“सरकार मज़दूरों से उनके अधिकार छीनकर उन्हें गुलाम बनाने की कोशिश कर रही है। आज जब सभी श्रम कानून हैं, तब भी मज़दूर को न तो न्यूयनतम वेतन मिल रहा है न ही सुरक्षा, हाल में ही झिलमिल में तीन मज़दूरों की मौत फैक्ट्री में आग से हुई, क्योंकि आज भी मज़दूरों को फैक्ट्रियों में बंद कर काम कराया जाता है। आज इन कानूनों को मज़बूत करने की जरूरत थी लेकिन सरकार मज़दूरों को जो अधिकार मिले थे उन्हें भी खत्म कर रही है। उसकी जगह सरकार कोड बिल ला रही है जिसमें न तो सुरक्षा की कोई गारंटी है, न ही न्यूनतम वेतन की। इसी के ख़िलाफ़ हम सड़क पर उतरे हैं।” यह कहना है सीटू के पूर्वी दिल्ली के सचिव और प्रदेश उपाध्यक्ष पुष्पेंद्र का।
दिल्ली के जमनापार के निर्माण मज़दूर सुभाष ने कहा कि दिल्ली में निर्माण मज़दूरों की हालत बहुत खराब है। कई बार हम काम करते हैं लेकिन हमें पैसा नहीं मिलता या हमसे कई-कई घंटे काम कराया जाता है, वहां कोई श्रम कानूनों का पालन नहीं होता है। लेकिन अभी जब भी मालिकों के शोषण की अति हो जाती है तो हम उसे लेबर कोर्ट जाने के बात कहते हैं। लेकिन सरकार अब यह अधिकार भी हमसे छीन रही है।
नई दिल्ली, केंद्रीय श्रम संगठनों ने केंद्र सरकार दा्रा श्रम कानूनों में किये जा रहे बदलाव के विरोध में शुक्रवार, 2 अगस्त को पूरे देश में प्रतिरोध दिवस मनाते हुए धरना-प्रदर्शन किया।
दिल्ली में जंतर मंतर पर बैंक ऑफ़ बड़ौदा के पास मज़दूर एकत्रित हुए और संसद की ओर मार्च किया। इस मार्च को संसद मार्ग पर रोक दिया गया। इसके बाद संसद मार्ग पर प्रतिरोध सभा हुई।
एटक की महासचिव अमरजीत कौर भी इस विरोध प्रदर्शन में शामिल हुईं। उन्होंने कहा की मोदी सरकार में श्रम कानूनों को बदला जा रहा है और ये मज़दूरों के हक़ में नहीं हो रहा है बल्कि ये उद्योगपतियों और फैक्ट्री मालिकों के हक़ में किया जा रहा है। ये बात देश की वित्त मंत्री ने 5 जुलाई के संसद में दिए अपने भाषण में कही है।

कौर कहती हैं वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में साफ-साफ कहा कि 44 श्रम कानूनों को चार कोड में बदला जा रहा है। इसका अर्थ यह है श्रम कानूनों का कोडीफिकेशन यानी संहिताकरण किया जा रहा है। ये इसलिए किया जा रहा है, जिससे मालिकों को सालना आयकर यानी आईटीआर भरने में आसानी होगी। ये साफ दिखाता है कि ये मालिकों के हक और मज़दूरों के खिलाफ है ।
सीटू राष्ट्रीय सचिव एआर सिंधु ने कहा कि यह कोडीफिकेशन सभी श्रम कानूनों का मज़ाक बना रहा है। अभी तक न्यूनतम वेतन को तय करने की मानक प्रक्रिया है परन्तु सरकार यह नहीं बता रही है कि कैसे वो न्यूनतम वेतन तय करेगी? उन्होंने बताया कि वेतन की गणना के लिए 15वीं लेबर कांफ्रेंस (आई.एल.सी.) ने जो फार्मूला माना था, और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार उसमें जो 25प्रतिशत जोड़ा जाना तय हुआ था, और जिसे 45वीं व 46वीं आईएलसी ने एकमत से मंजूर किया था, उसको ताक पर रखते हुए केन्द्रीय श्रम मंत्री द्वारा प्रतिमाह 4628 रुपये या प्रतिदिन 178 रुपये की घोषणा की गई। जबकि 7वें वेतन आयोग ने भी जनवरी 2016 में18,000 रुपये प्रतिमाह न्यूनतम वेतन की सिफारिश की थी।
आगे वो कहती हैं कि मोदी सरकार ने इन सभी को ताक पर रख दिया है। इसके खिलाफ मज़दूर वर्ग चुप नहीं रहेगा। आज का ये प्रदर्शन सांकेतिक है, इसके बाद भी अगर सरकार नहीं मानी तो देशभर का मज़दूर हड़ताल पर जा सकता है। सभी संघर्ष के विकल्प खुले है। आगे क्या करना है वो सभी संगठन बैठकर निर्णय करेंगे।
दिल्ली के इस प्रदर्शन को एटक से अमरजीत कौर, एचएमएस से शिव गोपाल मिश्रा, सीआईटीयू से ए आर सिंधु, इंडियन जर्नलिस्ट यूनियन सबीना इन्द्रजीत, नेशनल एलाईंस ऑफ जर्नलिस्ट से एस के पांडे सहित अन्य सभी केंद्र ट्रेड यूनियन के नेताओ ने सम्बोधित किया।
दिल्ली की सड़कों के साथ संसद भवन के भीतर वामपंथी दलों के सांसदों ने सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया।
दिल्ली के आलावा देश के सभी राज्यों से भी ट्रेड यूनियन के धरने-प्रदर्शन की ख़बरें मिल रही हैं।
हरियाणा

