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भारत
राजनीति
उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के 403 रिक्त पड़े पद क्या संविधान को कमजोर बनाते हैं?
वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के 6 पद खली पड़े हैंI
पी.जी आंबेडकर
05 Feb 2018
Translated by महेश कुमार
judiciary

न्यायपालिका के रिक्त पदों से देश के हर नागरिक को चिंतित होना चाहिए। यदि हम सोचते हैं कि भारत में चीज़ें धीमी गति से क्यों चलती हैं और "योजना" के अनुसार नहीं, तो हमें यह समझना चाहिए कि हम एक राजनीतिक अर्थव्यवस्था द्वारा नियंत्रित एक राष्ट्र हैं जो तदर्थवाद में विश्वास करता हैI इस पारिस्थितिकी तंत्र ने आधुनिक लोकतंत्र के स्तंभों में से एक न्यायपालिका को भी नहीं बक्शा हैI

वर्तमान में भारत में पूरे देश के लिए 24 उच्च न्यायालय हैं और इन न्यायालयों के लिए न्यायाधीशों की स्वीकृत ताकत है- स्थायी न्यायाधीशों के लिए 771 है और अतिरिक्त न्यायाधीशों के लिए 308। सर्वोच्च न्यायालय के पास 31 न्यायाधीश हैं। लेकिन अगर हम सरकार से प्राप्त आंकड़ों को देखते हैं तो यह एक दयनीय स्थिति को ही दर्शाता है। विभिन्न उच्च न्यायालयों के लिए न्यायाधीशों की मौजूदा रिक्त पदों की संख्या बहुत बड़ी है, जो 403 है और सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों के 6 पद खाली  हैंI

भारत में, विभिन्न मामलों (केसों) की संख्या बहुतायत में लम्बित पड़ी है और इसके मुख्य  कारणों में से एक का कारण है न्यायाधीशों के पदों को समय पर नहीं भरना। उदाहरण के लिए, चार प्रमुख उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या और न्यायाधीशों के पदों में रिक्तियों को देखा जा सकता है।

- इलाहाबाद उच्च न्यायालय में 160 न्यायाधीशों की स्वीकृत ताकत है, लेकिन केवल 104 न्यायाधीश हैं। 54 पदों को भरने की ज़रूरत है। 31.12.2017 तक इस अदालत में 9,09,065 मामले लंबित पड़े हैं।

- बॉम्बे उच्च न्यायालय में 94 न्यायाधीशों की स्वीकृत ताकत है लेकिन इसमें 24 खाली पद हैं।

- पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में 85 की मंजूरी मिली है, जबकि केवल 35 को भरे जाने की व्यवस्था है। 31 दिसंबर 2017 को इस अदालत में 3,31,538 लंबित मामले सामने आए थे।

- मद्रास उच्च न्यायालय में 75 की स्वीकृत ताकत है लेकिन इसमें 17 न्यायाधीशों की कमी है।

- कर्नाटक और आंध्र-तेलंगाना के उच्च न्यायालयों में न्यायपालिका में रिक्त पद 50 प्रतिशत से अधिक है। कर्नाटक उच्च न्यायालय में 62 न्यायाधीशों की स्वीकृत ताकत है और 38 खाली हैं, जबकि आंध्र प्रदेश तेलंगाना के पास 61 न्यायाधीश हैं और 30 रिक्त पद हैं।

- दिल्ली उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों के लिए 60 की मंजूरी है, लेकिन 22 पद रिक्त है। 3 फरवरी, 2018 को दिल्ली उच्च न्यायालय में 69,650 मामले लंबित पाए गए।

देश में लंबित मामलों पर संसद में उठाए सवाल में, सरकार ने जवाब दिया कि 18.12.2017 तक  सुप्रीम कोर्ट में पाँच साल से अधिक समय तक लंबित मामलों की संख्या क्रमशः 15,929 और 1,550 थी।

इस प्रतिक्रिया में देश के अन्य उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों के विवरण भी शामिल हैं। इसमें कहा गया है कि, "राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (एनजेडीजी) के वेब-पोर्टल पर उपलब्ध सूचना के अनुसार, 26.12.2017 तक उच्च न्यायालयों में (अलाहबाद और जम्मू कश्मीर के उच्च न्यायालयों को छोड़कर) 34.27 लाख मामले लंबित थे। 7.46 लाख मामले पाँच से दस साल पुराने थे और 6.42 लाख मामले दस साल से भी अधिक पुराने थे।"

जब कई लोग सवाल पूछते हैं कि, "भारत में केसों के बैकलॉग का क्या असर है?"

इसका उत्तर इस तथ्य में है कि देश के 403 पद न्यायिक समीक्षा के लिए उच्च न्यायालय के पास लंबित है और सर्वोच्च न्यायालय की तुलना में उच्च न्यायलय की व्यापक भूमिका है, जो अनुच्छेद 226 के तहत प्रदान की गई है। इसका मूलभूत अधिकार क्षेत्रीय और कानूनी अधिकार है। अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट केवल मौलिक अधिकारों को लागू कर सकता है।

संविधान में न्यायपालिका के लिए प्रावधान नहीं है जैसे कि विधान मंडल के लिए है कि संसद या विधानसभा सदस्यों के पद छह महीने से अधिक समय तक खाली नहीं हो सकती। यह तभी तय किया जा सकता है जब इसके लिए अखिल भारतीय न्यायिक सेवा आयोग की स्थापना की जाए और विभिन्न राज्यों के आधार पर होने वाली रिक्तियों या आवश्यकताओं को नियमित आधार पर भरा जाए।

न्यायपालिका
न्यायधीश
Indian constitution
Indian judiciary

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