NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
राम मंदिर विवाद - शुरू से लेकर साल 1949 तक
राम जन्म भूमि मंदिर विवाद की कहानी नब्बे के दशक से शुरू नहीं होती है, न ही आजादी के बाद से शुरू होती है। इस विवाद की कहानी साल 1850 के बाद से शुरू होती है। साल 1850 से लेकर अब तक की राम जन्म- भूमि विवाद की पूरी कहानी हम आपके सामने प्रस्तुत कर रहे हैं। पढ़िए इसका पहला अंश..
अजय कुमार
28 Sep 2019
ram mandir
Image courtesy: The Economic times

राम जन्म भूमि विवाद,अयोध्या विवाद, बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले जैसे शब्द तो हमने अख़बारों की सुर्ख़ियों में ख़ूब सुने होंगे लेकिन बहुत कम लोगों को सिलसिलेवार तरीक़े से यह जानकारी होगी कि इस विवाद की शुरुआत कब हुई, न्यायालयों ने इस विवाद पर किस तरह के फ़ैसले दिए?

19 जनवरी 1885 में पहली बार महंत रघुवर दास यह मामला कोर्ट ले गए। उन्होंने यह केस फ़ाइल किया कि बाबरी मस्जिद के चबूतरे पर राम मंदिर बनाने की इजाज़त दी जाए। यहाँ समझने वाली बात यह है कि महंत रघुवर दास यह नहीं कह रहे हैं कि बाबरी मस्जिद के गुम्बद के नीचे राम मंदिर बनाया जाए। इस केस पर फ़ैसला देते हुए 26 मार्च 1886 में डिस्ट्रिक्ट जज ने कहा कि 'the chabutra is said to be indicative of birth place of ramchandra' इस फ़ैसले पर वहां के मुस्लिम समुदाय ने यह प्रतिक्रिया दी कि ठीक है, वहाँ पर पूजा पाठ हो। 

क़ानूनी मामलों के जानकार डिस्ट्रिक्ट जज के शब्द ग़ौर करने लायक हैं। डिस्ट्रिक्ट जज यह नहीं कह रहे हैं कि वहाँ पर राम मंदिर था, इसलिए राम मंदिर बना लिया जाए। डिस्ट्रिक्ट जज द्वारा 'indicative' शब्द का इस्तेमाल किया गया है। यानी रामचंद्र जी के जन्मस्थान का 'सूचक' कहा जा सकता है।  

अब यहीं पर इतिहास की भी थोड़ी बात कर लेते हैं। मध्यकालीन इतिहास में मशहूर इतिहासकार हरबंस मुखिया अपने एक वक्तव्य में कहते हैं, "इस मंदिर का ज़िक्र मध्यकालीन इतिहास से जुड़ी किसी भी कृति में नहीं मिलता है। न ही बाबरनामा में इसका ज़िक्र है, न ही हुमायूँनामा में इसका ज़िक्र है और न ही औरंगज़ेब से जुड़ी किन्हीं कृतियों में इसका ज़िक्र है, जहां पर औरंगज़ेब द्वारा मंदिरों को ढाहकर मस्जिद बनाने की बात की गयी है।"

इतिहासकार रामशरण शर्मा कहते हैं कि उन्होंने अयोध्या के तक़रीबन 20 मंदिर के पुजारियों से बात की और सभी ने कहा कि उनका मंदिर ही राम जन्मस्थान है। आज़ादी की लड़ाई में भी संस्कृति के ज़रिये मोबलाइज़ेशन करने वाले बहुत सारे नेता थे। इसमें में किसी भी नेता ने राम जन्म भूमि का ज़िक्र नहीं किया है। आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट पर बहुत सारे इतिहासकारों ने सवालिया निशान लगाया है। और यह रिपोर्ट निश्चित तौर पर यह भी नहीं बताती कि रामजन्मभूमि कहाँ थी?

आज का नरेटिव यह है कि मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गयी थी इसलिए वहाँ पर मंदिर बनना चाहिए। लेकिन अयोध्या में असल विवाद मौजूदा बाबरी ढांचे से 1 किलोमीटर दूर हनुमानगढ़ी मंदिर से साल 1855 से शुरू होता है। इतिहासकार के. एन पन्निकर ने अपनी किताब  'Anatomy Of Confrontation' के एक अध्याय में लिखा है कि असल में ये विवाद बाबरी मस्जिद पर राम मंदिर होने से शुरू नहीं होता है, बल्कि ये विवाद हनुमानगढ़ी मंदिर से शुरू हुआ था। उनके हिसाब से एक मुस्लिम दल ने ये दावा किया था की हनुमानगढ़ी मंदिर को मस्जिद तोड़कर उसके ऊपर बनाया गया है।

