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तबरेज़ मॉब लिंचिंग : चार्जशीट में हत्या को गैरइरादतन हत्या में बदलने की कोशिश!
क्या तबरेज़ अंसारी कांड का हाल भी पहलू ख़ान मामले जैसा होगा? क्या पहलू की तरह तबरेज़ की हत्या के आरोपी भी आराम से छूट जाएंगे? क्योंकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में विरोधाभास,पुलिस अनुसंधान में लापरवाही और इस पूरी घटना को भीड़ द्वारा की गई हत्या की जगह प्राकृतिक मौत में बदलने की क़वायद स्पष्ट दिख रही है।
फ़र्रह शकेब
07 Sep 2019
tabrej ansari
Image courtesy:India Today

विगत कुछ दिनों से हमारी न्यायिक व्यवस्था, भारत में कानून के शासन की अवधारणा और एक आदर्श नागरिक के अंदर की मानवीय संवेदना को एक ख़ूनी भीड़ के पंजों ने अपना बंधक बना लिया है, जो वास्तव में आने वाले भविष्य की एक ख़ौफ़नाक तस्वीर पेश कर रही है।
एक तरफ हमारा पूरा तंत्र कानून व्यवस्था, पुलिस, जांच एजेंसियां इस ख़ूनी भीड़ के सामने असहाय और बेबस नज़र आते हैं तो दूसरी तरफ़ नागरिक समूह द्वेष और क्रोध के एनस्थीसिया के प्रभाव में मूर्छित हो चुका है और यही कारण है के एक ख़ूनी भीड़ किसी असहाय को पीट रही होती है तो हम बजाए प्रतिरोध के, उस असहाय को बचाने के उसकी चीख़ों पर तालियां बजाते हैं और वीडियो बनाते हैं।

17 जून 2019 की वो रात जब हम और आप शायद गहरी नींद में रहे होंगे तो ठीक उसी वक़्त एक ख़ूनी भीड़ झारखंड की राजधानी रांची से महज़ 130 किलोमीटर दूर सरायकेला-खरसांवा ज़िले के सरायकेला थाना के सिनी आउट पोस्ट के अंतर्गत आने वाले धातकाडीह गावं में कदमडीहा गाँव के निवासी तबरेज़ अंसारी को चोरी के आरोप में पीट रही थी। जब मामला सार्वजनिक हुआ और देश भर में विरोध प्रदर्शन शुरू हुये तो झारखंड सरकार और स्थानीय प्रशासन हरकत में आया और इस मामले में कानूनी कार्रवाई शुरू की गयी।

अभी तक जानकारी के अनुसार तबरेज़ अंसारी मॉब लिंचिंग प्रकरण के जांच अधिकारी राज नारायण सिंह द्वारा केस में चार्जशीट 23 जुलाई 2019 को सरायकेला सी जे एम कोर्ट में आरोप पत्र संख्या 81 /19 दाख़िल की गयी है जिसके अनुसार अनुसंधान अभी जारी है लेकिन चार्जशीट में प्राथमिकी में दर्ज अन्य धाराओं आईपीसी 147,149,341,342,323,302 और 295 (A) की जगह 147,149,341,342,323,304 और 295 ( A ) कर दिया गया है। यानी हत्या की धारा 302 को जांच में तरमीम करके गैरइरादतन हत्या की धारा 304 कर दी गई है, जिस पर तबरेज़ के परिवार द्वारा सवाल खड़े किये गए हैं और उनका मानना है के पुलिस दोषियों को बचा रही है।

