NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
अपराध
भारत
राजनीति
पहलू ख़ान केस : अदालत के फ़ैसले से खड़े हुए कई सवाल
कुल मिला कर अभियोजन पक्ष ने अदालत में सज़ा के लिए जो कुछ अनिवार्य था उसे नज़रअंदाज़ किया और पहलू के क़ातिलों को इसका लाभ मिला जिस आधार पर वो छूट गए।  
फ़र्रह शकेब
20 Aug 2019
pehlu khan case
Image courtesy: OrissaPOST

हमारी न्यायिक प्रणाली को अंग्रेजों ने औपनिवेशिक शासन के दौरान बनाया था और उसी के मुताबिक़ भारतीय न्यायपालिका आज भी सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट, जिला और अधीनस्थ न्यायालय और ट्रिब्यूनल कोर्ट के माध्यम से हमारे संविधान में लिखे क़ानून का पालन  करती और करवाती है और उसका पालन न करने वालों को भारतीय दंड संहिता के अनुसार दंडित करती है। लेकिन विगत कुछ सालों से भारत में एक समांनातर न्यायपालिका का प्रादुर्भाव हुआ है जो फ़ैसला ऑन स्पॉट करने में विश्वास करती है और इस की बुनियाद नफ़रत,घृणा धार्मिक उन्माद,जातिगत असमानता और अराजकता पर टिकी है जिसे लोकतंत्र नहीं एक नरभक्षी भीड़तंत्र के माध्यम से संचालित किया जा रहा है और ये रक्तपिपासु भीड़ किसी को भी मार डालने के लिए तैयार है।

इसी रक्तपिपासु भीड़तंत्र वाली क्रूर व्यवस्था का शिकार हुए थे पहलू ख़ान जो एक डेयरी किसान थे और हरियाणा के मेवात ज़िले के नूंह के जयसिंहपुर गांव के रहने वाले थे। इस निर्मम हत्याकांड के 6 आरोपियों  विपिन यादव, रविंद्र कुमार, कालूराम, दयानंद, योगेश कुमार और भीम राठी को दिनांक 14 अगस्त 2019 को राजस्थान के अलवर के अपर जिला और सत्र न्यायालय नंबर-1 की जज डॉ.सरिता स्वामी ने फैसला सुनाते हुए बरी कर दिया है। अदालत ने छह आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी किया है। नाबालिग आरोपियों की सुनवाई जुवनाइल कोर्ट में चल रही है।  

कब, क्या हुआ?

पहलू ख़ान एक डेयरी किसान थे और दूध बेचने का कारोबार करते थे। दो साल पहले एक अप्रैल 2017 को पहलू ख़ान जयपुर मवेशी मेले से जब दो गाय ख़रीद  कर अपने घर वापस लौट रहे थे तो रास्ते में राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-8 पर अलवर के बहरोड़ के निकट कुछ तथाकथित गौ रक्षकों और एक हिंसक भीड़ ने उनकी गाडी रुकवा ली। भीड़ ने पहलू ख़ान और उनके दो बेटों एक स्थानीय गावं निवासी जो उस वक़्त उनके साथ थे, के साथ मारपीट की और 3 अप्रैल 2017 को शाम के सात बजे इलाज के दौरान अस्पताल में पहलू ख़ान की मौत हो गयी। 

इस घटना की वीडियो सोशल मीडिया वायरल हो गया और काफी हंगामे के बाद पुलिस ने पहलू ख़ान और उनके बेटों के साथ मारपीट करने वाले 9 लोगों को गिरफ़्तार किया। कथित गौरक्षकों के खिलाफ आईपीसी की धारा 143, 323, 341, 147, 308 और 379 में केस दर्ज किया गया। मारपीट के दौरान हिंसक भीड़ द्वारा आपस में एक दूसरे को सम्बोधित करने के आधार पर पहलू ख़ान ने मरने से पहले अपने ‘डायिंग डिक्लेरेशन’ में 6 लोगों ओम यादव, हुकुम चंद यादव, सुधीर यादव, जगमल यादव, नवीन शर्मा और राहुल सैनी की पहचान अपने हमलावरों के रूप में की थी जो सभी हिंदूवादी संगठन के कार्यकर्ता थे।

