NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
साहित्य-संस्कृति
भारत
इतवार की कविता : ओमप्रकाश वाल्मीकि की कविताएं
इतवार की कविता में हम पेश कर रहे हैं दलित कवि ओमप्रकाश वाल्मीकि की पुण्यतिथि पर उनकी दो कविताएं।
न्यूज़क्लिक डेस्क
17 Nov 2019
Omprakash valmiki

शंबूक का कटा सर/ ओमप्रकाश वाल्मीकि

 

जब भी मैंने

किसी घने वृक्ष की छाँव में बैठकर

घड़ी भर सुस्‍ता लेना चाहा

मेरे कानों में

भयानक चीत्‍कारें गूँजने लगी

जैसे हर एक टहनी पर

लटकी हो लाखों लाशें

ज़मीन पर पड़ा हो शंबूक का कटा सिर ।

 

मैं उठकर भागना चाहता हूँ

शंबूक का सिर मेरा रास्‍ता रोक लेता है

चीख़-चीख़कर कहता है--

युगों-युगों से पेड़ पर लटका हूँ

बार-बार राम ने मेरी हत्‍या की है ।

 

मेरे शब्‍द पंख कटे पक्षी की तरह

तड़प उठते हैं--

तुम अकेले नहीं मारे गए तपस्‍वी

यहाँ तो हर रोज़ मारे जाते हैं असंख्‍य लोग;

जिनकी सिसकियाँ घुटकर रह जाती है

अँधेरे की काली पर्तों में

 

यहाँ गली-गली में

राम है

शंबूक है

द्रोण है

एकलव्‍य है

फिर भी सब ख़ामोश हैं

कहीं कुछ है

जो बंद कमरों से उठते क्रंदन को

बाहर नहीं आने देता

कर देता है

रक्‍त से सनी उँगलियों को महिमा-मंडित ।

 

शंबूक ! तुम्‍हारा रक्‍त ज़मीन के अंदर

समा गया है जो किसी भी दिन

फूटकर बाहर आएगा

ज्‍वालामुखी बनकर !

(सितंबर 1988)

 

ठाकुर का कुआं

 

चूल्‍हा मिट्टी का

मिट्टी तालाब की

तालाब ठाकुर का ।

 

भूख रोटी की

रोटी बाजरे की

बाजरा खेत का

खेत ठाकुर का ।

 

बैल ठाकुर का

हल ठाकुर का

हल की मूठ पर हथेली अपनी

फ़सल ठाकुर की ।

 

कुआँ ठाकुर का

पानी ठाकुर का

खेत-खलिहान ठाकुर के

गली-मुहल्‍ले ठाकुर के

फिर अपना क्‍या ?

गाँव ?

शहर ?

देश ?

(नवम्बर, 1981)

इसे भी पढ़े: इतवार की कविता : 'तुम अपने सरकार से ये कहना, ये लोग पागल नहीं हुए हैं!'

इसे भी पढ़े: इतवार की कविता : सस्ते दामों पर शुभकामनायें

Omprakash Valmiki
poem
hindi poetry
hindi poet
Sunday Poem
हिंदी काव्य
हिंदी साहित्य
हिंदी लेखक
ओमप्रकाश वाल्मीकि
शंबूक का कटा सर
ठाकुर का कुआं

Related Stories

वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!

इतवार की कविता: भीमा कोरेगाँव

सारे सुख़न हमारे : भूख, ग़रीबी, बेरोज़गारी की शायरी

इतवार की कविता: वक़्त है फ़ैसलाकुन होने का 

कविता का प्रतिरोध: ...ग़ौर से देखिये हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र

जुलूस, लाउडस्पीकर और बुलडोज़र: एक कवि का बयान

फ़ासीवादी व्यवस्था से टक्कर लेतीं  अजय सिंह की कविताएं

सर जोड़ के बैठो कोई तदबीर निकालो

देवी शंकर अवस्थी सम्मान समारोह: ‘लेखक, पाठक और प्रकाशक आज तीनों उपभोक्ता हो गए हैं’

लॉकडाउन-2020: यही तो दिन थे, जब राजा ने अचानक कह दिया था— स्टैचू!


बाकी खबरें

  • भाषा
    श्रीलंका में हिंसा में अब तक आठ लोगों की मौत, महिंदा राजपक्षे की गिरफ़्तारी की मांग तेज़
    10 May 2022
    विपक्ष ने महिंदा राजपक्षे पर शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन कर रहे लोगों पर हमला करने के लिए सत्तारूढ़ दल के कार्यकर्ताओं और समर्थकों को उकसाने का आरोप लगाया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिवंगत फोटो पत्रकार दानिश सिद्दीकी को दूसरी बार मिला ''द पुलित्ज़र प्राइज़''
    10 May 2022
    अपनी बेहतरीन फोटो पत्रकारिता के लिए पहचान रखने वाले दिवंगत पत्रकार दानिश सिद्दीकी और उनके सहयोगियों को ''द पुल्तिज़र प्राइज़'' से सम्मानित किया गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    लखीमपुर खीरी हत्याकांड: आशीष मिश्रा के साथियों की ज़मानत ख़ारिज, मंत्री टेनी के आचरण पर कोर्ट की तीखी टिप्पणी
    10 May 2022
    केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी के आचरण पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा है कि यदि वे इस घटना से पहले भड़काऊ भाषण न देते तो यह घटना नहीं होती और यह जघन्य हत्याकांड टल सकता था।
  • विजय विनीत
    पानी को तरसता बुंदेलखंडः कपसा गांव में प्यास की गवाही दे रहे ढाई हजार चेहरे, सूख रहे इकलौते कुएं से कैसे बुझेगी प्यास?
    10 May 2022
    ग्राउंड रिपोर्टः ''पानी की सही कीमत जानना हो तो हमीरपुर के कपसा गांव के लोगों से कोई भी मिल सकता है। हर सरकार ने यहां पानी की तरह पैसा बहाया, फिर भी लोगों की प्यास नहीं बुझ पाई।''
  • लाल बहादुर सिंह
    साझी विरासत-साझी लड़ाई: 1857 को आज सही सन्दर्भ में याद रखना बेहद ज़रूरी
    10 May 2022
    आज़ादी की यह पहली लड़ाई जिन मूल्यों और आदर्शों की बुनियाद पर लड़ी गयी थी, वे अभूतपूर्व संकट की मौजूदा घड़ी में हमारे लिए प्रकाश-स्तम्भ की तरह हैं। आज जो कारपोरेट-साम्प्रदायिक फासीवादी निज़ाम हमारे देश में…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License