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भारत
राजनीति
दक्षिण पश्चिम असम में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति बेहद खस्ताहाल–II
फ़क़ीरगंज, डिब्रूगढ़, पलासबारी और कई अन्य कस्बे और गांव जो नदियों में समाहित और गायब हो चुके हैं, वे इस बात का जीता-जागता सुबूत हैं कि क्या और किस हद तक असम के इन दूर-दराज के इलाकों तक चिकित्सा सेवाओं की पहुंच बन सकी है।
संदीपन तालुकदार
15 Nov 2021
The Fakirganj Model Hospital
फ़क़ीरगंज मॉडल अस्पताल 

मनकछार में भारत-बांग्लादेश सीमा पर फैली विशालकाय बाड़बंदी भारत की सीमा के अंत का प्रतीक है। इस स्थान से वापस असम की राजधानी गुवाहाटी की ओर लौटते हुए अच्छे और बुरे दोनों ही तरह के भरपूर अनुभवों से दो-चार हुआ जा सकता है। असम-मेघालय सीमा के साथ यात्रा के दौरान प्राकृतिक छटा की खूबसूरती को निहारना जहाँ अच्छा अनुभव है, वहीँ सडकों की भयानक दुर्दशा बुरी लगती है। रास्ते में धुबरी में फ़क़ीरगंज पड़ता है। फकीरगंज का शक्तिशाली ब्रहमपुत्र नदी के कारण बाढ़ और कटाव की वजह से जमीनों और घरों के नष्ट होने का अपना ही इतिहास रहा है।

फ़क़ीरगंज की उबड़-खाबड़ और संकरी सड़कों से यात्रा के दौरान यहाँ के उन स्थानों के भूगोल का अंदाजा मिलता है, जो ब्रह्मपुत्र के निरंतर कटाव और बदलते चरित्र की वजह से जटिल हो गया है, और जिसके चलते लोगों को बार-बार अपने घरों को बदलते रहने के लिए मजबूर होना पड़ता है। स्थानीय लोगों के मुताबिक पुराने फ़क़ीरगंज का एक हिस्सा अब मौजूद नहीं रह गया है क्योंकि यह अब हमेशा के लिए नदी में समाहित हो चुका है। 

यह असम के फ़क़ीरगंज, डिब्रूगढ़, पलाबारी सहित कई अन्य कस्बों और गाँवों की कहानी रही है जो नदियों में विलुप्त हो चुके हैं।

जहाँ तक स्वास्थ्य सेवाओं का प्रश्न है, तो फ़क़ीरगंज की कहानी भी दक्षिण सलमारा-मनकछार से भिन्न नहीं है। हत्सिंगीमारी-गोआलपाड़ा-गुवाहाटी वाली मुख्य सड़क से हटकर फ़क़ीरगंज के मध्य हिस्से तक पहुँचने के लिए हमने 30 किलोमीटर से भी अधिक की यात्रा तय की थी, लेकिन इस बीच में हमें एक भी क्लिनिक, औषधालय या अस्पताल देखने को नहीं मिला, वो चाहे सरकारी हो या निजी। बड़ी मुश्किलों के बाद जाकर हम किसी तरह फ़क़ीरगंज मॉडल अस्पताल पहुँचने में सफल हो सके। 

इस समय तक दोपहर के करीब 2.30 बज रहे थे और अस्पताल लगभग खाली था। डॉक्टर पहले ही जा चुके थे और कुछ आशा (मान्यताप्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता) कर्मी वहां पर अपने ड्यूटी शेड्यूल को देखने में व्यस्त थीं। हमें बताया गया कि क्षेत्र में टीकाकरण पर नजर बनाये रखने के लिए तीन शिक्षकों को अस्थाई तौर पर नियुक्त किया गया है।

एक व्यक्ति ने हमें बताया कि “डाक्टरों के आवास अस्पताल के बगल में ही हैं और वे आमतौर पर आपातकालीन स्थिति में पहुँच जाते हैं।”

मीडिया टीम के अस्पताल में पहुंचे होने की सूचना पाकर डॉ. जहीदुल आलम अस्पताल पहुंचे। उन्होंने न्यूज़क्लिक को डाक्टरों की स्थिति के बारे में कुछ सूचना प्रदान की, लेकिन कहा कि चूँकि वे नए-नए नियुक्त हुए हैं, इसलिए वे कोविड-19 के चरम स्तर के दौरान लिए गए उपायों के बारे ज्यादा विस्तृत रूप से सूचना प्रदान कर पाने की स्थिति में नहीं हैं।

