NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
उत्तराखंड में डेंगू : मुख्यमंत्री समस्या को नहीं सवाल को ख़त्म करना चाहते हैं
बीजेपी के मंत्री-मुख्यमंत्री शायद एक दूसरे से होड़ ले रहे हैं, तभी तो समस्या  की वजह को ढूंढने और उसे समाप्त करने की बजाय वे उससे बचने का रास्ता खोज रहे हैं। अब डेंगू की रोकथाम में नाकाम उत्तराखंड के मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि “मच्छर सरकार के घर में तो पैदा नहीं होते हैं।”
वर्षा सिंह
17 Sep 2019
Uttrakhand CM

‘नाच न आवे आंगन टेढ़ा’ कहावत से हम सब वाकिफ हैं। हमारे नेताओं पर आजकल ये कहावत बिलकुल सटीक बैठ रही है। जब हालात संभल नहीं रहे तो हमारे नेता लोग उलट-पुलट बयान दे रहे हैं। लगता है कि वे समस्या को नहीं, बल्कि समस्या उठाने वाले सवाल को ही खत्म कर देना चाहते हैं। केंद्रीय मंत्रियों से शुरू हुआ ये सिलसिला राज्य तक पहुंच गया है। अब डेंगू की रोकथाम में नाकाम उत्तराखंड के मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि “मच्छर सरकार के घर में तो पैदा नहीं होते हैं।”

आइए, पहले एक नज़र ऐसे ही बयानों पर डालते हैं, जिनका सिलसिला दिल्ली से देहरादून पहुंच गया है।

“ओला-उबर से ऑटो सेक्टर में मंदी”

मंदी ने जब ऑटो मोबाइल इंडस्ट्री सेक्टर को अपनी चपेट में ले लिया और फेडरेशन ऑफ ऑटो डीलर्स एसोसिएशन ने बताया कि ऑटो सेक्टर में मंदी की वजह से पिछले तीन महीने में दो लाख से ज्यादा लोगों की नौकरी जा चुकी है। ऐसे समय में हमारी वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का बयान आता है कि “ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री पर बीएस-6 और लोगों की सोच में आए बदलाव का असर पड़ रहा है। लोग अब गाड़ी ख़रीदने की बजाय ओला या उबर को तरजीह दे रहे हैं”। (बीएस-6 वाहन में नया इंजन व इलेक्ट्रिकल वायरिंग बदलने से वाहनों की कीमत में 15 फीसदी का इजाफा हो सकता है। बीएस-6 से वाहनों की इंजन की क्षमता बढ़ेगी और उत्सर्जन कम होगा)।

“न्यूटन की खोज, आइंस्टीन के नाम”

इसी मंदी ने वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल का गणित ही नहीं विज्ञान भी गड़बड़ा दिया। मौजूदा आर्थिक विकास दर को देखते हुए भारत 5 ट्रिलियन (पाँच लाख करोड़) की अर्थव्यवस्था कैसे बनेगा, इस सवाल पर पीयूष गोयल ने कहा –“हिसाब-किताब में मत पड़िए। जो टीवी पर देखते हैं कि 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था के लिए देश को 12 प्रतिशत की रफ़्तार से बढ़ना होगा। आज यह 6 प्रतिशत की रफ़्तार से बढ़ रही है। ऐसे गणित से आइंस्टीन को गुरुत्वाकर्षण की खोज में मदद नहीं मिली। अगर आप बस बने बनाए फ़ार्मूलों और अतीत के ज्ञान से आगे बढ़ते तो मुझे नहीं लगता कि दुनिया में इतनी सारी खोज होती।”

गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत आइंस्टीन की नहीं बल्कि न्यूटन की देन है। इस बात पर सोशल मीडिया में पीयूष गोयल की खूब खिंचाई हुई।
“उत्तर भारत में क्वालिटी के लोग नहीं मिलते”

मंदी और रोजगार के संकट पर उठ रहे सवालों से परेशान केंद्रीय श्रम और रोजगार मामलों के राज्य मंत्री संतोष गंगवार को भी आंगन टेढ़ा दिखाई देने लगा। रविवार को उन्होंने कहा कि “आजकल अखबारों में रोजगार की खबरें ही चल रही हैं। हम इसी मंत्रालय को देखने का काम कर रहे हैं और रोज ही इसको मॉनीटर करते हैं। देश के अंदर रोजगार की कमी नहीं है। रोजगार बहुत है। रोजगार की समस्या नहीं है। हमारे उत्तर भारत लोग रिक्रूटमेंट के लिए आते हैं, तो वे इस बात पर सवाल करते हैं कि जिस पद के लिए हम रख रहे हैं, उस क्वालिटी का व्यक्ति हमको कम मिलता है।”

नेशनल सैंपल सर्वे की लोकसभा चुनाव से ठीक पहले लीक हुई रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 45 वर्षों में बेरोजगारी दर सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है। नई सरकार ने भी बाद में इस रिपोर्ट की सच्चाई स्वीकार की। लेकिन गंगवार जी की मॉनीटरिंग के मुताबिक उत्तर भारत के व्यक्तियों में वो क्वालिटी नहीं है, जिससे उन्हें रोजगार मिल सके।

मंदी की बौखलाहट में जब केंद्रीय मंत्री इस तरह के बयान दे रहे हैं तो राज्य भला क्यों पीछे रहें।

“मच्छर सरकार के घर में तो पैदा नहीं हो रहे”

बाढ़ और बारिश के साथ उत्तराखंड डेंगू की “आपदा” से घिरा हुआ है। हालांकि ये ऐसी आपदा है जो हर साल नियत समय पर, नियत वजहों से आती है, जिसकी रोकथाम और बचाव के उपाय किये जा सकते हैं। इसके लिए बस समय पर मुस्तैदी दिखानी होती है।

