बंगाल और असम के चुनावी घमासान में संवैधानिक प्रावधानों और सभी दलों की सहमति से निर्वाचन आयोग द्वारा जारी आदर्श आचार संहिता की धज्जियां उड़ती नजर आ रही हैं. लोग सरकारों और राजनीतिक दलों से रोटी, रोजगार और दवा की बात सुनना चाहते हैं पर कुछ बड़ी पार्टियों के नेता और कार्यकर्ता उन्हें मंदिरों के घंटे-घड़ियाल और गोत्र-श्रेष्ठता की होड़ दिखा रहे हैं. ऐसे में क्या कर रहा है देश का निर्वाचन आयोग? क्यों वह ईमानदार तमाशबीन भी नहीं रह गया है? AajKiBaat में वरिष्ठ पत्रकार Urmilesh का विश्लेषण