इस संबंध में हमने जब तबरेज़ के वकील अल्ताफ़ हुसैन से बात की तो उन्होंने ये बताया की अभी अनुसंधान जारी है और सीजेएम ने चार्जशीट स्वीकार नहीं की है। इस संबंध में आईपीसी की दफ़ा 295 A के तहत डीसी साहेब को जांच अधिकारी को एक सेंक्शन रिपोर्ट देनी है और जांच अधिकारी द्वारा वो रिपोर्ट कोर्ट में प्रस्तुत की जाएगी, उसके बाद आगे की कार्रवाई होगी और सीजेएम कोर्ट सरायकेला में सुनवाई होगी। उम्मीद है के डीसी साहेब जल्द ही रिपोर्ट दे देंगे।

वकील अल्ताफ़ हुसैन ने ये भी बताया के तबरेज़ की पत्नी शाइस्ता परवीन की तरफ़ से दर्ज प्राथमिकी में आईपीसी की दफ़ा 302 भी शामिल है जिसे जांच अधिकारी ने चार्जशीट में हटा कर दफ़ा 304 में बदल दिया  है जिसको चुनौती देने के लिए उनकी तरफ़ से दिनांक 31 अगस्त 2019 को सरायकेला सीजेएम कोर्ट में एक आवेदन दिया गया है जिसे कोर्ट ने आगे की करवाई के लिए ऑन रिकॉर्ड रख लिया है। तबरेज़ की पत्नी की तरफ़ से इस मामले में एक व्यक्ति प्रकाश मंडल उर्फ पप्पू मंडल के नामज़द और  सौ अज्ञात लोगों  के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई गई है।

जब इस केस के सम्बंध में तबरेज़ के चाचा मसरूर आलम से बात हई तो उन्होंने बताया कि  शुक्रवार, 6 सितंबर को रांची मानवाधिकार आयोग में भी इस संबंध में एक आवेदन दिया गया है जिसमें विषय के तौर पर ये लिखा गया है के सरायकेला थाना अन्तर्गत काण्ड संख्या 77 /19 , दिनांक 22 - 06 -2019 में अनुसंधानकर्ता द्वारा आरोप पत्र संख्या 81 /19 दिनांक 27 - 07 - 2019 को धारा 302 भा.द. वि को हटा कर अन्य धाराओं के अलावा धारा 304  भा.द. वि के अंतर्गत सरायकेला सीजेएम के न्यायालय में दिनांक 23 - 07 - 2019 को ग़लत ढंग से आरोप पत्र दाख़िल करने के संबंध में आवेदन दिया जा रहा है।

तबरेज़ के चाचा के मुताबिक यह आवेदन मानवाधिकार आयोग रांची में स्वीकृत कर लिया गया है और कार्रवाई एवं जांच का आश्वासन दिया गया है।

आप को याद होगा अभी महज़ कुछ दिन पहले देश ने पहलू ख़ान मॉब लिंचिंग प्रकरण पर आया न्यापालिका का फ़ैसला देखा है जिसमें जांच की लापरवाही और पुलिस के ग़ैर ज़िम्मेदाराना रवैये के कारण आरोपियों को संदेह का लाभ मिला और वो बरी हो गए। तबरेज़ अंसारी के मामले में भी ऐसी ही प्रशासनिक लापरवाहियां प्रारम्भिक समय से ही लगातार सामने आ रही हैं।

अगर हम केस की शुरुआत से चर्चा करें तो तबरेज़ को ग्रामीणों से छुड़ा कर जब प्राथमिक चिकित्सा के लिए लाया गया तो उसे इलाज की ज़रूरत थी लेकिन ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टरों ने उसे गंभीरता से नहीं लिया। फ़िट फ़ॉर जेल का प्रमाण पत्र दे दिया और पुलिस के ज़िम्मेदारों द्वारा कोर्ट में उसके सर में गंभीर चोट की चर्चा नहीं की गयी जिसके बाद उसे न्यायालय द्वारा न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।

ग्रामीणों द्वारा दर्ज कराई गयी चोरी की प्राथमिकी के आधार पर इस संबंध में तबरेज़ का इक़बालिया ब्यान लिया गया लेकिन पुलिस रिकॉर्ड में उसके साथ की गयी मारपीट का कोई ज़िक्र नहीं किया गया है।

