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भारत
राजनीति
सैन्य कर्मियों का दर्दः देश की सेवा करने के बावजूद नागरिकता जाने का ख़तरा बरक़रार
"जो लोग अपना ख़ून देते हैं वे ही महसूस कर सकते हैं कि ये दर्द क्या होता है।"
तारिक़ अनवर
09 Aug 2018
NRC

हालांकि केंद्र और असम सरकार ने उन लोगों को आश्वासन दिया है जिनका नाम राष्ट्रीय नागरिक पंजीकरण (एनआरसी) मसौदे में शामिल नहीं हो सका है फिर भी लोगों में डर व ख़ौफ़ बना हुआ है। ज्ञात हो कि इस मसौदे को 30 जुलाई को जारी किया गया था। उधर सरकार ने लोगों से कहा है कि चिंता न करें क्योंकि उन्हें अपने दावों और आपत्तियों को दर्ज कराने के मौक़े दिए जाएंगे।

इस मसौदे में क़रीब क़रीब सात पूर्व सैनिकों के नाम शामिल नहीं किए गए हैं। उन्होंने जब सवाल किया है तो उन्हें कहा गया कि नाम के दावे और आपत्ति प्रक्रिया के बाद उनके शामिल कर लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि 30-35 वर्षों तक देश की सेवा करने के बावजूद वे इसी देश की नागरिकता के लिए "भीख मांग रहे हैं"।

एनआरसी के मसौदे में 2.8 करोड़ (2,89,83,677) से अधिक लोगों को शामिल किया गया है। क़रीब 40,70,707 लोगों को अयोग्य होने के चलते इस मसौदे में शामिल नहीं किया गया है। एनआरसी राज्य समन्वयक प्रतीक हजेला ने सर्वोच्च न्यायालय को रिपोर्ट सौंपी जिसमें कहा गया कि 40,70,707 नामों में से37,59,630 नाम को ख़ारिज कर दिया गया है वहीं 2,48,077 नाम को विचार के लिए रखा गया है। ज्ञात हो कि हजेला नागरिकों की पंजीकरण अद्दतन प्रक्रिया की पहली सुनवाई से निगरानी कर रहे हैं।

अज़़मल हक़ (51) जो सेना में 30 साल तक सेवा करने के बाद हरियाणा के हिसार से भारतीय सेना के जूनियर कमीशन अधिकारी के रूप में सेवानिवृत्त हुए। एनसीआर मसौदा में उनकी मां के लीगेसी डेटा जमा करने के बावजूद एनसीआर ड्राफ्ट में उनके नाम को शामिल नहीं किया गया जबकि उनकी मां का नाम 1951के एनआरसी में दर्ज है। जैसा कि उन्होंने दावा किया कि उन्होंने 1966 का चुनावी क्रमांक रिकॉर्ड को भी सौंपा था जिसमें उनके पिता का नाम दर्ज है। इसके अलावा उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने और पिता के बीच के रिश्तों को साबित करने के लिए उन्होंने मतदाता पहचान पत्र, पैन कार्ड और आधार कार्ड की प्रति के अलावा 1942, 1943, 1945, 1957 और 1961 के ज़मीन के दस्तावेज़ जमा किए।

उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने बच्चों के जन्म प्रमाण पत्र भी जमा किए और उनके परिवार के सदस्यों के नाम को शामिल करने के लिए जो भी ज़रूरी था उसे जमा किया। असम के कामरूप ज़िले के कलहिकश गांव से संबंध रखने वाले अज़मल ने न्यूज़क्लिक को बताया कि "एनआरसी मसौदे में मेरी मां, पत्नी, मेरे बड़े भाई,उनकी पत्नी और उनके चार बच्चों और मेरे छोटे भाई की बेटी के नाम को शामिल किया गया। मैं, मेरे दो बच्चे, मेरे छोटे भाई और उसके बाकी बच्चे को इस मसौदा में शामिल नहीं किया। उन्होंने आगे कहा, "यह उन 40 लाख लोगों में शामिल ज़्यादातर लोगों का मामला है जिनके नाम को इस मसौदा में शामिल नहीं किया गया है।"

उन्होंने कहा, "13 सितंबर 1986 को मैं भारतीय सेना में शामिल हुआ था। मैंने जम्मू-कश्मीर और चीन के सीमा जैसे अशांत क्षेत्रों में अपनी सेवा का एक बड़ा हिस्सा गुज़ारा है। लेकिन जब बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और मीडिया हमें 'घुसपैठिया' कहते हैं तो हमारा खून खौल उठता हैं। हमारे जैसे कई जो अभी भी सेवा में हैं उन्हें मसौदा में शामिल नहीं किया गया है। इसका मतलब यह नहीं है कि हम घुसपैठिये या अवैध आप्रवासी हैं। हम घुसपैठिया नहीं हैं लेकिन देश के विश्वसनीय नागरिक हैं जिन्होंने जरूरत पड़ने पर इस मात्र भूमि की हिफ़ाज़त की है।

