NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
पाकिस्तान
उरी का इनदिनों क्या हाल है? आप जानते हैं? नहीं...! ग्राउंड जीरो से रिपोर्ट
"इसमें कोई शक नहीं है कि हम युद्ध क्षेत्र में रह रहे हैं, लेकिन यह बंदूकों के सामने बंदूक, और जेट विमानों के खिलाफ जेट होने चाहिए। हम नागरिक हैं। क्या हम इस तरह का एक भयानक जीवन जी पाएँगे?”
ज़ुबैर सोफ़ी
01 Mar 2019
Translated by महेश कुमार
उरी
उरी। फोटो : ज़ुबैर सोफ़ी

उरी : जब भारत और पाकिस्तान आसमान में एक-दूसरे का सामना कर रहे थे, तब उरी सेक्टर के एक क्षेत्र तिलवारी के लोग तोपखाने के हमलों से बचने के लिए खाइयों की तलाश कर रहे थे। सड़कों और पुलों की तबाही के कारण, नागरिकों को बाहर निकालने के लिए लगभग कोई रास्ता उपलब्ध नहीं है क्योंकि वाहनों की पहुंच यहां अक्षम है।

उसी दिन की शाम को जब भारत की वायु सेना ने उत्तरी कश्मीर के पुलवामा हमले का बदला लेने के लिए पाकिस्तान के प्रांत में प्रवेश किया था - जहाँ भारत और पाकिस्तान कई हिस्सों में सीमाएँ साझा करते हैं, ज्यादातर पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर (पाकिस्तान) की सेना ने उत्तरी कश्मीर के बारामूला जिले के एक इलाके उरी में उसी वक्त गोलीबारी शुरू कर दी थी।

जवाब में, कश्मीर की ओर से गोलीबारी शुरू हुई, और कई क्षेत्रों में अतिरिक्त बल और गोला-बारूद भेजे गए जहां गोलीबारी जारी थी।

इलाके से नागरिकों को निकाले बिना ही और बिना कोई चेतावनी दिए दोनों ओर से गोलीबारी शुरू कर दी गई। नागरिकों को अपने मिट्टी-ईंट के घरों (कोठा) में असुरक्षित रहने के लिए मजबूर रहना पड़ा, ऐसे घर जो बेहद कमजोर हैं। थोड़ी देर के बाद, गोलीबारी बंद हो गई, और शांति बहाल हो गई। हालाँकि, लोगों को अभी भी वहां से निकाला नहीं गया था।

उरी सेक्टर के कई गांव जैसे चिरुंडा, सिलिकोट, बालकोटे, तिलवारी सीमा पर स्थित हैं। ये गांव आर-पार की गोलीबारी से बड़ी क्षति के लिए अत्यधिक संवेदनशील हैं।

पहाड़ की चोटी पर स्थित तिलवारी, मुख्य उरी से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर है, और वह सीमा पर स्थित सबसे अंतिम गांवों में से एक है, जो अब रहने के लिए एक बेहद खतरनाक जगह बनता जा रहा है। लेकिन स्थानीय लोगों के पास जगह छोड़ने का कोई भी विकल्प मौजूद नहीं है।

एकमात्र सड़क जो तिलवारी को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ती है, वह खंडहर बन चुकी है। मार्ग हर बार की बारिश के बाद ओर भी घातक हो जाता है। पुल जो उरी को मुख्य सड़क से जोड़ने के लिए एकमात्र शिरा है, भूस्खलन से नष्ट हो गया है, और अब मिट्टी और टूटे हुए पेड़ों के विशाल टीलों द्वारा अवरुद्ध है। गांव तक पहुंचने के लिए लोगों को एक किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है।

पाँच-पाँच किलोमीटर के दायरे में पाँच-पाँच गाँवों में, कोई भी दवाखाना नहीं है। जब भी सीमा पर तनाव होता है, लोग अपनी रातें खौफ में गुजारते हैं, और पाकिस्तान की अंतिम चेक-पोस्ट पर नज़र रखते हैं, क्योंकि यह यहां से स्पष्ट रूप से दिखाई देता है, इसकी ऊंचाई के कारण।

tilwari.jpg

तिलवारी। फोटो : ज़ुबैर सोफ़ी 

पाकिस्तान की हरी-छत वाली चेक-पोस्ट से, गोली दागने के किसी भी आदान-प्रदान से पहले हमेशा एक घोषणा की जाती है। सीमा के इस तरफ से अंतिम चेक-पोस्ट न्यू टिक पोस्ट है। लेकिन इस पोस्ट से, भारतीय सेना के लिए पाकिस्तानी गोलीबाज़ों को देखना मुश्किल है, क्योंकि यह काफी ऊंचाई पर है।

