लव जिहाद उसका एक पहलू है। दूसरा पहलू ये है कि जबरन कन्वर्शन हो रहा है। जब की हकीकत ये है की वो कहते तो ये है। जब उनसे कोई पूछे कि कोई अपनी मर्जी से अपना मज़हब बदल ले तो इसमे आपको क्या दिक्कत है। तो वो पब्किल में तो ये कहेंगे गये कि किसी को अपनी मर्जी से बदलने में हमें कोई दिकत नही है। लेकिन अपनी मर्जी से नही, जबरदस्ती से बदलवाया गया है। जैसे अभी शिवपुरी में जो घटना चल रही है। जहाँ कुछ दलितों ने अपनी मर्जी से धर्म परिवर्तन कर लिया ,मुस्लमान बन गए है उनके खिलाफ केस दर्ज कर दिए है। उन्होंने कोर्ट में जा के अफिडेविट दिया है कि हम अपनी मर्जी से बदले है। उसके बाद भी उन पे करवाई हो रही है। क्यूकि मध्यप्रदेश ने ऐसा कानून वो कर लिया है जिसमे आप खुद अपनी इच्छा से अपना धर्म बदलना चाहे तो पहले आपको स्टेट को जा के बताना पड़ेगा। तो इस से ये पता चलता है।  इससे पता चलता है कि वो चाहे कुछ भी कहे उन्हें धर्म परिवर्तन से प्रॉब्लम है। जब से ये नई सरकार बनी है, बड़े बड़े नेताओ ने बीजेपी के ये एलान किया है की हिन्दुस्तान एक हिन्दू राष्ट्र है। और ऐसा ही होना चाहिए। उसके बाद जब मीडिया में हल्ला मचा तो वे उससे थोड़ा पीछे हट गए लेकिन ये सब मानसिकता को दर्शाता है। लव जिहाद,धर्म परिवर्तन के खिलाफ प्रचार, भारत को एक हिन्दू राष्ट्रीय डिक्लियर करना कुल मिला के एक पैकेज है। 

महेश -वैसे तो कई सारे लोग भारतीये राजनीति का संप्रदायीकरण करने के लिए वो कई चीजो का इस्तेमाल करते है। लेकिन महिलाओ का इस्तेमाल खास तौर पर करते हैं,   इस लिए इस मुदे को बहुत तेजी से उठाया जा रहा है। 

शंकर -अगर आप ऐतहासिक तौर पर देखे ये हमेशा से ऐसा रहा है कि किसी समुदाय का, किसी  कौम की इज्जत महिला की इज्जत से जोड़ी गई है। महिला की इज्जत इसमे नही है कि उसका एक अपना अस्तित्व हो, वह आपने फैसले खुद करने को आज़ाद हो ,ये उनकी इज्जत नही है। इनकी मंशा से महिला की इज्जत उसके यौन संबंधों से जुड़ा हुआ है। वो काबू में रहे,मर्द समुदाय जो चाहे वो इस दायरे में रहे, इसी में उसकी इज्जत है। इस लिए आप देखे तो जब भी दंगे होते हैं तो तकरीबन हर दगे में महिलाओं का बलत्कार भी होता है। क्यूकि उसमे ये लगता है की अब मैने तुम्हारी इज्जत लूट ली, तुम्हारी यानि उस समुदाय की जिस समुदाय से वो महिला बिलोंग करती है। तो इस में महिला सिर्फ एक पैसिव सब्जेक्ट है उसका अपना कोई अस्तित्व नहीं है। आपने कोई हक नही है। वो सिर्फ उस वक़त इन लोगो के लिए उस समुदाय को रिप्रेजेंट कर रही होती है। 

महेश - अच्छा दूसरा ये सवाल जैसे महिलाओ की रक्षा का सवाल उठ रहा है लव जिहाद के मामले में। हमने ये देखा है की हिन्दू कम्युनिटीज के अन्दर ही खास कर दलित और आदिवासी तबका  जिसको की अपने राजनितिक  स्वार्थ वो हिन्दू समुदाय में मान के चलते है, खास कर संघ परिवार। लेकिन जब उसी समुदाय के भीतर जो समांति ग्रुप है हिन्दू जातियों के, वो दलित महिलाओ पर हमला करते है। उनके साथ बलत्कार करते है। जैसे की हरियाणा के अन्दर हुआ है। खाप पंचायत दलित महिलाओ के खिलाफ,दलित  नौजवानो के खिलाफ और प्यार मोहब्बत के खिलाफ वो बाते करते है। तब ये हिंदूवादी संगठन क्यों नही अपना कदम उठाते हैं? 