28 जून 2019 को एक स्थानीय हिंदी समाचार पत्र ने भी अपनी रिपोर्ट में भी तबरेज़ अंसारी की मौत और प्रशासन के रवैये पर कई सवाल उठाये हैं कि सूचना मिलने के बाद भी पुलिस लगभग पांच घंटे देरी से क्यों पहुंची, जब तबरेज़ पिटाई के कारण घायल था तो पुलिस अस्पताल क्यों लेकर नहीं गई, घायलवस्था में तबरेज़ को थाने में क्यों रखा गया और परिजनों को मिलने से क्यों मना कर दिया गया। अन्य कई समाचार एजेंसियों ने भी पुलिस के रवैये पर सवाल उठाये हैं।

18 जून 2019 को सुबह तबरेज़ की प्राथमिक जांच के समय दो डॉक्टरों ने उसकी जांच की और समान्य चोट बता कर उसे थाना भेज दिया और फिर शाम में जब पुलिस उसे जेल ले कर जाने से पहले मेडिकल के लिए लाया गया तो ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर ने उसकी जांच के नाम पर खानापूर्ति की और केवल घुटने का एक्सरे कर के छोड़ दिया गया जबकी उसके सर में गंभीर चोट लगी हुई थी।

पुलिस हिरासत में तबरेज़ की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई है जिसमें तबरेज़ के सर पट्टी बंधी स्पष्ट दिखाइ दे रही है। सर में चोट थी और जांच टीम के अनुसार भी तबरेज़ ने पुलिस और डॉक्टर दोनों को अपने सर में चोट के संबंध में जानकारी दी थी तो उसका सिटी स्कैन क्यों नहीं करवाया गया और उचित स्वास्थ निरीक्षण क्यों नहीं किया गया ?

आखिर तबरेज़ को उचित ज़रूरी इलाज के बिना जेल भेजने के लिए किस बात की जल्दी थी ?

सवाल ये भी है की घटना के कुछ घंटों के अंदर पुलिस पीड़ित तबरेज़ से इक़बालिया ब्यान ले लेती है लेकिन उस ब्यान में तबरेज़ द्वारा उसके साथ की गयी हिंसा की कोई चर्चा नहीं करती जबकि आरोपियों ने ख़ुद पूरी घटना को वीडियो में रिकॉर्ड किया है।

सबसे बड़ा सवाल ये है के पुलिस ने 18 जून 2019 को गावंवालों की बात मानते हुए तबरेज़ पर चोरी की प्राथमिकी तो दर्ज कर ली थी लेकिन तबरेज़ की तरफ़ से या अपने विभाग की तरफ़ से भीड़ द्वारा की गयी हिंसा यानी मॉब लिंचिंग का केस क्यों दर्ज नहीं किया?

क्या पुलिस को भीड़ द्वारा की गयी हिंसा यानी मॉब लिंचिंग के संबंध में माननीय सर्वोच्च न्यायालय का दिशा निर्देश मालूम नहीं है या पुलिस के लिए किसी भी आरोप में एक असहाय व्यक्ति को भीड़ द्वारा खम्भे से बाँध कर रात भर पीटना कोई अपराध नहीं है या कानून व्यवस्था के लिए चुनौती नहीं है ??

पुलिस ने तबरेज़ की मौत के बाद परिवार की तरफ़ से शिकायत और बयान पर तबरेज़ के साथ हिंसा करने वालों पर प्राथमिकी दर्ज की जबकि पुलिस तबरेज़ का बयान ले कर ही उसके साथ इस निर्ममता से मारपीट करने वालों पर मुक़दमा दर्ज कर अभियुक्तों की पहचान करा सकती थी।

