NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
मास्को सम्मेलन में तालिबान विजेता बनकर उभरा है
अफगानिस्तान में होने वाली निरंतर घटनाओं पर एक नज़र में इस दफा 10 क्षेत्रीय राज्यों और तालिबान के बीच हुआ मास्को सम्मेलन पर केंद्र-बिंदु को रखा गया है।
एम. के. भद्रकुमार
25 Oct 2021
Moscow
तालिबान सरकार के उप प्रधानमंत्री अब्दुल सलाम हनाफ़ी (बीच में) और कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी (दायें) 20 अक्टूबर, 2021 को अफगानिस्तान पर अंतर्राष्ट्रीय वार्ता में भाग लेने के लिए मास्को पहुंचे।

बुधवार को 10 क्षेत्रीय राज्यों और तालिबान अधिकारियों के बीच मास्को वार्ता से जो निष्कर्ष निकले हैं वे उम्मीदों से कहीं बढ़कर हैं। इस सर्वसम्मत राय का महत्व चार गुना है, जैसा कि इस आयोजन के बाद जारी किये गए संयुक्त बयान में यह परिलक्षित होता है:

* क्षेत्रीय स्तर पर यह स्वीकार्यता है कि तालिबान सरकार एक बाध्यकारी “वास्तविकता” है;

* रचनात्मक वचनबद्धता के जरिये ही क्षेत्रीय राज्यों को तालिबान को प्रभावित करने का प्रयास करना चाहिए;

* संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान के तहत एक व्यापक-आधार पर अंतर्राष्ट्रीय दानदाता सम्मेलन को आयोजित करने के लिए के सामूहिक पहल;

* और, अफगानिस्तान की संप्रभुता, स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता को बरकरार रखने के लिए मजबूत क्षेत्रीय समर्थन की दरकार।

इसके साथ ही सर्वव्यापी भू-राजनीतिक नजरिया भी अपनी जगह पर मौजूद है। साफ-साफ़ शब्दों में कहें तो बाईडेन प्रशासन की चालबाजी अब बेमानी साबित हो चुकी है। फॉक्स न्यूज़ ने इस पर तेज रौशनी डालते हुए कहा है कि “तालिबान ने शीर्ष अमेरिकी विरोधियों के समर्थन को हासिल करने में कामयाबी हासिल कर ली है।” दूसरा, सशक्त क्षेत्रीय पहल ने तालिबान सरकार पर दबाव बनाने के पश्चिमी निर्देशात्मक कोशिशों को क्षीण करने का काम किया है।

तीसरा, मास्को ने अफगानिस्तान के पड़ोसियों के सामूहिक हितों के प्रमुख परामर्शदाता, पथप्रदर्शक और अभिभावक के तौर पर एक उच्च स्थान ग्रहण कर लिया है। वहीँ तालिबान प्रतिनिधिमंडल ने इसका गर्मजोशी से स्वागत किया है। चौथा, मध्य एशिया में किसी भी प्रकार की अमेरिकी सैन्य उपस्थिति स्थापित करने के लिए न सिर्फ दरवाजे को जोर से बंद कर दिया गया है, बल्कि क्षेत्रीय राज्य अफगानिस्तान की संप्रभुता, स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन करने वाली किसी भी विदेशी शक्ति के विरोध में हैं।   

और अंत में, मास्को सम्मेलन की पृष्ठभूमि के बरक्श, अफगानिस्तान के नजदीकी पड़ोसियों- पाकिस्तान, ईरान, तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान और चीन के विदेश मंत्रियों के नवगठित मंच ने आगे की राह पर बढ़ने के लिए स्वचालित कर्षण को हासिल कर लिया है। 

मंच की अगली बैठक तेहरान में 27 अक्टूबर को होनी निर्धारित की गई है। यह एक वैयक्तिक रूप मुलाकात करने वाला आयोजन होने जा रहा है और एक विस्तारित प्रारूप में अब इसमें रुसी विदेश मंत्री सेर्गेई लावरोव भी शामिल होंगे!