आलम, जिन्होंने हाल ही में अपनी एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की है, को सरकार के अनिवार्य ग्रामीण नियुक्ति नियम के तहत फ़क़ीरगंज में नियुक्त किया गया है। जब उनसे यह पूछा गया कि कुल कितने डाक्टरों की नियुक्ति मॉडल अस्पताल के लिए की गई है, पर उन्होंने बताया: “अभी फिलहाल हम कुल तीन लोग हैं। हम सभी लोग अनिवार्य ग्रामीण सेवा नियम के तहत यहाँ पर कार्यरत हैं। हममें से एक को हाल ही में एक दूसरी जगह के लिए नियुक्त किया गया है लेकिन उसने अभी तक अस्पताल नहीं छोड़ा है। हमारे अलावा यहाँ पर एक स्थाई डॉक्टर, डॉ. रबीउल भी हैं, जो मॉडल अस्पताल के प्रभारी हैं।”

हमने डॉ. रबीउल से मुलाक़ात करने का प्रयास किया, लेकिन वे उस समय उपलब्ध नहीं थे।

फ़क़ीरगंज अस्पताल पहले एक लघु पीएचसी (प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र) था, जिसे हाल ही में एक ‘मॉडल अस्पताल’ में अपग्रेड किया गया है। एक स्थानीय निवासी जियादुर रहमान बताते हैं कि हालाँकि, “अस्पताल परिसर बाढ़ और कटाव के खतरे से बाहर नहीं है।”

जियादुर के अनुसार, “कटाव और बाढ़ की संभावना के चलते, अस्पताल का निर्माण बहुमंजिला इमारत के रूप में कर पाना संभव नहीं रहा। नदी के कटाव और धारा में लगातार बदलाव के कारण यह क्षेत्र अपने स्वरुप को लगातार बदलता रहता है। मेरे रिश्तेदार अब नदी के दूसरे छोर पर चले गए हैं, जबकि हम पडोसी के तौर पर रहा करते थे। और यह सब कटाव की वजह से हुआ है।”

इस क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति के बारे और विस्तृत जानकारी मांगने पर डॉ. जहिदुल ने बताया कि गंभीर रूप से बीमार रोगियों को यहाँ पर उचित इलाज दे पाना संभव नहीं है। उन्होंने कहा “हमें उन्हें गोआलपाड़ा, धुबरी या गुवाहाटी स्थानांतरित करना पड़ता है।” इस बारे में पूछे जाने पर कि इन ‘गंभीर मरीजों’ को कैसे यहाँ से स्थानांतरित किया जाता है, क्योंकि अस्पताल के आसपास कहीं भी एक भी एंबुलेंस गाड़ी नजर नहीं आ रही है, पर उन्होंने बताया कि एयरकटा आरपीएचसी (राजस्व पीएचसी) के पास एक एंबुलेंस है जिसका उपयोग आपात स्थिति में किया जाता है।

मॉडल अस्पताल से एयरकटा आरपीएचसी की दूरी कुछ खास नहीं है, लेकिन सड़क की खराब हालत की वजह से वहां तक पहुँचने में काफी समय लग जाता है। मेडिकल एमरजेंसी की सूरत में गोआलपाड़ा तक पहुँच पाना भी बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य है। लोग आपातकालीन मामलों में इस सबसे कैसे निपटते होंगे, यह बात कल्पना से परे है।

खाली जगह: फ़क़ीरगंज मॉडल अस्पताल के भीतर का दृश्य 

बुनियादी ढाँचे की स्थिति के बारे में आलम का कहना था: “आपातकालीन वार्ड जैसा यहाँ पर कुछ नहीं है, लेकिन यहाँ पर एक कमरा है जहाँ पर सभी आपातकालीन मामलों को लाया जाता है, और हमसे जितना भी संभव है उपचार की पेशकश करने हम पूरी कोशिश करते हैं। इसके अलावा मॉडल अस्पताल में एक प्रसूति वार्ड है लेकिन यहाँ पर ऑपरेशन की सुविधा मौजूद नहीं है। अंततः मरीजों को हमें फ़क़ीरगंज के बाहर भेजना पड़ता है।”

