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उत्तराखंड : केंद्र की योजनाओं पर, राज्य का बजट
वित्त वर्ष 2019-20 के बजट में रोजगार और पलायन का जिक्र बार-बार आता है। लेकिन इस समस्या से निपटने के लिए ठोस कार्ययोजना नहीं बतायी गई है। क्योंकि स्थिति ये है कि प्रदेश में लगभग 60 हजार पद रिक्त हैं, जिन पर तत्काल नियुक्ति की मांग लंबे समय से चल रही है।
वर्षा सिंह
19 Feb 2019
UTTARAKHAND BUDGET
फोटो : उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के ट्विटर हैंडल से साभार

पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को गमजदा कर दिया है। कश्मीर में 14 फरवरी और उसके बाद मुठभेड़ और आईईडी ब्लास्ट में उत्तराखंड के दो मेजर और दो जवान शहीद हुए हैं। जिससे राज्यभर में शोक का माहौल है। शहीदों की अंतिम यात्रा में नेता से लकर आम जनता तक सब शरीक हो रहे हैं। ऐसे हालात में उत्तराखंड सरकार को लोकसभा चुनाव के ठीक पहले अपना बजट भी पेश करना था। सोमवार शाम सदन में शोक के माहौल में बजट पेश किया गया। इस दौरान विपक्षी दल के सदस्य सदन में मौजूद नहीं थे। उन्होंने दोबारा बजट स्थगित करने की मांग की थी। बजट पेश करते समय वित्त मंत्री प्रकाश पंत बेहोश हो गए। फिर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बजट पढ़ा।

हिमालयी राज्य उत्तराखंड के लिए त्रिवेंद्र सरकार अपना तीसरा बजट लेकर आई है। क्या ये बजट पर्वतीय राज्य के विकास का मार्ग प्रशस्त करेगा या फिर आंकड़ों की कारगुजारी से जनता को लुभाने की कोशिश की गई है।

वित्त वर्ष 2019-20 के बजट की अहम बातें

वित्त वर्ष 2019-20 के लिए पेश किए गए सरप्लस बजट में कुल 48679.43 करोड़ रुपये हासिल होने का अनुमान लगाया गया है। इसकी तुलना में कुल व्यय 48663.90 करोड़ अनुमानित है। राज्य सरकार कहती है कि बेहतर वित्तीय प्रबन्धन का परिणाम है कि वर्ष 2019-20 के आय-व्यय में कोई राजस्व घाटा अनुमानित नहीं है।

महिला सशक्तीकरण के लिए बजट में 1111 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।

महिला स्वयं सहायता समूहों को बिना ब्याज के 5 लाख रुपये तक के ऋण की व्यवस्था की गई है। 

हर जिले में ग्रोथ सेन्टर की स्थापना के लिए 7.5 करोड़ रुपये का प्रावधान  किया गया है। 

बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए बजट में 2545.40 करोड़ रुपये

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के लिए 440 करोड़ रुपये

अटल आयुष्मान उत्तराखंड योजना के लिए 150 करोड़ रुपये

मानसिक चिकित्सा संस्थान की स्थापना के लिए 10 करोड़ रुपये

ग्रामीण विकास के लिए 3141.34 करोड़ रुपये

ग्रामीण क्षेत्रों को सड़क मार्ग से जोड़ने के लिए प्रधानमंत्री सड़क योजना (पी.एम.जी.एस.वाई.) के तहत 900 करोड़

बेहतर शिक्षा के लिए 1073 करोड़, लॉ यूनिवर्सिटी की स्थापना के लिए 5 करोड़ रुपये दिए गए हैं।

उत्तराखण्ड को पर्यटन प्रदेश बनाने के लिए पिछले बजट की तुलना में इस बार 12 प्रतिशत की वृद्धि करते हुए वीरचंद्र सिंह गढ़वाली पर्यटन स्वरोजगार योजना में 15 करोड़,

होम स्टे योजना के लिए 11.5 करोड़ रुपये, स्वच्छ पेयजल योजना के लिए 947.44 करोड़, सौंग बांध निर्माण के लिए 170 करोड़, रुड़की-देवबंद रेलवे लाइन के लिए 100 करोड़, सामाजिक सुरक्षा एवं कल्याण के लिए 2025.6 करोड़,

