NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
विज्ञान
भारत
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
राखीगढ़ी कंकाल का डीएनए : सिन्धु घाटी के लोग ऋग्वैदिक आर्य नहीं हैं
आरएसएस के विश्वास को ध्वस्त करते हुए, प्राचीन डीएनए सबूत दर्शाते हैं कि सिन्धु घाटी की सभ्यता के जनक ऋग्वैदिक आर्य नहीं थे।
प्रबीर पुरकायस्थ
01 Oct 2019
Rakhigarhi Skeleton

प्राचीन डीएनए और दक्षिण एशिया में देशांतर गमन पर दो हालिया अध्ययन एक साथ और एक ही समय में अपने अपने क्षेत्रों में बेहद प्रतिष्ठित दो जर्नल में एक साथ प्रस्तुत हुए हैं, जिसमें से एक साइंस (Science) और दूसरा  सेल (Cell) मैगज़ीन हैं। दोनों ही पत्रिकाओं में कई लेखक ऐसे हैं जिन्होंने दोनों जगह अपने दस्तावेज प्रस्तुत किये हैं और हार्वर्ड  के आनुवांशिकी प्रयोगशाला के संसाधनों का इस्तेमाल किया है। इनमें से हर लेख अपने आप में महत्वपूर्ण है। साइंस (Science) मैगज़ीन ईरान, मध्य एशिया और अनातोलिया के बारे में कई साइटों से प्राचीन डीएनए के 523 नमूनों के बारे में रिपोर्ट प्रस्तुत करती है, और इसकी तुलना इस क्षेत्र की वर्तमान आबादी और दक्षिण एशिया से करती है। इस अध्ययन ने हमारे ऐसे प्राचीन डीएनए के नमूनों के बारे में अध्ययन की कुल संख्या को 25% तक बढ़ा दिया है।

जबकि सेल (Cell) पेपर केवल एक ऐसे नमूने को प्रस्तुत करता है, जो अपने आप में अभी तक एकमात्र नमूना दक्षिण एशिया से प्राप्त हुआ है, जो सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में एक सिन्धु घाटी से प्राप्त होता है। जैसा कि एक लेखक ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि, प्राचीनतम डीएनए ठंडे और शुष्क जलवायु में बेहतर तरीके से संरक्षित रह सकते हैं, और यह दोनों चीजें ही भारत में नहीं हैं। राखीगढ़ी में दफन 61 कंकालों में से, मात्र एक ही प्राचीन डीएनए के बारे में पर्याप्त जानकारी दे पाने में समर्थ था जिसे ठीक से अनुक्रमित किया जा सकता था। यह, वैज्ञानिक समुदाय के लिए, वास्तव में उस समूह के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। वाघीश नरसिम्हन, जिनका दोनों जर्नल में लेखक के रूप में प्रमुख स्थान है, और डेविड राइच, जो हार्वर्ड प्रयोगशाला के प्रमुख हैं, ने दोनों तरह की कठिनाइयों का वर्णन किया है कि उन्होंने किस प्रकार प्राचीनतम डीएनए के संकेतों को कई गुना बढ़ाकर और अन्य प्रदूषित करने वाले कारकों के बावजूद हासिल किया।

हमने हार्वर्ड में रीच ग्रुप और भारत सहित दुनिया भर में फैले उनके सहयोगियों के काम के पुराने परिणामों (पूर्ववर्ती संस्करण में उपलब्ध हैं) को  इन कॉलमों में स्थान दिया है। उन्होंने दिखाया है कि विस्तृत घास के मैदानों से प्रवासित होकर काले सागर और कैस्पियन सागर के मध्य प्रस्थान प्राचीन डीएनए में दिखाई देता है, जो यूरोपीय लोगों के साथ-साथ दक्षिण एशियाई आबादी के वर्तमान आनुवांशिकी प्रोफाइल को समझने में मदद करता है।

