NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
पश्चिम बंगाल और गुजरात की सरकारें महिलाओं पर अत्याचार करने वालों मुजरिमों में से केवल 3 प्रतिशत को ही सजा दिलवा पाती है
भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामले में सजा दर मात्र 19 प्रतिशत है
सुबोध वर्मा
02 Dec 2017
Translated by महेश कुमार
ncrb

यद्दपि भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में चिंताजनक बढ़ोतरी हो रही हैं,  लेकिन इसकी अपेक्षा अक्सर इस पहलू में दिखती है कि महिलाओं के प्रति अपराध करने वाले अपराधियों में से मात्र 19 प्रतिशत को ही सज़ा मिलती है. इसका स्पष्ट मतलब है – कि पांच अपराधियों में से केवल एक व्यक्ति को अदालतों द्वारा दोषी ठहराया जाता है और सजा दी जाती है. यानी पांच अपराधियों में से चार मुक्त हो जाते हैं.

यह सज़ा की दर उन मामलों का अनुपात है जो मुकदमें एक वर्ष में महिलाओं के खिलाफ अपराधों के कुल मामलों के लिए चलाये जाते हैं और उन्हें अदालतें जिन्हें दोषी ठहराती हैं.

देश के आठ बड़े राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों में महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामलों में सजा दर मात्र एक अंक में होने से यह संदेह के घेरे में आ जाती है. सबसे कम यानी 3 प्रतिशत की सजा दर पश्चिम बंगाल और गुजरात जैसे बड़े राज्यों में है. इसके बाद आते हैं जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, ओडिशा, असम और आंध्र प्रदेश जहाँ 10 प्रतिशत से भी कम सज़ा दर है. दो केंद्र शासित प्रदेश - दमन और दीव और लक्षद्वीप के पास कोई कोई मामले ही नहीं है, इसलिए उनकी दर शून्य है. तालिका देखें:-

महिलाओं के विरुद्ध अपराध – वर्ष 2016 - सज़ा और लंबित मामलों की सूची

क्र.स.

राज्य/केंद्र शासित

सज़ा दर

(प्रतिशत में)

लंबित मामले

(प्रतिशत में)

1.

दमन और दीव

0

68

2.

लक्ष्द्वीप

0

100

3.

पश्चिम बंगाल

3

96

4.

गुजरात

3

95

5.

जम्मू – कश्मीर

4

87

6.

कर्नाटक

5

87

7.

ओडिशा

6

92

8.

असाम

7

86

9.

तेलंगाना

8

80

10.

आंध्र प्रदेश

7

71

11.

दादर एवं नगर हवेली

10

85

12.

केरल

11

93

13.

महाराष्ट्र

11

93

14.

गोवा

12

87

15.

हरियाणा

13

80

16.

हिमाचल प्रदेश

14

88

17.

अंडमान निकोबार

14

91

18.

बिहार

19

94

 

भारत

19

90

19.

तमिल नाडू

21

83

20.

पंजाब

24

79

21.

चंडीगढ़

24

73

22.

त्रिपुरा

25

80

23.

छत्तीसगढ़

27

80

24.

मध्य प्रदेश

28

80

25.

दिल्ली

28

92

26.

अरुणाचल प्रदेश

30

94

27.

झारखंड

31

84

28.

राजस्थान

35

87

39.

सिक्किम

36

81

30.

नागालैंड

42

61

31.

मणिपुर

44

96

32.

उत्तराखंड

46

87

33.

उत्तर प्रदेश

53

90

34.

पुडूचेरी

63

95

35.

मेघालय

68

93

36.

मिज़ोरम

89

79

स्रोत : एन.सी.आर.बी.

सजा दर आखिर क्या दर्शाती है? किसी महिला के लिए बलात्कार या हमले के लिए किसी आरोपी के खिलाफ झूठा मुकदमा दर्ज करना एक दुर्लभ बात है. इसलिए, यह मानना सुरक्षित है कि कम से कम, शिकायतकर्ता महिला के खिलाफ कुछ अपराध किया गया है. इसके बाद, यह मुद्दा पुलिस की जांच के दायरे की बात होती है और आखिरकार अदालत इस बारे में आखरी फैंसला लेती है. यही दो चरण होते हैं जब मामला हाथ से निकल जाता है.

या तो पुलिस की जांच दोषपूर्ण होती है या फिर उससे भी बदतर यह कि, ज्यादातर मामलों में समझौता करवाने की लगातार कोशिश का आरोप लगता है. या फिर मुकदमें को अदालत कुछ-न-कुछ तकनीकी या कानूनी गलतियों को आधार बना रफा-दफा कर देती हैं. कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि पुलिस के गड़बड़ी करने और जानबूझकर सबूतों को नजरअंदाज करने की संभावना ज्यादा होती है, इसके अलावा, पुलिस हमेशा शिकायतकर्ता महिला को अक्सर गवाही बदलने के लिए दबाव का इस्तेमाल करती है – और वह इसके चलते और अधिक असुरक्षित होती है. परिवारों पर अक्सर दबाव डाला जाता है की वे कानूनी मामलों से दूर रहे और इसका पूरा दबाव महिलाओं के ऊपर पड़ता है.

संक्षेप में, ऐसे सौ तरीके हैं जिससे मुकदमें चलाने से हटाया जा सकता है. और इसलिए, इसमें कोई शक नहीं है कि अपराधी मुक्त हो जाते हैं.