उन्होंने बताया कि अस्पताल के पास फिलहाल एक ऑक्सीजन सिलिंडर मौजूद है।

अस्पताल में मौजूद एक आशा कार्यकर्त्ता ने नाम न छापने की शर्त पर न्यूज़क्लिक को बताया कि “अस्पताल के पास कई अत्याधुनिक उपकरण हैं, लेकिन इनका संचालन कर पाना संभव नहीं है क्योंकि वर्तमान में यहाँ पर कोई प्रशिक्षित कर्मी मौजूद नहीं है।”

कोविड-19 जब चरम पर था उस दौरान लिए गए उपायों के बारे में उन्होंने बताया: “कुछ लोग संक्रमित हुए थे और उन्हें सरकारी नियमों के अनुसार अलग-थलग रखा गया था। अस्पताल में दवाएं उपलब्ध कराई गई थीं।” जब उनसे कोविड से होने वाली मौतों की संख्या के बारे में प्रश्न किया गया तो उनका कहना था कि उनके पास इसकी “सटीक संख्या” नहीं है। 

अच्छे अस्पतालों के अभाव और डाक्टरों और विशेषज्ञों की कमी के चलते यहाँ के स्थानीय लोग गोआलपाड़ा जाने को प्राथमिकता देते हैं। उनमें से कई लोगों द्वारा एक नाम का बार-बार जिक्र किया जा रहा था जो गोआलपाड़ा में सोलेस अस्पताल का था।

यहाँ के लिए नाव एंबुलेंस और नाव क्लिनिक का सरकारी प्रावधान है, लेकिन स्थानीय लोगों का कहना था कि मेडिकल इमरजेंसी स्थिति के मामले में ये किसी काम के नहीं थे। नाव (फेरी) से धुबरी तक जाने में लगभग दो घंटे लग जाते हैं। जाड़े के दौरान यात्रा का समय और ज्यादा लग जाता है। इसके अलावा, स्थानीय लोगों ने नाव एंबुलेंस या नाव क्लिनिक की सुविधाओं से लाभान्वित होने से इंकार किया।

अस्पताल से कुछ दूर जाने पर फ़क़ीरगंज पुलिस थाने के पास एक बाजार का इलाका पड़ता है। यहाँ पर कुछेक ही दवा की दुकानें हैं, लेकिन वहां पर भी दवाओं का स्टॉक अपर्याप्त नजर आ रहा था। जब सरकारी सहायता प्राप्त स्वास्थ्य ढांचा अपने न्यूनतम स्तर पर है, तो निजी उद्यमों के द्वारा पहल का अभाव हैरान करने वाला लगा।

फकीरगंज के हमीदाबाद कॉलेज में इतिहास पढ़ाने वाले सोरहाब अली चौधरी ने बताया कि इस इलाके की स्थिति नाजुक भूगोल से जुड़े होने की वजह से जटिल है। “यह एक कटाव-उन्मुख क्षेत्र है। किसी को नहीं पता कि नदी किस दिशा में कटाव का कारण बनेगी और किसे शक्तिशाली ब्रहमपुत्र की धाराओं में अपनी जमीन और संपत्ति से हाथ धोना पड़ सकता है। यह अनिश्चितता किसी भी निवेशक को बड़े अस्पताल को शुरू करने से भयातुर रखती है। नदी के प्रकोप का खामियादा सड़कों को भी भुगतना पड़ता है, और कई सड़कें अक्सर बह जाया करती हैं।” 

अन्य सामाजिक पहलुओं पर चौधरी ने कहा: “स्वास्थ्य के अलावा, शिक्षा के क्षेत्र में भी यह इलाका बेहद पिछड़ा है। आबादी का एक अच्छा ख़ासा हिस्सा प्रवासी मजदूरों का है, जिन्हें महामारी के दौरान लॉकडाउन बेहद लंबे समय तक रोकथाम के उपायों के दौरान सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा है।”

गोआलपाड़ा जिला 

गोआलपाड़ा की ओर जाने में काफी दूरी तक एक बार फिर से रास्ता बेहद उबड़-खाबड़ है जब तक कि लखीपुर की चिकनी और समतल सड़क नहीं मिल जाती है। गोआलपाड़ा एक प्रकार से ब्रह्मपुत्र के दक्षिणी किनारे पर दक्षिण-पश्चिम असम के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य केंद्र के तौर पर है।

