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रसायन विज्ञान में 'जेनेटिक सीज़र' की खोज के लिए दो महिला वैज्ञानिकों को 2020 का नोबेल पुरस्कार
इमैनुएल कार्पेंटियर और जेनिफ़र ए.डूडना द्वारा खोजी गयी जेनेटिक सीज़र के सहारे शोधकर्ता अब बहुत उच्च परिशुद्धता के साथ जानवरों, पौधों और सूक्ष्मजीवों के डीएनए के टुकड़े कर सकते हैं।
संदीपन तालुकदार
09 Oct 2020
इमैनुएल कार्पेंटियर और जेनिफ़र ए. डूडना
इमैनुएल कार्पेंटियर (बायें) और जेनिफ़र ए. डूडना। फ़ोटो साभार: फ़्री प्रेस जर्नल

इस साल पहली बार दो महिला वैज्ञानिकों को रसायन विज्ञान के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार दिया गया है। इमैनुएल कार्पेंटियर और जेनिफ़र ए.डूडना ने जीन एडिटिंग का एक ऐसा उल्लेखनीय तरीका खोज निकाला है, जिसे CRISPR / Cas9 जेनेटिक सीज़र के तौर पर जाना जाता है। इन जेनेटिक सीज़र के सहारे शोधकर्ता अब बहुत उच्च परिशुद्धता के साथ जानवरों, पौधों और सूक्ष्मजीवों के डीएनए के टुकड़े कर सकते हैं।

इस पुरस्कार की घोषणा करते हुए नोबेल सोसाइटी की प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है, “इस तकनीक ने जैविक विज्ञान पर एक क्रांतिकारी प्रभाव डाला है, यह कैंसर के नये-नये उपचार में योगदान दे रहा है और विरासत में मिली बीमारियों को भी दुरुस्त करने के सपना को यह साकार कर सकता है”।

स्ट्रेप्टोकोकस प्योगेनेस के अपने अध्ययन के दौरान इमैनुएल कार्पेंटियरर ने मनुष्य के लिए सबसे नुकसानदेह जीवाणु रोगज़नक़ों में से एक अणु की खोज की, जिसका नाम ट्रांस-एक्टिवेटिंग क्रिस्प आरएनए(tracrRNA) है। इस अणु के बारे में पहले से कुछ भी नहीं पता था। उनके शोध से पता चल पाया कि ट्रांस-एक्टिवेटिंग क्रिस्प आरएनए(tracrRNA), CRISPR / Cas बैक्टीरिया की प्राचीन प्रतिरक्षा प्रणाली का ही एक हिस्सा है। CRISPR /Cas प्रणाली वाले बैक्टीरिया में डीएनए को साफ़ करने के ज़रिये वायरस को निष्क्रिय करने का एक उल्लेखनीय गुण होता है। कार्पेंटियर ने अपनी यह खोज 2011 में प्रकाशित की थी।

बाद में उन्होंने आरएनए रसायन विज्ञान के एक अन्य विशेषज्ञ,जेनिफ़र डूडना के साथ मिलकर काम किया। उनके सहयोग का नतीजा बैक्टीरिया की जेनेटिक सीज़र को एक परखनली में फिर से बनाये जाने के तौर पर सामने आया। इसके अलावा, ये दोनों इस सीज़र के आणविक घटकों को सरल बनाने में कामयाब रहीं और उन तरीक़ों से इसके इस्तेमाल का मार्ग भी प्रशस्त कर दिया,जो संचालन में बहुत सरल हों।

