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भारत
राजनीति
तेलंगाना में पट्टेदार किसानों की स्थिति सबसे चिंताजनकः सर्वे में खुलासा
एक तरफ पट्टेदार किसान जहाँ कृषि-संबंधी चुनौतियों का सामना कर रहें हैं, वहीं दूसरी तरफ राज्य सरकार उनके लिए सहायक सरकारी योजनाओं के विस्तार से इंकार कर रही है।
पृथ्वीराज रूपावत
18 Jun 2018
farmers

एक ग़ैर-सरकारी संगठन रायथु स्वराज वेदिका (आरएसवी) ने एक अध्ययन पाया कि पिछले चार वर्षों में तेलंगाना में आत्महत्या करने वाले किसानों में 75 प्रतिशत से अधिक पट्टेदार किसान थे।

यह अध्ययन मुख्य रूप से इस बात पर केन्द्रित है की आत्महत्या करने वाले किसानों की अपनी ज़मीन थी या वे पट्टेदार थेI ग़ैर सरकारी संगठन आरएसवी ने हैदराबाद स्थित टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के छात्रों की एक टीम के सहयोग से मई-जून महीने के दौरान ऐसे 692 किसान परिवारों से मुलाक़ात की जहाँ किसी सदस्य ने जून 2014 से इस साल के अप्रैल के बीच आत्महत्या की हो। इस अवधि के दौरान आत्महत्या करने वाले कुल 3,500 किसानों का यह सैंपल साइज लगभग 20 प्रतिशत है। किसानों की आत्महत्या के मामले में तेलंगाना देश में दूसरे स्थान पर है।

इस अध्ययन से पता चलता है कि क़रीब 13.5 प्रतिशत पीड़ित भूमिहीन हैं और अन्य 45 प्रतिशत सीमांत किसान हैं (जिनके पास 2.5 एकड़ या उससे से कम भूमि है) तथा 34 प्रतिशत छोटे किसान हैं (इनके पास 2.5 से 5 एकड़ के बीच भूमि है)। इस तरह आत्महत्या करने वाले किसानों में से 93 प्रतिशत सीमांत, छोटे और भूमिहीन किसान हैं।

भू-स्वामित्व

आत्महत्या की संख्या

आत्महत्या का प्रतिशत

भूमिहीन

93

13.5%

0-1 एकड़

115

16.6%

1 – 2.5 एकड़

198

28.6%

2.5 – 5 एकड़

236

34.1%

5 – 10 एकड़

40

5.8%

10 एकड़ से अधिक

9

1.3%

सर्वे में यह पाया गया कि इसमें शामिल 692 परिवारों में से 520 या 75.14 प्रतिशत पट्टेदार किसान (ऐसे किसान जो खेती के लिए पट्टे पर ज़मीन लेते हैं) थे। इनमें से 18 प्रतिशत भूमिहीन थे, जबकि 46 प्रतिशत सीमांत भूस्वामी थे और 30 प्रतिशत छोटे किसान थे। आत्महत्या करने वाले पट्टेदार किसानो में से 94प्रतिशत छोटे, सीमांत और भूमिहीन किसान थे।

निजी ऋण का दबाव

किसानों को आत्महत्या करने पर मजबूर करने वाले सबसे बड़े कारणों में से एक है ऋणI इस अध्ययन में पाया गया कि सीमांत और भूमिहीन किसानों के लिए बैंक से ऋण मिलना काफी मुश्किल होता है। इसलिए इनमें से ज़्यादातर अपनी कृषि संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए निजी ऋण पर निर्भर रहते हैं। अध्ययन में पाया गया कि आत्महत्या करने वाले 520 पट्टेदार किसानों में से 265 किसानों का बकाया बैंक ऋण नहीं था। निजी साहूकारों का उन पर प्रति किसान औसतन 4 लाख का क़र्ज़ थाI इससे पता चलता है कि किसानों की आत्महत्या में निजी ऋण की बहुत बड़ी भूमिका है। इस अध्ययन में यह भी सामने आया है कि इन पीड़ितों को सरकार की तरफ से ऋण माफी जैसा कोई लाभ भी नहीं मिला था।

अध्ययन में पाया गया कि भूमिहीन किसानों पर बैंक ऋण औसतन केवल 11,000 रुपए था जबकि निजी स्रोतों से लिया ऋण में औसत बकाया 3.64 लाख रुपए था। इसके अलावा पट्टेदार किसानों के एक बड़े हिस्से के ऊपर बैंकों का कोई ऋण नहीं था। 93 भूमिहीन पट्टेदार किसानों में से 75 और 115 पट्टेदार किसानों में से 55, जिनके पास शून्य से एक एकड़ भूमि थी, उन पर आत्महत्या करने के समय कोई बैंक ऋण नहीं था।

भू-स्वामित्व

आत्महत्या करने वाले पट्टेदार किसानों की संख्या

औसत बकाया बैंक ऋण

औसत बकाया निजी ऋण

किसान जिनके पास बैंक ऋण नहीं है

भूमिहीन

93

11,000 रु.