शंकर -इसके दो पहलू है। एक तो जैसा कि मैने पहले कहा महिला की अपनी कोई इज्जत नही है। उसकी इज्जत उन चीजो से जुडी हुई है जो समुदाय उसके ऊपर लागू करे । तो इस लिए यहाँ पे महिला के हक का उल्लंघन होने का सवाल ही नही पैदा होता। जब आपका कोई हक ही नही है, तो आपका उल्गन कैसे होगा। दूसरा ये की जो आपने राजनीति की बात की ये दलितों को और बाकि पिछड़े को एक साथ जोड़ना, एक  हिन्दू समुदाय के तौर ये राजनीति के लिए जरुरी है क्यूकि आप चुनाव जीतना चाहते है। तो इस वक़त भी लव जिहाद का सारा  कार्येक्रम चल रहा है, वो अगर आप देखे उत्तरप्रदेश और पश्चिम उत्तर प्रदेश में हो रहा है। वो इस लिए की आने वाले 13 तारीक को उत्तरप्रदेश में 11  जगह चुनाव होने है। जिनमे से 4 पश्चिम उत्तर प्रदेश में होने है। तो लोक सभा चुनाव के कुछ  महीने पहले से अगर आप देखे तो उत्तर प्रदेश के इस हिस्से में लगातार कुछ  ना कुछ इस तरह के सांप्रदायिक तनाव पैदा किये जा रहे है। ये तो साफ है कि संघ परिवार का अगर आप इतिहास उठा कर देख ले, ये बात सही है, की उनका फॉर्मल पोजीसन ये रहता है की हम जातिवाद के खिलाफ है। और हम हिन्दू समुदाय की तमाम  जातियोंको एक जगह एकत्रित करना चाहते है। लेकिन हक़ीक़त ये है कि अगर आप संघ परिवार के लीडरशीप को देख ले वो हमेशा उच्च जाति के लोगो से बना है। संघ का अपना, चाहे वो भारतीये संघ रहा हो या भाजपा रहा हो चुनाव में भी उनका जो कोर बेस रहा है, वो हमेशा अपरकास्ट पर आधारित रहा है। तो उसमे दलित महिला का उत्पीड़न उनके लिए कोई मुद्दा ही नही है। चुनाव में दलित की जरूत पड़ती है,  तब बात कुछ और है। 

महेश -हम सब लोग जानते है की उत्तर प्रदेश के अन्दर मुज्जफ़रनगर का जो सांप्रदायिक दंगा है वो चुनाव से पहले का दंगा है। लेकिन चुनाव के बाद ही उत्तर प्रदेश के अन्दर ही 650 सांप्रदायिक  घटना घट चुकी है। और पूरे हिन्दुस्तान के अन्दर छोटी छोटी घटना को सांप्रदायिक घटना का रूप देने की कोशिश की जा रही है। क्या ये संघ परिवार की रणनीति है कि वो बड़ी घटना होने से पहले वो छोटे छोटे प्रयोग कर रहे है, कि समाज में इसका क्या असर पड़ता है? राजनीति में इसका क्या असर पड़ता है? क्या हिन्दुस्तान की राजनीति गहरे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की और बढ़ रही है? 