मास्को सम्मेलन से पहले लावरोव ने तालिबान प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की थी। तालिबान के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी के अनुसार, “रूस के साथ हमारे अच्छे तालुक्कात हैं। हमने आर्थिक रिश्तों, दोनों देशों के बीच व्यापार और नई अफगान सरकार की नीतियों सहित विभिन्न मुद्दों पर पर चर्चा की, जिसका उद्देश्य क्षेत्र के विभिन्न देशों बीच में व्यापार को बढ़ाने और अंततः आर्थिक एकीकरण को प्रोत्साहित करने के लिए अफगानिस्तान की भौगौलिक स्थिति का इस्तेमाल करना है।

सम्मेलन में लावरोव की प्रारंभिक टिप्पणियां इस बात की गवाही देती हैं कि तालिबान सरकार के रु-बरु  रूस आज किस हद तक सुविधाजनक महसूस कर रहा है। उनके शब्दों में “एक नए (अफगान) प्रशासन ने अब पदभार ग्रहण कर लिया है। इस कठोर सच्चाई ने तालिबान के कन्धों पर एक बड़ी जिम्मेदारी डाल दी है। हम सैन्य-राजनीतिक स्थिति को स्थिर करने और सार्वजनिक शासन प्रणाली के सुचारू रूप से संचालन को सुनिश्चित करने के लिए उनके द्वारा किये जा रहे प्रयासों को नोट कर रहे हैं... अफगानिस्तान में जिस शक्ति के नए संतुलन ने 15 अगस्त के बाद से अपनी जडें जमा ली हैं, का निकट भविष्य में कोई विकल्प नहीं है।”

इस तरह के दृष्टिकोण के साथ, लावरोव ने संकेत दिया, “हम इसमें अपनी क्षमताओं को शामिल करने की योजना बना रहे हैं, जिसमें संयुक्त राष्ट्र, शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ), सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन (सीएसटीओ) एवं अन्य बहुपक्षीय संस्थाओं द्वारा प्रदत्त क्षमताएं शामिल हैं ... महत्वपूर्ण रूप से, एससीओ और सीएसटीओ दोनों के पास ही एक विशेष तंत्र मौजूद है जिसे कई वर्ष पहले तैयार किया गया था, जो अफगानिस्तान के साथ बातचीत करने और उस देश में स्थिरता को बढ़ावा देने के रास्तों की पहचान करने के प्रति कटिबद्ध है...हम काबुल के साथ तात्कालिक द्विपक्षीय मुद्दों को हल करने के दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए व्यापारिक रिश्तों को निरंतर विकसित करने के क्रम को जारी रखेंगे।”

स्पष्ट रूप से, सारा जोर “समावेशी सरकार” की वकालत और औपचारिक “मान्यता” दिए जाने के मुद्दे से खिसककर मानवीय विभीषिका को टालने की अनिवार्य जोर पर चला गया है। यह देखना बेहद अहम् है कि वेलेंटीना मतवियेंको (रुसी संघीय परिषद की अध्यक्षा) जैसी प्रभावशाली राजनेता ने क्रेमलिन की राय को प्रतिध्वनित करते हुए पिछले दिन कहा था कि 

“तालिबान सत्ता में आ चुके हैं, वे सारे देश पर अपने नियंत्रण को स्थापित कर चुके हैं और उनके साथ बातचीत करना आवश्यक है, उनसे मिलना आवश्यक है...उनको मान्यता देने या न देने का मुद्दा आज प्राथमिक मुद्दा नहीं है। मेरे विचार में, अगर इस संवाद के नतीजे के तौर पर तालिबान उन शर्तों पर राजी हो जाता है जिनका मैंने उल्लेख किया है, न सिर्फ लिखित में स्वीकृत कर लेता है बल्कि अपनी कार्यवाहियों में भी इसे लागू करता है, तो मेरे विचार में यह निश्चित तौर पर उनको मान्यता देना होगा, क्योंकि वहां पर आजकल वे ही वास्तविक तौर पर सत्ता हैं।”

