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भारत
राजनीति
ओबीसी की 17 जातियों को एससी वर्ग में शामिल करने के पीछे बीजेपी की मंशा क्या है?
यूपी सरकार की इस पहल से एससी वर्ग में शामिल जातियों, खासकर उन जातियों की मुश्किलें बढ़ जाएंगी, जो अत्यंत कमजोर हैं।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
04 Jul 2019
yogi adityanath

अन्य पिछड़ा वर्ग की 17 जातियों को अनुसूचित जाति (एससी) वर्ग में शामिल करने की योगी आदित्यनाथ की सरकार की पहल को संसद ने ही असंवैधनिक कहकार ख़ारिज कर दिया। सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्री थावर चंद गहलोत ने इसे संसद के अधिकार क्षेत्रों में जबरदस्ती का दखल देना कहा और यह भी कहा कि केवल संसद ही नोटीफाइड लिस्ट को बदल सकती है। 

24 जून को राज्य सरकार ने जिला प्रशासन को आदेश दे दिया था कि वह नई लिस्ट के तहत कास्ट सर्टिफिकेट जारी कर सकता है। लेकिन संसद ने किसी भी तरह के कास्ट सर्टिफिकेट को जारी करने से मना कर दिया है। संविधान के अनुच्छेद 341(2) के तहत केवल संसद को यह अधिकार है कि अनुसूचित जातियों के लिस्ट में बदलाव करे।

इस तरह हाल-फिलहाल तो यह मसला पूरी तरह से ठंडे बस्ते में चल गया है। फिर भी इस मसले के पीछे की मंशा की तरफ नजर फेरना जरूरी है। जिन 17 जातियों को शामिल करने की पहल की गयी थी, उनका वोट प्रतिशत यूपी में तकरीबन 14 फीसदी है। जबकि आबादी में एससी वर्ग की हिस्सेदारी करीब 25 फीसदी मानी जाती है। यूपी सरकार की इस पहल से एससी वर्ग में शामिल जातियों, खासकर उन जातियों की मुश्किलें बढ़ जाएंगी, जो अत्यंत कमजोर हैं। उनके लिए प्रतिस्पर्धा और कड़ी हो जाएगी।

सामाजिक चिंतक और लखनऊ यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर डॉ. रविकान्त का मानना है, “योगी सरकार का यह कदम आरक्षण की वर्तमान व्यवस्था को कमजोर करने वाला है। इसकी राजनीतिक मंशा 17 ओबीसी जातियों का शुभचिन्तक बनने और एससी वर्ग में जाटवों के प्रभुत्व को कमजोर करने की है। बीजेपी यह भी संदेश देना चाहती है कि ओबीसी में आरक्षण का लाभ सिर्फ यादवों ने लिया है। वास्तविकता ये है कि सरकारी नौकरियां 3.5 फीसदी से घटकर 2.5 फीसदी रह गयी हैं और यह घटती ही जा रही हैं। ऐसे में इस पहल का कोई वास्तविक फायदा नहीं होने वाला है।”

आरक्षित वर्ग को नहीं मिल पा रहा है वास्तविक फायदा 

करीब एक साल पहले जून 2018 में तत्कालीन बीजेपी सांसद उदित राज ने संसद में चौंकाने वाला आंकड़ा पेश किया था। केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों से जुटाए गये इन आंकड़ों के मुताबिक 1 जनवरी 2016 की स्थिति के अनुसार ए वर्ग की नौकरियों में कुल 84,705 पदों में से एससी का प्रतिनिधित्व 11,333 था जबकि ओबीसी का 11,016 और एसटी का 5,013, वहीं अन्य श्रेणी में यह संख्या 57,343 थी। 

ये आंकड़े बताते हैं कि अपेक्षाकृत ओबीसी व एससी और एसटी वर्ग को आरक्षण का बड़ा लाभ नहीं मिल पा रहा है। यही स्थिति ग्रुप बी वर्ग की नौकरियों में देखने को मिलती है। इस वर्ग में एससी का प्रतिनिधित्व 46,625 है तो ओबीसी का 42,995 और एसटी का प्रतिनिधित्व है 20,915। सामान्य वर्ग के 1,80,406 लोग नौकरियों में थे।

आम तौर पर एससी वर्ग का प्रतिनिधित्व करने का दावा बीएसपी करती है। मगर, यह भी सच है कि बीएसपी सत्ता में तभी आ सकी है, जब उसने एससी के अलावा किसी अन्य वर्ग को अपने साथ जोड़ा है। ब्राह्मण और दलितों का समीकरण बीएसपी के लिए बहुत मुफीद साबित हुआ था जब बीएसपी अपने दम पर पहली बार उत्तर प्रदेश में सत्ता में आयी थी। 

2019 के आम चुनाव में भी बीएसपी को मिली 10 सीटों में एससी के साथ-साथ ओबीसी वर्ग के वोटों की बड़ी भूमिका है। यही वजह है कि राजनीतिक रूप से बीएसपी कितना मुखर होगी, इस पर सबकी नज़र है।

यह तय लगता है कि एससी वर्ग योगी सरकार के इस फैसले का विरोध करेगा। मगर, यह भी सम्भव है कि वह एससी वर्ग के लिए आरक्षण का दायरा बढ़ाने की मांग करे क्योंकि योगी सरकार के फैसले के बाद इस वर्ग की आबादी बढ़ जाएगी। डॉ. रविकान्त मानते हैं कि योगी सरकार का फैसला इस प्रतिक्रिया पर निर्भर करने वाला है। प्रतिकूल स्थिति होने पर वह पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार पर भी ठीकरा फोड़ सकते हैं जिन्होंने ऐसी ही पहल की थी और जिस पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी।

इस चाल से सबसे ज्यादा बेबस करने की कोशिश समाजवादी पार्टी की होती है, जो ओबीसी के हितों के नाम पर उठाए गये इस कदम का विरोध नहीं कर पाएगी और राजनीतिक फायदा भी उसे नहीं मिलेगा।

अपनी ही सोच के विरुद्ध बीजेपी!

