NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
ट्रेड यूनियनों ने की 8-9 जनवरी को राष्ट्रव्यापी हड़ताल की घोषणा
मोदी सरकार की मज़दूर विरोधी नीतियों के विरोध में शुक्रवार को राष्ट्रीय राजधानी में 10 ट्रेड यूनियनों के 2,000 से अधिक मज़दूर-कर्मचारी इकट्ठे हुएI
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
29 Sep 2018
Translated by महेश कुमार
Indian Trade Unions' Convention

नई दिल्ली: भगत सिंह की जयंती के अवसर पर बीजेपी सरकार की कार्पोरेट परस्त और मज़दूर विरोधी रवैये के खिलाफ दिल्ली में 10 से अधिक केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और स्वतंत्र यूनियनों के 2,000 कार्यकर्ता एक बड़ी विरोध सभा में इकट्ठे हुए और 8-9 जनवरी 2018 को राष्ट्रव्यापी हड़ताल की घोषणा की। अखिल भारतीय ट्रेड युनियन कांग्रेस (एआईटीयूसी) की  अमरजीत कौर ने 2,000 से अधिक श्रमिकों को संबोधित करते हुए कहा, "मज़दूर वर्ग और लोगों की आवाज़ को 'राष्ट्र विरोधी' के रूप में ब्रांड करके दबाने का प्रयास किया जा रहा है। लेकिन यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि यह मज़दूर वर्ग ही था जो इस देश के विकास और बेहतरी के लिए लड़ा था, न कि आरएसएस और बीजेपी के सदस्य, हम यानी मज़दूर इस देश के असली देशभक्त हैं।"

आईएलओ कन्वेंशन 1989 की बहाली नहीं

इस विशाल सम्मेलन का आयोजन 10 प्रमुख केंद्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा दिया गया था, जिसमें सेंटर ओफ इंडियन ट्रेड युनियन (सीआईटीयू), इंडियन नेशनल ट्रेड युनियन कांग्रेस (आईएनटीयूसी), अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एआईटीयूसी), स्व-नियोजित महिला संघ (सेवा) थी।

यूनियनों ने सरकार की अज्ञानता पर प्रकाश डाला और कहा कि सरकार ने 1989 के आईएलओ के सिद्धांतों को अभी तक मंजूरी नहीं दी है और लगातार प्रयासों के बावजूद अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन के आयोजन में पूर्णत विफल रहा है। इसके अतिरिक्त, केंद्र सरकार सभी मोर्चों पर भी बुरी तरह विफल रही है, जहां तक श्रमिकों के अधिकारों का संबंध हैI 12-बिंदु चार्टर पर कोई ध्यान नहीं दिया गया, जो मज़दूरों के लिए सम्मानित अस्तित्व की मांग करता हैI इसके साथ ही नियमित न्यूनतम मज़दूरी और सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा की मांग भी शामिल है।

पूरे भारत में मज़दूर हड़ताल

सीआईटीयू के महासचिव तपन सेन ने कहा, "मज़दूर वर्ग ऐसी स्थिति में लड़ रहा है जहाँ राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कॉर्पोरेट वर्ग हमारे देश को नष्ट करने में लगे हैं।" उन्होंने आगे कहा, "हमें इस हमले का विरोध करना है और मज़दूर विरोधी और जन विरोधी शासक वर्ग को हटाना है।"

यह सम्मेलन एक ऐसे समय में हो रहा है, जब हज़ारों मज़दूर पूरे देश में मज़दूर वर्ग पर हमलों के खिलाफ लड़ रहे हैं - चाय एस्टेट श्रमिकों की हड़ताल, राजस्थान परिवहन कर्मचारियों की हड़ताल, यामाहा और रॉयल एनफील्ड श्रमिकों की तमिलनाडु में हड़ताल- आदि का उल्लेख किया गया।

यूनियनों ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार ने वास्तविक और न्यायसंगत मांगों पर कोई आश्वासन देने से इन्कार कर दिया है। इसके बजाय उन्होंने श्रमिकों, ट्रेड यूनियनों और अपने स्वयं के कर्मचारियों के अधिकारों के खिलाफ अपनी आक्रामकता को बढ़ा दिया है, क्योंकि केंद्र सरकार के कर्मचारी 7 वें वेतन आयोग के अनुसार अपने वैध वेतन की मांग कर रहे हैं।

देश की अर्थव्यवस्था की बिगड़ती स्थितियों पर चिंता व्यक्त करते हुए, युनियन नेताओं ने सरकार की मज़दूर-विरोधी और पूंजिपति समर्थक संहिता पर ज़ोरदार हमला किया। यूनियनों ने रणनीतिक सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के निजीकरण के साथ-साथ भारतीय रेलवे को निजी खिलाड़ियों को बेचने के लिए सरकार द्वारा किए गए प्रयासों की भी आलोचना की। सम्मेलन में एआईआरएफ और एनएफआईआर समेत रेलवे यूनियन के साथी भी मौजूद थे।