3,64,000 रु.

75

0-1 एकड़

115

38,000 रु.

3,85,000 रु.

55

1 – 2.5एकड़

198

46,000 रु.

3,85,000 रु.

67

2.5 – 5एकड़

236

66,000 रु.

4,44,000 रु.

59

5 – 10एकड़

40

1,46.000 रु.

4,34,000 रु.

6

10 एकड़ से अधिक

6

1,40,000 रु.

8,05,000 रु.

3

कुल

520

50,000 रु.

4,06,000 रु.

265

 

 फसल का पैटर्न

फसल के पैटर्न के मामले की बात करें तो आत्महत्या करने वाले परिवारों में 81.4 प्रतिशत ने मुख्य रूप से कपास की खेती की और उनमें से कई ने अपनी भूमि के विभिन्न हिस्सों में कई फसलों की कृषि की इसके बाद 36 प्रतिशत ने धान की खेती की वहीं 32 प्रतिशत ने मक्का की और 10 प्रतिशत ने चने की।

सामाजिक श्रेणी

आत्महत्या करने वाले किसानों की सामाजिक श्रेणी की बात करें तो पिछड़ी जाति के किसानों का प्रतिशत सबसे अधिक यानि इनका प्रतिशत 61 था। इसके बाद अनुसूचित जाति का 17 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति का 11 प्रतिशत था।

आरएसवी ने किसानों द्वारा राज्य सरकार की समर्थित योजनाओं से प्राप्त लाभ का पता लगाने के लिए तेलंगाना के तीन गांवों का भी सर्वेक्षण किया। ये संगारेड्डी ज़िले में सदाशिवपेट मंडल के पोट्टिपल्ली, मनचेरियल ज़िले में लक्सेट्टिपेटा मंडल के इटिक्यला और आदिलाबाद ज़िले में जैनाथ मंडल के गिम्मा गाँव हैं।

तेलंगाना सरकार ने हाल ही में रायथु बंधु योजना (किसान निवेश सहायता योजना) शुरू किया है जिसके अनुसार प्रति वर्ष 8,000 रुपए प्रति एकड़ कृषि भू-स्वामी को दिया जाएगा। हालांकि इस योजना में शामिल करने की माँग को लेकर राज्य भर के पट्टेदार किसानों ने विरोध प्रदर्शन किया है। हालांकि के चंद्रशेखर राव के अधीन सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समीति की सरकार ने ऐसा करने से इनकार कर दिया।

हालांकि राज्य सरकार का मानना है कि पट्टेदार किसान 20 प्रतिशत से कम हैं उधर तीन गाँव के हुए सर्वे में सामने आया है कि प्रत्येक गाँव में क़रीब 25 से 40प्रतिशत परिवार पट्टेदार किसान हैं जो कृषि के लिए पट्टे पर भूमि लेते रहे हैं।

तीन गाँव में हुए सर्वे में यह पाया गया है कि अधिकांश कृषि भू-स्वामि अन्य व्यवसायों में शामिल हैं। पेशे के मुताबिक केवल 15.5 प्रतिशत भू-स्वामी कृषि करते हैं, जबकि उनमें से 50 प्रतिशत या तो कर्मचारी हैं या व्यवसायी हैं और लगभग 10 प्रतिशत वृद्ध आयु वर्ग के लोग हैं जिन्होंने अपनी भूमि पट्टे पर दिया है। इसके अलावा यह पाया गया कि पट्टे पर देने वाले भू-स्वामियों में लगभग 60 प्रतिशत अपने गाँव से बाहर रहते हैं।

रायथु बंधु योजना के बावजूद जो कि निवेश सहायता की पेशकश कर रही है, यह पाया गया कि भू-स्वामियों ने पट्टेदार किसानों के लिए पट्टे का रक़म भी कम नहीं किया था।

गाँव का नाम

कृषि

व्यवसाय

कर्मचारी

वृ्द्ध

अन्य

पोट्टिप्ली

20

6

29

13

19

इतिक्याला

6

22

25

6

30

गिम्मा

15

20

29

6

18

कुल

41

48

83

25

67

 

 

Telangana
farmers
agrarian crises

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