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AUKUS पर हंगामा कोई शिक्षाप्रद नज़ारा नहीं है
ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका [AUKUS] के बीच हुए नए सुरक्षा समझौते को लेकर राजनयिक टकराव अभी शुरू होने वाला है।
एम. के. भद्रकुमार
21 Sep 2021
Translated by महेश कुमार
French President Emmanuel Macron (L) and US President Joe Biden
फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन (बाएं) और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, कॉर्नवाल, यूके, 12 जून, 2021 मेंको हुई जी-7 की बैठक के दौरान कुछ हल्के पलों का आनंद लेते हुए नज़र आ रहे हैं

ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका [AUKUS] के बीच हुए नए सुरक्षा समझौते को लेकर राजनयिक टकराव अभी शुरू होने वाला है। मलबा साफ होने में समय लगेगा। देखना यह है कि क्या इससे कुछ स्थायी नुकसान हो सकता है?

जो अब सामने उभर कर आ रहा है उसके मुताबिक न केवल फ्रांस को एयूकेयूएस सुरक्षा समझौते में शामिल करने का कोई प्रयास नहीं किया गया, बल्कि पुराने एंग्लो गहठजोड़ ने  फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन को अंधेरे में रखने की साजिश रची भी थी। द संडे टेलीग्राफ ने 19 सितंबर की अपनी प्रकाशित रिपोर्ट में बताया है कि जून में कॉर्नवाल में जी-7 शिखर सम्मेलन दौरान एयूकेयूएस सौदा तय हो गया था, लेकिन मैक्रोन जो बैठक में उपस्थित थे, इस बात से बिलकुल बेखबर थे कि सभी किस्म की मिलनसारी के बीच उनकी पीठ के पीछे क्या हो रहा था।

मैक्रोन खेल हार गए हैं। द गार्जियन ने पहले बताया था कि पेरिस की जानकारी के  बिना, अमेरिका में महीनों पहले सौदे पर गुप्त चर्चा चल रही थी। दुनिया के कैमरों ने फ्रांसीसियों की मूर्खता, रोष और उनकी गहरी भावनाओं को क़ैद कर लिया है।

विदेश मंत्री जीन-यवेस ले ड्रियन ने इसे "पीठ में छुरा" घोंपने के रूप में वर्णित किया है जो "सहयोगियों और भागीदारों के बीच अस्वीकार्य व्यवहार" कहलाएगा। और अपने सहयोगियों के बीच लगभग अभूतपूर्व कदम उठाते हुए मैक्रोन ने वाशिंगटन और कैनबरा में फ्रांसीसी राजदूतों को वापस बुलाने का आदेश दे दिया है।

जीन-यवेस ले ड्रियन ने कल फ्रांसीसी टीवी पर कहा, "वहाँ झूठ बोला गया हैं, दोगलापन दिखाया गया है, और इसके चलते आपसी विश्वास टूटा है। यह अवमानना का मामला है। इसलिए हमारे बीच कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है। यानी संकट है। हम राजदूतों को वापस बुला रहे हैं या राजदूतों को समझने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन अपने पूर्व साथी देशों को हम यह दिखाने की भी कोशिस कर रहे हैं कि वाकई हमारे बीच काफी असंतोष है। वाकई, हमारे बीच संकट काफी गंभीर है।"

फ्रांस-ऑस्ट्रेलियाई संबंधों पर गंभीर परिणाम पड़ेंगे। फ्रांस (ब्रिटेन के विपरीत) एक प्रशांत शक्ति भी है, और कैनबरा के निकट महत्वपूर्ण पूर्वी पड़ोसी न्यू कैलेडोनिया का फ्रांसीसी द्वीपसमूह भी है।

यूरोपीयन यूनियन के मुक्त व्यापार समझौते को सुरक्षित बनाए रखने के लिए ऑस्ट्रेलिया को फ्रांस की जरूरत है। एक ऑस्ट्रेलिया-यूरोपीयन यूनियन एफटीए, जो अब अधर में लटका है, जिसके ज़रीए लगभग 450 मिलियन ऑस्ट्रेलियाई लोगों के निर्यातकों के लिए एक बाजार खोलने की क्षमता है, जिसका सकल घरेलू उत्पाद 15 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक का है उस पर अब काले साए मंडरा रहे हैं।

ब्रसेल्स में अधिकारियों ने सीएनएन को बताया कि एयूकेयूएस की घोषणा का समय कठोर था, क्योंकि विदेशी मामलों पर यूरोपीयन यूनियन के उच्च प्रतिनिधि गुरुवार को इंडो-पैसिफिक के मामले में अपनी तैयार रणनीति को पेश करने के लिए तैयार थे, इस धारणा को व्यक्त करते हुए कि यूरोपीयन यूनयन को भू-राजनीतिक खिलाड़ी के रूप में गंभीरता से नहीं लिया जाता है। 