न्यूज़क्लिक के साथ बात करते हुए एआईआरएफ के शिव गोपाल मिश्रा ने कहा, "यह एक नया इतिहास बनाने का समय है। यदि रेलवे की यूनियनों ने मज़बूती से विरोध नहीं किया होता तो सरकार ने रेलवे को बेच दिया होता। रेलवे यूनियनों के प्रतिरोध ने रेलवे में पूर्ण एफडीआई के दबाव डालने के प्रयासों को रोक दिया है। अगर सरकार रेलवे का निजीकरण करने का प्रयास जारी रखती है, तो हम चेतावनी देते हैं कि रेलवे युनियन एक नाकाबंदी शुरू करेगी। रेलवे हमेशा इस देश में गरीब लोगों का साधन रहा है जिसे अब सरकार इसे खत्म करना चाहती है।"

अखिल भारतीय हड़ताल की ओर

चूंकि सरकार 'व्यवसाय करने में आसानी' के अपने एजेंडे को आगे बढ़ा रही है, इसलिए यूनियनों ने भारी मतदान के साथ आह्वान किया कि जनवरी की हड़ताल एक राष्ट्रव्यापी अनिश्चितकालीन हड़ताल की तैयारी है। कौर ने कहा, "केंद्र सरकार और राज्यों में सरकार जो भी मज़दूर विरोधी नीतियों में शामिल हैं, मज़दूर आंदोलन मज़बूती से उसके खिलाफ लड़ेगा। हम यह सुनिश्चित करने के लिए कि मज़दूरों हमले न हों हम हर कारखाने और सड़क पर जाएंगे। हमें 8-9 जनवरी की हड़ताल से पहले खुद को तैयार और मज़बूत करना होगा।

एसईडब्ल्यूए की सोनिया ने कहा, "हमें असंगठित और घर आधारित श्रमिकों को एकजुट करने और मज़बूत करने की ज़रूरत है और मज़दूर वर्ग के खिलाफ नीतियों का विरोध करने के लिए समेकित/सन्युक्त आंदोलन को आगे बढ़ाया जाना चाहिए।"

"हमारे नारे स्पष्ट हैं - 'मोदी हटाओ, मज़दूर बचाओ; मोदी हटाओ, देश बचाओ'। मोदी सरकार के चार वर्षों में, हमने देखा है कि न केवल श्रमिकों पर हमलों में वृद्धि हुई है, बल्कि अभिव्यक्ति की आज़ादी और विरोध की सभी तरह की आवाज़ों को दबाने की कोशिश की जा रही है।“ एआईसीसीटीयू से एक प्रतिबध राजीव ढिमरी ने कहाI उन्होंने यह भी कहा कि "यह सरकार विनाश की सरकार है जो मज़दूर वर्ग, किसानों, लोकतंत्र और रोज़गार के विनाश की सरकार बन गई है।"

मांगों के 12-पॉइंट चार्टर में ट्रेड यूनियनों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के सार्वभौमिकरण के माध्यम से मूल्य वृद्धि और कमोडिटी बाज़ार में सट्टा व्यापार पर प्रतिबंध लगाने के लिए तत्काल उपाय करने की मांग भी शामिल हैI इसमें रोज़गार उत्पादन के लिए ठोस कदम उठाने के माध्यम से बेरोज़गारी का खात्मा, सभी बुनियादी श्रम कानूनों को सख्ती से लागू करना और श्रम कानूनों का उल्लंघन करने के लिए कड़े दंडनीय उपायों का प्रावधान करना, सभी श्रमिकों को सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा कवर देना, इंडेक्सेशन के प्रावधानों के साथ प्रति माह 18,000/- रुपये से का न्यूनतम वेतन, केंद्रीय/राज्य पीएसयू में विनिवेश को रोका जाए और रणनीतिक बिक्री बंद की जाए, ठेकेदारी प्रथा पर रोक लगायी जाए और स्थायी बारहमासी काम दिया जाए तथा ठेके श्रमिकों के लिए समान मज़दूरी का भुगतान और नियमित श्रमिकों के लिए समान और समान काम के लिए लाभ दिया जाए आदि मांगे भी शामिल हैं।

trade unions
working class
working class struggle
Workers' Strike

Related Stories

मुंडका अग्निकांड : क्या मज़दूरों की जान की कोई क़ीमत नहीं?

मुंडका अग्निकांड: सरकारी लापरवाही का आरोप लगाते हुए ट्रेड यूनियनों ने डिप्टी सीएम सिसोदिया के इस्तीफे की मांग उठाई

मज़दूर दिवस : हम ऊंघते, क़लम घिसते हुए, उत्पीड़न और लाचारी में नहीं जियेंगे

ज़रूरी है दलित आदिवासी मज़दूरों के हालात पर भी ग़ौर करना

मई दिवस: मज़दूर—किसान एकता का संदेश

ट्रेड यूनियनों की 28-29 मार्च को देशव्यापी हड़ताल, पंजाब, यूपी, बिहार-झारखंड में प्रचार-प्रसार 

महामारी के मद्देनजर कामगार वर्ग की ज़रूरतों के अनुरूप शहरों की योजना में बदलाव की आवश्यकता  

उत्तराखंड चुनाव: राज्य में बढ़ते दमन-शोषण के बीच मज़दूरों ने भाजपा को हराने के लिए संघर्ष तेज़ किया

केंद्रीय बजट-2022: मजदूर संगठनों ने कहा- ये कॉर्पोरेटों के लिए तोहफ़ा है

2021 : जन प्रतिरोध और जीत का साल


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License