उनमें से किसी का नाम भी प्राथमिकी में दर्ज नहीं किया गया है। आपको बता दूँ के इस केस में दो FIR लिखी गयीं, एक पहलू की हत्या के आरोपियों के ख़िलाफ़ और दूसरी पहलू ख़ान और उनके बेटों के ख़िलाफ़। उनके ऊपर राजस्थान गोवंशीय पशु वध प्रतिषेध व अस्थाई प्रजनन निर्यातका विनियमन, नियम 1995 की धारा 5, 8 व 9 के तहत मुक़दमा दर्ज किया गया, जिस संबंध में 24 मई 2019 को चार्जशीट दायर की गयी है लेकिन अदालत द्वारा मामले में कार्रवाई की मंजूरी दिए जाने के बाद जुलाई में राजस्थान पुलिस ने कहा है कि वह पहलू ख़ान और उनके दोनों बेटों के खिलाफ गौ तस्करी के मामले में दोबारा जांच करेगी। पहलू के बेटे अभी ज़मानत पर बाहर हैं।  

पहलू ख़ान लिंचिंग केस में 7अप्रैल 2017 को राजस्थान सरकार ने केस की रिपोर्ट केंद्रीय गृह मंत्रालय को सौंपी और गृह मंत्रालय ने पूरे मामले की जांच और दोषियों की गिरफ्तारी के लिए विशेष टीम गठित की और 7 अप्रैल को ही इस जघन्य हत्याकांड के विरुद्ध देश भर में होने वाले विरोध प्रदर्शनों को संज्ञान में लेते हुए नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन (NHRC) ने राजस्थान सरकार को नोटिस जारी किया

11 मई 2017 को राजस्थान पुलिस ने इस मामले का जांच अधिकारी बदल दिया और पहलू ख़ान हत्याकांड मामले की जांच अलवर पुलिस के डीएसपी से लेकर जयपुर रूरल पुलिस के एडिशनल एसपी को सौंप दी गई और उसके तक़रीबन दो महीने बाद 9 जुलाई 2017 पहलू ख़ान लिंचिंग केस सीआईडी से सीबीसीआईडी को सौंप दिया गया। सीबीसीआईडी ने पहलू ख़ान द्वारा अपने डायिंग डिक्लियरेशन में जिन 6 हमलवारों ओम यादव, हुकुम चंद यादव, सुधीर यादव, जगमल यादव, नवीन शर्मा और राहुल सैनी को नाम लिया उसे अपनी जांच के आधार पर क्लीन चिट दे दी और तक़रीबन दो सवा दो साल बाद बाकी के छह आरोपी भी कोर्ट से संदेह का लाभ लेते हुए छूट गए।

कोर्ट में फैसला सुनाते वक्त कहा गया कि पुलिस आरोपियों को दोषी साबित नहीं कर पाई है। प्रकरण का ट्रायल एडीजे कोर्ट बहरोड़ में शुरू हुआ था जो बाद में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर अलवर की अपर जिला और सेशन न्यायाधीश संख्या 1 की अदालत में स्थांतरित किया गया। 

आगे बढ़ने से पहले एक नज़र कुछ मुख्य बिंदुओं पर डालते हैं जिनके आधार पर न्यायालय ने आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी किया-

1 - घटनास्थल के वीडियो स्वीकार्य नहीं हैं  

2 - पुलिस ने वीडियो की फोरेंसिक जांच नहीं करवाई 

3 - जिस विडियो से मोबाइल बनाया गया था पुलिस ने उसे ज़ब्त नहीं किया 

4  - वीडियो बनाने वाले व्यक्ति ने वीडियो बनाने के बारे में सही जानकारी उपलब्ध नहीं करवाई 

5 - मोबाइल की सीडीआर सबूत नहीं 

6  - आरोपियों की शिनाख़्त परेड जेल में नहीं करवाई गयी। इसलिए गवाहों पर पूरी तरह भरोसा नहीं किया जा सकता है 

7  - कैलाश अस्पताल की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पिटाई की पुष्टि नहीं हुयी थी 

8  - डायिंग डिक्लेरेशन में पहलू ख़ान ने जिन छह लोगों के नाम बताये थे वो अभियुक्त नहीं थे 