इस दावे पर उस समय मुस्लिमों और हिन्दू बैरागियों के बीच जमकर साम्प्रदयिक दंगे हुए। यह मंज़र ठीक 6 दिसंबर 1992 वाले थे। हिन्दू बैरागियों ने लौटकर बाबरी मस्जिद में शरण ली। इस मामले पर अवध के नवाब ने एक कमेटी बनाई, जिसमें मुस्लिम, हिन्दू और ब्रिटिश प्रतिनिधि तीनों शामिल थे। पूरी छानबीन के बाद कमेटी ने यह फ़ैसला दिया कि पिछले 25-30 साल में कभी भी किसी मस्जिद को गिरा कर हनुमानगाढ़ी मंदिर नहीं बनाया गया। शायद ही किसी मस्जिद को गिराकर कोई मंदिर बनाया गया है। इस फ़ैसले में एक बात ध्यान देने वाली है कि 25-30 साल के समय की बात की गई है। विध्वंस के मामलों में 25-30 साल के दौरान की तो छानबीन की जा सकती है लेकिन 400 से 500 साल से अधिक दौरान की छानबीन करना बहुत मुश्किल है।

इस फ़ैसले के साथ अवध के नवाब ने माहौल को शांत कराने के लिए हनुमानगढ़ी मंदिर के बगल में मुस्लिमों को एक मंदिर बनाने की इजाज़त दे दी। इस मस्जिद बनाने के फ़ैसले के जवाब में हनुमानगढ़ी के महंत ने बाबरी मस्जिद में राम जी का एक चबूतरा बना दिया। इस पर वहां के मुस्लिम समुदाय की तरफ़ से विरोध हुआ। के.एन पन्निकर ने अपनी किताब में लिखा है कि साल 1958 में बाबरी मस्जिद के उलेमा ने डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में यह केस दायर किया कि बाबरी मस्जिद के नज़दीक बैरागियों ने चबूतरा बना दिया है और मस्जिद की दीवार पर राम-राम लिख दिया है। मस्जिद के उलेमा की तरफ़ से इस पर मजिस्ट्रेट के सामने कई बार शिकायत की गई। साल 1861 में मजिस्ट्रेट ने मस्जिद और चबूतरे के बीच एक दीवार खिंचवाने का फ़ैसला दे दिया ताकि आपसी झगड़े ना हों।

के.एन पन्निकर अपनी किताब में लिखते हैं कि हनुमानगढ़ी के मुसलमानों के दावों से बाबरी मस्जिद पर रामजन्मभूमि विवाद की शुरुआत हुई। महंत रघुवर दास ने साल 1885 में सबसे पहले फ़ैज़ाबाद के डिस्ट्रिक्ट जज के सामने चबूतरे पर मालिकाना हक़ मांगने की बात की। और यह कहा कि इस चबूतरे पर मंदिर बनाने की इजाज़त दी जाए। इससे पहले डिप्टी कमिश्नर ने साल 1883 में याचिका ख़ारिज कर दी थी। इसलिए महंत ने साल 1885 में फ़ैज़ाबाद के जज के सामने यह कहा था कि ''अगर चबूतरे पर मंदिर बनता है तो किसी तरह का नुक़सान नहीं पहुँचेगा और जिस तरह से मौजूदा समय में पूजा पाठ की जा रही है, ठीक वैसे ही आगे भी पूजा पाठ चलती रहेगी।''  

इस पर साल 1885 में जज पंडित हरिकिशन ने पूरी छानबीन के बाद महंत रघुवर दास के मंदिर के दावे को ख़ारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि इससे पहले ही मंदिर-मस्जिद दावे पर हनुमानगढ़ी मामले में सांप्रदायिक दंगा हो चुका है। इसलिए इस पर अब कोई भी फ़ैसला आएगा तो सांप्रदायिक तनाव का माहौल बनेगा। फिर महंत रघुवर दास इस अपील को डिस्ट्रिक्ट जज के पास लेकर गए। डिस्ट्रिक्ट जज चेमियर ने इस पर फ़ैसला दिया कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि 356 साल पहले हिन्दुओं के पवित्र स्थान  को गिराकर यहां पर मस्जिद बना दी गयी थी। लेकिन अब बहुत मुश्किल है कि इस शिकायत का कोई हल निकले। इसलिए अब जो किया जा सकता है वह यही है कि सभी पक्षकार 'स्टेटस को' यानी यथास्थिति बनाये रखें। यानी मस्जिद में नमाज़ हो और चबूतरे पर राम की पूजा हो।