सहकारिता विकास के लिए 100 करोड़ के अतिरिक्त बजट की व्यवस्था की गई है।

सैनिक कल्याण के तहत एनसीसी अकादमी के लिए 5 करोड़,

शौर्य स्थल के निर्माण के लिए 5 करोड़ रुपये दिए गए हैं।

पिछले बजट की तुलना में इस बार के बजट में सहकारिता विकास के क्षेत्र में  104 प्रतिशत, हाउसिंग में 45 प्रतिशत, कृषि में 19.37 प्रतिशत, पशुपालन 16 प्रतिशत और डेयरी विकास में 38 प्रतिशत की वृद्धि की गई है। 

जैसे घोषणाएं ही उपलब्धियां हों!

सीपीआई-एमएल के गढ़वाल सचिव इंद्रेश मैखुरी कहते हैं कि वर्ष 2019-20 के बजट की एकमात्र विशेषता ये है कि उसमें केंद्र और राज्य सरकार की पूर्व में की गई घोषणाओं का बखान ऐसे किया गया है, जैसे कि ये घोषणाएं ही उपलब्धियां हों।

मैखुरी कहते हैं कि ये तक ध्यान नहीं रखा गया कि ये केंद्र का नहीं, राज्य सरकार का बजट है। इसलिए बजट में ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल लाइन का काम शुरू होना, देहरादून-काठगोदाम के बीच नैनी एक्सप्रेस ट्रेन का चलना, चार धाम परियोजना सड़क निर्माण के बारे में ऐसे बताया गया है, जैसे ये केंद्र की योजनाएं न हो कर, उत्तराखंड सरकार की उपलब्धियां हैं। सीपीआई-एमएल के नेता कहते हैं कि वित्तमंत्री भूल गए हैं कि केंद्र और राज्य में भले ही एक ही पार्टी की सरकार हो, पर वो एक सरकार नहीं बल्कि दो सरकारें हैं, जिनका कार्य और अधिकार क्षेत्र अलग-अलग हैं।

वित्त वर्ष 2019-20 के बजट में रोजगार और पलायन का जिक्र बार-बार आता है। लेकिन इस समस्या से निपटने के लिए ठोस कार्ययोजना नहीं बतायी गई है। क्योंकि स्थिति ये है कि प्रदेश में लगभग 60 हजार पद रिक्त हैं, जिन पर तत्काल नियुक्ति की मांग लंबे समय से चल रही है।

इंद्रेश मैखुरी कहते हैं कि बजट में पर्वतीय कृषि का जिक्र किया गया है, लेकिन कोई ठोस कार्ययोजना नहीं है। धरातल पर स्थिति यह है कि विभिन्न वजहों से लोग कृषि से दूर हो रहे हैं। अपनी मेहनत के मुताबिक न उन्हें कीमत मिल रही है, न उत्पादन हो रहा है। जंगली जानवरों का हमला तो पर्वतीय कृषि, पशुपालन और मनुष्य जीवन पर बना ही हुआ है।

बजट में दुग्ध उत्पादन के संदर्भ में बड़ा दावा वित्तमंत्री ने किया है। जमीनी स्थिति यह है कि सिमली और श्रीनगर (गढ़वाल) स्थित दुग्ध डेयरी सरकारी उपेक्षा के चलते बेहद बुरी हालत में हैं।

बजट के नाम पर किसानों से छलावा!

हरिद्वार में भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) के जिलाध्यक्ष विजय कुमार शास्त्री कहते हैं कि बजट पूरी तरह किसान विरोधी है। उनका कहना है कि सरकारें किसानों के लिए सिर्फ जुमला उछालती हैं। किसानों को उनकी फसल का लागत मूल्य भी नहीं मिल पा रहा है। स्वामीनाथन की रिपोर्ट लागू नहीं हो पाई। किसानों को गन्ने के भुगतान की कोई ठोस नीति नहीं बन पायी। किसान नेता कहते हैं कि राज्य में गन्ना किसानों का अब तक पिछले वर्ष का ही भुगतान नहीं हो पाया है। चीनी मिलों पर करोड़ों रुपये बकाया हैं।

