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स्वच्छता दूत की न ख़त्म होने वाली लड़ाई
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बहुप्रचारित अभियान 'स्वच्छ भारत’ कम काम और ज़्यादा प्रचार को लेकर आलोचना के घेरे में है। ज़मीनी सच्चाई यह है कि अपने इलाक़े की सफाई करने वाले स्वच्छता कर्मचारी अपने वाजिब पैसे के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं।
अमय तिरोदकर
23 Feb 2019
swachh bharat

पिछले पांच वर्षों में आपने कई बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को स्वच्छता कर्मचारियों की तारीफ करते ज़रुर सुना होगा। इनके बारे में उन्होंने महात्मा गांधी के स्मारक राजघाट पर 2 अक्टूबर 2014 को ’स्वच्छ भारत मिशन’ शुरू करने के समय काफी चर्चा की। तब से हर बार पीएम को समाज के इन लोगों के बारे में बोलने का मौका मिला जो जाति व्यवस्था में सबसे निचले पायदान पर हैं। उन्होंने अक्सर इन कर्मियों के प्रति सहानुभूति और इच्छा शक्ति दिखाई। लेकिन उनके बयान ज़मीनी ह़क़ीक़त से मेल नहीं खाते।

सफाई कर्मचारी 45 वर्षीय दिनेश शिवदास फतरपेकर 20 साल से यह काम कर रहे हैं। वह मुंबई से सटे ठाणे नगर निगम (टीएमसी) में ठेका सफाई कर्मचारी के रूप में काम करते हैं। उनका तीन सदस्यों वाला परिवार है जिसमें उनकी पत्नी, बेटी और वे खुद हैं। उन्हें हर महीने 15,500 रुपए मिलता है। लेकिन 24 फरवरी 2015 से पहले उन्हें हर महीने सिर्फ 6,000 रुपए मिलता था।

24 फरवरी 2015 को महाराष्ट्र सरकार सरकारी संकल्प (जीआर) लाई जिसने ग्रेड ए नगरपालिकाओं में स्वच्छता कर्मचारियों को मासिक वेतन के रूप में 15,500 रुपए देने की सिफारिश की। ग्रेड बी के लिए 14,500 रुपए और ग्रेड तीन के लिए 13,500 रुपए देने की सिफारिश की।

इसलिए फरवरी 2015 से दिनेश फतरपेकर बकाया राशि प्राप्त करने के पात्र हैं। उन्होंने कहा, “टीएमसी के पास मेरी लंबित राशि लगभग 1,20,000 रुपए है। हमें कई डेडलाइन दिए गए। अंतिम तीन डेडलाइन दिसंबर का पहला सप्ताह, दिसंबर का आखिरी सप्ताह और जनवरी का दूसरा सप्ताह था। इन आश्वासनों में से कोई भी पूरा नहीं हुआ है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश और संरक्षण के बाद भी हमें पैसा नहीं मिल रहा है।”

फतरपेकर अकेले कर्मचारी नहीं हैं। टीएमसी में ऐसे सफाई कर्मचारी 1,800 हैं। इनमें 700 महिलाएं हैं। हर कोई का 1,20,000 रुपए टीएमसी के पास लंबित है। महाराष्ट्र नगरपालिका कर्मचारी संघ के उप प्रमुख महेंद्र हिवराले कहते हैं, “इन सफाई कर्मचारियों की कुल राशि 14.50 करोड़ रुपए तक पहुंच गई है। इन कर्मचारियों के लिए टीएमसी की आम सभा की बैठक में कुल 30 करोड़ रुपए ही पास किया गया। लेकिन प्रशासन अटल है और इन श्रमिकों को पैसा नहीं दे रहा है।”

यह सिर्फ ठाणे शहर की कहानी है। महाराष्ट्र में लगभग 30 नगरपालिकाएं हैं। और ये कहानी लगभग हर नगरपालिकाओं में एक जैसी ही है।