यूरोपीयन यूनियन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने सीएनएन को सावधानी से बताया कि ये "अंग्रेज़ी बोलने वाले देश" ही थे जो चीन के खिलाफ गठबंधन बनाने के मामले में "बहुत जुझारू" थे,  और ये वही राष्ट्र थे जिन्होंने अफ़गानिस्तान और इराक़ पर आक्रमण करने का बीड़ा उठाया था - "और हम सभी जानते हैं उसके क्या परिणाम निकले हैं।"

सीएनएन के मुताबिक: "चीन को संभालने की यूरोपीयन यूनियन की रणनीति प्रमुख रूप से  अमेरिका से अलग है: यूरोपीयन यूनियन सक्रिय रूप से चीन के साथ सहयोग करना चाहता है, और वह उसे एक आर्थिक और रणनीतिक भागीदार के रूप में देखता है। ब्रुसेल्स के अधिकारियों का मानना ​​है कि चीन के साथ व्यापार और काम करके, वे न केवल अपने मानवाधिकारों और ऊर्जा नीतियों में सुधार के लिए बीजिंग पर निर्भर हो सकते हैं, बल्कि बीजिंग और वाशिंगटन के बीच पुल के रूप में काम करके चीन के साथ अच्छे संबंधों का भी इस्तेमाल कर सकते हैं, इस प्रकार यूरोपीयन यूनियन एक स्पष्ट और महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक भूमिका निभाना चाहता है।"

जब इंडो-पैसिफिक की बात आती है तो फ्रांस और जर्मनी को नहीं खोया जा सकता है कि, जबकि वाशिंगटन यूरोपीयन यूनियन के पास जाने से पहले यूके और ऑस्ट्रेलिया पर अधिक राजनीतिक पूंजी खर्च करना चाहता है ताकि सुरक्षा और रक्षा संबंधों में निवेश किया जा सके। 

अफ़गानिस्तान में घट रही घटनाओं पर आते हुए, जहां राष्ट्रपति बाइडेन ने अपने सैनिकों को वापस बुलाने के लिए अप्रैल के अपने फैसले पर यूरोपीयन सहयोगियों से भी परामर्श नहीं किया था, अब एयूकेयूएस की घोषणा केवल फ्रांस के दृष्टिकोण को ही मजबूत कर सकती है कि यूरोपीयन यूनियन को हिंद-प्रशांत में अपने हितों की रक्षा करने की क्षमता की जरूरत है।

समान रूप से, एयूकेयूएस घोषणा इस बात पर प्रकाश डालती है कि क्वाड के भीतर ऑस्ट्रेलिया के प्रति अमेरिका की स्थिति जापान और भारत की तुलना में बहुत अलग है।

वैसे वाशिंगटन में 15 सितंबर को मीडिया को जानकारी देने वाले वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी से जब पूछा गया कि क्या भविष्य में अमेरिका के लिए इस तरह के सहयोग को अन्य देशों तक पहुंचाने की गुंजाइश है। उसने निम्न जवाब दिया:

"मैं यहां इस पर ज़ोर नहीं देना चाहता हूं: हम इसे ऑस्ट्रेलिया, ग्रेट ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच एक बहुत ही दुर्लभ जुड़ाव के रूप में देखते हैं। हमने ऐसा पहले केवल एक ही बार किया है… ऐसा लगभग 70 साल पहले ग्रेट ब्रिटेन के साथ किया गया था… यह तकनीक बेहद संवेदनशील है। यह, स्पष्ट रूप से, कई मामलों में हमारी नीति का अपवाद है। मुझे नहीं लगता कि यह आगे चलकर अन्य परिस्थितियों में किया जाएगा। हम इसे एकबारगी के रूप में देखते हैं।"

बेशक, वाशिंगटन की नज़र में न तो जापान और न ही भारत की ऐसी कोई सम्मोहक भू-राजनीतिक प्रासंगिकता है, जो अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति का केंद्र है - जिसमें हिंद महासागर इसके पश्चिम में और प्रशांत महासागर इसके पूर्व में है। इस प्रकार, यह ऑस्ट्रेलिया को हिंद महासागर के साथ-साथ प्रशांत महासागर में गश्त लगाने के लिए अत्याधुनिक तकनीक के साथ परमाणु-संचालित पनडुब्बियों के बेड़े से लैस कर रहा है।

यद्यपि वाशिंगटन और दिल्ली के समान हित हो सकते हैं, लेकिन उनके बीच महत्वपूर्ण अंतर भी हैं। भारत पूरी तरह से ऑस्ट्रेलिया की तरह अमेरिकी पक्ष की ओर रुख नहीं करेगा। वाशिंगटन और नई दिल्ली की बीच लंबे समय के लिए अलग-अलग राजनीतिक जरूरतें हैं। फिर भारत की भी अपनी महत्वाकांक्षाएं होंगी।