चूंकि पूरी प्रक्रिया राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में है इसलिए उनका यह फ़र्ज़ बनता है कि वे जांच के दौरान, शिकायतकर्ताओं की रक्षा करें, और मामले की जांच प्रभावी ढंग से सुनिश्चित करे क्योंकि न्याय दिलाने की सरकार की ज़िम्मेदारी है. कम सज़ा दर वाले राज्य निश्चित तौर पर इन कर्तव्यों में शर्मनाक ढंग से असफल रहे हैं.

एनसीआरबी डेटा से उभरने वाला एक अन्य पहलू यह भी है कि लंबित मामलों की दर काफी ऊँची है. बेशक, एक वर्ष में किसी भी मुक़दमे का निपटारा नहीं होता है. लेकिन साल दर साल 90 प्रतिशत से अधिक लंबित मुकदमें इसका प्रमाण है कि न्यायालय ओवरलोडेड (काम ज्यादा जज कम) हैं जिसकी वजह से न्यायिक प्रक्रिया धीमी है. वर्ष 2016 के अंत तक लंबित 12.05 लाख मामलों का आंकड़ा चौंका देने वाला है. तब भी अदालतों ने 1.37 लाख मामलों का निपटारा किया. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि किसी मुक़दमे को अंतिम रूप देने के लिए कितना समय लग सकता है और पीड़ित के लिए दु:खद रूप से अंतहीन समय का इंतज़ार.

कम सज़ा दर और लंबित मामलों की उच्च दर का शुद्ध परिणाम यह है कि न्याय में देरी ही नहीं होती है बल्कि न्याय देने से अक्सर इनकार किया जाता है. यही कारण है कि अपराधी को कानून से डर नहीं लगता है और नतीजतन महिलाओं के खिलाफ अपराध लगातार बढ़ते जाते हैं.

 

crimes against women
sexual crimes
NCRB

Related Stories

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

तेलंगाना एनकाउंटर की गुत्थी तो सुलझ गई लेकिन अब दोषियों पर कार्रवाई कब होगी?

यूपी : महिलाओं के ख़िलाफ़ बढ़ती हिंसा के विरोध में एकजुट हुए महिला संगठन

बिहार: आख़िर कब बंद होगा औरतों की अस्मिता की क़ीमत लगाने का सिलसिला?

इतनी औरतों की जान लेने वाला दहेज, नर्सिंग की किताब में फायदेमंद कैसे हो सकता है?

यूपी से लेकर बिहार तक महिलाओं के शोषण-उत्पीड़न की एक सी कहानी

बिहार: 8 साल की मासूम के साथ बलात्कार और हत्या, फिर उठे ‘सुशासन’ पर सवाल

मध्य प्रदेश : मर्दों के झुंड ने खुलेआम आदिवासी लड़कियों के साथ की बदतमीज़ी, क़ानून व्यवस्था पर फिर उठे सवाल

बिहार: सहरसा में पंचायत का फरमान बेतुका, पैसे देकर रेप मामले को रफा-दफा करने की कोशिश!

बिहार: मुज़फ़्फ़रपुर कांड से लेकर गायघाट शेल्टर होम तक दिखती सिस्टम की 'लापरवाही'


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    बलात्कार को लेकर राजनेताओं में संवेदनशीलता कब नज़र आएगी?
    13 Apr 2022
    अक्सर राजनेताओं के बयान कभी महिलाओं की बॉडी शेमिंग करते नज़र आते हैं तो कभी बलात्कार जैसे गंभीर अपराध को मामूली बताने या पीड़ित को प्रताड़ित करने की कोशिश। बार-बार राजनीति से महिला विरोधी बयान अब…
  • underprivileged
    भारत डोगरा
    कमज़ोर वर्गों के लिए बनाई गईं योजनाएं क्यों भारी कटौती की शिकार हो जाती हैं
    13 Apr 2022
    क्या कोविड-19 से उत्पन्न संकट ने सरकार के बजट को बुरी तरह से निचोड़ दिया है, या यह उसकी तरफ से समाज के सबसे कमज़ोर वर्गों के अधिकारों की सरासर उपेक्षा है? इनके कुछ आंकड़े खुद ही सब कुछ बयां करते हैं।
  • ramnovmi
    अजय सिंह
    मुस्लिम जेनोसाइड का ख़तरा और रामनवमी
    13 Apr 2022
    एक बात साफ़ हो चली है, वह यह कि भारत में मुसलमानों के क़त्लेआम या जनसंहार (जेनोसाइड) की आशंका व ख़तरा काल्पनिक नहीं, वास्तविक है। इस मंडराते ख़तरे को नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए।
  • srilanka
    पार्थ एस घोष
    श्रीलंका का संकट सभी दक्षिण एशियाई देशों के लिए चेतावनी
    13 Apr 2022
    निर्ल्लज तरीके के निजीकरण और सिंहली अति-राष्ट्रवाद पर अंकुश लगाने के लिए अधिकाधिक राजकीय हस्तक्षेप पर श्रीलंका में चल रही बहस, सभी दक्षिण एशियाई देशों के लिए चेतावनी है कि ऐसी गलतियां दोबारा न दोहराई…
  • रवि कौशल
    बैठक में नहीं पहुंचे अधिकारी, छात्र बोले- जेएनयू प्रशासन का रवैया पक्षपात भरा है
    13 Apr 2022
    जेएनयू छात्र संघ के पदाधिकारियों ने कहा कि मंगलवार को वे उप कुलपति से उनके कार्यालय में नहीं मिल सके। यह लोग जेएनयू में हुई हिंसा की स्वतंत्र जांच कराए जाने की मांग कर रहे हैं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License