वे किसानों की आय दोगुनी करने के नाम पर किसानों के खाते में छह हजार देने को भी मज़ाक ही ठहराते हैं। शास्त्री कहते हैं कि यूरिया का एक कट्टा, जो पहले एक हजार रुपये का आता था, वो अब 1400 रुपये में आता है। फिर 6 हजार देने के लिए ये शर्त भी लगाई गई है कि परिवार का कोई व्यक्ति लाभकारी पद पर न हो। विजय शास्त्री कहते हैं कि यदि मेरा भाई नौकरी करता है और मैं किसान हूं तो मुझे 6 हजार क्यों नहीं मिलने चाहिए। वे कहते हैं कि वैसे तो ये रकम कम से कम 50 हजार होनी चाहिए थी।

इसी तरह राज्य सरकार किसानों को एक लाख रुपये तक के कर्ज को ब्याजमुक्त कहती है। ये ब्याजरहित ऋण उसी किसान को मिलता है, जिसने कभी कोई ऋण न लिया हो। भारतीय किसान यूनियन के नेता कहते हैं कि ऐसा तो सौ में दो किसान ही मिलेंगे, जिन्होंने ऋण न लिया हो, इसलिए ये भी एक किस्म का छलावा ही है।

किसान नेता विजय शास्त्री कहते हैं कि केंद्र और राज्य दोनों में भाजपा सरकारों ने किसानों को ठगा है। दिल्ली में उन पर लाठियां बरसायी हैं। वे बजट को किसान विरोधी तो ठहराते ही हैं, ये भी जोड़ते हैं कि वर्ष 2019 के चुनाव में किसान उन्हें सबक सिखाएगा।

सरप्लस बजट क्यों?

कांग्रेस के प्रवक्ता मथुरा दत्त जोशी कहते हैं कि बजट में न तो किसान की बात है, न गरीब की बात है, न नौजवान की बात है, न गाय की बात है, न गन्ने की बात है, न गदेरे की बात है। बजट में उत्तराखंड की उत्तराखंडियत का भी ध्यान नहीं रखा गया। पर्वतीय क्षेत्र के लिए कोई ऐसी बात नहीं है, जिसके दूरगामी परिणाम हो। पर्वतीय किसान खेती से दूर हो रहे हैं, लेकिन इसके लिए कुछ नहीं किया है।

कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता कहते हैं कि मौजूदा सरकार घोषणाएं पूरी ईमानदारी से करती है। पर्वतीय क्षेत्र में कृषि धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है। कृषि का रकबा सिकुड़ रहा है। बजट में जंगली जानवरों से बचाव के लिए प्रावधान नहीं है। न ही ये बताया गया है कि टैक्स, खनन, आबकारी, या केंद्र से कितना पैसा मिलेगा।

वित्त मंत्री प्रकाश पंत ने इस बार सरप्लस बजट पेश किया है। इस पर मथुरा दत्त जोशी का कहना है कि सरप्लस बजट पेश करके, राज्य सरकार ने विकास की सारी संभावनाएं ही खत्म कर दी हैं। यानी बजट बराबर में आ गया, न खर्च हो रहा है, न लाभ हो रहा है।

उपलब्धियां या छलावा

बजट में बतायी गई अटल आयुष्मान जैसी योजना पर इंद्रेश मैखुरी कहते हैं कि जब अस्पताल ही बीमार अवस्था मे हैं तो सरकार अटल आयुष्मान जैसी बीमा योजनाएं क्या कर लेंगी। जब सरकारी अस्पतालों में या तो डॉक्टर नहीं हैं, या फिर सरकारी कार्यप्रणाली के चलते वे नौकरी छोड़ रहे हैं। बागेश्वर इसका ताजा उदाहरण हैं। जहां सरकारी बेरुखी के चलते साल भर पहले नियुक्त दो डॉक्टरों ने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया।

गैरसैण को उत्तराखंड की राजधानी बनाये जाने के लिए उत्तराखंड में लगातार आंदोलन है। पिछले वर्ष के बजट में कहा गया था कि गैरसैंण में अंतरराष्ट्रीय संसदीय अध्ययन शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान बनेगा, इस बार कहा गया है कि झील के निर्माण के सर्वे का कार्य शुरू हो गया है।

इसी तरह, केदारनाथ में निर्माण कार्यों को उपलब्धि के तौर पर पेश किया गया है, जबकि यह कार्य तो 2013 की आपदा के बाद से चल रहे थे। सवाल तो ये है कि केदार घाटी और उत्तराखंड के अन्य क्षेत्रों में आपदा प्रभावितों के विस्थापन के लिए क्या ठोस प्रयास किये गए?