9  - पहलू ख़ान का बेटा कोर्ट के अंदर भी अभियुक्तों की पहचान नहीं कर सका 

कोर्ट द्वारा उठाये गए ये सभी पॉइंट्स पुलिस की जांच का वास्तविक स्वरूप समझने के लिए काफ़ी हैं। अब आपको बता दूँ की पहलू ख़ान की हत्या के बाद इस हत्याकांड में न्याय की हत्या तो उसी दिन हो गयी थी जिस दिन पुलिस ने प्राथमिकी में पहलू के डायिंग डिक्लेरेशन में जिन 6 हमलवारों के नाम थे उस कॉलम में अज्ञात लिखा था। पुलिस की जांच शुरू से ही कितनी संदिग्ध रही है उस पर एक नज़र डालते हैं। 

पुलिस की एफआईआर के मुताबिक पुलिस को पहलू ख़ान और उसके बेटों के साथ हिंसा की घटना के बारे में 2 अप्रैल को सुबह 3:54 बजे पता चला। जबकि ये घटना 1 अप्रैल को शाम 7 बजे हुई। घटनास्थल से पुलिस स्टेशन की दूरी महज 2 किलोमीटर है। एफआईआर के मुताबिक पुलिस को करीब 9 घंटे बाद घटना की सूचना मिली।

आगे उसी एफआईआर में पुलिस ने लिखा है कि पहलू ख़ान का बयान रात 11 बजकर 50 मिनट पर रिकॉर्ड कर लिया था। अब सवाल ये है कि जब पुलिस को घटना की जानकारी ही 2 अप्रैल को सुबह 3:54 बजे हुई तो पुलिस ने पहलू ख़ान का बयान सूचना मिलने से चार घंटे पूर्व 1 अप्रैल को रात 11 बजकर 50 मिनट पर कैसे रिकॉर्ड कर लिया था ?

घटना स्थल से जो अस्पताल दो किलोमीटर की दूरी पर है वहां तक की दूरी पुलिस ने साढ़े नौ घंटे में तय की। पुलिस ने पहले पहलू ख़ान और उसके बेटों के ख़िलाफ़ ही गौ तस्करी का मामला दर्ज किया और बाद में पहलू के साथ मारपीट करने वालों के ख़िलाफ़ यानी जांच पहले पहलू ख़ान और उनके बेटों की ही शुरू की गयी।  

पीड़ितों के अनुसार पुलिस वाले उन्हें अस्पताल ले गए लेकिन प्राथमिकी में किसी भी पुलिस वाले का नाम नहीं है न ही उन्हें चश्मदीद बनाया गया है। 

एसएचओ रमेश सिनसिनवार जो घटना के चश्मदीद नहीं हैं उन्हें शिकायतकर्ता बनाया गया है जबकि पुलिस ने पहलू ख़ान का बयान रिकॉर्ड कर लिया था तो पहलू ख़ान और उनके बेटों को ही शिकायतकर्ता क्यों नहीं बनाया गया ??

पहलू ख़ान के डायिंग डिक्लेरेशन में जिन छह आरोपियों के नाम हैं उन्हें यानी ओम यादव, हुकुम चंद यादव, सुधीर यादव, जगमल यादव, नवीन शर्मा और राहुल सैनी को अज्ञात बता कर 5 महीन बाद पुलिस ने क्लीन चिट दे दी औरअपनी रिपोर्ट में कहा के पहलू ख़ान के डायिंग डिक्लेरेशन की जांच की गई और ये पाया गया कि सभी 6 आरोपी घटना के वक्त अपनी और मोबाइल की लोकेशन की बुनियाद पर एक गौशाला में मौजूद थे और वहां के केयरटेकर के बयान को इसका आधार बनाया गया।

पुलिस के अनुसार वो फ़रार थे और उनकी तलाशी अभियान जारी थी लेकिन पुलिस ने इस संबंध में कोई रिपोर्ट अदालत में पेश नहीं की है। तक़रीबन पांच महीने बाद अचानक से वो पुलिस के सामने हाज़िर हो कर अपने बयान रिकॉर्ड करवाते हैं कि वो घटनास्थल पर मौजूद नहीं थे जिसे पुलिस मान लेती है और इस बयान के पक्ष में पुलिस कहती है कि मौक़ा-ए-वारदात पर जो पुलिस वाले थे उन्होंने भी ये बयान दिया कि ये छह लोग हमले के वक़्त घटनास्थल पर मौजूद नहीं थे। यानी पुलिस ने इन छह लोगों को छोड़ने के लिए तो ये मान लिया कि मौक़े पर पुलिसवाले मौजूद थे लेकिन घटनास्थल पर पुलिसवालों की मौजूदगी को अपनी एफ़आईआर से ग़ायब कर दिया और न ही उन्हें गवाह बनाया गया है। 

