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भारत
राजनीति
झूठी शपथ से अच्छा है कि संविधान से सेक्युलर शब्द ही हटा दिया जाए!
सोशलिस्ट और सेक्युलर (समाजवादी और पंथनिरपेक्ष या धर्मनिरपेक्ष), इन्हीं दो शब्दों के कारण ही हमारे सांसदों को संविधान की झूठी सौगंध खानी पड़ती है...। डॉ. द्रोण का व्यंग्य स्तंभ ‘तिरछी नज़र’
डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
15 Dec 2019
constitution of india

हमारे नेता जब सांसद बनते हैं तो संविधान की शपथ ग्रहण करते हैं। हम सब लोग जानते हैं, कसमें झूठी ही खाई जाती हैं। लेकिन संविधान बनाने वाले लोग शायद मूड में थे, या फिर उन्हें अंदाजा ही नहीं था कि सांसद भी झूठी शपथ लेनी शुरू कर देंगे। इसीलिए उन्होंने सांसदों को संविधान की शपथ ग्रहण करवाना शुरू कर दिया। अब पद तो कोई छोड़ नहीं सकता, सो सांसदों ने झूठी शपथ लेनी शुरू कर दी और मंत्री तक बन गये। उस झूठी शपथ लेने से कुछ नेताओं को तो झूठ बोलने की आदत ही पड़ गई। जब भी बोलते हैं, झूठ ही बोलते हैं। बार बार बोलते हैं, हर बार बोलते हैं, लेकिन झूठ ही बोलते हैं।
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जो लोग संविधान की झूठी सौगंध खाते हैं, वो इसलिए कि उनकी निगाह में हमारे संविधान में दो शब्द सबसे खराब हैं सोशलिस्ट और सेक्युलर (समाजवादी और पंथनिरपेक्ष या धर्मनिरपेक्ष)। इन्हीं दो शब्दों के कारण ही उन्हें संविधान की झूठी सौगंध खानी पड़ती है। अब इन दो शब्दों को जरूर ही बदला जाना चाहिए।

देश की प्रगति में जो भी रुकावट हैं, इन्हीं शब्दों की के कारण हैं। विशेष रूप से सेक्युलर (पंथनिरपेक्ष या धर्मनिरपेक्ष) शब्द से। यह सरकार जो भी प्रगतिशील कदम उठाना चाहती है, यह सेक्युलर शब्द उसके आड़े आ जाता है। कहा जाता है कि सरकार का यह कदम संविधान की सेक्युलर अवधारणा के विरूद्ध है। यही एक शब्द है जो देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने से भी रोक रहा है। ऐसा शब्द जो पूरी सरकार की नीतियों के आड़े आ जाये, उसे तो संविधान से उड़ा ही देना चाहिए।

हमारे मोदी जी की फितरत है कि वे घर में घुस कर मारते हैं। ऐसा मैं नहीं कह रहा हूँ, मोदी जी ने स्वयं ही बालाकोट के समय कहा था। अब अगर हमारे मोदी जी अपनी पर आ गये तो यह सेक्युलर शब्द न सिर्फ भारत के संविधान से निकाला जायेगा अपितु विश्व के सभी शब्दकोशों से भी निकल जायेगा। सारे सेक्युलर लोगों को पीने को पानी भी नहीं मिलेगा। मोदी जी के खौफ से उन्हें विश्व के किसी भी देश में शरण तक भी नहीं नसीब होगी।

दूसरा बेकार का शब्द है सोशलिस्ट यानी समाजवादी। यह शब्द इतना दकियानूसी है कि हमें आगे बढ़ने ही नहीं देता है। देश में जो प्रगति नहीं हो पा रही है सिर्फ समाजवाद की बेड़ियों के कारण ही नहीं हो पा रही है। इस समाजवाद के कारण ही सरकार खर्च करती है तो गरीब लोगों के कल्याण के लिए, जैसे कि अमीरों को तो कल्याण की जरूरत ही नहीं है। इस समाजवाद की वजह से ही सरकार को गरीब लोगों की चिंता करनी पड़ती है, गरीब किसानों को सब्सिडी देनी पड़ती है।

हम टैक्स पेयर्स का गाढ़ी कमाई से कमाया पैसा समाजवाद के कारण ही गरीबों की पढ़ाई और स्वास्थ्य पर खर्च करना पड़ता है। और यह सब क्यों। क्योंकि संविधान में एक शब्द है सोशलिस्ट। इस शब्द को हटा डालो। सेक्युलर को हटाने के बाद अगला कदम यही होना चाहिये।

सरकार को चाहिए कि देश के संविधान से सोशलिस्ट शब्द को हटाकर कैपिटलिस्ट शब्द लगा दे। मतलब कि पूंजीवादी। यानी हमारा देश समाज (आदमी) से अधिक पूंजी का सम्मान करे। गरीब से अधिक अमीर को चाहे। देश में जो भी पॉलिसी बने अमीरों के पक्ष में बने। होता तो यह आज भी है पर तब संवैधानिक रूप से हो सकेगा। तब कॉरपोरेट टैक्स कम करने के लिए हमें अधिक नौकरियां पैदा होने का बहाना भी नहीं बनाना पड़ेगा। हम बेखौफ हो अमीरों के कर्ज माफ कर सकेंगे। तब अमीरों की मदद करने और गरीबों का कचूमर निकालने का अधिकार हमें हमारा संविधान ही दे देगा।

जब हमारी विकासोन्मुखी सरकार कोई भी कदम अपनी जनता के भले के लिए उठाना चाहती है तो यह जो संविधान है वह आड़े आ जाता है। सभी कहने लगते हैं कि यह तो संविधान विरोधी है। अब चाहे वो अनुच्छेद 370 समाप्त करना हो या एनआरसी हो या फिर इसी सप्ताह संसद में पास किया गया नागरिकता (संशोधन) कानून। सभी को संविधान विरोधी बताया जाता है। क्यों, इन्हीं दो शब्दों के कारण।

यह संविधान लागू हुए आगामी छब्बीस जनवरी को सत्तर साल हो जायेंगे। आजकल देश में पैदा हुए किसी भी व्यक्ति की औसत आयु सत्तर साल ही है, सन् पचास में तो चालीस साल भी नहीं थी। सन् पचास में पैदा हुआ कोई भी अब मरने की कगार पर होगा। इसलिए अब समय आ गया है कि इस संविधान को बदल दिया जाये। इस जवान और राष्ट्र भक्त सरकार को चाहिए कि इस बूढ़े संविधान को मार कर नया संविधान बनाये।

मोदी जी हैं तो मुमकिन है। वे और अमित शाह अपना कोई भी बिल राज्य सभा से भी साम-दाम, दंड-भेद, येन-केन-प्रकरेण, डरा धमका कर, कुछ भी कर पास करवा लेते हैं। मोदी-अमित जोड़ी जोड़-तोड़ से इस समाजवादी पंथनिरपेक्ष संविधान को बदल कर नया, नवीनतम पूंजीवादी, हिन्दू संविधान लागू कर सकती है। बार बार की चिल्लपों की बजाय देश एक ही झटके में हिन्दू राष्ट्र बन जाये तो सांसदो को संविधान की झूठी कसम न खानी पड़े।

(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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