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साझा हितों की हिफाजत में रूस और चीन एकजुट, ईरान भी हुआ शामिल
तेहरान टाइम्स ने खबर दी है कि मास्को ने तेहरान को सूचित किया है कि शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ), ईरान को एक पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल करने पर सहमत हो गया है। 
एम. के. भद्रकुमार
18 Aug 2021
साझा हितों की हिफाजत में रूस और चीन एकजुट, ईरान भी हुआ शामिल
चीनी सेना पीएलए की वेस्टर्न थिएटर कमांड से 10,000 सैनिकों और रूस की ईस्टर्न मिलिट्री ड्रिस्टिक का जापाड/इंटरेक्शन अभ्यास 13 अगस्त 2021 को शिंजियांग के पूर्व निंग्ज़िया क्षेत्र में संपन्न हो गया।

तेहरान टाइम्स ने खबर दी है कि मास्को ने तेहरान को सूचित किया है कि शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ), ईरान को एक पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल करने पर सहमत हो गया है।
 
बैठक के बाद, रूस की सुरक्षा परिषद के सचिव निकोलाई पेत्रुशेविक ने ईरान के अपने समकक्ष एडमिरल अली शमखानी को फोन पर संगठन में बनी इस रजामंदी के बारे में जानकारी दी। इसके बाद शमखानी ने ट्वीट करके बताया कि उन्होंने निकोलाई के साथ अफगानिस्तान, सीरिया और फारस की खाड़ी के मसलों पर भी बातचीत की है। 
 
एससीओ आखिरकार परमाणु वार्ताओं और अमेरिकी प्रतिबंधों से ईरान को अलग कर रहा है। गौरतलब है कि पेत्रुशेविक का शमखानी को सीधे फोन मिला देना मास्को एवं तेहरान के बीच कायम हुए पहले उच्चस्तरीय रणनीतिक संवादों को जाहिर करता है। यह ईरान में इब्राहिम रईसी की हुकूमत कायम होने के बाद हुआ है। निकोलाई क्रेमलिन पोलित ‘ब्यूरो’ में एक बड़ी शख्सियत हैं। 
 
एससीओ की रजामंदी, जो कि निश्चित रूप से चीनी-रूसी अभियान की देन है, के बाद से ईरान को संगठन में शामिल करने की मुहिम तेज हो गई है। हालांकि, ईरान के साथ परमाणु समझौते पर आगे बढ़ने के मामले में कैपिटल हिल एवं दूसरे अन्य हित समूहों के जबर्दस्त ‘द्विपक्षीय’ विरोध को देखते हुए बाइडेन प्रशासन की राजनीतिक इच्छाशक्ति के प्रति कुछ अनिश्चितता दिखाई दे रही है। 
 
सीनियर डेमोक्रेट सीनेटर बॉब मेनेंडेज, सीनेट के वैदेशिक संबंधों की कमेटी के अध्यक्ष हैं, उनका रुख भी इस मामले में सबसे कठोर है। मेनेंडेज राष्ट्रपति बाइडेन के नजदीकी माने जाते हैं। 
 
अमेरिकी स्तंभकार और पूर्व संपादक डेनियल लारिसन ने एक प्रतिष्ठित थिंकटैंक के जर्नल रिस्पांसिबल स्टेटक्राफ्ट में पिछले हफ्ते एक गहन विश्लेषणात्मक लेख लिखा है। इसमें उन्होंने कहा है कि बाइडेन प्रशासन के लिए सत्ता में आते ही पहला काम ईरान से परमाणु समझौता (जेसीपीओए) होना चाहिए था, लेकिन उन्होंने पहले ही पर्याप्त समय ले लिया है, ट्रंप युग में उसकी जगह ईरान पर “अधिकतम दबाव” बनाने के लिए प्रतिबंध लादे जाने में लगा वक्त भी शामिल है। अब अनेक परेशान कर देने वाले संकेतों में से एक संकेत यह है कि वियना में होने वाली बातचीत में समझौते को उसकी तार्किक परिणति तक पहुंचाने के लिए बाइडेन प्रशासन के पास राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव दिखाई दे रहा है।
 