दावों और आपत्तियों के लिए दिए गए वक़्त के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, "गारंटी क्या है कि हमारे नाम शामिल किए जाएंगे? इस तरह के वादे पहले भी किए गए थे। हमने दस्तावेज़ जमा किए, सत्यापन प्रक्रियाएं शुरू कीं, लेकिन फिर भी हमारे नामों को इस मसौदे से हटा दिया गया। सभी परिवारों की लगभग यही कहानी है। क्या एक भाई भारतीय और बाकी विदेशी हो सकता है?"

नागरिकता का मसौदा जारी होने के बाद सामना कर रहे परेशानियों और पीड़ा के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, "हम जो महसूस कर रहे हैं केवल वही जानते हैं। जो लोग अपना ख़ून देते हैं वे महसूस कर सकते हैं कि यह दर्द क्या है। यह कहना बहुत आसान है कि दावों और आपत्तियों के बाद सब कुछ ठीक रहेगा। लेकिन हम अनिश्चितता को जानते हैं। हम इस परेशानी को महसूस कर सकते हैं। अगर आख़िरी सूची में नाम नहीं आता है तो क्या होगा? "

सनाउल्लाह जो 1 जून, 2017 को भारतीय सेना के इलेक्ट्रॉनिक्स और मैकेनिकल इंजीनियर्स (ईएमई) से 30 साल तक सेवा करने के बाद सेवानिवृत्त हुए हैं। उन्हें26 जनवरी, 2017 को राष्ट्रपति द्वारा मानद कप्तान के गौरव से सम्मानित किया गया था। उन्हें विश्वास था कि उन्हें उनके परिवार के साथ इस मसौदा में शामिल किया जाएगा क्योंकि उन्होंने साल 1966 के अपने पिता के चुनावी क्रमांक रिकॉर्ड जैसे सभी वैध दस्तावेज़ दिए थे। लेकिन उन्हें सदमा तब हुआ जब वह,उनकी पत्नी और उनके तीन बच्चों को एनआरसी ड्राफ्ट सूची में शामिल नहीं किया गया था।

उन्होंने कहा, "मैंने अपने पिता का लीगेसी डेटा जमा किया था, जिनका नाम 1966 के चुनावी क्रमांक रिकॉर्ड में शामिल था, इसके अलावा मैंने ज़मीन के दस्तावेज़ और मतदाता सूची जमा किया जिसमें मेरा नाम दर्ज है। मेरे बड़े भाई और उनके बच्चों के लिए इसी लीगेसी दस्तावेज़ों का इस्तेमाल किया गया था। पहली सूची जिसे 31 दिसंबर, 2017 को सार्वजनिक किया गया था उसमें मेरे बड़े भाई और उनके दो बेटों को शामिल कर लिया गया। एनआरसी अधिकारियों ने मुझे कुछ सवाल जवाब के लिए बुलाया था। मैं वहां गया और सबकुछ स्पष्ट किया, और वे मेरे दस्तावेज़ों से संतुष्ट थे।" उन्होंने कहा, "उस समय मैंने उनसे कहा था कि मुझे बैंगलोर से एक नौकरी की पेशकश है। अगर आपको और स्पष्टीकरण की आवश्यकता है तो मेरा भाई आएगा जिस पर वे सहमत थे।"

उन्होंने न्यूज़़क्लिक को बताया, "जब ड्राफ्ट सूची जारी हुई तो हम पांच- मैं, मेरी पत्नी और मेरे तीन बच्चों- को छोड़कर बाकी भाइयों और बहनों के नाम शामिल कर लिए गए।"

यह पूछे जाने पर कि क्या वह सोचते है कि उन्होंने जो अपने कागज़ात जमा किए थे उनमें कोई कमी (बड़ी या मामूली) रह गई है तो उसने कहा, "नहीं, बिलकुल नहीं। मैंने वही लीगेसी डेटा का इस्तेमाल किया है जो मेरे भाई ने किया था। 1943 के ग्रामीण दस्तावेज़ और ज़मीन के दस्तावेज़ मैंने जमा किया था।"

उन्होंने अपनी पत्नी का नाम शादबानो से बदलकर सलीमा बेगम कर दिया था। उन्होंने अपने सेवा रिकॉर्ड में बदले गए नाम का इस्तेमाल किया, लेकिन सेवा प्रतिबद्धताओं के कारण बदले गए नाम को उनके नाम को चुनावी क्रमांक रिकॉर्ड में अपडेट करने में वक़्त नहीं मिला।