इस संबंध में 'यूनाइटेड अगेंस्ट हेट' से जुड़े मानवाधिकार कार्यकर्ता सौरभ मिश्रा शुक्रवार, 6 सितंबर को इस केस के जांच अधिकारी राजनारायण सिंह से फोन पर बात करते हैं तो जांच अधिकारी क्या कहते हैं ये भी ग़ौरतलब है।

सौरभ मिश्रा जब जांच अधिकारी राज नारायण सिंह से पूछते हैं मौत का कारण क्या है तो अधिकारी बताते हैं के तबरेज़ की मृत्यु सडेन कार्डिएक अरेस्ट ( आकस्मिक हृदयाघात) है और उनके अनुसार उन्होंने इस संबंध में डबल ओपिनियन भी लिया है और दोनों जगह से सडेन कार्डिएक अरेस्ट ही बताया गया है।

जबकि वकील अलताफ़ हुसैन के अनुसार चार्जशीट के साथ जो पोस्टमार्टम रिपोर्ट संलग्न की गयी है उसमें मृत्यु का कारण कॉलम में - ओपिनियन रिज़र्व लिखा हुआ है। सम्भव है के ये सडेन कार्डिएक वाला रीज़न अब मेंशन किया जाए वायरल वीडियो की फोरेंसिक रिपोर्ट के संबंध में पूछे जाने पर अधिकारी कहते हैं के वो रिपोर्ट आ गयी है।

सौरभ मिश्रा जब सवाल करते हैं के चार्जशीट में कौन सी धारा लगाई गयी है ? 302 या क्या ?

तो जांच अधिकारी राज नारायण सिंह कहते हैं के कार्डिएक अरेस्ट में 302 कैसे लगेगा ? 304 लगेगी शायद यही वजह है कि प्राथमिकी में दर्ज धारा 302 को 304 में तब्दील कर दिया गया है लेकिन वकील अल्ताफ़ हुसैन के अनुसार अभी विसरा रिपोर्ट कोर्ट में सील बंद है और खुली नहीं है तो आगे की करवाई में कुछ और बातें सामने आएँगी।

सौरभ पूछते हैं कि आरोपियों की शिनाख़्त परेड हुई या नहीं तो जांच अधिकारी के अनुसार इसकी ज़रूरत नहीं है और सब रिमांड पर हैं।
और अब जांच अधिकारी के अनुसार एक ही काम बचा है कि एक आदमी की आवाज़ की सैम्पलिंग करनी है जिसके लिए अभी वो FSL रांची आये हुए हैं। इसमें आवाज़ के नमूने चंडीगढ़ भेज देंगे और इसके बाद वो लोग इसको क्लोज़ करेंगे।

सौरभ जब जांच अधिकारी से पूछते हैं कि तबरेज़ को भीड़ से रेस्क्यू करने के बाद पुलिस किस जगह इलाज के लिए ले गयी थी जेल ले जाने से पहले तो जांच अधिकारी कहते हैं कि सरायकेला सदर अस्पताल ले जाया गया था। उस समय उसकी स्थिति ऐसी नहीं थी। कोई कल्पना नहीं कर सकता था कि अचानक मृत्यु हो जाएगी। जेल में भी घूमते फिरते दिखाई दे रहा है। वीडियो में और सारे पहलुओं पर भी हमलोगों ने जांच किया है।

और अंत मे जब सौरभ पूछते हैं कि तबरेज़ ने अपने बयान में क्या बताया था आप लोगों को, तो जांच अधिकारी बताते हैं कि बताया था कि हम लोग 3 आदमी थे और चोरी के लिए गए थे और जिस घर मे घुसे थे उन लोगों ने पकड़ लिया और दो लोग भाग गए। जो भागे हैं उनका क्रिमनल इंसिडेंट रहा है चोरी का।

