NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
रफ़ाल फैसले से उठे कई गंभीर सवाल
सीएजी की रिपोर्ट सहित कई चीजों को नज़रअंदाज़ कर दिया गया। इस रिपोर्ट को लोक लेखा समिति के सदस्यों के साथ साझा नहीं किया गया।
रवि नायर
15 Dec 2018
rafale

"क़ानून की ढ़ाल और न्याय के नाम पर किए गए पाप से बड़ा अत्याचार कुछ भी नहीं है।" - चार्ल्स-लुइस डी सेकंडैट, बैरन डे ला ब्रेडे एट डी मोंटेस्किउ, द स्पिरिट ऑफ द लॉज।सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रफ़ाल सौदे पर अपना फैसला सुनाया है। अदालत में दाखिल किए गए कई याचिकाकर्ताओं ने प्रधानमंत्री द्वारा प्रक्रियात्मक उल्लंघनों और कैबिनेट मंत्रियों के एक समूह द्वारा लिए गए अत्यधिक क़ीमत के फैसले पर सवाल उठाया है जिनके पास इस तरह के मामले के संबंध में कोई विशेषज्ञता हासिल नहीं है। इस सौदे और इस मामले पर नज़र रखने वाले ज़्यादातर लोगों के लिए शुक्रवार को आया सुप्रीम कोर्ट का ये आदेश चौंकाने वाला नहीं क्योंकि पिछले कुछ वर्षों से लगभग सभी मामलों में कार्यकारी वरिष्ठ पदाधिकारियों के दोष पर सवाल उठाए गए थे ऐसे में शीर्ष अदालत के आदेश इसी तरह के थे।अब देखा जाए कि इस आदेश में क्या कहा गया है और इस मामले पर फैसला करते समय अदालत ने किन चीजों पर विचार नहीं किया।

इस मामले का बुनियादी सवाल है कि प्रधानमंत्री द्वारा कथित प्रक्रियात्मक उल्लंघन किया गया है। सरकार ने अदालत को बताया कि इस प्रस्ताव के लिए अनुरोध (रिक्वेस्ट फॉर प्रोपोजल-आरएफपी) वापस लेने की प्रक्रिया मार्च 2015 में शुरू हुई और अदालत ने इस तर्क को स्वीकार कर लिया। यह कई कारणों से अजीब लगता है।

रक्षा ख़रीद प्रक्रिया (डीपीपी) से हवाला देते हुए आदेश में कहा गया है: "निर्धारित प्रक्रिया में किसी भी प्रकार के परिवर्तन को अनुमोदन के लिए डीपीबी (रक्षा ख़रीद बोर्ड) के माध्यम से डीएसी (रक्षा अधिग्रहण परिषद) के समक्ष रखा जाएगा"

मोदी ने 10 अप्रैल 2015 को इसकी घोषणा की।

हालांकि सरकार के जवाब में इस तरह का कोई ज़िक्र नहीं है कि विमानों की आवश्यक संख्या 126 से 36 तक घटाने के लिए फैसला कब लिया गया था जो कि दो पूर्ण स्क्वाड्रन भी नहीं हैं और किसने ये फैसला किया।

सरकार के अनुसार अंतर-सरकारी समझौते (आईजीए) के लिए डीएसी की मंजूरी 13 मई 2015 को दी गयी थी लेकिन इस घोषणा के लिए अतिआवश्यक प्रारंभिक अनुमोदन पर वह खामोश है। तो भारतीय वायुसेना (आईएएफ) ने संशोधित प्रस्ताव कब भेजा था? डीपीबी ने इसे कब स्वीकृति दी? इसे डीएसी को कब भेजा गया था और डीएसी ने इसे कब स्वीकृति दी थी? यह चौंकाने वाला है कि अदालत ने सरकार से नहीं पूछा। किसी भी तरह के रक्षा ख़रीद के लिए चाहे वह टेंडर या प्रत्यक्ष ख़रीद के माध्यम से हो तो इस मूल प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए। अदालत ने इस बुनियादी सवाल को पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर दिया।

मार्च 2015 में अपनी वेबसाइट पर डसॉल्ट एविएशन द्वारा पोस्ट किए गए एक वीडियो और डसॉल्ट के सीईओ एरिक ट्रैपियर द्वारा जारी प्रेस कॉन्फ्रेंस में विभिन्न बयानों के अनुसार मार्च 2015 में भारत सरकार और डसॉल्ट एविएशन के बीच बातचीत सकारात्मक थी और 95 प्रतिशत पूरी हो गई थी। हालांकि वहां मौजूद इस साक्ष्य को कोई भी देख सकता है और याचिकाकर्ताओं (यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और प्रशांत भूषण) द्वारा इस पर प्रकाश डाला गया था। ऐसा लगता है कि सर्वोच्च अदालत यह पूछना भूल गयी कि सरकार को आरएफपी को रद्द करने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए किस चीज ने प्रेरित किया जिसको लेकर बातचीत 95 प्रतिशत पूरी भी हो चुकी थी?

