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कोविड-19
भारत
राजनीति
मोदी सरकार की मदद के बिना राज्य लड़ रहे हैं कोविड की जंग 
पिछले साल, मोदी सरकार ने कोविड से लड़ने के लिए राज्य सरकारों को प्रति व्यक्ति लगभग 51 रुपए की मामूली आर्थिक मदद दी थी।
सुबोध वर्मा
10 May 2021
Translated by महेश कुमार
मोदी सरकार की मदद के बिना राज्य लड़ रहे हैं कोविड की जंग 

पिछले साल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने सीधे तौर पर कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई का बीड़ा उठाते हुए, 25 मार्च, 2020 दो महीने का लंबा लॉकडाउन लगा दिया था,  और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न योजनाओं और नीतियों की घोषणा की थी, जिसमें निजी कंपनियों को टीके विकसित करने के लिए फंड मुहैया कराया गया और ऐसी ही अन्य चीजों के लिए आर्थिक साहयता दी थी। इस बाबत प्रधानमंत्री ने राज्य के मुख्यमंत्रियों के साथ लगभग एक दर्जन बैठकें की थी। एक राष्ट्रीय टास्क फोर्स का गठन किया गया था। महामारी के विभिन्न पहलुओं से निपटने के लिए शीर्ष नौकरशाहों के कई सशक्त समूह बनाए गए थे।

हालांकि इससे बहुत सफलता नहीं मिली, दुर्भाग्य से, न तो महामारी के मोर्चे पर और न ही अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर कोई सफलता ही मिल पाई। सितंबर 2020 में लॉकडाउन में ढील दिए जाने के बाद कोविड के मामले फिर से अपने चरम पर पहुंच गए। अर्थव्यवस्था यानि जीडीपी में 8 प्रतिशत की गिरावट दर्ज़ की गई और लॉकडाउन के दौरान बेरोजगारी लगभग 24 प्रतिशत की रिकॉर्ड दर पर पहुंच गई थी।

कहीं न कहीं, मोदी सरकार ने महसूस किया कि अब लड़ाई की जिम्मेदारी राज्यों को सौंपना बेहतर होगा। इस प्रकार रुख केंद्रीय आदेशों से मार्गदर्शन की तरफ चला गया और राज्यों को संतों की तरह सलाह दी जाने लगी। उनके लिए यह सब राजनीतिक रूप से काफी उपयुक्त भी था – क्योंकि आर कुछ गलत हो जाए तो सारा दोष उन पर न लग के राज्यों पर जाएगा। और, शायद इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह थी कि ऐसा करना आर्थिक रूप से भी अधिक सुविधाजनक था – और नतीजतन आपको केंद्रीय खजाने से बहुत अधिक खर्च करने की जरूरत भी पेश नहीं आती।  

केंद्र की राज्यों को ‘मदद’

पिछले साल, केंद्र सरकार ने 22 अप्रैल की शुरुआत में घोषणा की कि वह “कोविड-19 आपातकालीन प्रतिक्रिया और स्वास्थ्य प्रणाली की तैयारी” के लिए 15,000 करोड़ रुपये का  पैकेज ला रही है जिसका उद्देश्य कोविड-19 से उत्पन्न “खतरे को रोकना, पता लगाना और उस पर प्रतिक्रिया करना था। संसद में पेश एक सवाल (अतारांकित प्र॰ स॰ .2352, राज्य सभा), के जवाब में स्वास्थ्य मंत्रालय के कनिष्ठ मंत्री ने 16 मार्च, 2021 को संसद को बताया कि इस पैकेज के तहत, राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों को 12 मार्च, 2021 तक 6,815.61 करोड़ रुपये जारी किए जा चुके हैं।

इसके अलावा, केंद्र सरकार ने स्वास्थ्य कर्मियों के बीमा के लिए 110.6 करोड़ का भुगतान भी किया था। मंत्री ने यह जानकारी देते हुए स्पष्ट किया था कि "सार्वजनिक स्वास्थ्य और अस्पताल" राज्य का विषय है, स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के सुदृढ़ीकरण की प्राथमिक जिम्मेदारी संबंधित राज्य सरकारों की है। हालांकि, राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को समय-समय पर कोविड-19 पब्लिक हेल्थ चुनौती के प्रबंधन सहित उनकी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को मजबूत करने के लिए आवश्यक तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है।