फिर तबरेज़ ने अपनी पिटाई के सम्बंध में क्या कहा था के सवाल पर अधिकारी कहते हैं कि बताया तो था ही कि ग्रामीणों ने पीटा था
लेकिन ये बात उसके स्टेटमेंट में है या नहीं की बाबत सवाल पर अधिकारी के अनुसार मर्डर के बाद हम लोग उसका स्टेटमेंट रिकॉर्ड थोड़ी न कर पाए। इसके पहले उसने डॉक्टरों से तो बताया ही था के उसके साथ मारपीट हुई है।

इलाज में लापरवाही बरतने के सवाल पर अधिकारी कहते हैं के दिल्ली तो है नहीं यहाँ सिटी स्कैन की सुविधा भी नही है और न ही उसने कोई शिकायत की थी। हम लोग बहुत डिटेल पूछताछ किये थे। हेड इंज्युरी का कोई लक्षण भी नहीं था ( आपको बता दूँ के जांच टीम के अनुसार तबरेज़ ने पुलिस को अपने सर में चोट के बारे में बताया था।)

जांच अधिकारी के अनुसार इस केस को मीडिया ने हाइलाइट कर दिया और कोई ऐसी बात भी नहीं थी।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में विरोधाभास,पुलिस अनुसंधान में लापरवाही और इस पूरी घटना को भीड़ द्वारा की गई हत्या की जगह प्राकृतिक मौत में बदलने की क़वायद स्पष्ट दिख रही है।

पहलू ख़ान मामले की तरह ही जांच भी पहले पीड़ित की ही शुरू की गई यानी तबरेज़ पर चोरी की प्राथमिकी 18 जून 2019 को ही दर्ज कर ली गयी जबकी भीड़ द्वारा मारपीट और जबरन धार्मिक नारे लगवाने के सम्बन्ध में प्राथमिकी तबरेज़ की मौत के बाद दर्ज की गई और फ़िलहाल निलंबित दरोग़ा विपिन बिहारी ने तो तबरेज़ को भीड़ से रेस्क्यू करने के बाद ही उसे अपनी तरफ़ से दोषी मानते हुए तबरेज़ के चाचा के अनुसार थाने में आये तबरेज़ के परिवार वालों को चोर के समर्थन में सिफ़ारिश करने के लिए हाथ पैर तोड़ देने की धमकी दी थी।

फिलहाल कॉग्निजेंस के बाद सरायकेला सीजेएम कोर्ट में इस पर बहस शुरू होगी और नतीजा क्या निकलता है के ये अभी भविष्य के गर्भ में है लेकिन हर बार ये सवाल ज़रूर उठाये जाएंगे के सुप्रीम कोर्ट के निदेशों के बाद अभी तक राज्य सरकारों द्वारा इस संबंध में कोई ठोस क़दम क्यों नहीं उठाया गया है और विशेषकर भाजपा शासित राज्यों में तो इस पर खानापूर्ति तक के लिए भी कोई चर्चा नहीं दिखती है। झारखंड सरकार ने इस संबंध में केवल दिशा निर्देश जारी किये हैं। व्यवहारिक रूप से प्रशासनिक स्तर पर या फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना इत्यादि नहीं की गयी है

जबकि झारखंड में इस मॉब लिंचिंग कानून की सख़्त अविलम्ब ज़रूरत थी क्योंकि तबरेज़ की मौत से पहले झारखण्ड में विगत 3 सालों में 18 लोग इस भीड़ का शिकार हुए हैं। इतना ही नहीं यहां डायन प्रथा के नाम पर आदिवासी महिलाओं को भीड़ द्वारा पीट पीट कर मार डालने की घटना काफ़ी होती है और आपको बता दूं कि 2001 से लेकर 2018 तक अठारह सालों में तक़रीबन 590 महिलायें इस ख़ौफ़नाक डायन प्रथा की कुरीति का शिकार हुई हैं जिसमें भीड़ ने क्रूरतापूर्वक महिलाओं को पीट पीट कर मार डाला है और इसकी शिकार आदिवासी महिलाएं ज़्यादा होती रही हैं।

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