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लंबित बकाया

प्रदीप नागपुरकर नांदेड़ नगरपालिका में इसी संघ का नेतृत्व करते हैं। मराठावाड़ा के इस शहर में 400 सफाई कर्मचारी हैं। उन्होंने न्यूजक्लिक को फोन पर बताया कि नांदेड़ में स्वच्छता कर्मचारियों को सबसे कम पैसा दिया जाता है। नागपुरकर कहते हैं, “हमारे कर्मचारियों को सिर्फ 6,900 रुपए मिल रहा है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार उन्हें 15,500 रुपए मिलने चाहिए। इसलिए हमारे प्रति कर्मचारी का बकाया लगभग 3,60,00 रुपए है। यह बहुत ज़्यादा है और किसी कर्मचारियों को एक पैसा भी नहीं मिला है।" इस तरह नांदेड़ ठेका सफाई कर्मचारियों के मामले में सबसे ज़्यादा लंबित बकाया वाला नगर पालिका बन गया है।

केवल तीन नगरपालिकाएं हैं जहां बकाया राशि देने की प्रक्रिया शुरू की गई है। उत्तर महाराष्ट्र की नासिक नगर पालिका ने पूरी प्रक्रिया पूरी कर ली है और सभी श्रमिकों को इसका एक किश्त दिया है। नवी मुंबई नगरपालिका ने अपने श्रमिकों को आधी राशि दी है। बीएमसी ने कुछ वार्डों में प्रक्रिया शुरू की है लेकिन बहुत मामूली तरीके से आरंभ किया है।

40 वर्षीय दादराव पातेकर बीएमसी के एम-वेस्ट वार्ड में काम करते हैं। उनके वार्ड में लगभग 300 ठेका सफाई कर्मचारी हैं जिनमें लगभग 50 महिलाएं हैं। पातेकर कहते हैं, “किसी को भी आज तक बकाया राशि नहीं मिला है। लेकिन हम सुन रहे हैं कि दूसरे वार्ड में श्रमिकों को उनका बकाया मिलना शुरू हो गया है।” 29 वर्षीय वसंत कुमार एच-ईस्ट वार्ड में काम करते हैं। उन्हें 1,20,000 रुपए में से 80,000 रुपए मिले हैं। वे कहते हैं, “हमें बताया गया है कि बाकी राशि फरवरी के आख़िर तक दे दी जाएगी। हम इसका इंतजार कर रहे हैं।"

'कचरा वाहतुक श्रमिक संघ' मुंबई और ठाणे का अग्रणी संगठन है। इसके महासचिव मिलिंद रानाडे स्वच्छता कर्मचारियों के प्रति प्रशासन की उदासीनता पर कहते हैं, “हम ठाणे के बकाया राशि की भुगतान के लिए मुख्यमंत्री, राज्यपाल और संबंधित मंत्री से मिले। लेकिन इसके बाद भी श्रमिकों को उनके पैसे के लिए विरोध करने पर मजबूर किया जा रहा है।”

जैसा कि ठेका सफाई कर्मचारी अकुशल श्रम हैं और उनकी आवाज़ को कोई सुन नहीं रहा है। इस सिस्टम द्वारा उनके अधिकारों की लापरवाही के अलावा उन्हें बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित किया जाता है। महेंद्र हिवराले कहते हैं, “हम नियमित चिकित्सा जांच, मास्क, दस्ताने के हकदार हैं लेकिन कोई भी हमारे स्वास्थ्य की परवाह नहीं करता है। हम शहरों की सफाई करते हैं लेकिन कभी भी हमें उचित सम्मान नहीं मिला।”

टीएमसी के ठेका सफाई कर्मचारी 44 वर्षीय कृष्णकांत पिंपलकर कहते हैं, 'हमें समय पर वेतन नहीं दिया जाता है। आज 18 फरवरी है। लेकिन हमें अभी भी अपना वेतन नहीं मिला है। जब हमें टाइम पर सैलरी नहीं मिलती तो अरियर्स की क्या बात है?

न्यूज़क्लिक ने जब महाराष्ट्र के श्रम मंत्री संभाजी पाटिल निलंगेकर से इन श्रमिकों की परेशानियों के बारे में पूछा तो उन्होंने नगरपालिकाओं के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने का आश्वासन दिया। उन्होंने कहा, "यह सही है कि मज़दूर संघों की तरफ से शिकायतें की गईं हैं। हम आगामी विधानसभा सत्र तक इंतजार करेंगे। अगर ये नगरपालिकाएं अभी भी श्रमिकों के बकाया राशि का भुगतान करने में विफल रहती हैं तो हम श्रम अधिनियम के तहत आगे बढ़ेंगे।"


 

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