NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
अंतरराष्ट्रीय
फिलिस्तीन
फर्ग्यूसन: वर्ग, नया जिम क्रो कानून और पुलिस का सैन्यीकरण
प्रबीर पुरुकायास्थ
25 Aug 2014

 

पिछले सप्ताह अमरीका  में मिसौरी के सेंट लुइस के किनारे बसे शहर फर्ग्यूसन में एक ऐसी घटना देखने को मिली जब  पुलिस द्वारा एक अश्वेत युवक की हत्या के बाद हथियारों से लैस पुलिस को रबड़ की गोलियों और आंसू गैस के साथ शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों का सामना करना पड़ा। प्राप्त तस्वीरो से यह साफ़ दिखाई देता है कि एक तरफ पूरी तरह हथियारों से लैस तथा खोजी कुत्ते के साथ श्वेत पुलिसकर्मी हैं और दूसरी तरफ शांतिपूर्ण ढंग से विरोध कर रहे प्रदर्शनकारी। चार दिन बाद मुख्य तौर पर पुलिस द्वारा की जा रही लगातार बढती हिंसा को देखते हुए प्रशासन ने स्टेट हाईवे पेट्रोल के अश्वेत अफसरों को घटनास्थल पर भेजा । कुछ दिन के लिए हालत काबू मे तो आये पर जब पुलिस अधिकारीयों ने मृत युवक पर  सिगरेट चोरी के इलज़ाम लगा कर उसकी छवि को धूमिल करना चाहा तब हालत फिर से बेकाबू हो गए। हालाकि उन्होंने बाद में यह मन की इसका गोलीबारी से कोई सम्बन्ध नहीं था। हालात को देखते मिसौरी के गवर्नर ने नेशनल कोस्ट गार्ड को बुलाना की बात कही है क्योंकि उन्हें अंदेशा है कि स्थिति और बिगड़ सकती है।

अमरीका के बाहर के निवासियों के लिए यह समझना मुश्किल होगा कि यूँ तो रंग के आधार पर समाज में स्थापित रिश्तो ने स्वयं को बदल कर समान समाज को निर्माण तो दिखावे के लिए कर लिया है पर स्थिति अब भी चिंताजनक है। रंगभेद सीधे तौर पर तो ख़त्म हो गया है पर अश्वेत युवकों को अब अपराधियों के तौर पर देखा जाने लगा है। इसके परिणाम स्वरुप मुखतः अफ़्रीकी- अमरीकी युवकों को संदेह की नज़र से देखा जाता है और उनपर अक्सर हिंसक और अपराधी होने का इलज़ाम लगाया जाता है। और यही कारण है कि पुलिस द्वारा की गई हिंसा को सही भी ठहरा दिया जाता है। ट्रेवोन मार्टिन के केस में, जब इस निहत्थे युवक एक एक तथाकथित “ रक्षक” ने इसलिए गोली मार दी क्योंकि उसे मार्टिन पे शक था और न्यायलय ने मार्टिन के विपक्ष में फैसला दिया,यह दर्शाता है की किस तरह अमेरिकी कानून का रुख भी एक समुदाय के विपक्ष में मुड़ा हुआ है।

पहले फर्ग्यूसन केस के तथ्यों पर नजर डालना चाहिए। माइकल ब्राउन को एक श्वेत पुलिस अधिकारी ने अनेक बार गोली मारी, तब जब ब्राउन ने अपने द्प्नो हाँथ पहले ही ऊपर कर लिए थे। इसीलिए प्रदर्शनकारियों ने भी हर बार विरोध करते समय अपने हाँथ ऊपर की ओर कर रखे हैं। ब्राउन के शरीर को भी घंटो तक सड़क पर पड़े रहने दिया गया। हालाकि पुलिस ने इस बात से तो इनकार नहीं किया है कि उसे आगे और पीछे दोनों तरफ गोली मारी गई थी , पर उन्होंने यह भी कहा है कि घटना से पहले ब्राउन के साथ हाथापाई हुई थी और वह चोरी में संलग्न था। पर घटनास्थल मर मौजूद व्यक्तियों के बयान को ध्यान में रखते हुए इस हत्या के इरादे से चलाई गई गोली की घटना को समझना मुश्किल हो गया है। साथ ही इन चस्मदीद गवाहों ने भी पुलिस द्वारा दिए गए कारण को सिरे से नकार दिया है। आखिर क्यों ५०$ की सिगरेट की चोरी के लिए किसी पर गोली चलाई गई? इस बात को हज़म कर पाना मुश्किल है।