इसलिए जो भी है वह यही है: कोविड-19 महामारी का सामना करने के लिए जो केंद्र ने जो आर्थिक साहयता राज्यों को दी वह लगभग 6,926 करोड़ रुपये थी और यही राशि समय-समय पर आने वाली चुनौती का सामना करने के लिए स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत करने के लिए भी थी।”

मंत्री ने अपने जवाब में उन सभी राज्यों की सूची दी जिन्हे यह राशि आवंटित की गई थी। सिर्फ एक ऐसे धन का स्वाद चखने यह सहायता, उन अधिक शहरीकृत राज्यों को दी गई जहां कोविड के मामले अधिक थे, इसमें से उन्हें कुछ सौ करोड़ रुपये मिले – जिसमें महाराष्ट्र को (592.82 करोड़ रुपए); तमिलनाडु को (773.24 करोड़ रुपए); दिल्ली को (651.41 करोड़ रुपए) जबकि काफी हद तक ग्रामीण और पिछड़े राज्यों को बहुत ही कम मिला – उनमें बिहार को (164॰92 करोड़ रुपए); छत्तीसगढ़ को (74.21 करोड़ रुपए): झारखंड को (57.53 करोड़ रुपए); असम को (180.04 करोड़ रुपए) आदि मिले थे। 

मंत्री ने यह भी कहा कि महामारी से निपटने का सरकार का दृष्टिकोण "पूरे समाज" से था। दूसरे शब्दों में, 6,926 करोड़ रुपए पूरे भारत के लोगों के लिए थे – जिसका 2020 में लगभग 137 करोड़ होने का अनुमान था। यह प्रति व्यक्ति लगभग 51 रुपए की राशि बैठती है। मदद की यह वह हद थी, जिसे मोदी सरकार ने सबसे बड़ी आपदा से निपटने के लिए राज्यों को दी थी, एक ऐसी महामारी जिसने भारत की स्मृति में सबसे कठोर चोट पहुंचाई है। 

इसके अलावा, केंद्र सरकार ने इस बात का भी खुलासा किया कि इस पैकेज की मदद से 8,07,476 आइसोलेशन बेड, 1,74,533 ऑक्सीजन बेड और 42,988 आईसीयू बेड जोड़े गए। इस खर्च में कुछ दर्जन करोड़ रुपये और जुड़ होंगे। उन्होंने लगभग 409 लाख एन-95 मास्क, 170 लाख पीपीई और लगभग 34,000 वेंटिलेटर की व्यवस्था करने की बात कही थी। यह सब उस 15,000 करोड़ रुपए के पैकेज का हिस्सा है जिसका जिक्र ऊपर किया गया है, जबकि इसमें से केवल 11,000 करोड़ रुपये ही खर्च किए गए थे।

स्पष्ट रूप से देखा जाए तो केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों द्वारा महामारी के खिलाफ छेड़ी गई ज़ंग में नाटकीय रूप से आर्थिक मदद को बहुत कम कर दिया था। जो प्रति व्यक्ति केवल 51 रुपए था - या यों कहें कि 60 रुपए प्रति व्यक्ति यदि मदद की अन्य सामग्री भी इसमें जोड़ लेते हैं – यानि जितनी जरूरत थी, उससे बहुत कम।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन निधि

केंद्र से राज्य सरकारों को मिलने वाली सबसे बड़ी मदद राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के फंड से दी गई। 30,000 करोड़ रुपये वाले मिशन के बजट के प्रमुख मक़सद में "स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत", करना है जिसमें बुनियादी ढांचे को उन्नत बनाना जैसे कि अस्पताल, आवश्यक उपकरण प्रदान कराना, नए अस्पताल बनाना, और उनके रखरखाव के लिए अनुदान देना आदि शामिल हैं। यह महामारी से लड़ने के मामले में काफी महत्वपूर्ण मक़सद है। 

वर्ष 2020-21 में, केंद्र सरकार ने इस उद्देश्य के लिए 9,632.17 करोड़ रुपये मंजूर किए थे, यह राज्य सरकारों द्वारा राज्य के एक्शन प्लान को लागू करने की मांग भी थी। लेकिन, चौंकाने वाली बात है कि वास्तव में केवल 3,549.10 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे जिसका पता 16 मार्च, 2021 को संसद में दिए गए एक सवाल (अतारांकित Q.No.2337, राज्यसभा) के जवाब से चलता है।  