पहलू ख़ान की मेडिकल रिपोर्ट में भी हेरफेर की गयी और बहरोड़ के तीन सरकारी डॉक्टरों जिन्होंने उसका पोस्टमार्टम किया के अनुसार पहलू ख़ान की मौत चोट की वजह से हुई थी, जो उन्हें हमले के दौरान लगी थीं। जबकि पुलिस ने सरकारी डॉक्टरों की रिपोर्ट को अनदेखा किया और एक प्राइवेट अस्पताल के डॉक्टरों की बात को माना गया। आपको बता दूँ की ये अस्पताल भाजपा सांसद महेश शर्मा का है जो उस समय केंद्रीय मंत्री भी थे। वहां के डॉक्टरों का बयान भी अपने आप में विरोधाभासी है।

 कैलाश अस्पताल के डॉक्टर  सर्जन डॉ. वी. डी. शर्मा ने पुलिस को बताया कि जब पहलू ख़ान अस्पताल पहुंचा, तब उसकी हालत ठीक थी। उसकी नाक से खून बह रहा था और उसने सीने में दर्द की शिकायत की। और इसी सीने के दर्द की शिकायत को हार्ट अटैक की वजह मानते हुए डॉक्टरों ने पहलू ख़ान की मौत की वजह हार्ट अटैक बताया। वहीं दूसरी तरफ़ डॉक्टर वी डी शर्मा ये भी कहते हैं के पहलू की साँस “सामान्य” थी और दूसरी तरफ़ ये भी कह रहे हैं के पहलू को ऑक्सीजन मशीन पर लगाया गया था क्योंकि उनको साँस लेने में तकलीफ़ थी। 

कैलाश हॉस्पिटल के रेडियॉलोजिस्ट डॉ. आर. सी. यादव के अनुसार Ultra-Sonography और एक्स-रे से पता चला था कि पहलू की छाती में बाईं और दाईं दोनों ओर चार-चार हड्डियाँ टूटी थीं, लेकिन फिर भी डॉ यादव ने बयान दिया कि पहलू की छाती एकदम ठीक थी और उनकी मौत छाती की हड्डी टूटने से नहीं हो सकती थी। 

पुलिस ने चार्जशीट में दो पोस्टमार्टम रिपोर्ट लगाई हैं एक सरकारी अस्पताल की जिसमें ये साबित हुआ है के मौत चोट लगने और पिटाई की वजह से हुई है और एक कैलाश अस्पताल की है जिसमें मौत की वजह हार्ट अटैक बताई गयी है।  

पुलिस ने जिन छह लोगों को गिरफ़्तार किया ( जो अभी कोर्ट से बरी हुए ) उनकी गिरफ़्तारी  के लिए वीडियो की फुटेज को आधार बनाया गया लेकिन पुलिस ने न तो उस वीडियो की फोरेंसिक जांच करवाई न ही वीडियो बनाने वाले दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल रविंद्र यादव को केस का ट्रायल शुरू होने के बाद कोर्ट में पेश किया बल्कि ये तर्क देती रही है के वो मिल नहीं रहा है। 

इसके इलावा भी लगातार पुलिस ने अपनी जांच में कोताहियाँ बरतीं जैसे मुल्ज़िम के गिरफ्तार होने के 30 दिन के भीतर पुलिस मजिस्ट्रेट की निगरानी मे, जेल के भीतर शिनाख्त परेड कराती है लेकीन पुलिस ने मुल्जिमान की गिरफ़्तारी के 30 दिन के भीतर (यानी 10 मई 2017) शिनाख़्त परेड नहीं कराई। 

कुल मिला कर अभियोजन पक्ष ने अदालत में सज़ा के लिए जो कुछ अनिवार्य था उसे नज़रअंदाज़ किया और पहलू के क़ातिलों को इसका लाभ मिला जिस आधार पर वो छूट गए।  

इस केस की मॉनिटरिंग करने वाले एडवोकेट असद हयात और मेवात निवासी एडवोकेट नूरुद्दीन के अनुसार जिन छह आरोपियों को क्लीन चिट दी गयी उनकी अभियुक्त के रूप में तलबी के लिए कोर्ट में (सीआरपीसी) की धारा 319 के माध्यम से प्रार्थना पत्र दाख़िल किया गया जिसे कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया।  