हरियाणा के मज़दूरों ने कोड बिल के साथ अपनी अन्य मांग मानदेय बढ़ोतरी, कर्मचारी घोषित करने, बकाया मुनादी भत्ते और बेगारी खत्म करने की मांग को लेकर हरियाणा ग्रामीण चौकीदार सभा (सीटू) के बैनर तले जोरदार प्रदर्शनकिया और मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजा।
बिहार

इसी कड़ी में पटना में प्रतिरोध मार्च निकाला गया, जिसका नेतृत्व CITU के राज्य महासचिव गणेश शंकर सिंह और अन्य ट्रेड यूनियन के नेताओं ने किया।
कर्नाटक
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इस देशव्यापी प्रदर्शन के तहत कर्नाटका तुमकुर में भी मज़दूरों ने किया प्रदर्शन
मज़दूरों का विरोध क्यों?
वेतन संहिता विधेयक 2019 और कार्यस्थल पर सुरक्षा, स्वास्थ्य व काम के हालत संहिता विधेयक 2019 को लेकर मज़दूरों का ये विरोध है। श्रमिक संगठनों के मुताबिक ये सब पूंजीपति वर्ग के हित में और मजदूर वर्ग के खिलाफ़ किया जा रहा है।
ये दोनों संहिता, उन सभी अधिकारों की जगह लेगीं, जिन्हें मजदूरों ने सालों-सालों से संघर्ष करके हासिल किया है। उदाहरण के लिए,वेतन संहिता विधेयक में न्यूनतम मजदूरी प्रतिदिन 178 रु. या 4628 रु. मासिक प्रस्तावित है, जबकि मजदूर वर्ग आंदोलन ने कई सालों से 18,000 रु. मासिक न्यूनतम वेतन की मांग उठा रखी है। नये कानून में काम के घंटे 8 से बढ़ा दिये गये हैं। ओवर टाइम की कोई समय सीमा नहीं है।
केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा लाए गए वेतन विधेयक (नए वेज कोड बिल) को मंजूरी दिए जाने तथा इससे जुड़े चार कानूनों (1) न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948, (2) वेतन भुगतान कानून 1936, (3) बोनस भुगतान अधिनियम 1965 और (4) समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976 खत्म हो जाएगा। इस प्रकार THE OCCUPATIONAL SAFETY, HEALTH AND WORKING CONDITIONS CODE, 2019 में भी 13 निवर्तमान अधिनियम जिसमें कारख़ाना अधिनियम, ठेका श्रम अधिनियम, अंतर-राज्यिक प्रवासी कर्मकार अधिनियम और बीड़ी, सिनेमा कर्मकार, भवन एवं सन्निर्माण मजदूर, मोटर परिवहन कर्मकार, विक्रय संवर्धन कर्मचारी, डॉक कर्मकार व श्रमजीवी पत्रकार आदि शामिल हैं जिसका का सरलीकरण एवं संशोधन करना है।
ट्रेड यूनियन ने कहा की सरलीकरण की आड़ में बीजेपी सरकार ने देश के हर एक मेहनतकश नागरिक के अधिकारों पर प्रहार किया है, चाहे वे कमाई की उच्च श्रेणी में आते हों या निम्न श्रेणी में। इसी के विरुद्ध में दिल्ली सहित पूरे देश में "प्रतिरोध दिवस" के रूप में मनाया है।