फिर से रघुवर दास ने ज्यूडिशियल कमिश्नर ऑफ़ अवध के पास अपील की। यानी आज के समय से देखा जाए तो हाई कोर्ट में चबूतरे के मालिकाना हक़ पर अपील की गई। ज्यूडिशियल कमिश्नर डब्ल्यू यंग ने इस पर फ़ैसला सुनाया कि पहले के जजों ने इस पर काफ़ी अच्छे से छानबीन की है और महंत रघुवर दास के मालिकाना हक़ को तय करना बहुत मुश्किल है। इसलिए उनकी अपील ख़ारिज की जाती है। यानी 19वीं शताब्दी में मंदिर बनाने को लेकर तीन केस हो चुके थे और इन तीनों केसों के फ़ैसले बाबरी मस्जिद में मंदिर बनाने से नहीं जुड़े थे, ये तीनों फ़ैसले बाबरी मस्जिद के नज़दीक मौजूद चबूतरे पर राम मंदिर बनाने से जुड़े थे और इन तीनों में कोर्ट ने रघुवर दास की अपील ख़ारिज कर दी।

इसके बाद साल 1886 से साल 1934 तक माहौल शांत रहा। 1934 में गौ हत्या को लेकर अयोध्या के पास के गांव शाहजहांपुर में विवाद हुआ और हिन्दुओं की तरफ़ से बाबरी मस्जिद को क्षतिग्रस्त किया गया। ब्रिटिश सरकार के आदेश पर मुस्लिम ठेकेदार ने फिर से सरकारी पैसे से बाबरी मस्जिद की मरम्मत करवा दी। मस्जिद में नमाज़ होती रही और चबूतरे पर पूजा की जाती रही।

उसके बाद साल 1941 से 1947 तक बाबरी मस्जिद पर शिया और सुन्नियों के हक़ का झगड़ा चलता रहा। शिया वक़्फ़ बोर्ड ने दलील दी थी कि मस्जिद पर उनका हक़ है और सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड ने दलील दी कि मस्जिद पर उनका हक़ है। क़ानूनी मामलों के जानकार फ़ैज़ान मुस्तफ़ा कहते हैं, "वक़्फ़ इस्लाम का एक बहुत ज़रूरी विषय है। इसे इसलिए समझना ज़रूरी है क्योंकि 30 अगस्त 2019 को सुप्रीम कोर्ट के कुछ शिया जजों ने कहा कि विवादित ज़मीन के एक-तिहाई हिस्से से जुड़ा अपना अधिकार वह छोड़ रहे हैं।

हिन्दू उस पर मन्दिर बना लें। लेकिन सवाल उठता है कि क्या वक़्फ़ की ज़मीन के साथ कुछ भी ऐसा किया जा सकता है। वक़्फ़ एक तरह का स्थायी समर्पण है। एक तरह का परमानेंट डेडिकेशन। यानी धार्मिक, पवित्र और परोपकार के मक़सद से किसी संपत्ति को ईश्वर को  दान दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट का इस पर फ़ैसला है कि वक़्फ़ की प्रॉपर्टी ईश्वर के क़ब्ज़े में होती है। ईश्वर ही वक़्फ़ का मालिक होता है। एक बार वक़्फ़ हो गया तो उसे फिर से वापस नहीं लिया जा सकता है। उसे देने वाला भी उसे वापस नहीं ले सकता है।

किसी को यह भी इजाज़त नहीं है कि वक़्फ़ की ज़मीन को बेच सके। इस तरह से जो यह कहते हैं कि इस ज़मीन को बहुसंख्यक आबादी को दे देना चाहिए, उन्हें यह समझना चाहिए कि यह क़ानूनी मसला है। और इसका क़ानूनी तौर पर ही निपटारा संभव है। साल 1946 कोर्ट ने यह फ़ैसला दिया कि चूँकि इस मस्जिद का संस्थापक बाबर है, इसलिए यह ज़मीन सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड की है। और इससे जुड़े इमाम भी सुन्नी रहे हैं, इसलिए इस ज़मीन पर सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड का हक़ है।"

इसके बाद 28 अप्रैल 1948 सिटी मजिस्ट्रेट ऑफ़ फ़ैज़ाबाद ने चबूतरे से जुड़ा फैसला सुनाया। इस फ़ैसले में सिटी मजिस्ट्रेट ने कहा, "चबूतरे पर पक्का मंदिर नहीं बनाया जाएगा। पुजारी या कोई और भी मस्जिद के नमाज़ को नहीं रोकेगा। जिस तरह से चलते आ रहा है वैसे ही चलता रहेगा। चबूतरे पर पूजा-पाठ होगी और मस्जिद में नमाज़ पढ़ी जाएगी।" इसके बाद कई दफ़ा वक़्फ़ इंस्पेक्टर ने रिपोर्ट फ़ाइल की कि हिन्दू बैरागियों द्वारा मस्जिद में नमाज़ पढ़ने वालों को परेशान किया जा रहा है।