यह समझ पाना कि क्यों एक अफ़्रीकी अमेरिकी युवक की हत्या ने इतना बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है, तब तक मुश्किल होगा जब तक हम यह नहीं समझते की एक समुदाय आज भी अमेरिका के सामाजिक और राजनितिक जीवन में बेहद महत्वपूर्ण है। आइये नज़र डालते हैं कुछ तथ्यों पर:-

१)      अमरीका की जनसंख्या विश्व का ५ % है पर वहां बंदियों की संख्या विश्व का कूल २५ % है। (लगभग २३ लाख)

२)      अफ़्रीकी अमरीकी को श्वेत व्यक्तियों की तुलना में लगभग छ: गुना ज्यादा गिरफ्तार किआ जाता है।

३)      अफ़्रीकी अमरीकी की तुलना में ५ गुना अधिक श्वेत नशीले पदार्थों का सेवन कर रहे है पर इस जुर्म के लिए श्वेत की तुलना में १० गुना अश्वेतों को जेल भेजा जाता है।

४)      २००८ में कुल ५८% कैदी अफ़्रीकी और लातिन अमरीकी थी जबकि उनकी जनसख्या मात्र एक चौथाई है।

५)      २००१ के आकड़ों के अनुसार हर ६ अश्वेत में से १ अश्वेत जेल गया है पर आज के आकड़ों के अनुसार यह १ से बढ़कर ३ हो गया है।

६)      एक अफ़्रीकी अमरीकी को नशीले पदार्थ के सेवन के लिए उतनी ही सजा काटनी पड़ती है जितनी एक श्वेत को हिंसक गतिविधि के लिए। (५८.७ महीने)

सौजन्य से :  http://www.naacp.org/pages/criminal-justice-fact-sheet

माइकल अलेक्सेंडर ने रंग के आधार पर निर्मित होने वाली जात व्यवस्था की बात की है, और इन्हें नए जिम क्रो नियम के तहत शोषित किया जा रहा है। “ अगर आप शहरी क्षेत्रों में जनसँख्या  को देखेंगे तो लगभग ८०% प्रतिशत अफ़्रीकी अमरीकियों को अपराधी घोषित कर दिया गया है। इनमे से अधिकतर युवक निचली जाति से है न की किसी वर्ग से, और इन्हें कानून में ही द्वितीय श्रेणी का दर्ज़ा मिला हुआ है। इन्हें वोट देने के अधिकार से वंचित किआ जा सकता है, कानूनी प्रक्रिया से वंचित किआ जा सकता है और इसलिए ये रोज़गार, शिक्षा और सामाजिक लाभों से भी वंचित रह रहे हैं. । ठीक उसी तरह, जैसे पुराने जिम क्रो नियम के समय इनके पिता और उनसे पहले की पीढ़ी भेदभाव झेल रही थी।

यह एक उजागर सत्य है कि एक श्वेत, अफ़्रीकी अमरीकी को अपराधी के तौर पर देखता है और पुलिस इनसे बात करने के लिए अपनी बन्दुक का इस्तमाल करती है।  “स्टैंड योर ग्राउंड” और “थ्री स्ट्राइक: कानून के तहत एक छोटी सजा के लिए भी किसी अश्वेत अपराधी को श्वेत अपराधी की तुलना में  तीन उम्रकैद से ज्यादा की सजा सुनाई जा सकती है। इसकी वजह से श्वेतों की तुलना में कई गुना अधिक अफ़्रीकी अमेरिकी जेल में सजा काट रहे हैं। रिहा होने के बाद भी वे अपने अधिकतर राजनितिक अधिकार से वंचित रह जाते हैं। उनके लिए नौकरी पाना  मुश्किल हो जाता है और परिणाम स्वरुप या तो वे आजीवन गरीबी मे जीते हैं या उन्हें अपराध का सहारा लेना पड़ता है। “रंगभेद दृष्टिहीनता” ने पुराने जिम क्रो कानून के नए सिरे से ड्रग और अपराध के खिलाफ जंग के लिए नया स्वरुप दे दिया है।   