इस मामलें में एनडीटीवी ने एक स्टिंग ऑपरेशन भी किया था जिसमें आरोपी विपिन ने ख़ुफ़िया कैमरे के सामने क़बूल किया था के उसी ने गाडी रोकी, चाभी निकाली और मारपीट की 

एड़वोकेट असद हयात के अनुसार सेक्शन  311 के तहत चैनल के एंकर सौरभ शुक्ला को पूरी सामग्री सहित गवाही को बुलाने के लिए भी पीड़ित द्वारा अदालत में प्रार्थना पत्र दिया मगर कोर्ट ने ये कहकर  ख़ारिज कर दिया की मीडिया रिकॉर्डिंग विश्वास करने के योग्य नहीं  है।

बहरहाल अब निचली अदालत से फैसला आ चुका है और छह आरोपी बरी हो गए हैं। राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने मामले की दोबारा जांच के लिए एसआईटी का गठन कर दिया है जो पंद्रह दिनों के अंदर अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। एसआईटी टीम का नेतृत्व डीआईजी (विशेष ऑपरेशन ग्रुप) नितिन दीप बल्लगन करेंगे। इस टीम में एसपी (सीआईडी-सीबी) समीर कुमार सिंह और एएसपी (विजिलेंस) समीर दुबे भी हैं।

पहलू ख़ान का परिवार इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ ऊपरी अदलात में अपील करेगा जिसकी तैयारी के लिए शुक्रवार को एक बैठक भी हुई हैं जिसमें एडवोकेट असद हयात, एडवोकेट नूरुद्दीन और मेव पंचायत अलवर के अध्यक्ष शेर मोहम्मद शरीक रहे।

इन सबके बाद इस पूरे प्रकरण और अदालत के फ़ैसले ने एक बार फिर भारत के मानवतावादी, जनवादी और लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले नागरिकों के सामने कई सवाल तो खड़े किए ही हैं इससे भला किसे इनकार हो सकता है। एक पीड़ित के लिए न्याय उसका मौलिक अधिकार है। इस पूरे प्रकरण में कॉन्सपिरेसी थियोरी को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। आख़िर पुलिस ने अपनी जांच में इस तरह की कोताही क्यों बरती जो मुलाज़िमों के हित में रही और उन्हें उसका लाभ मिला।  

मुलाज़िमों को सत्ता का संरक्षण प्राप्त न रहा हो इस बात से भी इंकार की गुंजाइश बहुत ज़्यादा नहीं बनती क्योंकी पूर्व में अख़लाक़ से ले कर कठुआ तक में हमने देखा है के एक तबक़ा जो सत्ता का समर्थक है किस तरह ऐसे अपराधियों के पक्ष में खड़ा हुआ है बल्कि सत्ता के कारिंदे तक ऐसे आरोपियों को सम्मानित करते रहे हैं और उनका नैतिक समर्थन करते रहे हैं। ये नज़ारा हमने पहलू ख़ान मामले में  भी देखा के किस तरह राजस्थान के मंत्री और विधायक आरोपियों के पक्ष में बयान दे रहे थे और अप्रत्यक्ष रूप से उनका बचाव कर रहे थे।

पहलू ख़ान प्रकरण का एक दूसरा पहलू ये भी है के इसने एक बार फिर देश मे पुलिस रिफॉर्म्स के सवाल पर हमारी तवज्जोह दिलाई है। समाज में शांति स्थापना, और सामाजिक मूल्यों की रक्षा करना पुलिस का एक बड़ा दायित्व है लेकिन जब पुलिस ही पक्षपाती और भ्रष्ट हो जाये तो फिर अम्न-शांति की आशा स्वाभाविक रूप से धूमिल होती है। ऐसी जांच जो आरोपियों को बचाने में मददगार साबित हो ये अप्रत्यक्ष रूप से ये प्रभाव देती है के भीड़तंत्र के इन जोम्बियों को कानूनी रूप से भी संरक्षण हासिल है।

