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भारत
राजनीति
फ़ेसबुक को लगता है कि मोदी की जीत में उसकी अहम भूमिका रही?
फ़ेसबुक पर अधिक से अधिक फॉलोअर बनाना क्या लोकसभा चुनावों में टिकट पाने की पात्रता का एक मानक बनता जा रहा है।
सिरिल सैम, परंजॉय गुहा ठाकुरता
05 Apr 2019
फ़ेसबुक को लगता है कि मोदी की जीत में उसकी अहम भूमिका रही?

तथ्यों की जांच का काम करने वाली वेबसाइट ऑल्ट न्यूज के संपादक प्रतीक सिन्हा कहते हैं, ‘नरेंद्र मोदी का चुनाव अभियान सकारात्मक ढंग से विकास के गुजरात मॉडल पर शुरू हुआ लेकिन बाद में कांग्रेस की आलोचनाओं में सिमट गया। मई, 2014 में केंद्र की सत्ता में आने के बाद भाजपा समर्थक जानबूझकर फर्जी खबरें प्रकाशित करने लगे। इन लोगों ने सरकार और पार्टी की आलोचना करने वालों को ट्रोल करना शुरू कर दिया। 2016 तक यह नियंत्रण से बाहर चला गया और एक समस्या बन गया।’

वे कहते हैं कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने में भाजपा समर्थक आगे रहे लेकिन वे अलग-अलग जगहों पर और अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर बंटे हुए थे। मोदी के प्रचार अभियान ने इन सबको आपस में जोड़ दिया। सिन्हा कहते हैं, ‘ट्रोल करने वाले जिन 150 लोगों से नरेंद्र मोदी 2015 में मिले, इनमें से कई भाजपा के सत्ता में आने के काफी पहले से गलत सूचनाओं का प्रसार कर रहे थे।’

2014 के चुनावों से पहले तक भाजपा फेसबुक की इकलौती राजनीतिक क्लाइंट थी। अन्खी दास ने हीरेन जोशी के साथ मिलकर लगातार काम किया और गांधीनगर में नरेंद्र मोदी के कार्यालय में वे अक्सर जाती थीं। 2014 में मोदी की जीम के बाद उनके अभियानों और फेसबुक का रिश्ता और गहराता गया।2014 में लोकसभा चुनावों के नतीजे आने के दो दिनों के बाद क्वाटर्ज इंडिया में दास ने एक लेख लिखकर बताया कि मोदी की विजय में फेसबुक की कितनी बड़ी भूमिका रही।

2015 में मोदी सरकार ने डिजिटल इंडिया योजना की शुरुआत की। सभी सरकारी विभागों, मंत्रियों और अधिकारियों को अपना फेसबुक पेज बनाने को कहा गया। भारत सरकार में संवाद के लिए फेसबुक डिफॉल्ट प्लेटफॉर्म बन गया। बाद के सालों में भाजपा समर्थकों ने फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप का इस्तेमाल मोदी की आलोचना करने वालों पर आक्रमण करने के लिए किया।

ये तीनों सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म मिलकर अब तक के इतिहास का सबसे बड़ा विज्ञापन नेटवर्क बन गए हैं। लेकिन इनकी डिजाइन में समस्याएं हैं। इस वजह से उपभोक्ताओं की जानकारियां लीक हो रही हैं। 

फेसबुक और इसके दूसरे प्लेटफॉर्म लोगों को लती बना रहे हैं। ये सभी मिलकर राजनीति को खेल में बदलने की कोशिश कर रहे हैं। लोकतांत्रिक और लोगों के बीच के आपसी संवाद जुड़े रहने के खेल में तब्दील हो गए हैं और लाइक, शेयर, कमेंट और अधिक फॉलोअर्स हासिल करने का खेल बनकर रह गए हैं।

भारत में विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता यह मानते हैं कि अगर किसी नेता पर फेसबुक पर काफी फॉलोअर्स हैं तो उसके टिकट पाने की संभावना बढ़ जाती है। 2018 के मार्च में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पार्टी के सांसदों को कहा कि वे फेसबुक पर तीन लाख से अधिक ‘असली लाइक’ हासिल करें। उन्होंने कहा कि ऐसा करने वाले सांसदों के समर्थकों से वे खुद वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए संवाद कायम करके उनका उत्साह बढ़ाएंगे।

हमारे सोशल मीडिया सीरीज़ के अन्य आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :-

मोदी का चुनाव अभियान, शिवनाथ ठुकराल और फेसबुक इंडिया

कैसे फेसबुक और भाजपा ने एक-दूसरे की मदद की?

2014 में मोदी का चुनाव अभियान गढ़ने वाले राजेश जैन आज विरोधी क्यों हो गए हैं?

चार टीमों ने मिलकर गढ़ी नरेंद्र मोदी की बड़ी छवि!

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#सोशल_मीडिया : लोकसभा चुनावों पर फेसबुक का असर?

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क्यों फेसबुक कंपनी को अलग-अलग हिस्सों में बांटने की मांग उठ रही है?

मुफ्त इंटरनेट के जरिये कब्ज़ा जमाने की फेसबुक की नाकाम कोशिश?

#सोशल_मीडिया : लोकसभा चुनावों पर फेसबुक का असर?

क्या सोशल मीडिया पर सबसे अधिक झूठ भारत से फैलाया जा रहा है?

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#सोशल_मीडिया : क्या सुरक्षा उपायों को लेकर व्हाट्सऐप ने अपना पल्ला झाड़ लिया है?

#सोशल_मीडिया : क्या व्हाट्सऐप राजनीतिक लाभ के लिए अफवाह फैलाने का माध्यम बन रहा है?

#सोशल_मीडिया : क्या फेसबुक सत्ताधारियों के साथ है?

#सोशल_मीडिया : क्या नरेंद्र मोदी की आलोचना से फेसबुक को डर लगता है?

#सोशल_मीडिया : कई देशों की सरकारें फेसबुक से क्यों खफा हैं?

सोशल मीडिया की अफवाह से बढ़ती सांप्रदायिक हिंसा

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