साथ ही इस छिपे रंगभेद संघर्ष के साथ सम्मिलित है पुलिस का सैन्यीकरण। यूँ तो जनता ने इसके पैदा होते संकट के संकेत पहले ही दे दिए थे पर स्नाइपर रायफल, आधुनिक युद्ध गाड़ीयों से लैस फर्ग्यूसन पुलिस ने अपने इरादे स्पस्ट कर दिए थे। उनका एक मात्र लक्ष्य प्रतिरोध को हिंसा से दबाना था। वे अश्वेतों से भरी हुई सैन्य टुकड़ी में हावी और हिंसक श्वेतों का दल है।

अमरीका में पुलिस और अन्य कानूनी संरचना का सैन्यीकरण, इराक और अफगानिस्तान युद्ध के बाद और तेज़ हो गया है। इन सभी कार्यों को आतंक के खिलाफ जंग के नाम पर उचित ठहराया जा रहा है। हालाँकि एक तरफ जब अमरीका में आतंकी हमलो के मुकाबले बिजली गिरने के कारण चार गुना अधिक लोगो की मौत हुई है पर फिर भी अरबो रूपए सेना और पुलिस पर खर्च किया जा रहा है।

फर्ग्यूसन एक गहरे संकट और  साथ ही यह अमरीका का फासीवाद की ओर बढ़ते कदम का सूचक है।जो भी अमरीका करता है, वह पुरे विश्व में दोहराया जाता है। भारत मे अल्पसंख्यकों का पुलिस पर कम होता विश्वास और लगातार बेगुनाह मुस्लिम युवकों को झूठे आरिप में फसाना भी इसी प्रक्रिया का हिस्सा है। यहाँ भी आतंक के खिलाफ जंग के लिए सैन्य टुकड़ियों को तैयार किया जा रहा है और इन्हें प्रशिक्षण देने वाली अधिकतर संस्थाएं या तो अमरीकी हैं या इसरायली। वर्तमान सरकार का इजराइल और उसके “ आतंकियों से निपटने” के तरीके से जो प्रेम है उससे यही अनुमान लगाया जा सकता है कि स्थिति और भी ख़राब होने वाली । फर्ग्यूसन मात्र एक चेतावनी है कि अगर किसी समुदाय को हाशिये पर धकेला जायेगा तो इसका परिणाम क्या होगा । समय आने से पहले अन्य देश इस घटना से सीख ले तो हालात बेहतर होंगे।

        डिस्क्लेमर:- उपर्युक्त लेख मे व्यक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं, और आवश्यक तौर पर न्यूज़क्लिक के विचारो को नहीं दर्शाते ।

अमरीका
नस्लीय भेदभाव
जिम क्रो कानून
न्यायपालिका
अफ़्रीकी-अमेरिकी निवासी
मेक्का मस्जिद
मिसौरी
फ़र्गुसन
सेंट लुइस

Related Stories

अमेरिकी सरकार हर रोज़ 121 बम गिराती हैः रिपोर्ट

संदर्भ पेरिस हमला – खून और लूट पर टिका है फ्रांसीसी तिलिस्म

मोदी का अमरीका दौरा: एक दिखावा

अमरीका की नयी पर्यावरण योजना एक दृष्टि भ्रम के सिवा कुछ नहीं है

इरान अमेरिका परमाणु समझौता : सफलता या ईरान का समर्पण?

केरी के दावे के विरुद्ध उत्तरी कोरिया के रक्षा मंत्री जीवित हैं

ईरान-अमरीका परमाणु संधि और पश्चिम एशिया की राजनीति

क्या अब हम सब चार्ली हेब्दो हैं?

सफ़ेद मुक्तिवाद बनाम ज़ुल्म और हिंसा

अमरीका का वैश्विक कब्ज़े की तरफ बढ़ता कदम


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License