यह वितरण भाषाओं के वर्तमान वितरण को बारीकी से समझने के लिए भी प्रतीत होता है, जिसे भाषाओं के इंडो-यूरोपीय समूह के रूप में जाना जाता है। दक्षिण एशिया में, जनसंख्या के वर्तमान आनुवांशिक वितरण उत्तर भारत में पुरुष ब्राह्मण आबादी का विस्तृत घास के मैदानों से उपजे वंश को प्रमुखता से दर्शाता है। जब हम दक्षिण या पूर्व की ओर जाते हैं, तो इसमें गिरावट दिखती है, इसलिए उत्तरपश्चिम से दक्षिण एशिया में घास के मैदानों के लोगों के प्रवेश की पहचान होती है। जब हम ब्राह्मणवादी जातीय ढांचे को देखते हैं तो ये मैदानी प्रदेशों से आये लोगों का प्रतिनिधित्व महिला आबादी में और कम दीखता है। साइंस (Science) पत्रिका में प्रकाशित वर्तमान परिणाम बायोरेक्सिव संस्करण को और अधिक डेटा नमूनों से सिर्फ और अधिक बल ही  देते हैं।

साइंस (Science) में छपे दस्तावेजों का वास्तविक महत्व सेल (Cell) द्वारा प्रकाशित राखीगढ़ी के पेपर को साथ पढ़ने में है। सेल (Cell) पेपर से पता चलता है कि एकमात्र कंकाल जिससे प्राचीन डीएनए के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिली, वह एक महिला का था, जिसे लगभग 4,500-5,000 साल पहले औपचारिक रूप से दफनाया गया था। इसका मतलब यह हुआ कि यह विस्तृत मैदानी इलाकों से दक्षिण एशिया में आगमन से पहले हुआ था जो गमन उसके बाद कम से कम 600-1000 साल बाद हुआ। राखीगढ़ी का यह प्राचीन डीएनए किसी भी विस्तृत मैदानी इलाके से आये प्रवासी की अनुपस्थिति को होने को दर्शाता है, और इसलिए पुरातात्विक और अन्य सबूतों को मजबूत करता है कि सिंधु घाटी सभ्यता उन लोगों द्वारा बनाई गई थी जिनके पास स्टेप्स इलाकों से आने के सबूत नहीं हैं। यह आज उस इलाके के लोगों की आनुवंशिक संरचना से मेल नहीं खाता है, जो आज दक्षिण एशिया में "उच्च" जाति के पुरुषों की है।

इससे भी अधिक चौंकाने वाली खोज है 11 कंकालों का 2 जगहों से पाया जाना, पूर्वी ईरान में शहर-ए-शोकता (Shahr-i-Sokhta) और आधुनिक तुर्कमेनिस्तान के गोनूर (Gonur ) में, जो बैक्ट्रिया-मर्जिअना आर्कियोलॉजिकल कॉम्प्लेक्स (बीएमएसी) का एक हिस्सा है। इन 11 कंकालों का उसी स्थानों से बरामद किए गए अन्य कंकालों से प्राप्त डीएनए से कोई संबंध नहीं है, लेकिन आनुवंशिक रूप से इनका सम्बन्ध राखीगढ़ी से प्राप्त डीएनए के बहुत करीब है। और सभी 12 कंकाल जिनमें से 11 गोनूर और शहर-ए-शोकता से और एक राखीगढ़ी से, मजबूत दक्षिण एशियाई जनसंख्या चिह्न दर्शाते हैं, जिसमें प्राचीन ईरानी शिकारी के लक्षण भी दीखते हैं।

इन 11 डीएनए प्रोफाइल्स के साथ एक और एक नमूना जो राखीगढ़ी से प्राप्त हुआ है वह हमें सिंधु घाटी सभ्यता की आबादी की बेहतर समझ प्रदान करने में मदद करते हैं।
इस खोज के आधार पर, हम अब दो निष्कर्ष रख सकते हैं। एक, सिंधु घाटी के लोगों ने गोनूर और शहर-ए-शोकता में व्यापार की व्यवस्था की थी, लेकिन स्थानीय आबादी के साथ आपस में वैवाहिक सम्बन्ध नहीं थे। दूसरा, राखीगढ़ी, गोनूर और सहर-ए-शोकता में कंकाल इस अवधि में स्टेप्स (विस्तृत घास के मैदानों से आगमन ) के चिह्न नहीं दिखाते, लेकिन बाद के समय और इस इलाके में वर्तमान आबादी क्षेत्र  में इन विस्तृत घास के मैदानों से आगमन की मौजूदगी दिखाई देती है। स्पष्ट रूप से, उपरोक्त सभी तीन क्षेत्रों में इस अवधि में घास के मैदानों से आगमन होता नहीं दीखता।