उन्होंने एक मौलिक एक्सपेरिमेंट में जेनेटिक सीज़र को कामयाबी के साथ फिर से तैयार कर दिया, यह एक ऐसा एक्सपेरिमेंट था,जो जीन एडिटिंग को हमेशा के लिए गहरे तौर पर बदल देगा। प्राकृतिक रूप में जीवाणु सीज़र वायरस के डीएनए को पहचान पाने में सक्षम होते हैं। लेकिन,कार्पेंटियर और डूडना ने इस बात को साबित कर दिया कि इस सीज़र को संशोधित किया जा सकता है, ताकि यह किसी भी डीएनए को,वह भी पूर्व निर्धारित स्थल पर काट सके। यह एक ग़ैर-मामूली खोज थी।

2012 में हुई कार्पेंटियर और डूडना की इस खोज के बाद से इस तकनीक का एक व्यापक इस्तेमाल होता पाया गया है। तब से CRISPR / Cas9 जेनेटिक सीज़र का इस्तेमाल पौधों और जानवरों पर कई शोधों में किया गया है। मिसाल के तौर पर, इस सीज़र का इस्तेमाल करके वैज्ञानिक ऐसी फ़सलें विकसित कर सकते हैं,जिनमें सूखे, कीटों और फफूंदी की प्रतिरोधक क्षमता होती हैं। इसी तरह, नये कैंसर उपचारों के नैदानिक परीक्षण इस उम्मीद के साथ किये जा रहे हैं कि एक दिन आनुवांशिक रूप से विरासत में मिली बीमारियों को ठीक करना भी मुमकिन हो पायेगा।

रसायन शास्त्र की नोबेल कमेटी के अध्यक्ष,क्लेस गुस्ताफ़्सन ने इस तकनीक पर टिप्पणी करते हुए कहा, “इस आनुवांशिक तकनीक में विशाल संभावना है, जो हम सभी को प्रभावित करती है। इसने न सिर्फ़ बुनियादी विज्ञान में क्रांति ला दी है, बल्कि इसके ज़रिये नयी फ़सलें भी पैदा हुई हैं और इससे नये –नये चिकित्सा उपचारों को भी बढ़ावा मिलेगा।”

हालांकि, इस तकनीक ने कई विवादों को भी जन्म दिया है,क्योंकि कुछ वैज्ञानिकों ने जीन-संपादित शिशुओं को बनाने की कोशिश में इसका इस्तेमाल किया है। जिस चीनी वैज्ञानिक ने एक कुख्यात मामले में जुड़वां जीन-संपादित शिशुओं को जन्म देने का दावा किया था, उसने भी इसी CRISPR / Cas9 प्रणाली का इस्तेमाल किया था।

बताया जाता है कि कार्पेंटियर ने नोबल पुरस्कार मिलने के बारे में जानने के बाद एक संवाददाता सम्मेलन में कहा था,“ मेरी इच्छा है कि यह उन युवा लड़कियों तक एक सकारात्मक संदेश पहुंचाये,जो विज्ञान के मार्ग पर चलना चाहती हैं, और उन्हें यह दिखाना है कि जिस शोध को वो  अंजाम दे रही हैं, उन शोधों के ज़रिये विज्ञान के क्षेत्र में काम करने वाली महिलायें भी अपना प्रभाव डाल सकती हैं।”

डूडना ने नोबेल पुरस्कार पाने पर एक महिला वैज्ञानिक के तौर पर अपनी भावनाओं को ज़ाहिर करते हुए टिप्पणी की, “मुझे ख़ुद के महिला होने पर गर्व है।” उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि कई महिलाओं के भीतर यह एक भावना होती है कि कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि वे क्या करती हैं उनके काम को कभी मान्यता नहीं दी जायेगी,ऐसा हो सकता था,अगर ये मर्द होतीं। मगर मैं उसमें बदलाव देखना चाहती हूं और मुझे लगता है कि यह सही दिशा में एक सटीक क़दम है।”

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Two Women Scientists Receive Chemistry Nobel 2020 for Discovering ‘Genetic Scissors’

Nobel Prize in Chemistry 2020
CRISPR/Cas9
Emmanuelle Charpentier
Jennifer A. Doudna
Genetic Scissors
gene editing

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