पुलिस का हद दर्जा साम्प्रदायिकरण हो चुका है और वो निरंकुश हो चुकी है इससे शायद ही कोई इनकार कर पाए। विगत सत्तर सालों में अलग अलग सरकारों ने कम से कम आठ या नौ कमीशन पुलिस रिफॉर्म्स के लिए बनाए हैं। अनुभवी और निष्पक्ष पुलिस अधिकारियों ने अपनी रिपोर्ट्स सरकारों को सौंपी है लेकिन आज तक किसी रिपोर्ट पर कोई अमल नहीं किया गया है क्योंकी सारी रिपोर्ट्स पुलिस को ईमानदारी से काम करने का अवसर उपलब्ध कराने के लिए उन्हें राजनीतिक आकाओं के चंगुल से मुक्त करने की सिफारिश करती हैं लेकिन सत्ता अपनी कुर्सी और वर्चस्व बनाये रखने के लिए पुलिस का इस्तेमाल एक हथियार के रूप में करती है। ज़रूरत अब इस बात की है के इसके लिए जनभागीदारी सुनिश्चित की जाए और अवाम की तरफ़ से इसकी पुरज़ोर मांग उठाई जाए।

pehlu khan
pehlu khan case
Pehlu Khan Lynching
attack on pehlu khan's sons
Indian judiciary
mob lynching

Related Stories

मध्यप्रदेश: गौकशी के नाम पर आदिवासियों की हत्या का विरोध, पूरी तरह बंद रहा सिवनी

भारत में हर दिन क्यों बढ़ रही हैं ‘मॉब लिंचिंग’ की घटनाएं, इसके पीछे क्या है कारण?

पलवल : मुस्लिम लड़के की पीट-पीट कर हत्या, परिवार ने लगाया हेट क्राइम का आरोप

शामली: मॉब लिंचिंग का शिकार बना 17 साल का समीर!, 8 युवकों पर मुकदमा, एक गिरफ़्तार

न्यायपालिका को बेख़ौफ़ सत्ता पर नज़र रखनी होगी

जेंडर के मुद्दे पर न्यायपालिका को संवेदनशील होने की ज़रूरत है!

बिहार: समस्तीपुर माॅब लिंचिंग पीड़ितों ने बिहार के गृह सचिव से न्याय की लगाई गुहार

त्रिपुरा: भीड़ ने की तीन लोगों की पीट-पीटकर हत्या, आख़िर कौन है बढ़ती लिंचिंग का ज़िम्मेदार?

राजस्थान : फिर एक मॉब लिंचिंग और इंसाफ़ का लंबा इंतज़ार

झारखंड: मुख्यमंत्री के काफिले पर हिंसक हमला, भाजपा ने कहा लोकतान्त्रिक विरोध!


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    डिजीपब पत्रकार और फ़ैक्ट चेकर ज़ुबैर के साथ आया, यूपी पुलिस की FIR की निंदा
    04 Jun 2022
    ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर पर एक ट्वीट के लिए मामला दर्ज किया गया है जिसमें उन्होंने तीन हिंदुत्व नेताओं को नफ़रत फैलाने वाले के रूप में बताया था।
  • india ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट
    03 Jun 2022
    India की बात के इस एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, अभिसार शर्मा और भाषा सिंह बात कर रहे हैं मोहन भागवत के बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को मिली क्लीनचिट के बारे में।
  • GDP
    न्यूज़क्लिक टीम
    GDP से आम आदमी के जीवन में क्या नफ़ा-नुक़सान?
    03 Jun 2022
    हर साल GDP के आंकड़े आते हैं लेकिन GDP से आम आदमी के जीवन में क्या नफा-नुकसान हुआ, इसका पता नहीं चलता.
  • Aadhaar Fraud
    न्यूज़क्लिक टीम
    आधार की धोखाधड़ी से नागरिकों को कैसे बचाया जाए?
    03 Jun 2022
    भुगतान धोखाधड़ी में वृद्धि और हाल के सरकारी के पल पल बदलते बयान भारत में आधार प्रणाली के काम करने या न करने की खामियों को उजागर कर रहे हैं। न्यूज़क्लिक केके इस विशेष कार्यक्रम के दूसरे भाग में,…
  • कैथरिन डेविसन
    गर्म लहर से भारत में जच्चा-बच्चा की सेहत पर खतरा
    03 Jun 2022
    बढ़ते तापमान के चलते समय से पहले किसी बेबी का जन्म हो सकता है या वह मरा हुआ पैदा हो सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि गर्भावस्था के दौरान कड़ी गर्मी से होने वाले जोखिम के बारे में लोगों की जागरूकता…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License