जानकारों के अनुसार तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर को 3 अप्रैल की शाम को आरएफपी रद्द करने की योजना और फ्लाई-अवे कंडीशन में केवल 36 रफ़ाल की ख़रीद के बारे में पता चला। यह व्यापक रूप से प्रकाशित किया गया था। फिर देश के रक्षा मंत्री को सूचित किए बिना मार्च 2015 में आरएफपी रद्द करने की प्रक्रिया का फैसला किसने लिया और इसे आरंभ कर दिया? क्या यह अजीब बात नहीं है कि इस तरह के सौदे से जुड़े दो सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति भारतीय रक्षा मंत्री और कंपनी के सीईओ जिनके साथ भारत सरकार की बातचीत हुई थी, भारत सरकार द्वारा लिए गए इस तरह के फैसले से अवगत नहीं थे?

एक और स्पष्ट चूक हुई है। सरकार ने अदालत में सौंपे गए जवाब में डीपीपी के प्रस्तावना से हवाला दिया है और कहा कि यह प्रक्रिया डीपीपी 2013 के अनुसार की गई थी। दिलचस्प बात यह है कि डीपीपी 2013 या इससे पहले किसी भी प्रकार के डीपीपी का कोई प्रस्तावना नहीं था। डीपीपी का प्रस्तावना वर्ष 2016 में ही जोड़ा गया था।

अदालत के आदेश में हवाला दिया गया कि: "जहां तक 126 लड़ाकू विमान ख़रीदने के प्रयास का मामला है यह कहा गया है कि अन्य विषयों के साथ-साथ ओईएम और एचएएल के बीच अनसुलझे मुद्दों के कारण अनुबंध वार्ता का निष्कर्ष निकाला नहीं जा सका"। इसने सरकार के जवाब से दो कारणों का हवाला दिया: "i) भारत में विमान का उत्पादन करने के लिए मानव-घंटे (मैन आवर्स) की आवश्यकता होगी: एचएएल को भारत में रफ़ाल विमान के निर्माण के लिए फ्रांस की तुलना में 2.7 गुना अधिक मानव-घंटे (मैन आवर्स) की आवश्यकता होगी। ii) विक्रेता के रूप में डसॉल्ट एविएशन को आरएफपी आवश्यकताओं को रद्द करने के कारणों के अनुसार 126 विमान (18 फ्लाई-अवे और 108 विमान भारत में निर्मित) के लिए आवश्यक संविदात्मक दायित्व लेना आवश्यक था। भारत में निर्मित 108 विमानों के लिए संविदात्मक दायित्व और ज़िम्मेदारी से संबंधित मुद्दे हल नहीं किए जा सकते हैं।"

लेकिन इस तर्क को स्वीकार करते हुए दो चीजें अनदेखी की गई हैं।

फ्रांस की मीडिया ने मार्च 2014 में ट्रैपियर को उद्धृत करते हुए लिखा कि डसॉल्ट एविएशन का एचएएल के साथ "विमान के जनरल कन्फिग्रेशन, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और दोनों भागीदारों और उनके उप-ठेकेदारों के बीच विस्तृत वर्कशेयर पर समझौता हो गया। इसके अलावा यह वारंटी संभालने वाले तंत्र को भी स्पष्ट करता है।"

जब सरकार ने मार्च 2015 में कहा कि उसने आरएफपी को रद्द करने की प्रक्रिया शुरू की है तो ट्रैपियर ने फ्रांस के मीडिया को बताया: "यह पहला मौका है जब डसॉल्ट को-कॉन्ट्रैक्टर होने के लिए सहमत हुई है। डसॉल्ट और एचएएल दोनों ही भारत में बने रफ़ाल विमान के उस हिस्से की ज़िम्मेदारी लेंगे जिसे वे बनाएंगे।"