उन्होंने कहा "मैंने इसके पक्ष में प्रासंगिक कागज़ात प्रस्तुत किए। उसका बदला हुआ नाम हर जगह है। मेरे सेवा रिकॉर्ड और पेंशन पेपर में भी बदला हुआ नामशामिल है। लेकिन मैं मतदाताओं की सूची में इसे बदल नहीं पाया क्योंकि मैं अपनी नौकरी के दौरान राज्य के बाहर था। क्या यही कारण था जिससे कि उसका नाम शामिल नहीं किया जाना चाहिए। मैं और मेरे बच्चों को मसौदा सूची में शामिल होना चाहिए।"

दावों और आपत्तियों के लिए दिए गए समय पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा, "अगर कोई परीक्षा में बैठता है और असफल रहता है तो वह निराश हो जाता है। मैंने दो बार कोशिश की लेकिन असफल रहा। इसने हमारे मनोबल को गिरा दिया है।"

भारतीय वायुसेना से सर्जेंट के तौर पर सेवानिवृत्त हुए समसुल हक़ अहमद और उनके परिवार को एनआरसी मसौदे में शामिल नहीं किया गया है। 57 वर्षीय समसुल जिन्होंने 35 साल तक देश की सेवा की और सकून की ज़िंदगी जीने की उम्मीद में अपने जन्म स्थान पर लौट आए। लेकिन क़िस्मत को शायद कुछ और ही मंज़ूर था। दावा और आपत्ति प्रक्रिया शुरू होने के बाद अब उन्हें अपनी नागरिकता साबित करने की चुनौती है।

बारपेटा ज़िले के बलिकुरी एनसी गांव के निवासी समसुल ने कहा कि उन्हें साल 1997 में 'डी-मतदाता' (संदिग्ध मतदाता) के रूप में चिह्नित किया गया था लेकिन उन्हें इसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी। अपनी सेवानिवृत्ति के दो साल बाद साल 2014 में उन्हें इसके बारे में पता चला।

उन्होंने कहा, "मुझे साल 1997 में 'डी-मतदाता' के रूप में घोषित कर दिया गया था लेकिन मुझे कोई नोटिस नहीं भेजा गया था। मैंने फरवरी 2016 में एसपी(सीमा) कार्यालय से संपर्क किया और केस का नंबर मिला। मैं फॉरनर्स ट्रिब्यूनल के पास गया कि वे मेरे ख़िलाफ़ मुझे नोटिस जारी करे ताकि मैं इसे चुनौती दे कर अपनी नागरिकता साबित कर सकूं। नोटिस मिलने के बाद मैंने अपने सभी दस्तावेज़ ट्रिब्यूनल में जमा कर दिए जिसने मुझे 1 जून, 2016 को भारतीय नागरिक घोषित कर दिया।"

उन्होंने कहा, "इस मामले के फैसले में कहा गया कि हम (वह और उनकी पत्नी नूरजहां अहमद) विदेशी नहीं हैं और हम असम के नागरिक हैं।"

उन्होंने कहा कि उन्होंने 1951 का एनआरसी जमा किया था जिसमें उनके पिता का नाम दर्ज था। उन्होंने आगे कहा, "1951 के एनआरसी के अलावा मैंने स्वर्गीय दादा का 1931 के ज़मीन का दस्तावेज़ जमा किया था। मेरे पिता, दादा और मेरे पिता के दादा सभी असम में रहते थे। मैंने अपना पासपोर्ट और दसवीं कक्षा का प्रमाण पत्र भी जमा कर दिया था। मैंने इस साल 28 जून को एनआरसी सेवा केंद्र को ट्रिब्यूनल का आदेश भी जमा कर दिया था। फिर भी मेरे परिवार का नाम उसमें नहीं है।"

वास्तव में उनके परिवार के दूसरे सदस्य को इस सूची में शामिल किया गया है लेकिन उनके अपने परिवार को शामिल नहीं किया गया। उन्होंने कहा, "मेरे तीन भाइयों ने वही लीगेसी डेटा का जमा किया था जिसका इस्तेमाल मैंने किया था। उन सभी को एनआरसी ड्राफ्ट में शामिल कर लिया गया, लेकिन मेरी पत्नी और मेरे दो बच्चों को शामिल नहीं किया गया।"

दावों और आपत्तियों के लिए दिए गए समय के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, "हमें एक बार फिर इधर उधर जाना होगा। 35 वर्षों तक सेना की सेवा करने के बाद, हम नागरिकता के लिए भीख मांग रहे हैं। क्या हम इसी के लायक हैं?"