27 फरवरी को, जब पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई की - जो तिलवारी की तरफ से नहीं थी, लेकिन पूरा गांव दहशत में था। निकासी का कोई आदेश नहीं था। हालाँकि, यदि ऐसा कोई आदेश होता, तो भी टूटे हुए पुल के कारण निकासी अत्यंत कठिन होती।

सुबह में, जब पाकिस्तान वायु सेना (पीएएफ) ने जम्मू-कश्मीर के पुंछ और राजौरी में भारतीय हिस्से में सैन्य ठिकानों पर हमला किया, तो - जवाबी कार्रवाई में, भारतीय वायुसेना ने, पाकिस्तानी क्षेत्र में प्रवेश कर लिया। इस दौरान भारतीय वायुसेना के मिग विमान एयर डिफेंस हमले में पकड़े गए, जिसमें दो IAF जेट्स गिरा दिए गए। उन पायलटों में से एक, जिनकी पहचान बाद में विंग कमांडर अभिनंदन के रूप में हुई, उन्हें पाकिस्तानी सेना ने जिंदा पकड़ लिया, और अपनी हिरासत में ले लिया।

इसके अलावा, सुबह 10:40 बजे के आसपास, गरदन कलां में, मध्य कश्मीर के बडगाम जिले से लगभग सात किलोमीटर दूर, एक IAF हेलीकॉप्टर एक खेत में दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिससे छह पायलट और एक नागरिक की मौत हो गई। हालांकि मारे गए सेना के जवानों की पहचान अभी भी नहीं हुई है, लेकिन नागरिक की पहचान स्थानीय निवासी किफायत हुसैन गनी के रूप में की गई है। अधिकारियों ने कहा कि एमआई-17 एक तकनीकी खराबी के बाद दुर्घटनाग्रस्त हो गया।

इस घटनाक्रम के मद्देनजर, यहां तक कि नागरिकों के निकासी आदेश के अभाव में, ग्रामीणों जो तिलवारी में रहते हैं - ज्यादातर बच्चे - गांव से दूर जाने लगे। गाँव की परिधि में बारूदी सुरंगें हैं, और इस मार्ग पर जाते समय बैरिकेड तारों को पार करना पड़ता है। इसलिए, ग्रामीणों ने बच्चों और बीमार रोगियों को पास के गांवों में रहने वाले अपने रिश्तेदारों के यहां भेजने का फैसला किया।

"आप सरकारी अधिकारियों से आश्रय क्यों नहीं मांगते हैं?" इस संवाददाता ने बुजुर्ग हाजी गुलाम मोहम्मद मीर से पूछा, जिनका घर पंक्ति के अंतिम छोर पर है। उन्होंने कहा, "सरकार कुछ भी नहीं करती है।" उनकी नाराजगी हालिया संकट के कारण नहीं है, बल्कि एक पुराने घाव की वजह से है, जिसे ठीक किया जाना बाकी है।

Haji Ghulam Mohammad Mir.jpg

हाजी गुलाम मोहम्मद मीर, फोटो : ज़ुबैर सोफ़ी 

22 फरवरी, 2018 को, बाहर बारिश हो रही थी और मीर अपनी रसोई में बैठे थे, अपने परिवार के साथ नाश्ता कर रहे थे। इससे पहले की मीर बाकी दिन में क्या करना है, यह तय करते, उन्होंने एक जोरदार धमाका सुना, जिसने पूरे गांव को हिला दिया। मीर ने कहा, "मैं यह जानने के लिए आंगन में गया कि आखिर क्या हुआ था, मैंने अपने पड़ोसी के घर से धुआं निकलते देखा।"

जल्द ही, पाकिस्तान से एक घोषणा हुई: "गाँव खली करो।" यह 17 साल बाद हो रहा था जब उरी में सीमा पार से गोलीबारी हुई थी।

घबराए ग्रामीणों ने जर्जर पुल की ओर भागना शुरू कर दिया, जहां एक एम्बुलेंस और कुछ कैब उनका इंतजार कर रही थीं। लेकिन वे साधन सभी ग्रामीणों को स्थानांतरित करने में सक्षम नहीं थे, क्योंकि गोलाबारी तेज हो गई थी। मीर और उसका परिवार फंस गया था।