शंकर -2014 के लोक सभा के चुनाव में जो रणनीति रही  है भाजपा की, उसकी तरफ ध्यान दे तो उसके दो पहलू थे। एक तरफ देश के अधिकतर हिस्सों में उनकी कोशिश ये थी, कि आप कहे की 2002 घटना को भूल जाओ ये हमारी पहचान नही है। हमारी असली पहचान है ककि हम विकास की तरफ ले जायेंगे देश को। देश के अधिकतर हिस्सों में ये प्रचार था। लेकिन कुछ हिस्सों में जैसे उत्तर प्रदेश में बड़ा साफ सांप्रदायिक प्रचार चला। यहाँ तक कि एक दौर ऐसा आया था कि अमित शाह को उत्तर प्रदेश में प्रचार करने से इलेक्शन कमीशन ने मना कर दिया था।  हलाकि बाद में उन्होंने वो पाबंदी हटा ली थी। अच्छा उसके बाद आप ये देखे की 15 अगस्त के आपने भाषण में नरेंद्र मोदी कहते है कि दस साल के लिए हमे एक मोरेटोरियम लगा देना चाहिए सांप्रदायिक दंगो पर। पहली बात तो ये कि ये अपने आप में ही सुनने में अजीब लगता है कि कोई प्रधानमंत्री ये कहे की भैया कुछ दिनों के लिए किटकैट ब्रेक ले लो। दंगे अभी नही दस साल बाद करेंगे। प्रधानमंत्री ये कहेगा की दंगे खत्म होने चाहिए, कोई ये थोड़ी कहेंगा की कुछ दिनों के लिए रोक देते है। उससे भी आपको एक रणनीति की तरफ संकेत मिलता है कि कोई बड़ा दंगा न हो। छोटे छोटे मुद्दे उठा के जगह जगह,जहाँ जरूत हो पटैक्टिकल तौर पे जहाँ वो काम आये, वहां आप सांप्रदायिक तनाव पैदा कीजिये। जहा आपको उससे फायदा न हो वहां रहने दो ,तो ये उनकी रणनीति है। उसका नतीजा ये होता है, चाहे वो चाहे या ना चाहे,आप जिस चीज को शुरू करते है, पूरे तरीके से कंट्रोल तो नही कर पाते तो जगह जगह आप सांप्रदायिक तनाव पैदा कर रहे है। तो कुल मिला के आप ध्रुवीकरण की और तो आप बढ़ेंगे ही। 

महेश -उत्तर प्रदेश की राजनीति के अन्दर जिस तरह से इस मुद्दे को उठाया जा रहा है, खास तौर पर यूपी की कमेटी ने इस मुदे को उठाया है। तो आप क्या देखते है आने वाले दिनों में यूपी क्या जो पहले से ध्रुवीकरण हुआ है वो और ज्यादा ध्रुवीकारण तेज होगा?  या इसको वहां की जो मौजूदा ताकतें है इसके खिलाफ है. वो इस कोशिश को किस हद तक रोक पायेग? 

शंकर-यहाँ पे दिक्कत दो लेवल पर है। पहला ये की भाजपा ने, अगर आप देखे कि किसको उन्होंने इन  उपचुनाव प्रचार अभियान का इंचार्ज बनाया है, योगी अदितायनाथ । तो उससे बड़ा क्लियर संकेत मिलता है कि भाजपा की राजनीति क्या होगी। दूसरी तरफ ये की  इस वक़त जो पार्टी में सत्ता है, उत्तर प्रदेश में उसे भी कुछ हद तक ये ध्रुवीकरण सूट करता है। क्यूकि उसे ये लगता है, कि इस वक़त मुस्लीम समुदाय का मत  बटा हुआ हो सकता है इस वक़त कुछ लोग सोचे की कोंग्रेस को वोट दे ,कुछ लोग बसपा को वोट दे कुछ लोग सपा को वोट दे। अधिकतर हिस्सा सपा  के साथ है ये बात सही है। लेकिन अगर ध्रुवीकरण और तेज किया जा सके। तो इसमें कोई संदेह नही है कि मुस्लिम वोट है वो भी सपा पीछे कंसोलिडेट हो जायेगा। इस लिए इस स्थिति में जहाँ एक तरफ से दंगे करवाने के या सांप्रदायिक तनाव पैदा करने की कोशिश हो  रही हो। और दूसरी तरफ जो सत्ता में है, वो खुद भी बहुत ज्यादा इंटरेस्टेड नही है की इसे रोका जाये। ऎसे में उस पर काबू पाना थोड़ा मुश्किल है। ये बहुत खतरनाक संकेत है उत्तर प्रदेश के लिए। 

महेश -हम अभी चर्चा कर रहे थे शंकर से आज के लिए इतना ही शुक्रिया।

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