दरअसल, जहाँ एक तरफ अमेरिका मान्यता दिए जाने के मुद्दे को तालिबान पर दबाव बनाने के लिए सौदेबाजी के कार्ड के तौर पर इस्तेमाल करने में लगा हुआ है, वहीँ मास्को सम्मेलन ने बेहद चतुराई से अमेरिकी तख्ती के पर कतर डाले हैं। जो बाईडेन प्रशासन को किसी बिंदु पर आकर प्रतिबंधों को हटाने के लिए बाध्य होना पड़ेगा।

मास्को सम्मेलन ने बेबाक तरीके से अमेरिका पर निशाना साधते हुए आह्वान किया है कि उसे अफगानिस्तान में मानवीय जरूरतों के वित्तपोषण की लागत को ‘वहन” करना होगा। राष्ट्रपति पुतिन ने कल उस समय कड़ा प्रहार किया जब उन्होंने कहा था कि “वहां (अफगानिस्तान) पर जो हो रहा है उसकी प्राथमिक जिम्मेदारी उन देशों के द्वारा वहन की जानी चाहिए जो वहां पर 20 वर्षों से लड़ाई लड़ रहे थे। और मेरी राय में जो पहली चीज उन्हें करनी चाहिए, वह है अफगान की परिसंपत्तियों को बंधन मुक्त करना और अफगानिस्तान को सर्वोच्च प्राथमिकता वाले सामाजिक एवं आर्थिक कार्यभारों को हल करने की संभावना प्रदान करने में मदद पहुंचाना।”

अंतिम विश्लेषण में मास्को सम्मेलन ने अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान में किसी भी एकतरफा हस्तक्षेप के मार्ग को अवरुद्ध कर दिया है – जिसमें या तो आतंकी समूहों से लड़ने के बहाने “क्षेत्र के बाहर” सैन्य अभियानों के जरिये या आईएसआईएस (जैसा कि सीरिया में घटित हुआ था) जैसे समूहों की मदद से ख़ुफ़िया अभियानों के जरिये तालिबान सरकार की एकता और एकजुटता को कम करके, और इस प्रकार भविष्य में प्रत्यक्ष तौर पर हस्तक्षेप करने के लिए निष्फलता का बहाना बनाने जैसा कदम शामिल था।

लेकिन विरोधाभास यह है कि तालिबान सरकार की स्थिरता के लिए क्षेत्रीय राष्ट्र हितधारकों के रूप में सामने आ गए हैं। चीन, निश्चित रूप से इस तरह के दृष्टिकोण का आग्रह करता रहा है। विचारणीय बात यह है कि, कठिन चुनौतियों के बावजूद, मास्को भी अब इस तर्क के पीछे की खूबियों को महसूस कर रहा है कि अफगान अर्थव्यवस्था को अंततः विकास के इंजन के तौर पर तब्दील किया जा सकता है।

ग्लोबल टाइम्स द्वारा की गई एक हालिया टिप्पणी में कहा गया है, “अफगानिस्तान के पास मजबूत विकास की संभावना है और वहां पर निवेश करना बेहद मौजूं है...यह देश खनिज संसाधनों के मामले में बेहद समृद्ध है...यदि अफगानिस्तान अपनी वित्तीय चुनौतियों से निपटने के लिए खनिज खनन पर भरोसा जताता है तो, यह क्षेत्रीय स्थिरता के लिए अनुकूल होने के साथ-साथ चीन के हितों के अनुकूल रहेगा। चीनी उद्यमों के निवेश की स्थिति का मुख्य दारोमदार इस बात पर निर्भर करेगा कि क्या तालिबान घरेलू उत्पादन और निर्माण की सुरक्षा को प्रभावी ढंग से सुनिश्चित कर सकता है, सामाजिक व्यवस्था को स्थिर बनाए रख सकता है, सुरक्षा प्रदान कर सकता है और निवेशकों का विश्वास वापस जीत पाने के लिए आतंकवाद से लड़ सकता है या नहीं।”