निःसंदेह, अमेरिका अपनी इंडो-पैसिफिक रणनीति के जरिए एक अधिक ठोस और व्यापक नींव बनाने का लक्ष्य रखता है, जिसमें एयूकेयूएस और क्वाड एक दूसरे के पूरक होंगे। हालांकि, क्वाड फ्रेमवर्क के भीतर, सुपर संवेदनशील मुख्य प्रौद्योगिकियों को साझा करने के मामले में अमेरिका की इच्छा जापान और भारत की तुलना में ऑस्ट्रेलिया के प्रति "अधिक समान" है। जापान और भारत को "मनोवैज्ञानिक प्रहार" को आत्मसात करने की जरूरत है।

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अपने फ्रांसीसी समकक्ष को फोन किया है। जयशंकर ने बाद में ट्वीट किया, "मेरे दोस्त FM @JY_LeDrian के साथ इंडो-पैसिफिक और अफ़गानिस्तान में हाल के घटनाक्रम पर चर्चा की हुई है। हम दोनों न्यूयॉर्क में होने वाली बैठक के लिए काफी तत्पर हैं।"

ऐसा लगता है कि पनडुब्बी परियोजना में ब्रिटिश औद्योगिक पक्ष ने एयूकेयूएस साझेदारी को निर्धारित किया है। मजे की बात यह है कि, डोमिनिक रब्ब, जिन्होंने जी-7 शिखर सम्मेलन के दौरान ब्रिटिश विदेश सचिव के रूप में एयूकेयूएस को चीन और फ्रांस को परेशान करने के बारे में आपत्ति जताई थी, उसके बाद उन्हे तुरंत विदेश कार्यालय से हटा दिया गया था और न्याय सचिव नियुक्त कर दिया गया था!

प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने 15 सितंबर को एयूकेयूएस के संबंध में अपनी टिप्पणी में घरेलू दर्शकों के लाभ के लिए दो बार प्रकाश डाला कि इसमें देश के व्यावसायिक हित शामिल हैं। जैसा कि उन्होंने कहा, "एयूकेयूएस के अन्य फायदे ये होंगे कि यह यूनाइटेड किंगडम में सैकड़ों अत्यधिक कुशल नौकरियां पैदा करेगा, जिसमें स्कॉटलैंड, इंग्लैंड के उत्तर और मिडलैंड्स शामिल हैं, जो इस सरकार के पूरे देश में राजनीतिक उद्देश्य को आगे बढ़ाते हैं।"

"हमारे पास विज्ञान और प्रौद्योगिकी के मामले में ब्रिटेन को मजबूत करने का अवसर होगा, और साथ ही हमारी राष्ट्रीय विशेषज्ञता को मजबूत करने का एक नया अवसर भी होगा ... अब, यूके अपने सहयोगियों के साथ इस परियोजना को शुरू करेगा, जो दुनिया को सुरक्षित बनाएगा और  यूनाइटेड किंगडम में नौकरियां पैदा करेगा।"

यूके को परमाणु प्रणोदन प्रणाली के तत्वों के निर्माण के लिए प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण के मामले में वाशिंगटन की स्वीकृति की जरूरत है और इस तरह यह संभवतः एक त्रिगुट गठबंधन बन जाता है।

हालांकि, इन बेहद महंगी और शक्तिशाली रक्षा प्रणाली को संचालित करने की ऑस्ट्रेलिया की क्षमता पर हमेशा यूएस वीटो के अधीन होगी, जिसका अर्थ है कि पूरा कार्यक्रम अनिवार्य रूप से अमेरिका के साथ मिलकर चलाया जाएगा। निःसंदेह, ऑस्ट्रेलिया अपनी संप्रभुता के बड़े स्तर का त्याग कर रहा है।

दूसरे शब्दों में कहें तो एयूकेयूएस अमेरिकी नीतियों पर ऑस्ट्रेलिया का एक बड़ा दांव है। तब क्या होगा अगर तीन साल के समय में, डोनाल्ड ट्रम्प जैसा कोई व्यक्ति व्हाइट हाउस में प्रवेश करता है? यह तो एक बात है।

उससे भी अधिक महत्वपूर्ण जो बात यह है कि, जैसा कि अनुभवी ऑस्ट्रेलियाई लेखक और चीन पर विद्वान प्रो. ह्यूग व्हाइट ने उल्लेख किया है कि, एयूकेयूएस घोषणा या गठजोड़ "जोखिमों से भरा है," क्योंकि यह घोषणा "ऑस्ट्रेलिया जिस तरह से इस क्षेत्र को देखता है वह उसके दृष्टिकोण को बदल देता है।"

उन्होंने कहा, "अमेरिका और चीन के बीच बढ़ती प्रतिद्वंद्विता में, हम संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ हैं और हम शर्त लगा रहे हैं कि वह इसे जीतने जा रहा है। लेकिन तथ्य यह है कि जब हम 10 या 20 साल आगे की तरफ देखते हैं, तो मुझे नहीं लगता कि हम यह मान सकते हैं कि संयुक्त राज्य अमेरिका चीन के खिलाफ प्रभावी ढंग से सफल होगा।"

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

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