NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
रेत माफिया: नेताओं, निर्माण कंपनियों और अपराधियों का एक नेटवर्क
रेत माफियाओं का आपराधिक नेटवर्क बहुत हिंसक है और जो कोई भी इसके ख़िलाफ़ आवाज उठाता है तो उनसे दुर्व्यवहार किया जाता है और उनके मामलों को आसानी से दबा दिया जाता है।
योगेश एस.
28 Jun 2018
sand mafia

कर्नाटक के तटीय क्षेत्र में हुआ मुलरपट्टन पुल हादसा इस बात का सबूत है कि इस इलाक़े में रेत माफियाओं का कितना दबदबा है। पुल के खंभे के आधार के पास से रेत माफियाओं द्वारा किए जाने वाले अवैध खनन को लेकर स्थानीय लोगों ने अधिकारियों को शिकायत की लेकिन उसे नज़रअंदाज़ कर दिया गया जिसके चलते ये हादसा हुआ। ये हादसा गत 26 जून को हुआ। इस घटना के बाद ये इलाक़ा एक बार फिर सुर्खियों में है।

स्थानीय लोगों ने पुल के खंभे के पास से ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से रेत निकाले जाने के बारे में अधिकारियों को जानकारी देते रहे हैं। लोगों ने शिकायत में कहा था कि इस अवैध खनन से खंभे का आधार कमज़ोर हो रहा है जिससे नुकसान पहुंच रहा है। लेकिन अवैध रेत खनन या रेत माफिया की गतिविधियों के बारे किए गए सभी शिकायत जिसे स्थानीय लोगों ने किया था वे सभी नज़रअंदाज़ कर दिए गए। अगर इन शिकायतों को गंभीरता से लिया गया होता अधिकारियों ने रेत माफिया के कामकाज को रोक दिया होता? माफिया के ख़िलाफ़ दायर किए गए मामलों और इनके कार्यवाही पर नज़र डाले तो जवाब शायद 'न' में होगा। माफिया की ताक़त से डरे शिकायतकर्ताओं ने किए गए शिकायत हमेशा वापस लेते रहे। इस तरह मुलरपट्टन के मामले में इन शिकायतों को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया।

प्रभावशाली नेता, ताक़तवर लोग और स्थापित निर्माण कंपनियों और खननकर्ता माफिया के नेटवर्क में शामिल हैं। ये लोग राज्यभर में दिनदहाड़े अपना काम करते नज़र आते हैं। इस तरह इस प्रभावशाली नेटवर्क सभी मौजूदा नियमों और विनियमों का उल्लंघन करके खुलेआम काम अपना काम कर रहे हैं। खान तथा भूविज्ञान विभाग के अधिकारियों ने कर्नाटक में 2015-2017 के बीच रेत माफिया से संबंधित 16 मामले प्रतिदिन दर्ज किए। इस अवधि के दौरान क़रीब क़रीब 12,318मामले दर्ज किए गए जिनमें सभी अवैध रेत खनन, परिवहन, भंडारण और साफ रेत के इस्तेमाल को लेकर थे। इतनी बड़ी संख्या में दर्ज किए गए मामलों से पता चलता है कि राज्य में माफिया किस क़दर ग़ैर क़ानूनी तरीक़े से अपना काम कर रहे हैं।

और ये माफिया सिर्फ कर्नाटक तक ही सीमित नहीं है। निर्माण कंपनियों के साथ इनकी लॉबी के कारण ये पूरे देश में फैले हुए हैं। अकेले राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र(एनसीआर) में प्रतिदिन रेत से लदे 300 ट्रक इकट्टा होते हैं। रिपोर्टों से पता चलता है कि आंध्र प्रदेश में कृष्णा और गोदावरी नदियों के तल रोज़ाना रेत से लदे 2,000ट्रक हैदराबाद पहुंचते हैं। पर्यावरणविदों और विशेषज्ञों का कहना है कि यह अवैध खनन कटाव के लिए ज़िम्मेदार है और नदियों की धारा को बदल रहा है। उदाहरण के लिए यमुना नदी ने 500 मीटर तक अपना मार्ग बदल दिया है और नोएडा में बाढ़ का ख़तरा पैदा कर रहा है। अवैध खनन के मामले में साल 2017 में महाराष्ट्र का प्रतिशत पूरे भारत का 40 प्रतिशत था जो देश का सबसे ज्यादा था। अकेले महाराष्ट्र में 2015-16 के बीच अवैध रेत खनन के 30,979 मामले दर्ज किए गए थे।

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के दिशानिर्देशों के अनुसार रेत को एक लघु खनिज माना जाता है और इसका खनन राज्य क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आता है। 1957 के खान तथा खनिज अधिनियम (विकास और विनियमन) में कहा गया है:

उपधारा (1) के तहत किए गए किसी भी नियम के तहत दिए गए खनन पट्टे या किसी अन्य खनिज रियायत के धारक को लघु खनिजों के संबंध में [रॉयल्टी या डेड रेंट, जो भी अधिक हो) का भुगतान करना होगा, इस लघु खनिजों के संबंध में राज्य सरकार द्वारा बनाए गए नियमों में निर्धारित समय के लिए निर्धारित दर पर उसके द्वारा या उसके एजेंट, प्रबंधक, कर्मचारी, ठेकेदार या उप-पट्टेदार द्वारा निकाले गए या इस्तेमाल किए गए हो: बशर्ते कि राज्य सरकार लघु खनिज के संबंध में किसी भी [तीन] वर्षों की अवधि के दौरान [रॉयल्टी या डेड रेंट] की दर में वृद्धि नहीं करेगी।