मोर्टार के गोले में से एक उनके घर पर गिरा और, जिससे इनके घर का एक बड़ा हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया। मीर और उसके परिवार ने एक गौशाला में शरण ली, जो पहाड़ में कुछ फीट गहरा है।

"वह एकमात्र स्थान था जिसके बारे में मुझे लगा कि वह सुरक्षित हो सकता है," मीर ने कहा।

Villagers leaving Tilawari.jpg

तिलवारी को छोड़ते हुए ग्रामीण। फोटो : ज़ुबैर सोफ़ी 

शेड की खिड़की से मीर तिलवारी के विपरीत दिशा में स्थित एक अन्य गांव सिलिकोत में जलते हुए घर देख पा रहा था। इस सीमा-पार गोलाबारी के दौरान, सिलिकोट और तिलवारी सबसे अधिक प्रभावित गाँव थे।

कुछ घंटों के बाद, यहां तक कि गोलाबारी लगातार जारी रही, कुछ स्थानीय युवक सिलिकोट तक पहुंचने में कामयाब रहे, और कुछ परिवारों को निकाला, जो जलते घरों में फंस गए थे। मीर पूरा दृश्य देख रहे थे। बचाए गए परिवारों को उरी हायर सेकेंडरी स्कूल में शरण दी गई थी।

मीर अपने परिवार को उरी भेजने में कामयाब रहा, लेकिन उसने वापस वहीं रहने का फैसला किया।

अगले दिन, जब गोलाबारी बंद हो गई, तो लोगों को अपने घरों में लौटने के लिए कहा गया, जो काफी मुश्किल था। माहौल अभी भी तनावपूर्ण था।

मीर ने कहा "मेरे एक बेटे ने मुझे फोन किया, और कहा कि खाने के लिए कोई उचित भोजन नहीं है, उन सभी को एक स्कूल में रखा गया था, और सोने की कोई व्यवस्था नहीं थी।" मीर ने कहा "अब वे उन्हें छोड़ने के लिए कह रहे थे। लोग लौटने को तैयार नहीं थे, क्योंकि वे मोर्टार गोलाबारी के पैमाने को देखकर डर गए थे। साथ ही गोलाबारी के और भी दौर होने की संभावना थी। हालांकि, उन्हें वहां से यानी स्कूल से बाहर कर दिया गया। कुछ गाँव लौट आए, और कुछ ने अपने रिश्तेदारों के घर जाना चुना।”

जब मीर की 28 वर्षीय बहू ज़ुबेदा घर पहुंची, तब घरों के बाहर की छत से धुआँ निकल रहा था। इससे पहले कि वह कुछ कह पाती, उनकी आँखों से आँसू बहने लगे। बाद में उन्होंने मुझे बताया कि उनके साथ कितना क्रूर व्यवहार किया गया था। "इससे मेरा दिल टूट गया।"

कई दिनों के बाद, सरकारी अधिकारी क्षति का अनुमान लगाने के लिए गाँव पहुँचे, और इस वादे के साथ रवाना हुए कि वे मुआवजे के साथ लौटेंगे। "मैंने उन्हें फिर कभी नहीं देखा," मीर ने कहा।

सिलिकोट में गोलाबारी में जिन घरों को नुकसान पहुंचा था, वे 47 वर्षीय फैयाज अहमद आवा के घर थे, जिनकी आय का स्रोत खेती है। अधिकांश भूमि, जो कभी उनके क्षेत्र का हिस्सा थी, जहां उन्होंने सेब, अखरोट, बादाम, खुबानी आदि उगाए थे, अब बारूदी सुरंगों से भर गए हैं। 10 साल तक फैयाज ने सेना के लिए कुली का काम किया।

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए फ़ैयाज़ ने कहा “उनके घर से लेकर हाजी पीर नहर तक, जो उरी के रास्ते पाकिस्तान से बहती है, सारी ज़मीन बारूदी सुरंगों से भरी हुई है। मैंने उनके कारण अपने मवेशियों का एक बड़ा हिस्सा खो दिया है। मुझे अपने बच्चों का ध्यान रखना होता है उस वक्त जब वे खेलने के लिए आंगन में जाते हैं, ऐसा न हो कि वे बारूदी सुरंगों से घिरे क्षेत्र में फंस जाएँ।”