एचएएल के पूर्व चेयरमैन सुवर्ण राजू ने कहा था: "आपको लाइफ-साइकिल कॉस्ट (किफायत) देखना है न कि प्रति विमान की लागत को। लाइफ साइकिल कॉस्ट निश्चित रूप से सस्ती हो गई होगी। और अंततः यह आत्मनिर्भरता को लेकर है। डसॉल्ट और एचएएल ने आपसी कार्य-साझा अनुबंध पर हस्ताक्षर किया और इसे सरकार को सौंप दिया। आप सरकार से फाइल सार्वजनिक करने के लिए क्यों नहीं कहते हैं? ये फाइल आपको सबकुछ बता देगी। अगर मैं विमान बनाता हूं तो मैं उनकी गारंटी दूंगा।"

हालांकि याचिकाकर्ताओं ने इस बात की ओर इशारा किया कि अदालत ने इसे ज्ञात कारणों से न तो इन तर्कों पर विचार किया और न ही सरकार से उन फाइलों को जमा करने के लिए कहा जिसके जांच के लिए सुवर्ण राजू ने उल्लेख किया था।

विधि तथा न्याय मंत्रालय (एमओएलजे) के साथ रक्षा मंत्रालय (एमओडी) की बातचीत आईजीए में भारतीय हितों को सुरक्षित करने में मोदी सरकार की तरफ से किए गए चिंताजनक समझौते की ओर इशारा करता है साथ ही साथ अनुबंध वार्ता समिति (सीएनसी) तथा इंडियन नेगोशिएटिंग टीम (आईएनटी) के कामकाज में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल के हस्तक्षेप को स्पष्ट करता है। इसे यहां विस्तार से बताया गया है।

यह प्रकाशित लेखों और सत्यापित सरकारी दस्तावेजों से स्पष्ट था कि प्रधानमंत्री और चार कैबिनेट मंत्री वाले रक्षा मामले की मंत्रिमंडल समिति ने 5.2 बिलियन से 8.2 बिलियन यूरो तक क़ीमत बढ़ाने का फैसला लिया। दुर्भाग्यवश जब तक इन दस्तावेजों की पुष्टि हुई अदालत ने इस तर्क को सुना और अपना फैसला सुरक्षित कर दिया। और वार्ता टीम के तीन वरिष्ठ-सदस्यों के असहमति वाले बयान पर भी अदालत में विचार नहीं किया गया। मोदी की क़ीमत पर हस्ताक्षर करने से इंकार करने पर उनके बलपूर्वक हस्तांतरण पर भी ध्यान नहीं दिया गया।

आदेश में कहा गया है: "हालांकि मूल्य निर्धारण का विवरण नियंत्रक तथा महालेखा परीक्षक (सीएजी) के साथ साझा किया गया है, और सीएजी की रिपोर्ट की जांच लोक लेखा समिति (पीएसी) द्वारा की गई है। रिपोर्ट का केवल एक संशोधित हिस्सा संसद के समक्ष रखा गया था और वही अब सार्वजनिक है।"

कुछ पीएसी के सदस्यों ने पुष्टि की है कि सीएजी ऑडिट रिपोर्ट उनके साथ साझा नहीं की गई थी और जांच में शामिल नहीं किया गया। इससे पता चलता है कि दिन की सरकार ने देश की सर्वोच्च न्यायालय में सच्चाई का खुलासा नहीं किया और अदालत ने निर्णय लिखते समय उसकी बातों पर भरोसा किया। इससे पता चलता है कि यह निर्णय कितना त्रुटिपूर्ण है।

लेकिन भारतीय ऑफसेट पार्टनर (आईओपी) की पसंद के मामले में अदालत ने टिप्पणी करते हुए पूर्व फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रैंकोइस होलैंड के खुलासे को साधारण तरीके से लिया, "प्रेस विज्ञप्ति से पता चलता है कि वर्ष 2012 से शुरू हुए मूल (पैरेंट) रिलायंस कंपनी और डसॉल्ट के बीच संभवतः कोई प्रक्रिया थी।" ये मूल (पैरेंट) रिलायंस कंपनी कौन है, जब अदालत ने खुद ही पाया कि डसॉल्ट ने 2012 में मुकेश अंबानी के रिलायंस समूह के साथ अनुबंध पर हस्ताक्षर किया था, और यह कोई दूसरी कंपनी है? अगर हम सरकार के तर्क से सहमत होते हैं कि डसॉल्ट के आईओपी पार्टनर को लेकर उसने कुछ भी नहीं कहा, तो सरकार ने 2015 में अनिल अंबानी के रिलायंस समूह के साथ डसॉल्ट की चर्चा शुरू होने के बाद मौजूदा ऑफसेट पॉलिसी की खंड आठ में संशोधन क्यों किया?