दूसरी उल्लेखनीय खोज यह है कि सिंधु घाटी के लोग- वह एकमात्र राखीगढ़ी कंकाल और अन्य 11 गोनूर और सहर-ए-शोकता के बीच- जो कि, ज़ाग्रोस पर्वत शिकारी आबादी से निकटता से संबंधित थे, उनसे लगभग 12,000 साल पहले अलग चुके थे। यह ज़ाग्रोस (Zagros) की पहाड़ियों में कृषि के जन्म से पहले की तारीख से पृथक करता है और इस बात का सुबूत है कि कृषि स्वतंत्र रूप से सिंधु घाटी में उत्पन्न हुई, जैसा कि अनातोलिया और ज़ाग्रोस की पहाड़ियों में हुआ था। ये ईरानी किसान नहीं थे जो सिन्धु घाटी में अपने साथ कृषि का ज्ञान लेकर आये, बल्कि उनके भी पूर्वज थे, जो उस समय भी शिकारी थे, ने उत्तर पश्चिम से दक्षिण एशिया में प्रवेश किया, और फिर सिंधु घाटी में स्वतंत्र रूप से कृषि विकसित की।

यह उर्वरा और निरंतर विकसित होने वाले वे दो स्थान थे जिनमें कृषि स्वतंत्र रूप से विकसित हुई; और दोनों के बीच द्वि-दिशात्मक प्रवाह थे। इसी तरह के आनुवंशिकता प्रवाह ज़ाग्रोस पहाड़ के लोगों और सिंधु घाटी के लोगों के बीच नहीं हुआ, क्योंकि वे शिकारी आबादी के रूप में एक दूसरे से बिखर चुके थे, जिसका अर्थ है कि  कृषि सम्बन्धित ज्ञान तो साझा किया जा सकता था, लेकिन कोई खास पलायन या अंतर विवाह नहीं हो सका।

प्रोफेसर शिंदे, जो कि पूर्व में डेक्कन कॉलेज के कुलपति थे, ने राखीगढ़ी की खुदाई का नेतृत्व किया और प्रोफेसर रीच के ग्रुप को राखीगढ़ी कंकाल सौंपे। वह राखीगढ़ी दस्तावेजों के प्रमुख लेखकों में से एक हैं। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से सम्बद्ध रहे हैं और उनके विज्ञान संगठन विज्ञान भारती (Vijnana Bharati ) की गतिविधियों से जुड़े हुए हैं।  एक संवाददाता सम्मेलन में, उन्होंने कहा कि राखीगढ़ी के आनुवंशिक प्रमाण से पता चलता है कि यह कोई आर्यन आक्रमण नहीं था, और सिंधु घाटी के लोग संस्कृत बोलते थे।

प्राचीन डीएनए से सिंधु घाटी के लोग किस भाषा में बात करते थे, इस बात को प्रमाणित करना अपने आप में किस तरह कपोल कल्पना है, यह स्पष्ट से समझा जा सकता है।  किसी भी इंसान का कोई डीएनए इस बात का संकेत नहीं देता कि वे किस भाषा में बात करते थे। प्रोफेसर शिंदे एक पुरातत्वविद् हैं, और प्राचीन डीएनए साक्ष्यों के आधार पर अपने विश्वास का दावा करना उनकी अकादमिक प्रतिष्ठा से उन्हें बहुत दूर भटकाता है। बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट, लखनऊ से नीरज राय और हार्वर्ड से वागेश नरसिम्हन सहित अन्य प्रमुख लेखकों ने “विनम्रता” से इस बात की ओर इशारा  किया कि, राखीगढ़ी के प्राचीन डीएनए साक्ष्य प्रो. शिंदे के दावे को प्रमाणित नहीं करते हैं।