बैरागी चबूतरे पर मंदिर बनाने की कोशिश कर रहे हैं। साल 1948 में सिटी मजिस्ट्रेट ऑफ़ फ़ैज़ाबाद की रिपोर्ट आती है कि हिन्दू जनता चबूतरे पर छोटे मंदिर के बजाए विशाल राम मंदिर बनाना चाहती है। इसके लिए वह बहुत उत्सुक हैं। जिस ज़मीन पर चबूतरा है वह सरकार की ज़मीन है, इसलिए अगर सरकार चाहे तो ऐसा कर सकती है। यानी मामला बढ़ते-बढ़ते यहां तक पहुँच गया कि चबूतरे पर राम मंदिर बनाने की बात सरकारी अधिकारियों की तरफ़ से होने लगी। मुस्लिम डर के मारे चुप रहे, हिन्दू आक्रामक होते गए।  23 दिसंबर 1949 को ताले तोड़कर, मस्जिद में घुसकर रामलला की मूर्ति स्थापित कर दी गयी। इसके बाद आज़ाद भारत में इससे जुड़ी कहानी अगले भाग में।

(इस लेख से जुड़े तथ्य के.एन पन्निकर की किताब Anatomy Of Confrontation और ए.जी नूरानी की किताब Destruction Of Babri Masjid पर आधारित हैं)

Ram Mandir
Ayodhya Case
Babri Masjid-Ram Mandir
hindu-muslim
Hindutva
Muslims
Communism

Related Stories

बदायूं : मुस्लिम युवक के टॉर्चर को लेकर यूपी पुलिस पर फिर उठे सवाल

डिजीपब पत्रकार और फ़ैक्ट चेकर ज़ुबैर के साथ आया, यूपी पुलिस की FIR की निंदा

भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल

भाजपा के लिए सिर्फ़ वोट बैंक है मुसलमान?... संसद भेजने से करती है परहेज़

ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली

विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक

ज्ञानवापी कांड एडीएम जबलपुर की याद क्यों दिलाता है

मनोज मुंतशिर ने फिर उगला मुसलमानों के ख़िलाफ़ ज़हर, ट्विटर पर पोस्ट किया 'भाषण'

राम मंदिर के बाद, मथुरा-काशी पहुँचा राष्ट्रवादी सिलेबस 

क्या ज्ञानवापी के बाद ख़त्म हो जाएगा मंदिर-मस्जिद का विवाद?


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली उच्च न्यायालय ने क़ुतुब मीनार परिसर के पास मस्जिद में नमाज़ रोकने के ख़िलाफ़ याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार किया
    06 Jun 2022
    वक्फ की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि यह एक जीवंत मस्जिद है, जो कि एक राजपत्रित वक्फ संपत्ति भी है, जहां लोग नियमित रूप से नमाज अदा कर रहे थे। हालांकि, अचानक 15 मई को भारतीय पुरातत्व…
  • भाषा
    उत्तरकाशी हादसा: मध्य प्रदेश के 26 श्रद्धालुओं की मौत,  वायुसेना के विमान से पहुंचाए जाएंगे मृतकों के शव
    06 Jun 2022
    घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद शिवराज ने कहा कि मृतकों के शव जल्दी उनके घर पहुंचाने के लिए उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से वायुसेना का विमान उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था, जो स्वीकार कर लिया…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आजमगढ़ उप-चुनाव: भाजपा के निरहुआ के सामने होंगे धर्मेंद्र यादव
    06 Jun 2022
    23 जून को उपचुनाव होने हैं, ऐसे में तमाम नामों की अटकलों के बाद समाजवादी पार्टी ने धर्मेंद्र यादव पर फाइनल मुहर लगा दी है। वहीं धर्मेंद्र के सामने भोजपुरी सुपरस्टार भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं।
  • भाषा
    ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉनसन ‘पार्टीगेट’ मामले को लेकर अविश्वास प्रस्ताव का करेंगे सामना
    06 Jun 2022
    समिति द्वारा प्राप्त अविश्वास संबंधी पत्रों के प्रभारी सर ग्राहम ब्रैडी ने बताया कि ‘टोरी’ संसदीय दल के 54 सांसद (15 प्रतिशत) इसकी मांग कर रहे हैं और सोमवार शाम ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में इसे रखा जाएगा।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 
    06 Jun 2022
    देश में कोरोना के मामलों में आज क़रीब 6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है और क़रीब ढाई महीने बाद एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 25 हज़ार से ज़्यादा 25,782 हो गयी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License