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शांति बहाली के लिए रूस-चीन और सऊदी अरब की “मध्यस्तता” के मायने
निश्चित रूप से, सऊदी की मध्यस्थता भारत को अपरिपक्व बनाती है और यह मोदी की विदेश नीति की विरासत का प्रतिबिंब है। इसके अलावा इस मामले का सबसे बड़ा तथ्य यह है कि रूस और चीन दोनों ही भारत-पाकिस्तान के बीच सामान्य हालत होने के पक्षधर हैं।
एम. के. भद्रकुमार
04 Mar 2019
Translated by महेश कुमार
India, Russia and China

सऊदी अरब भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता के लिए बडे़ उत्साह के साथ आगे बढ़ रहा है जिसे वर्तमान में इसके लिए अमेरिका का समर्थन हासिल है। सऊदी के विदेश राज्य मंत्री अदेल अल-जुबैर दिल्ली आ रहे हैं। उन्हें शुक्रवार को इस्लामाबाद का दौरा करना था, लेकिन उन्होंने अपनी योजना को पुनर्निर्धारित किया ताकि वह पहले मोदी के साथ मिल सके और उसके बाद सेना प्रमुख जनरल क़मर बाजवा सहित पाकिस्तानी नेताओं से मिल सकेंगे।

मोदी और बाजवा आदेल के प्रमुख वार्ताकारो में से होंगे। यह सऊदी नाच (waltz)  कितना आगे बढ़ेगा, अभी यह देखा जाना बाकी है। मोदी कैसे स्थिति को संभालते हैं इस पर भी निगाह रखी जाएगी।

निश्चित रूप से, सऊदी की मध्यस्थता भारत को अपरिपक्व बनाती है और यह मोदी की विदेश नीति की विरासत का प्रतिबिंब है। मुद्दा यह है कि मोदी को “नए भारत” के बारे में कोई फर्क नहीं पड़ता है, भू-राजनीतिक वास्तविकता यह है कि भारत का कद उस समय कम हो जाता है जब उसे एक निरंकुश शासक के तहत सऊदी अरब जैसे छोटे देश की ज़रूरत होती है, जो कि इसकी कूटनीति का सबसे महत्वपूर्ण टेम्पलेट में से एक है।

सऊदी अरब का शांतिदूत के रूप में कोई रिकॉर्ड नहीं है। इसके विपरीत, यह आतंकवादी समूहों के रहनुमा के रूप में दुनिया भर में एक कुख्यात के रुप में जाना जाता है।

इस बीच, पाकिस्तान के साथ अपने तनाव को कम करने के लिए सउदी के लिए भारत को नजरअंदाज करने की जरूरत नहीं है। संकेत यह भी हैं कि रूस और चीन संयुक्त रूप से इस संबंध में एक पहल कर रहे हैं। चीन संकट की स्थिति पर चर्चा करने के लिए भारत और पाकिस्तान का दौरा करने के लिए एक विशेष दूत की तैनाती कर रहा है। पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने इस्लामाबाद में इसका खुलासा किया।

यह सुनिश्चित करने के लिए, रूस और चीन, जो विदेश नीति के मोर्चे पर सक्रिय रूप से समन्वय करते हैं, भारत-पाकिस्तान तनाव पर एक-दूसरे से परामर्श कर रहे हैं। हम यह भी बता सकते हैं कि रूस और चीन के विदेश मंत्रियों को पिछले बुधवार को हुई आरआईसी मंत्री बैठक में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मिलने का अवसर मिला था।

उसके बाद, चीनी स्टेट काउंसलर और विदेश मंत्री वांग यी ने भी कुरैशी को एक फोन पर बातचीत में जानकारी दी, जहां पाकिस्तानी पक्ष ने उम्मीद जताई कि "चीनी पक्ष मौजूदा तनाव को कम करने में रचनात्मक भूमिका निभाता रहेगा।"

समान रूप से, बढ़ते भारत-पाकिस्तान संकट पर, 27 फरवरी को, रूसी विदेश मंत्रालय ने भी एक बयान जारी किया था, जिसमें "भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा पर बढ़ती स्थिति और तनाव में वृद्धि" पर गंभीर चिंता व्यक्त की गई थी। भारत-पाकिस्तान जो रूस के मित्र हैं के बीच उसने एक तटस्थ रुख अपनाया और दोनों पक्षों को “राजनीतिक और कूटनीतिक माध्यमों से मौजूदा समस्याओं को हल करने के लिए संयम और सुधार के प्रयासों को बरतने का आह्वान किया।"

इसका पूरा अनुमान है कि चीनी विशेष दूत की यात्रा बीजिंग और मास्को द्वारा समन्वित प्रयास और इस्लामाबाद और नई दिल्ली के परामर्श से संबंधित एक प्रयास है। यह निश्चित रूप से यूरेशियन राजनीति की संरचना में एक प्रमुख बदलाव है और इसमें एक नया महत्व भी है क्योंकि यह नए शीत युद्ध की परिस्थितियों में हो रहा है।