उन्हें उम्मीद हैं कि उन्हें अंतिम सूची में शामिल किया जाएगा लेकिन अब नागरिकताहीन होने का डर उनके परिवार को पकड़ लिया है। उन्होंने कहा, "यह सरकार की ग़लती है। उसकी लापरवाही किसी के ज़िंदगी को तबाह कर सकती है"।

साल 2009 में भारतीय वायुसेना के सर्जेंट के तौर पर सेवानिवृत्त हुए सादुल्लाह अहमद ने कहा कि उन्होंने सभी ज़रूरी दस्तावेज़ जमा किए हैं। उन्होंने कहा, "मैंने1951 के एनआरसी से लेकर अपने पिता की 1970 मतदाताओं की सूची जमा की थी। इसके अलावा मैंने प्रवेश पत्र और स्कूल प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेज़ जमा किए थे। इसके बावजूद मेरे और मेरे परिवार का नाम ड्राफ्ट सूची से बाहर रखा गया।"

उनकी बड़ी बहन को 1997 में बारपेटा में फॉरनर्स ट्रिब्यूनल ने विदेशी घोषित कर दिया था क्योंकि वह अपने पिता के साथ रिश्ते को साबित करने वाले अपना जन्म, स्कूल और शादी प्रमाण पत्र नहीं दे सकी थी। उन्होंने कहा, "हमारा संबंध एक किसान परिवार से है और वह कभी स्कूल नहीं गई थी। इसलिए वह ज़रूरी दस्तावेज़ों को पेश नहीं कर सकी। हमने डीएनए टेस्ट का प्रस्ताव किया है ताकि यह वैज्ञानिक रूप से साबित हो सके।"

अहमद ने गुवाहाटी उच्च न्यायालय में इस फैसले को चुनौती दी जिसने ट्रिब्यूनल के फैसले को बरक़रार रखा। उसका मामला अब सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है।

दिलचस्प बात यह है कि अहमद के अनुसार उनकी सभी बेटियों को जो कि सुशिक्षित हैं उन्हें ड्राफ्ट सूची में शामिल किया गया है।

अहमद के आठ भाइयों में से चार जिनमें वे भी शामिल हैं वे रक्षा बलों में नौकरी करते हैं। वह कहते है, उन्हें देश के कानून में पूरा भरोसा है और लगता है कि उन्हें न्याय मिलेगा।

इस बीच उच्चतम न्यायालय ने 7 अगस्त को एक राष्ट्रीय दैनिक को दिए हजेला के साक्षात्कार को लेकर स्वतः संज्ञान लिया और उन्हें और रजिस्ट्रार जनरल और सेंसस कमिश्नर (आरजीसीसी) सैलेश को फटकार लगाई साथ ही उन्हें चेतावनी दी कि "भविष्य में सतर्क" रहें।

हजेला ने मीडिया को बताया था कि एनआरसी के मसौदे में छोड़े गए लोगों द्वारा शिकायतों और आपत्तियों पर सुनवाई के दौरान नागरिकता के प्रमाण के रूप में किसी भी वैध दस्तावेज़ को स्वीकार किया जाएगा।

आईएएनएस के मुताबिक़ एक राष्ट्रीय दैनिक को हजेला द्वारा दिए साक्षात्कार पर स्वतः संज्ञान लेते हुए न्यायमूर्ति गोगोई कहा, "इस तरह के बयान देने के लिए आपके पास अधिकार, दायरा और ज़रूरत कहां है? आपका काम मसौदा और आख़िरी एनआरसी तैयार करना है।"

हजेला के कार्यविधि से नाराज़ न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा, "मैं खुद से कह रहा हूं कि मैं आपकी कार्यविधि से चकित था... और यह मत भूलिए कि आप अदालत के अधिकारी हैं।"

हजेला को कहते हुए कि "जो कुछ भी आप कहते हैं, वह हमें दर्शाता है", खंडपीठ ने कहा, "क्या हमें आप दोनों को (आरजीसीसी समेत) अवमानना के लिए जेल भेज देना चाहिए?"

अदालत ने हजेला से कहा कि वह पहले अदालत के अधिकारी थे, और एनआरसी के बारे में मीडिया से बात नहीं करनी चाहिए थी।

खंडपीठ ने कहा "यह आपके साथ-साथ आरजीसीसी की तरफ से सबसे दुर्भाग्यपूर्ण है। आपका काम अंतिम एनआरसी तैयार करना है। आपका काम किसी के लिए बयान देने के लिए प्रेस से बात करना नहीं है।

अदालत ने आरजीसीसी सैलेश को याद दिलाया कि पहले मौक़े पर भी अदालत ने एनआरसी की तैयारी के साथ-साथ उन्हें उनके कार्यविधि को लेकर चेतावनी दी थी।

न्यायमूर्ति गोगोई ने सैलेश से कहा, "और हां आप, हमने आपको इससे पहले चेतावनी दी थी।"

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