दूसरे देशों में, प्राचीन डीएनए के ऐसे अध्ययन और निष्कर्ष सिर्फ उस विषय के विद्वानों की रूचि का विषय होते हैं। लेकिन भारत में, यह तुरंत विवाद का विषय बन गया। हिंदुत्व ब्रिगेड के लिए जिनका विश्वास है कि संस्कृत बोलने वाले और वैदिक ग्रन्थ स्वदेशी हैं, उनके लिए अपने सिद्धांत को प्रमाणिक करने के लिए यह बात काफी मार्के की सिद्ध हो गई। यदि उन्हें यह दिखाया जाता है कि उनकी उत्पत्ति भारत से बाहर हुई, तब उनके इस सांप्रदायिक एजेंडा की हवा निकल जाती है जिसमें वे दावा करते हैं कि भारत उनकी पितृभूमि और पुण्यभूमि है, और हिन्दुओं का इस धरती पर सबसे अधिक अधिकार है। जबकि हकीकत यह है कि ऋग्वैदिक आर्य, भारत में आने वाले कई अन्य आक्रमणकारियों की तरह ही उनमें से एक हैं।

आरएसएस और अन्य हिन्दू वर्चस्ववादी समूहों के लिए, ऐसा कोई प्रमाण जिससे यह साबित होता हो कि वैदिक संस्कृत बोलने वाले लोग, जो इंडो-यूरोपियन भाषा बोलते थे और बाहर से आये थे को हर हाल में नकारना है; इसके लिए प्रमाण के बजाय विश्वास को आधार बनाया जाता है। भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद (ICHR) के पूर्व अध्यक्ष, प्रोफेसर वाई एस राव तो एक कदम और आगे जाकर कहते हैं कि  हमारे मौखिक इतिहास - हमारे पौराणिक कथाओं और महाकाव्यों – को न सिर्फ वास्तविक ऐतिहासिक साक्ष्य के रूप में मान्यता मिलनी चाहिए बल्कि किसी भी पुरातात्विक या भाषाई साक्ष्य से इन्हें बड़े साक्ष्य के रूप में इन्हें स्थान दिया जाना चाहिए। प्रमाणों की इस सूची में जिसका संघियों के लिए “नगण्य” स्थान है, में अब आनुवंशिक प्रमाणों को भी जोड़ना चाहिए; और यह स्वीकार करे कि क्या यह उस थिसिस को मान्यता देता है जिसमें इंडो-यूरोपियन भाषा बोलने वालों की उत्पत्ति दक्षिण एशिया में तो दर्शाई जाती है, लेकिन अगर झूठ साबित हो तो फिर अपने उस सिद्धांत को अस्वीकार भी करने का साहस हो।

Rakhigarhi Excavation
Indus Valley Civilisation
Rakhigarhi DNA Sample
South Asia
Steppes Signature
bioRxiv version
ancient Iranian hunter gatherers
RSS
Vijnana Bharati
Sanskrit
Rig Vedic Aryans
Archaeology
Hindu Supremacists
Science
Cell

Related Stories

विज्ञान: समुद्री मूंगे में वैज्ञानिकों की 'एंटी-कैंसर' कम्पाउंड की तलाश पूरी हुई

2023 विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र तेज़ हुए सांप्रदायिक हमले, लाउडस्पीकर विवाद पर दिल्ली सरकार ने किए हाथ खड़े

क्या इंसानों को सूर्य से आने वाले प्रकाश की मात्रा में बदलाव करना चाहिए?

"वैज्ञानिक मनोवृत्ति" विकसित करने का कर्तव्य

जलवायु परिवर्तन, विलुप्त होती प्रजातियों के दोहरे संकट को साथ हल करने की ज़रूरत: संयुक्त राष्ट्र के वैज्ञानिक

विशेष: राष्ट्रीय विज्ञान दिवस और विज्ञान की कविता

नए अध्ययन के मुताबिक हड़प्पावासी न सिर्फ मांसाहारी थे, बल्कि गोमांस उनका पसंदीदा भोज्य पदार्थ था!

एंगेल्स को पढ़ने की तीन समस्याएं और आज उन्हें पढ़ने की ज़रूरत

ग़लत जानकारी देना भी एक अपराध है : देवेंद्र मेवाड़ी

विज्ञान की बातें : विज्ञान कथाकार देवेंद्र मेवाड़ी से ख़ास बातचीत


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License