इसके कारण बहुत अधिक स्पष्ट नहीं हैं, लेकिन फिर भी जो इसमें शामिल हैं: वह स्वीकृत राशि से कम का आवंटन देना, धन के इस्तेमाल की असमर्थता, धनराशि के तेजी से इस्तेमाल में अक्षमता, थकाऊ कागजी कार्रवाई जैसे कि धन के इस्तेमाल का प्रमाणपत्र न देना आदि। लेकिन आप देख सकते हैं – अगर स्वास्थ्य प्रणाली को इस तरह से मजबूत किया जा रहा था तो हम लड़ाई शुरू होने से पहले ही हार गए थे।

राज्यों के ख़ाली होते खज़ाने 

राज्य सरकारें धन की कमी के चलते अपने को गंभीर रूप से विकलांग महसूस कर रही थीं। राज्य सरकारों के बजट का भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए के विश्लेषण के अनुसार, राज्य सरकारों की राजस्व प्राप्तियों (आय) में पिछले वर्ष की तुलना में 2020-21 में 21 प्रतिशत की कमी आई है, जबकि पिछले वर्ष (2018-19) में 0.7 प्रतिशत की मामूली गिरावट दर्ज़ कि गई थी। दूसरे शब्दों में, राज्य सरकारों के खज़ाने खाली पड़े हैं। 

इसलिए, संसाधनों को जुटाने की राज्य सरकारों की क्षमता नाटकीय रूप से पिछले साल महामारी और मोदी के लॉकडाउन से काफी कम हो गई थी। इन परिस्थितियों में, यह कल्पना करना बहुत मुश्किल है कि राज्य सरकारें कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई कैसे लड़ेंगी। 

वास्तव में, राज्यों की राजकोषीय हालत तब और अधिक कमजोर पड़ गई थी जब केंद्र सरकार ने जीएसटी (माल और सेवा कर) मुआवज़ा देने में देरी कर दी थी जिसे प्रत्येक राज्य को देना अनिवार्य था। बिना परामर्श और किसी सूचना के लॉकडाउन घोषित करने से राज्यों की वित्त प्रणाली पूरी तरह से नष्ट हो गई थी क्योंकि आय के सभी स्रोत सूख गए थे। इस अभूतपूर्व संकट से निपटने में केंद्र से कोई खास मदद नहीं मिल रही थी। यह केवल बाद में हुआ जब केंद्र ने राज्यों को अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए बाजारों से अधिक उधार लेने की अनुमति दी। यह, निश्चित रूप से, कोई समाधान नहीं था - इसका मतलब केवल इतना था कि राज्य सरकारें और अधिक कर्ज़ में डूब जाएँ।

इसके अलावा अब 18-44 वर्ष के आयु वर्ग के 44 करोड़ से अधिक लोगों के टीकाकरण के खर्च की ज़िम्मेदारी भी राज्य सरकारों पर डाल दी गई है। केंद्र सरकार ने बड़ी ही बेशर्मी से राज्य सरकारों को यह जिम्मेदारी सौंपी और उन्हें निजी टीका निर्माताओं से टीका खरीदने के मिरदेश दे दिए। यह राज्यों के खजाने को और अधिक खाली कर देगा, और यह सब राज्यों को टीका खरीदने के लिए वैक्सीन कंपनियों के साथ एक अप्रिय युद्ध में झोंक देगा। भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जहां इस तरह की नीति है – जिसके तहत राज्यों को खुद टीके खरीदने के लिए कहा गया है। 

महामारी के प्रति मोदी सरकार की नीति की एक ही विशेषता है जिसे माना जा सकता है – वह कि जितना संभव हो उतना कम खर्च करो और सारा काम निजी क्षेत्र को काम सोंप दो। 

केंद्र सरकार की इस नीति ने इस किस्म की जटिल लड़ाई को पंगु बना दिया है और इसी का नतीजा है ऑक्सीजन के लिए लोगों की मारामारी के दृश्य आम हैं। नतीजतन वार्डों में लाशें पड़ी हैं, दाह संस्कार और शव दफन करने के लिए लाशों के ढ़ेर लगे पड़े हैं और उस पर भारत अब दुनिया में दूसरे सबसे संक्रमित देश के रूप में उभर रहा है। लग ऐसा रहा है जब कोविड-19 की दूसरी घातक लहर पूरे देश में बिना किसी रुकावट के जारी है, उससे लड़ने की वही असफल नीति कायम है। देश को इसकी भारी कीमत चुकानी होगी।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

States Battle Covid …. Without Much Help From Modi Govt

COVID-19
State Finances
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Vaccine Policy

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