धुबरी (मुख्य तौर पर दक्षिणी तट के कुछ हिस्सों), दक्षिण सल्मारा और यहाँ तक कि बारपेटा के लोग भी स्वास्थ्य सेवाओं के लिए गोआलपाड़ा पर निर्भर हैं। हालाँकि, यहाँ पर जो लोकप्रिय अस्पताल हैं वे भी मुख्य रूप से शहरी क्षेत्रों और मुख्यतया निजी हाथों में केंद्रित हैं। 

असम में स्वास्थ्य सेवाओं में सामान्य परिदृश्य में शहरी क्षेत्रों में सरकारी अस्पतालों की संख्या की तुलना में कुकुरमुत्ते की तरह उग आये निजी अस्पतालों का बोलबाला हो रखा है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में निजी और सरकारी मेडिकल सुविधायों की उपलब्धता बेहद न्यून स्तर पर है।

गोआलपाड़ा जिला प्रशासन का प्रतिनिधित्व करने वाली वेबसाइट का कहना है कि यहाँ के जिला अस्पताल (सिविल अस्पताल) के पास 200 बिस्तरों की क्षमता मौजूद है, और जिले में कुल पांच पीएचसी हैं। रोचक तथ्य यह है कि जिले में छह राज्य औषधालय (एसडी) हैं जो लघु पीएचसी के समान हैं और प्रत्येक एसडी के द्वारा लगभग 20,000 से 25,000 लोगों को ये सेवाएं प्रदान की जाती हैं। हालाँकि, राज्य औषधालयों के पास आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं की व्यवस्था नहीं है, और मरीजों को सिर्फ प्राथमिक उपचार प्रदान किया जाता है। नतीजतन, लोगों को जिला अस्पताल और निजी अस्पतालों पर निर्भर रहना पड़ता है।

बोदाहपुर राज्य औषधालय, गोआलपाड़ा  

बोदाहपुर एसडी के भीतर 

कोविड चुनौतियों पर, डॉ. पीके भराली जो कि एक एमबीबीएस डॉक्टर हैं और वर्तमान में गोआलपाड़ा के डीआईओ (जिला प्रतिरक्षण अधिकारी) हैं, ने न्यूज़क्लिक को बताया कि गोआलपाड़ा के सिविल अस्पताल में छह बिस्तर का एक आईसीयू कक्ष है। उन्होंने कहा “कोविड की पहली और दूसरी चरम लहर के दौरान दोनों ही दफा सरकारी मानदंडों के मुताबिक मरीजों का इलाज किया गया या उन्हें एकांत वास में रखा गया था। यहाँ पर हमें ऑक्सीजन की भारी कमी का सामना नहीं करना पड़ा।”

भारती ने बताया कि कुछ गंभीर मरीज थे जिन्हें कोविड की चरम लहर के दौरान गुवाहाटी में स्थानांतरित करना पड़ा था। गोआलपाड़ा शहर से गुवाहाटी की यात्रा करने में लगभग तीन घंटों का समय लग जाता है, हालाँकि सड़क की हालत उतनी खराब नहीं है जितनी की दक्षिण सल्मारा और फ़क़ीरगंज की है। उन्होंने कहा “इसके साथ-साथ यहाँ पर कई निजी अस्पतालों की मौजूदगी की वजह से महामारी के चरम के दौरान जो लोग वहन करने की स्थिति में थे उनमें से कुछ ने खुद को भर्ती करने के विकल्प को चुना था।”

गोआलपाड़ा में कई चार (रेतीय टीले) और तटवर्ती क्षेत्र शामिल हैं, जिनमें से कुछ तो बेहद दुर्गम इलाकों में हैं, जहाँ पर सिर्फ मोटरयुक्त फेरी (नावों) के जरिये ही पहुँच पाना संभव है। ऐसे परिदृश्य में, सिर्फ आपात स्थिति में ही सरकारी नाव क्लिनिक और बोट एंबुलेंस जैसी सुविधाओं का उपयोग किया जा सकता था। भारती ने न्यूज़क्लिक को बताया कि वहां पर एक नाव क्लिनिक का प्रावधान है, जिसके द्वारा नियमित रूप से कुछ दूर-दराज के चारों में टीकाकरण के साथ-साथ स्वास्थ्य निगरानी के लिए दौरा किया जाता है।