वास्तव में, यह पता लगाना बहुत कठिन बात नहीं है कि भारत और पाकिस्तान के बीच अमेरिका द्वारा प्रायोजित सऊदी मध्यस्थता रूस और चीन दोनों के लिए भू-राजनीतिक दृष्टिकोण से एक चिंताजनक घटनाक्रम है।

गुरुवार को राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने मोदी को फोन किया था। क्रेमलिन रीडआउट के अनुसार, उन्होंने "भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों में संकट" पर चर्चा की और रूसी नेता ने उम्मीद जताई कि, "शीघ्र समाधान हो जाएगा।" पुतिन ने चीन के साथ संयुक्त रूप से मदद करने की पेशकश की, ताकि तनाव को कम किया जा सके।

उत्सुकता से, अगले दिन, रूसी विदेश मंत्री ने इस्लामाबाद में कुरैशी को फोन किया - संभवतः पुतिन-मोदी बातचीत पर अनुवर्ती कार्रवाई करने के लिए - और तनाव को "कम" करने में मदद की पेशकश की। रूसी विदेश मंत्रालय ने राज्य समाचार एजेंसी टीएएसएस द्वारा उद्धृत बयान का हवाला देते हुए कहा, "मास्को ने तनाव को कम करने में योगदान देने के लिए अपनी तत्परता व्यक्त की है और राजनीतिक और राजनयिक तरीकों से इस्लामाबाद और नई दिल्ली के बीच सभी मतभेदों को निपटाने के अलावा कोई विकल्प नही है।"

महत्वपूर्ण रूप से, लावरोव ने कुरैशी को बताया कि कैसे शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना के तंत्र के माध्यम से डी-एस्केलेशन प्रक्रिया सफल बनाया जा सकता है।

शिन्हुआ की एक रिपोर्ट ने इस पहलू को उजागर किया - कि लावरोव ने कुरैशी को इस उद्देश्य के लिए "शंघाई सहयोग संगठन के क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना का उपयोग करने की संभावना" के बारे में बताया।

साथ ही, रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया ज़खारोवा ने गुरुवार को मॉस्को के व्यापक दृष्टिकोण के एक महत्वपूर्ण बयान में उल्लिखित किया। ज़खरोवा ने कहा:

"हम नियंत्रण रेखा के साथ भारत और पाकिस्तान के संबंधों में तनाव के बढ़ने और दोनों देशों के सशस्त्र बलों के खतरनाक युद्धाभ्यास को लेकर चिंतित हैं जो प्रत्यक्ष सैन्य टकराव से भरा हुआ है।"

“हम दोनों पक्षों से अधिकतम संयम बरतने का आग्रह कर रहे हैं। हम मानते हैं कि विवादास्पद मामलों को राजनीतिक रूप से व राजनयिक तरीकों से 1972 के शिमला समझौते और 1999 के लाहौर घोषणा के प्रावधानों के अनुसार हल किया जाना चाहिए।”

"हम आतंकवाद का मुकाबला करने में भारतीय और पाकिस्तानी प्रयासों को समर्थन देने के लिए अपनी तत्परता की पुष्टि करते हैं।"

भारतीय दृष्टिकोण से, यह अपने रूसी और चीनी समकक्षों के साथ झेजियांग में विदेश मंत्रियों के परामर्शों के एक अत्यंत सकारात्मक परिणाम को जोड़ता है। यह अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में विदेश मंत्री स्वराज का सबसे अच्छा समय होना चाहिए, क्योंकि भारत के विदेश मंत्री के रूप में उनके चिंतनशील कथानक पर जल्द ही पर्दा उठना शुरू हो जाएगा।

इसमें कोई संदेह नहीं है, कि पाकिस्तान के साथ तनाव के "डी-एस्केलेशन" की तत्कालिक जरूरत खुद में स्पष्ट है। "डी-एस्केलेशन" भारतीय पायलट की वापसी से अभी बहुत दूर की बात है। वास्तव में, नियंत्रण रेखा पर तनाव वर्तमान हालत में कभी भी बढ़ सकता है और नियंत्रण के बहर जा सकता है।

इसमें बिना किसी संदेह के, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय – इसे अमेरिका और नाटो सहयोगी पढ़ा जाए  - बारीकी से इस पर नज़र रखे हुए है। अफगान में अंतिम पहल सबसे संवेदनशील चरण में है और भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव का कोई भी विस्फोट शांति प्रक्रिया को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा।

भारत को पूरे दिल से चीन-रूस के प्रस्ताव का स्वागत करना चाहिए, वह भी एस.सी.ओ. ढांचे के भीतर,जो कि  सउदी और अमेरीकी दलदल से अधिक बेहतर है - या फिर इस मामले यह संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप भी बेहतर होगा।

मामले का तथ्य यह है कि रूस और चीन दोनों ही भारत-पाकिस्तान के बीच सामान्य हालत के पक्षधर हैं और न ही उनके इस संबंध में कोई छिपा हुआ एजेंडा है। बेशक, रूस और चीन आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत के लिए समान विचारधारा वाले साझेदार हैं। दूसरी ओर, शीत युद्ध के युग के विपरीत, पाकिस्तान भी यूरेशियन एकीकरण के लिए भी उत्सुक है।

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