बजट में 11 जनपदों में विकास प्राधिकरण बनाने को उपलब्धि बताया गया है, जबकि ये जिला विकास प्राधिकरण भ्रष्टाचार और लालफीताशाही के अड्डों के रूप में लोगों के लिए जी का जंजाल बनने लगे हैं। बागेश्वर में तो इसका खिलाफ बड़ा आंदोलन चल रहा है, अल्मोड़ा आदि अन्य स्थानों पर भी सरकार की इस तथाकथित उपलब्धि के खिलाफ लोग संघर्ष कर रहे हैं।

उत्तराखंड में इन्वेस्टर्स मीट में हुए एम.ओ.यू को सरकार बजट में उपलब्धि बता रही है। इस पर सीपीआई-एमएल के नेता इंद्रेश मैखुरी कहते हैं कि देश के विभिन्न राज्यों में ऐसे इन्वेस्टर्स मीट का इतिहास बताता है कि ये एम.ओ.यू सिर्फ आकर्षक आंकड़ों से अधिक कुछ भी नहीं हैं। एम.ओ.यू के साथ उनके क्रियान्वयन की कोई अनिवार्य शर्त नहीं होती, इसलिए उनके जरिये रोजगार सृजन की बात एक खामख्याली ही है। वे कहते हैं कि इन्वेस्टर्स मीट के जरिये राज्य की भाजपा सरकार ने राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में कृषि भूमि की खरीद पर से सभी बंदिशें विधेयक पास करवा कर हटा ली है। इसलिए इन्वेस्टर्स मीट को यदि किसी बात के लिए याद रखा जाना चाहिए तो वो है- जमीनों की खुली लूट का रास्ता कानूनी तरीके से खुलवाने के लिए।

राज्य के विकास का आईना

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने राज्य के वर्ष 2019-20 के आय-व्ययक बजट को राज्य के विकास का आईना बताया है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2019-20 के बजट में गांवों के विकास की प्रतिबद्धता झलकती है। वर्ष 2019-20 का यह बजट सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा, घर और बिजली जैसी तमाम सुविधाओं को जन जन तक पहुंचाने के साथ ही उत्तराखंड को विकास की पटरी पर आगे ले जाने वाला साबित होगा। उनका कहना है कि बजट में महिला सशक्तीकरण, सहकारिता विकास,किसानों के कल्याण और रोजगार को बढ़ावा देने के लिए तमाम उपाय किए गए हैं।

इस आइने में देखें राज्य का बजट

लुभावनी सरकारी योजनाएं और भारी-भरकम आंकड़ें पर्वतीय राज्य के लिए क्या सचमुच सही दिशा में किए जा रहे, सही प्रयास हैं। इसके लिए राज्य की मानव विकास सूचकांक रिपोर्ट भी देख लेनी चाहिए।

पहली बार राज्य के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में सर्वेक्षण के आधार पर तैयार की गयी रिपोर्ट के मुताबिक राज्य के तीन मैदानी जिले देहरादून, हरिद्वार और उधमसिंहनगर तक विकास योजनाओं की पहुंच हो पाती है। शिक्षा, स्वास्थ्य और जीवन स्तर की स्थिति के मुताबिक बहुआयामी गरीबी सूचकांक  Multi Dimension Power यानी एम.पीआई तैयार की गई। इसके आंकलन के लिए जीवन स्तर, सम्पत्ति, आवास, घरेलू ईधन, स्वच्छता, पेयजल, बिजली, संस्थागत प्रसव, शिक्षा, विद्यालयी उपस्थिति और विद्यालयी उपलब्धता संबंधी सूचनायें इकट्ठा की गयी।  MPI  में चमोली, चम्पावत और पिथौरागढ क्रमशः पहले, दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे। जबकि हरिद्वार, ऊधमसिंहनगर और देहरादून क्रमशः 11वें, 12वें तथा 13वें स्थान पर आंके गये।

उत्तराखंड के लिए बजट हो या कोई भी योजनाएं, वो हिमालयी राज्य की पर्वतीय भौगोलिक परिस्थितियों के हिसाब से ही बननी चाहिए। ताकि पर्वतीय जिलों का विकास किया जा सके।

 

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