यह पूछे जाने पर कि क्या इस नाव क्लिनिक का इस्तेमाल चरम कोविड की लहर के दौरान भी किया गया था और कितने गंभीर मरीजों को बचाया जा सका था, पर उनका कहना था कि उनके पास इसका विवरण उपलब्ध नहीं है।

बोदाहपुर एसडी के प्रभारी ने न्यूज़क्लिक को बताया कि उन्हें आस-पास के गांवों से सिर्फ कुछ गंभीर मामलों का ही सामना करना पड़ा था, जिसे एसडी देखभाल कर पाने में सक्षम रही। उनके पास करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं था। उनके द्वारा सिर्फ ऐसे मरीजों को झट से सिविल अस्पताल स्थानांतरित कर देने की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी थी।

गोआलपाड़ा में एक तरफ मेघालय तो दूसरी तरफ ब्रहमपुत्र नदी है; जिसके बीच में मुख्य शहर और दुधनोई, कृष्णाई, पैकन इत्यादि जैसे कई अन्य महत्वपूर्ण स्थान हैं। मेघालय की तरफ के गाँव मोटर योग्य सड़कों से जुड़े हुए हैं लेकिन इनमें से कुछ सुदूर स्थानों पर बसे हैं और वहां तक पहुँच पाना बेहद कठिन है।

हालाँकि, चार के इलाकों तक पहुंच पाना कहीं अधिक कठिन है। दैनिक आवाजाही करने वाले यात्रियों के लिए एकमात्र विकल्प मोटरबोट हैं, जो भारी बारिश और तूफ़ान के समय वास्तव में खतरनाक हो सकते हैं। इसके अलावा, छोटी नावें भी हैं जो लोगों को ले जाने के साथ-साथ बाइक और कई भारी सामानों को भी ढोती हैं, जो बेहद खतरनाक भी है।

चार क्षेत्रों में आने-जाने वाले दैनिक यात्रियों के लिए एक मोटरयुक्त नाव।

ब्रह्मपुत्र नदी में एक नाव पर सवार लोग, बाइक और सामान। 

बसंतपुर चार तक पहुँचने के निकटस्थ डोलगोमा से ऐसी मोटरबोट का इस्तेमाल किया जाता है जो कि नौकाओं के लिए बने घाटों (एक प्रकार से फेरी टर्मिनल) में से एक है, लेकिन इसमें लगभग आधे घंटे का समय लग गया।

असम में बसंतपुर और इस जैसे कई चार असल में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए लिटमस टेस्ट के समान हैं, चाहे महामारी हो या न हो। ऐसे इलाकों में बुनियादी स्वास्थ्य ढांचे की तकरीबन शून्य उपस्थिति एक गंभीर प्रश्न खड़ा करती है कि भारत जैसे देश में न्यायसंगत स्वास्थ्य सेवायें आखिर किस हद तक पहुँच पाने में कामयाब रही हैं।

बसंतपुर के निवासी और मटिया शरणार्थी माध्यमिक अंग्रेजी विद्यालय के शिक्षक आमिर हुसैन ने न्यूज़क्लिक को बताया कि “चार पर सिर्फ एक उप-केंद्र पीएचसी मौजूद है, जिसके उपर तकरीबन 15,000 लोगों की देखभाल की जिम्मेदारी है।”

बसंतपुर के पीएचसी उप-केंद्र में सिर्फ एक मेडिकल सेट-अप दिखाई जान पड़ता है। स्थानीय लोगों की शिकायत थी कि उक्त पीएचसी उप-केंद्र अक्सर बंद रहता है, नर्सें नियमित तौर पर नहीं आती हैं और डाक्टरों के बारे में तो कुछ भी कहना बेकार है। टीकाकरण के मामले में भी ग्रामीणों को भारी अनियमितता का सामना करना पड़ा था। ग्रामीणों ने न्यूज़क्लिक को बताया कि टीकाकरण के दिन से पहले आकर स्वास्थ्य अधिकारियों का आगमन होता है और उनके द्वारा समय की घोषणा की जाती है, लेकिन इसके बावजूद इसे अनियमित तरीके से संचालित किया जाता है।