सीमा के किनारे रहने से सिलिकोट ग्रामीणों का जीवन बेहद कठिन हो गया है। सेना ने गांव से कुछ दूरी पर एक गेट बनाया है, जो सुबह 7 बजे आवाजाही के लिए खुलता है, और शाम 7 बजे बंद हो जाता है। यदि किसी को शाम 7 बजे के बाद गाँव में प्रवेश करना है - संभवतः क्षेत्र में परिवहन सुविधा की कमी के कारण - उन्हें चार किलोमीटर पीछे जाना होगा, और प्रवेश के लिए संबंधित सेना प्रमुख से अनुमति लेनी होगी।

Silikote.jpg

सिलिकोट, फोटो : ज़ुबैर सोफ़ी 

चूँकि उनका घर ध्वस्त हो गया था, फ़ैयाज़ अपने छह परिवार के सदस्यों के साथ पंचायत घर में रह रहे हैं। वे कहते हैं कि उन्होंने मुआवजे के लिए कई बार सरकारी अधिकारियों से संपर्क किया, लेकिन उन्हें कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला।

फैयाज ने आंखों में भर आए आंसुओं के साथ पूछा "इसमें कोई शक नहीं कि हम युद्ध क्षेत्र में रह रहे हैं, लेकिन यह बंदूकों के खिलाफ बंदूक, जेट विमानों के खिलाफ जेट विमान होने चाहिए। हम नागरिक हैं। क्या हम इस तरह का एक भयानक जीवन जी सकते हैं? क्या हम शरीर में गोली लगने से मरने वाले हैं?”  

india-pakistan
URI
North Kashmir
Baramulla
Cross-Border Firing
LOC
Indian air force
Pakistan Air Force

Related Stories

कश्मीर में एक आर्मी-संचालित स्कूल की ओर से कर्मचारियों को हिजाब न पहनने के निर्देश

वायु सेना हेलीकॉप्टर दुर्घटना: घायल ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह का निधन

अपने क्षेत्र में असफल हुए हैं दक्षिण एशियाई नेता

वार इन गेम: एक नया खेल

कितना याद रखें, कितना मन को मनाएं और कितना भूलें? 

दर-दर भटकते बनारस के शहीद के माता-पिता, योगी-मोदी सरकार ने नहीं पूरे किए वादे

15 अगस्त 1947: आज़ादी की ख़ुशी के साथ था बँटवारे का सदमा

बंटवारे का दर्द: जो हो चुका या जो किया जा रहा है!

आगरा शिखर सम्मलेन: भारत-पाकिस्तान के रिश्तों का अहम पड़ाव

किसी लापता सैनिक के मानवाधिकारों की हिफ़ाज़त कौन करेगा?


बाकी खबरें

  • सरोजिनी बिष्ट
    विधानसभा घेरने की तैयारी में उत्तर प्रदेश की आशाएं, जानिये क्या हैं इनके मुद्दे? 
    17 May 2022
    ये आशायें लखनऊ में "उत्तर प्रदेश आशा वर्कर्स यूनियन- (AICCTU, ऐक्टू) के बैनर तले एकत्रित हुईं थीं।
  • जितेन्द्र कुमार
    बिहार में विकास की जाति क्या है? क्या ख़ास जातियों वाले ज़िलों में ही किया जा रहा विकास? 
    17 May 2022
    बिहार में एक कहावत बड़ी प्रसिद्ध है, इसे लगभग हर बार चुनाव के समय दुहराया जाता है: ‘रोम पोप का, मधेपुरा गोप का और दरभंगा ठोप का’ (मतलब रोम में पोप का वर्चस्व है, मधेपुरा में यादवों का वर्चस्व है और…
  • असद रिज़वी
    लखनऊः नफ़रत के ख़िलाफ़ प्रेम और सद्भावना का महिलाएं दे रहीं संदेश
    17 May 2022
    एडवा से जुड़ी महिलाएं घर-घर जाकर सांप्रदायिकता और नफ़रत से दूर रहने की लोगों से अपील कर रही हैं।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 43 फ़ीसदी से ज़्यादा नए मामले दिल्ली एनसीआर से सामने आए 
    17 May 2022
    देश में क़रीब एक महीने बाद कोरोना के 2 हज़ार से कम यानी 1,569 नए मामले सामने आए हैं | इसमें से 43 फीसदी से ज्यादा यानी 663 मामले दिल्ली एनसीआर से सामने आए हैं। 
  • एम. के. भद्रकुमार
    श्रीलंका की मौजूदा स्थिति ख़तरे से भरी
    17 May 2022
    यहां ख़तरा इस बात को लेकर है कि जिस तरह के राजनीतिक परिदृश्य सामने आ रहे हैं, उनसे आर्थिक बहाली की संभावनाएं कमज़ोर होंगी।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License