अधिनियम के अनुसार ये खननकर्ता राज्य सरकारों के लिए उत्तरदायी हैं। उन्हें पहले संबंधित राज्य सरकारों से लाइसेंस प्राप्त करना होता है और वे खनन किए गए रेत की मात्रा के अनुसार उन्हें रॉयल्टी भी देनी होती है। चूंकि निर्माण कंपनियों के लिए रेत मूलभूत आवश्यकता है इसलिए खननकर्ता और बिल्डरों की एक लॉबी मौजूद है। क़ानून कड़े हैं और इसलिए रेत खनन के लिए लाइसेंस हासिल करना बहुत आसान नहीं है। ज़्यादा फायदा हासिल करने के लिए निर्माण कंपनियां क़ानूनों और नियमों को ताक पर रख देती हैं।

सभी औपचारिकताओं से बचने के लिए ये बिल्डर्स माफिया की तरफ रूख करते हैं जो भ्रष्ट अधिकारियों, ग़रीब किसानों और स्थानीय बिचौलियों का एक प्रभावशाली नेटवर्क है।

क़ानून के अनुसार राज्य सरकारों के पास ही खनन क्षेत्रों के लिए आवंटन का एकमात्र अधिकार है। लेकिन जैसा कि माफिया कंपनियों के लिए नियमों को ताक पर रखते रहे हैं तो ऐसे में खनन नदी के किनारे और खेतों में कहीं भी शुरू हो जाते है। ये क़ानून राज्य सरकार को ट्रक में ले जाने वाली रेत का वजन करने और निकाले जाने वाली मिट्टी की मात्रा पर जांच करने का निर्देश भी देता है। लेकिन यह शायद ही कभी किया जाता है।

रेत माफियाओं द्वारा किए गए निवेश बहुत कम हैं लेकिन आमदनी उल्लेखनीय रूप से काफी ज़्यादा है। रेत की एक लॉरी लगभग 10,000 रुपए में बेची जाती है और निर्माण कंपनियां कम से कम 10 से 15 लदी लॉरी की मांग करती है। हालांकि कानून के अनुसार अवैध रेत खनन के मामले में दो साल की सजा या 25,000रुपए या दोनों जुर्माना हो सकता है।

रेत माफियाओं का आपराधिक नेटवर्क बहुत हिंसक है और जो कोई भी इसके ख़िलाफ़ आवाज उठाता है तो उनसे दुर्व्यवहार किया जाता है और उनके मामलों को आसानी से दबा दिया जाता है।

वाणिज्यिक कर विभाग में अतिरिक्त आयुक्त 36 वर्षीय आईएएस अधिकारी डीके रवि 16 मार्च, 2015 को बैंगलुरू में अपने निवास पर मृत पाए गए थें। पुलिस ने इसे आत्महत्या का मामला बताया था जबकि सीबीआई की रिपोर्ट ने विश्वासघात बताया था जिसके चलते उन्होंने आत्महत्या की। लेकिन जब वह कोलार ज़िले के डिप्टी कमिश्नर के रूप में कार्यरत थे तो वह इस क्षेत्र में रेत माफिया की गतिविधि को उजागर करने में शामिल थें। इसके बाद उन्हें कोलार से बैंगलुरु में स्थानांतरित कर दिया गया जहां वह मृत पाए गए। मध्यप्रदेश के बालाघाट ज़िले के एक स्वतंत्र पत्रकार संदीप कोठारी ने कटंगी और त्रियोदीस में सक्रिय अवैध खनन माफिया पर जबलपुर स्थित दैनिक अख़बार में एक लेख लिखा था। 24 जून 2015 को उनका जला हुआ शव नागपुर के एक फार्महाउस में मिला था। 7अगस्त 2015 को राजस्थान के रामगढ़ में 30 वर्षीय किसान सूरज जाटवो को मार दिया गया था। उन्होंने अपने भाई के साथ अपने फार्म के नज़दीक किए जा रहे अवैध रेत खनन के ख़िलाफ़ एतराज़ किया था।

sand mafia
sand mining
karanataka
Mularpatna Bridge

Related Stories

जम्मू-कश्मीर में नियमों का धड़ल्ले से उल्लंघन करते खनन ठेकेदार

यूपी: अब झांसी में अवैध खनन की रिपोर्टिंग करने गए पत्रकार पर हमला, कहां है कानून व्यवस्था? 

यूपी चुनाव: आजीविका के संकट के बीच, निषाद इस बार किस पार्टी पर भरोसा जताएंगे?

बिहार : बालू खनन का विरोध कर रहे ग्रामीणों के साथ पुलिस ने की बर्बरता, 13 साल की नाबालिग को भी भेजा जेल 

उत्तराखंड : नदियों का दोहन और बढ़ता अवैध ख़नन, चुनावों में बना बड़ा मुद्दा

यूपी: बांदा में अवैध बालू खनन की रिपोर्ट कर रहे पत्रकार ने पुलिस पर लगाया टॉर्चर का आरोप!

सरकार की कड़ी कार्रवाई भी बिहार में अवैध बालू खनन रोकने में विफल रही 

मध्य प्रदेश रेत खनन पर माकपा ने कहा शिवराज सरकार रेत माफियों की है

चुनाव 2019 : क्यों प्यासा है टोंक?

रेत माफिया द्वारा वन अधिकारी को कुचल कर मारे जाने पर चौतरफा घिरी 'चौहान सरकार'


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License