लारिसन ने विस्तार से बताया है कि कैसे बाइडेन की टीम ने जेसीपीओए की वार्ताओं में असंगत शर्तें जोड़ दीं हैं जबकि वे जानते थे कि इससे डील ब्रेक भी हो सकती है। यह भी कहा जाता है कि बाइडेन की टीम इस विचार का आग्रह कर रही थी कि “ईरान घरेलू परमाणु संवर्द्धन का अपना कार्यक्रम छोड़ दे और क्षेत्रीय परमाणु ईंधन बैंक में भागीदारी करे।” लारिसन ने आगे कहा, “बाइडेन और उनके मंत्री ब्लिंकन का यह विश्वास है कि वे ईरान पर दबाव डाल कर उसे पहले से भी ज्यादा अपने पक्ष में झुका सकते हैं। यह इस बात का इशारा है कि सीनेट के वैदेशिक संबंधों की कमेटी के आक्रामक चेयरमैन मेनेंडेज का व्हाइट हाउस पर कितना प्रभाव है।”

इजराइल मीडिया का अनुमान है कि अगर वियना में बातचीत बिगड़ती है तो ईरान से सैन्य स्तर पर निबटने के लिए अमेरिका और इजराइल के पास एक प्लान B भी होगा। दि टाइम्स ऑफ इजराइल ने इशारा किया है कि प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेटे के अगले महीने प्रस्तावित वाशिंगटन दौरे के क्रम में, “ईरान को सैन्य स्तर की परमाणु क्षमता हासिल करने से रोकने के अंतिम उपाय के तौर पर, इजराइल उसके खिलाफ सैन्य बल के इस्तेमाल के विकल्प बनाए रखने की मांग करेगा। लेकिन इजराइल विश्वास करता है कि एक अमेरिकी विकल्प भी होना चाहिए और उसे उम्मीद है कि वह एक वास्तविक मार्ग के रूप में सैन्य विकल्प बनाए रखने के लिए बाइडेन और उनकी टीम को राजी कर सकता है।” 
 
हालांकि, एक ‘बड़ी तस्वीर’ भी है- ईरान की भूराजनीति। निकोलाई के एक फोन कॉल ने उस अहम क्षेत्रों का स्पर्श कर दिया है, जहां रूस और ईरान एक साथ मिल कर काम कर रहे हैं। वे प्रमुख क्षेत्र हैं-सीरिया, अफगानिस्तान एवं फारस की खाड़ी। अगर रईसी की प्रस्तावित राष्ट्रीय सुरक्षा टीम का कोई संकेत है तो ईरान की विदेश नीति का परिपथ रूस के साथ रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने की दिशा में बढ़ सकता है।
विदेश मंत्री के पद के लिए संभावित प्रत्याशी हुसैन आमिर-अब्दुल्लाहियान ने एक से अधिक बार खुले तौर पर कहा है कि पूरब के देशों के साथ बेहतर संबंध ईरान की प्राथमिकता होनी चाहिए, जैसा कि निम्नलिखित टिप्पणियां फरवरी की तरह ही हाल में दोहराई गई हैं :
 
-इस्लामिक क्रांति के एक नेता के रूप में (ईरान), हमें हमारी विदेश नीति में, अपने देश के राष्ट्रीय हितों की हिफाजत के लिहाज से, पश्चिम की बजाए पूरब के देशों तथा दूर-दराज की जगह पड़ोसी देशों को तरजीह देनी चाहिए। इसके साथ, हमें ऐसे देशों के साथ भी अपने संबंध बनाने चाहिए, जिनसे हमारे हित मिलते-जुलते हों, बजाए उनके, जिनके साथ हमारे हित टकराते रहते हैं।” 
 
-यह 21वीं सदी एशिया की सदी है। इस्लामिक रिपब्लिक ने हमेशा ही एशिया पर फोकस किया है। एशिया के ऐसे अनेक महत्त्वपूर्ण देशों जैसे रूस, चीन, भारत, मलेशिया, इंडोनेशिया और उपमहाद्वीपीय देश हैं, जिनकी संभावनाओं एवं क्षमताओं का अभी भरपूर दोहन नहीं हुआ है। हम एशिया के साझा हितों के मद्देनजर उन देशों की क्षमताओं का लाभ उठा सकते हैं।”
 
-व्हाइट हाउस में चाहे जो भी निर्णय किया जाए, इस्लामिक रिपब्लिक का मास्को एवं पेइचिंग तथा एशिया के प्रति दीर्घकालीन दृष्टिकोण के साथ सामरिक संबंधों के संरक्षण, सुदृढीकरण और विकास के प्रति उसकी धारणा किसी भी रूप में नहीं बदलेगी।”
 