कुलमिलाकर लुब्बोलुआब यह है कि तालिबान इस बात से काफी हद तक संतुष्ट होगा कि मास्को सम्मेलन ने उनकी सरकार के तथाकथित “वैधता वाले पहलू” को वस्तुतः एक गैर-जरुरी मुद्दा बना डाला है।

रचनात्मक जुड़ाव की कीमियागिरी कुछ ऐसी है कि यह वास्तविक मान्यता के लिए संवर्धित राशि साबित होगा, खासकर यदि संयुक्त राष्ट्र को दानदाताओं के सम्मेलन को आयोजित करना पड़े। संक्षेप में, मास्को सम्मेलन ने इस बात को सुनिश्चित कर दिया है कि समय बीतने के साथ-साथ तालिबान के खिलाफ अमेरिका का अड़ियल और प्रतिहिंसक रुख, अस्थिर होता चला जायेगा।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Taliban is Winner at Moscow Conference

Afghanistan
Taliban Crisis
TALIBAN
Moscow

Related Stories

भोजन की भारी क़िल्लत का सामना कर रहे दो करोड़ अफ़ग़ानी : आईपीसी

तालिबान को सत्ता संभाले 200 से ज़्यादा दिन लेकिन लड़कियों को नहीं मिल पा रही शिक्षा

मारियुपोल की जंग आख़िरी पड़ाव पर

रूस पर बाइडेन के युद्ध की एशियाई दोष रेखाएं

काबुल में आगे बढ़ने को लेकर चीन की कूटनीति

तालिबान के आने के बाद अफ़ग़ान सिनेमा का भविष्य क्या है?

अफ़ग़ानिस्तान हो या यूक्रेन, युद्ध से क्या हासिल है अमेरिका को

बाइडेन का पहला साल : क्या कुछ बुनियादी अंतर आया?

सीमांत गांधी की पुण्यतिथि पर विशेष: सभी रूढ़िवादिता को तोड़ती उनकी दिलेरी की याद में 

पाकिस्तान-तालिबान संबंधों में खटास


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल
    02 Jun 2022
    साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद भी एलजीबीटी कम्युनिटी के लोग देश में भेदभाव का सामना करते हैं, उन्हें एॉब्नार्मल माना जाता है। ऐसे में एक लेस्बियन कपल को एक साथ रहने की अनुमति…
  • समृद्धि साकुनिया
    कैसे चक्रवात 'असानी' ने बरपाया कहर और सालाना बाढ़ ने क्यों तबाह किया असम को
    02 Jun 2022
    'असानी' चक्रवात आने की संभावना आगामी मानसून में बतायी जा रही थी। लेकिन चक्रवात की वजह से खतरनाक किस्म की बाढ़ मानसून से पहले ही आ गयी। तकरीबन पांच लाख इस बाढ़ के शिकार बने। इनमें हरेक पांचवां पीड़ित एक…
  • बिजयानी मिश्रा
    2019 में हुआ हैदराबाद का एनकाउंटर और पुलिसिया ताक़त की मनमानी
    02 Jun 2022
    पुलिस एनकाउंटरों को रोकने के लिए हमें पुलिस द्वारा किए जाने वाले व्यवहार में बदलाव लाना होगा। इस तरह की हत्याएं न्याय और समता के अधिकार को ख़त्म कर सकती हैं और इनसे आपात ढंग से निपटने की ज़रूरत है।
  • रवि शंकर दुबे
    गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?
    02 Jun 2022
    गुजरात में पाटीदार समाज के बड़े नेता हार्दिक पटेल ने भाजपा का दामन थाम लिया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले चुनावों में पाटीदार किसका साथ देते हैं।
  • सरोजिनी बिष्ट
    उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा
    02 Jun 2022
    "अब हमें नियुक्ति दो या मुक्ति दो " ऐसा कहने वाले ये आरक्षित वर्ग के वे 6800 अभ्यर्थी हैं जिनका नाम शिक्षक चयन सूची में आ चुका है, बस अब जरूरी है तो इतना कि इन्हे जिला अवंटित कर इनकी नियुक्ति कर दी…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License