वर्तमान में मटिया (नदी के दूसरी ओर) रहने वाले अब्दुल बारेक, जो चार में जन्मे थे, ने शोक व्यक्त करते हुए कहा: “चारस को ऐतिहासिक रूप से उपेक्षित रखा गया है। हमारे यहाँ पर एक स्कूल है, जिसकी स्थापना हमारे पूर्वजों द्वारा 19वीं सदी के अंत में की गई थी। लेकिन न तो स्वास्थ्य और न ही शिक्षा के क्षेत्र में कोई सुधार हुआ है। यहाँ तक कि महामारी जिसने पूरे विश्व भर को अंदर तक हिलाकर रख दिया है, से भी चार पर किसी का कोई विशेष ध्यान नहीं जा पाया है।”

बसंतपुर में ग्राम विकास संगठन (वीडीयो) नामक एक गैर सरकारी संस्था ही एकमात्र संगठित स्वरुप है जो सामाजिक-आर्थिक मामलों में हस्तक्षेप करने का काम करता है। इसके द्वारा जरुरतमन्द लोगों को माइक्रोफाइनेंस ऋण प्रदान किया जाता है। वीडीयो के सचिव और बसंतपुर आंचलिक हाई स्कूल के मुख्याध्यापक, जुरान अली ने न्यूज़क्लिक को बताया: “यह एनजीओ ग्रामीणों और शुभेक्छुकों के सामूहिक प्रयासों का नतीजा है। यह उन लोगों को मदद करने के लिए पैसे उधार में देता है जो संकट में घिरे होते हैं, हालाँकि, कई मौकों पर यह रकम बेहद अपर्याप्त होती है।”

वहां पर मौजूद कुछ स्थानीय युवाओं ने भी एनजीओ द्वारा ग्रामीणों को दी जाने वाली मदद और सहायता को अपनी मान्यता दी। जब उनसे बोट क्लिनिक और बोट एंबुलेंस की सुविधा के बाबत पूछताछ की गई तो उनमें से सभी ने इस प्रकार की सुविधाओं के बारे में सुने होने से ही इंकार किया। एक स्थानीय युवा का कहना था “हो सकता है ये सुविधायें कागजों पर मौजूद हों, लेकिन हमने इन चीजों को कभी भी अपने चार पर नहीं देखा है, या हो सकता है कि ये सुविधाएं अन्य चार पर मुहैय्या कराई जा रही हों, लेकिन हमारे यहाँ यह सुविधा उपलब्ध नहीं है।”

ग्राम विकास संगठन का कार्यालय 

बसंतपुर चार उन क्षेत्रों से जुड़ा हुआ है जो अन्य जिलों में पड़ते हैं। यदि बसन्तपुर से सीधा चलें तो आप कदमतला पहुँच सकते हैं, जो बारपेटा जिले के बाघबार में पड़ता है। कदमतला में एक पीएचसी है जो बसन्तपुर के लोगों के लिए सुलभ है। बसंतपुर के एक स्थानीय निवासी, अब्दुल हामिद ने कहा “हालाँकि, यहाँ की “पीएचसी अक्सर बंद रहती है। डॉक्टरों द्वारा एक कार्यकाल के लिए यहाँ पर स्थानान्तरण लिया जाता है, और ऐसे बेहद कम दिन होते हैं जब वे यहाँ पर उपस्थित रहते हैं। किसी तरह अपना कार्यकाल समाप्त कर वे किसी अन्य जगह पर स्थानांतरित हो जाते हैं। इसके अलावा, इस पीएचसी में कई आधुनिकतम उपकरण मौजूद हैं, लेकिन उन्हें संचालित करने वाला कोई नहीं है। सभी उपकरण ऐसे पड़े- पड़े ही सड़ जायेंगे।”

भाग 1 पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें। 

संवावदाता के शोध को ठाकुर फैमिली फाउंडेशन के अनुदान द्वारा समर्थित किया गया था। ठाकुर फैमली फाउंडेशन ने इस शोध की विषयवस्तु पर किसी प्रकार का संपादकीय नियंत्रण कर प्रयोग नहीं किया है। 

अंग्रेजी में मूल रूप से प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

In South West Assam, Healthcare Services are a far cry - II

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