ऊपरोक्त वक्तव्य की अमेरिका और रूस के गिरते संबंधों से तुलना करने की जरूरत है।  मास्को में रूस और अमेरिका के बीच अच्छे संबंध होने की जो भी उम्मीद रही है, अब वह कुम्हलाने लगी है। बाइडेन के पास अमेरिका में रूस के प्रति दुश्मनी की जड़ों को मिटाने के लिए जरूरी राजनीतिक पूंजी नहीं है। चीन भी, अमेरिकी नीतियों की इन दरारों को भांप चुका है। हालांकि बाइडेन प्रशासन की दिलचस्पी चीन के साथ कारोबार एवं निवेश में है ताकि उससे अमेरिका की आर्थिक संवृद्धि को तेज किया जा सके और उसकी इस मंशा पर किसी को संदेह भी नहीं है।
 
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने  बृहस्पतिवार को रूस की सुरक्षा परिषद, जो रक्षा और सुरक्षा मामले में अंतरराष्ट्रीय सहयोग करती है, उसकी बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि “इस क्षेत्र में अनेक मसलों को प्रभावी रूप से अकेले हल कर देना किसी एक देश के लिए असंभव है।  हमें अपने सहयोगियों के साथ मिलकर साझा प्रयास करना चाहिए ताकि हमारी अपनी सुरक्षा भी सुनिश्चित रहे।” निश्चित रूप से यह कहते समय पुतिन के जेहन में चीन और ईरान का ख्याल रहा होगा। वास्तव में, रूस और चीन अपनी घनिष्ठ सामरिक साझेदारी बढ़ाने के लिए गुणा-भाग कर रहे हैं। 
 
चीन एवं रूस का यह विशाल सैन्य अभ्यास पिछले शुक्रवार को सम्पन्न हुआ है। यह दोनों देशों के बीच पहला अभियानात्मक और रणनीतिक उपक्रम था। इसने अमेरिका के खिलाफ साझा ताकत बनाने की एक गुंजाइश पैदा की है। पहली बार, दोनों सेनाओं ने नाटो की तर्ज पर साझा नियंत्रण स्थापित किया और नियंत्रण प्रणाली का उपयोग किया। चीनी और रूसी सेनाएं परस्पर समेकित थीं और उन्होंने संयुक्त अभियानों में एक दूसरे के उपकरणों का इस्तेमाल किया था। इसीलिए चीनी रक्षा मंत्री वेई फेंघे ने इस अभ्यास को एक ‘महान महत्त्व’ का आयोजन करार दिया है। 
 
यह निश्चित करने के लिए पेइचिंग रूस की क्षेत्रीय रणनीति के साथ सद्भाव रखेगा, जो ईरान को एक मुख्य साझीदार के रूप में देखता है। इन त्रिगुटों के बीच बना यह समन्वय अफगानिस्तान की स्थिरता को प्रभावित करता है, वह सीरिया में किसी भी गिरावट को रोक सकता है और सबसे बड़ी बात यह है कि अमेरिका को मध्य एशिया में अपनी सैन्य मौजूदगी बनाने की कोशिश को एक झटका दे सकता है।  
 
एक सदस्य के रूप में एससीओ में ईरान का प्रवेश, चीन के लिए बिना शक उसकी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना को क्षेत्रीय स्तर पर गति देगा। तो रूस के लिए, ईरान की यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन (ईएईयू) की सदस्यता महज कुछ दिनों की बात रह गई है।  
 
ईरान के लिए ईएईयू के पूर्ण सदस्य की स्थिति यूरोप और एशिया में राजनीतिक परिदृश्य को मौलिक रूप से बदल सकता है, खासकर दक्षिण काकेशस और पश्चिम एशिया में। ईएईयू के एक सदस्य के रूप में ईरान रूस को उच्च स्तर पर रणनीतिक साझीदारी में मदद करेगा, जो उसकी विदेश नीति के क्रियान्वयन में एक संजीदा तुरुप का पत्ता होगा। स्पष्ट है कि तेहरान पश्चिमी देशों के प्रभावों को समतल करने के लिए रूस के साथ एक मजबूत संबंध का उपयोग करेगा।  

एक तरफ, ईएईयू ईरान को उसके कारोबार और आर्थिक अवसरों को बढ़ाने तथा अमेरिकी प्रतिबंधों से बाहर में मदद करेगी, दूसरी ओर, ईरान विश्वास करता है कि उसके सैन्य और राजनीति अवयव देश के लिए एक गंभीर सुरक्षा कवच प्रदान कर सकते हैं। 
 
मूल रूप से दि लीफ्लेट में प्रकाशित 

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Russia, China Circle the Wagons. Iran is in it.

Russia
China
IRAN
EAEU

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