इसके आखिर में इस निर्णय को समझाने के लिए व्याख्या की जा सकती है:

1) तथ्यों पर आधारित न्यूज़ रिपोर्ट लोगों की धारणाएं हैं।

2) यदि विदेश का कोई पूर्व प्रमुख जिनके साथ जीओआई ने रक्षा ख़रीद सौदे पर बातचीत की उस विशेष सौदे में भ्रष्टाचार के किसी भी पहलू की ओर इशारा करते हैं तो इसे उनके अनुभव के रूप में लिया जाना चाहिए।

3) यदि भविष्य में इस देश के कोई भी प्रधानमंत्री प्रक्रियाओं का उल्लंघन करके कोई भी रक्षा सौदा करते हैं तो उनसे सवाल नहीं किया जाएगा।

4) करदाताओं को रक्षा सौदों के वाणिज्यिक मूल्य को जानने का अधिकार नहीं है क्योंकि यह राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित कर सकता है।

5) रक्षा अनुबंधों के वित्तीय विवरणों का खुलासा न करने के लिए भविष्य की सरकारें अन्य देशों के साथ "गुप्त समझौते" पर हस्ताक्षर कर सकती हैं।

6) रक्षा सौदों में प्रधानमंत्री और उनके कैबिनेट वे जो क़ीमत चाहते हैं उस पर फैसला कर सकते हैं।

7) डीपीपी काग़ज़ात के पुलिंदा के अलावा कुछ भी नहीं है।

(रवि नायर ने रफ़ाल घोटाले को उजागर किया था और इस विषय पर वे एक पुस्तक भी लिख रहे हैं। इस लेख में व्यक्त उनके विचार व्यक्तिगत हैं।)

Rafale deal
rafale scam
Narendra modi
Dassault-Reliance deal
reliance defence

Related Stories

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"

भाजपा के लिए सिर्फ़ वोट बैंक है मुसलमान?... संसद भेजने से करती है परहेज़

हिमाचल में हाती समूह को आदिवासी समूह घोषित करने की तैयारी, क्या हैं इसके नुक़सान? 


बाकी खबरें

  • sedition
    भाषा
    सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह मामलों की कार्यवाही पर लगाई रोक, नई FIR दर्ज नहीं करने का आदेश
    11 May 2022
    पीठ ने कहा कि राजद्रोह के आरोप से संबंधित सभी लंबित मामले, अपील और कार्यवाही को स्थगित रखा जाना चाहिए। अदालतों द्वारा आरोपियों को दी गई राहत जारी रहेगी। उसने आगे कहा कि प्रावधान की वैधता को चुनौती…
  • बिहार मिड-डे-मीलः सरकार का सुधार केवल काग़ज़ों पर, हक़ से महरूम ग़रीब बच्चे
    एम.ओबैद
    बिहार मिड-डे-मीलः सरकार का सुधार केवल काग़ज़ों पर, हक़ से महरूम ग़रीब बच्चे
    11 May 2022
    "ख़ासकर बिहार में बड़ी संख्या में वैसे बच्चे जाते हैं जिनके घरों में खाना उपलब्ध नहीं होता है। उनके लिए कम से कम एक वक्त के खाने का स्कूल ही आसरा है। लेकिन उन्हें ये भी न मिलना बिहार सरकार की विफलता…
  • मार्को फ़र्नांडीज़
    लैटिन अमेरिका को क्यों एक नई विश्व व्यवस्था की ज़रूरत है?
    11 May 2022
    दुनिया यूक्रेन में युद्ध का अंत देखना चाहती है। हालाँकि, नाटो देश यूक्रेन को हथियारों की खेप बढ़ाकर युद्ध को लम्बा खींचना चाहते हैं और इस घोषणा के साथ कि वे "रूस को कमजोर" बनाना चाहते हैं। यूक्रेन
  • assad
    एम. के. भद्रकुमार
    असद ने फिर सीरिया के ईरान से रिश्तों की नई शुरुआत की
    11 May 2022
    राष्ट्रपति बशर अल-असद का यह तेहरान दौरा इस बात का संकेत है कि ईरान, सीरिया की भविष्य की रणनीति का मुख्य आधार बना हुआ है।
  • रवि शंकर दुबे
    इप्टा की सांस्कृतिक यात्रा यूपी में: कबीर और भारतेंदु से लेकर बिस्मिल्लाह तक के आंगन से इकट्ठा की मिट्टी
    11 May 2022
    इप्टा की ढाई आखर प्रेम की सांस्कृतिक यात्रा उत्तर प्रदेश पहुंच चुकी है। प्रदेश के अलग-अलग शहरों में गीतों, नाटकों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का मंचन किया जा रहा है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License