ओबीसी की 17 जातियों को एससी वर्ग में शामिल करने की पहल खुद बीजेपी की उस सोच के विरुद्ध है जिसमें वह आरक्षित वर्ग के भीतर कमजोर तबके की आवाज़ बुलन्द करने का दावा करती रही है। 

ओबीसी की ये 17 जातियां निश्चित रूप से ओबीसी में हाशिये पर रही थीं, मगर एससी में वह नेतृत्वकारी भूमिका में आ जाएंगी। ऐसे में एससी के भीतर जो जातियां हाशिये पर रही हैं, उनकी मुश्किलें और बढ़ जाएंगी। एससी में वे जातियां जो आरक्षण का सबसे ज्यादा लाभ उठाती रही हैं उन्हें भी कड़ी स्पर्धा झेलनी होगी।

जब नरेंद्र मोदी की सरकार ने लोकसभा चुनाव से पहले राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक आधार पर 10 फीसदी आरक्षण लागू किया था तो ओबीसी वर्ग नाराज़ न हो, इसका उसने पूरा ध्यान रखा था। बीजेपी ने कहा था कि बगैर आरक्षित वर्ग से छेड़छाड़ के यह पहल की गयी है, किसी का हक नहीं छीना गया है। उत्तर प्रदेश में बीजेपी इसी वादे से मुकर गयी है। इस बार भी ओबीसी वर्ग को ही खुश करने की कोशिश है। उसे फिक्र नहीं है कि एससी वर्ग का हक इससे छिनने रहा है।

हालांकि आरएसएस से जुड़ीं सामाजिक कार्यकर्ता और ओबीसी की पैरोकार मोनिका अरोड़ा का मानना अलग है। वह कहती हैं, “जो काम मुलायम और अखिलेश की सरकार कर रही थी, वही काम अगर योगी आदित्यनाथ की सरकार कर रही है तो इसमें गलत क्या है? ओबीसी के 17 जातियों को एससी में शामिल करने से उन्हें लाभ मिलेगा। इसे राजनीतिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए।”

एससी का मतलब नहीं रह जाएगा दलित!

एससी में शामिल की जा रहीं 17 ओबीसी जातियां हैं निषाद, बिंद, मल्लाह, केवट, कश्यप, भर, धीवर, बाथम, मछुआरा, प्रजापति, राजभर, कहार, कुम्हार, धीमर, मांझी, तुरहा और गौड़। अब तक एससी वर्ग में दलित जातियां आया करती थीं जिनके साथ छुआछूत होता आया है। निश्चित रूप से योगी सरकार की पहल के बाद एससी वर्ग का मतलब बदल जाएगा। वास्तव में यह दलित वर्ग नहीं रह जाएगा। यह एससी और ओबीसी वर्ग में फर्क को ख़त्म करने वाला एक्शन है। सवाल ये है कि अगर वास्तव में इन दोनों वर्गों में कोई फर्क नहीं है तो ये वर्ग बने ही क्यों?

एससी वर्ग में चिह्नित जातियां अंग्रेजों के जमाने से हैं। यह समाज का सबसे दबा-कुचला तबका है। इस वर्ग में ओबीसी की जातियों को शामिल करना महज वोट बैंक की राजनीति है। इससे आरक्षित वर्ग का भला नहीं होगा। आरक्षण पाने वाली जातियों में किसी का प्रभुत्व कम या अधिक जरूर होगा और इसलिए यह आपस में लड़ाने वाली पहल है। खासकर नौकरियां नहीं बढ़ने के संदर्भ में इसे देखें तो यह पूरी कवायद ही निरर्थक हो जाती है।

आरक्षण व्यवस्था को बेमतलब बनाने का कुचक्र?

आरक्षण पर बीजेपी धीरे-धीरे उस सोच की ओर बढ़ रही है जहां यह व्यवस्था ही अपना अर्थ खो दे। आरक्षण का आधार आर्थिक कर देना, अनुसूचित जाति यानी एससी की सोच में घालमेल पैदा कर देना और एससी-ओबीसी में फर्क मिटाना उसी दिशा में कदम है।
 
अब यह बात कायदे से उठायी जाएगी कि आरक्षण का फायदा ले रही जातियां चुनिन्दा हैं, ज्यादातर जातियों को लाभ नहीं मिल रहा है, क्रीमी लेयर का तत्परता से पालन हो, आरक्षण का लाभ ले लेने वाले को दोबारा आरक्षण न मिले। और इन सबके लिए आरक्षण के पुनर्विचार की जरूरत पर बीजेपी लौटने की ओर बढ़ रही है जिस बारे में आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत ने बिहार विधानसभा चुनाव से पहले बयान दिया था।

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