मगर डेंगू की रोकथाम में विफल रहने पर विपक्ष के सवालों से बौखलाए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि “मच्छर सरकार के घर में तो पैदा नहीं होते हैं।” मीडिया के सवालों के जवाब में मुख्यमंत्री ने कहा कि ‘मैं भी कह सकता हूं कि विपक्षी डेंगू के मच्छर लाकर यहां छोड़ रहे हैं।’

दरअसल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने कहा था कि “डेंगू तो सरकार के आसपास दिल्ली से लेकर देहरादून तक घूम रहा है। उन्होंने कहा था कि राज्य के मुखिया और स्वास्थ्य मंत्री का जिम्मा संभाल रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा पा रहे। यहां तक कि सरकार के पास डेंगू पीड़ितों के आंकड़े तक उपलब्ध नहीं हैं।”

इस पर नाराज मुख्यमंत्री बोले कि सबसे बड़ा डेंगू तो प्रीतम सिंह के आसपास घूम रहा है। मुख्यमंत्री ने बताया कि डेंगू की रोकथाम के लिए डॉक्टरों की टीमें जुटी हुई हैं। राज्य सरकार इसकी मॉनीटरिंग कर रही है। अधिकारियों और डाक्टरों को भी दिशा-निर्देश भी दिए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि विपक्ष को इस तरह की बातें नहीं करनी चाहिए।

डेंगू के मरीजों के बढ़ते आंकड़ों और कमज़ोर विपक्ष के सवाल ने उत्तराखंड सरकार के प्लेटलेट्स कम कर दिये हैं। राज्य के मुखिया का बयान सिर्फ बेतुका नहीं बल्कि गैर-ज़िम्मेदराना भी है।

डेंगू से निपटने की तैयारी क्यों नहीं की

भाजपा नेता और सामाजिक कार्यकर्ता रविंद्र जुगरान ने शनिवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि पिछले तीन सप्ताह में दून में लगभग डेढ़ दर्जन से अधिक मौतें डेंगू के कारण हो गई हैं। स्थिति भयावह है पर शासन के स्तर पर उदासीनता देखी जा रही है। उन्होंने कहा कि सिस्टम की सुस्ती के कारण जनता आक्रोशित और पीड़ित हैं। रविंद्र जुगरान ने कहा कि हालात इतने खराब हैं कि अस्पतालों के बाहर मरीज ड्रिप लगाने के लिए बोतल पकड़कर या तो बैंच पर बैठे हैं या कुर्सियों पर, कुछ खड़े हैं तो कुछ बैठे-बैठे ड्रिप चढ़वा रहे हैं।

डेंगू का भय इस कदर है कि हर बुखार पीड़ित व्यक्ति डेंगू की जांच करा रहा है। जिसकी वजह से सरकारी-निजी अस्पतालों और पैथॉलजी में भारी भीड़ उमड़ रही है। कुछ निजी अस्पताल और पैथॉलजी इस मौके का फायदा भी उठा रहे हैं।

डेंगू की भयावहता और अस्पतालों की कमी को देखते हुए रविंद्र जुगरान सुझाव देते हैं कि दून में ओएनजीसी, एफआरआई, सर्वे ऑफ इंडिया जैसे छोटे बड़े 35-40 केंद्र सरकार के संस्थानों और रक्षा क्षेत्र के संस्थानों की डिस्पेंसरी का इस्तेमाल किया जाए। शासन-प्रशासन सम्न्वय बनाकर इसे आम जनता की सहूलियत के लिए उपलब्ध कराए। साथ ही निजी अस्पतालों और पैथॉलजी सेंटर की भी निगरानी की जाए। ताकि आम आदमी को रियायती दरों पर जांच और इलाज उपलब्ध हो सके।

डेंगू मरीजों के आंकड़े छिपा रही सरकार!

ऐसा माना जा रहा है कि सरकार डेंगू पीड़ितों के वास्तविक आंकड़ों को भी छिपाने का प्रयास कर रही है। स्वास्थ्य विभाग को भी नहीं पता कि देहरादून में डेंगू के कितने मरीज हैं। डेंगू पर स्थिति स्पष्ट करने के लिए स्वास्थ्य महानिदेशक डा. आरके पांडेय शुक्रवार को मीडिया के सामने आए। लेकिन मरीजों की जो जानकारी उनके पास थी, वो जिले के स्वास्थ्य अधिकारियों की संख्या से मेल नहीं खा रही थी। स्वास्थ्य महानिदेशक ने मरीजों की संख्या 852 बताई, जबकि शहर के ही तीन सरकारी अस्पतालों में ये आंकड़ा 1600 के पास पहुंच चुका है। ऋषिकेश के अस्पतालों के आंकड़े इसमें शामिल नहीं किए गए। माना गया कि ये आंकड़ा सिर्फ दून अस्पताल का था। राजधानी के कोरोनेशन और गांधी अस्पताल के आंकड़े इसमें शामिल नहीं थे। न ही रायपुर और ऋषिकेश के सरकारी अस्पतालों के आंकड़े।

सरकार के आंकड़ों में डेंगू के 2,595 मरीज और चार मौतें!

इसके बाद 14 सितंबर को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने डेंगू के इलाज के लिये होने वाली जांच में आई.एम.ए. और निजी पैथोलॉजी से समन्वय बनाकर इसकी फीस तय करने के निर्देश दिये। उन्होंने सभी उच्चाधिकारियों, सभी जिलाधिकारियों और मुख्य चिकित्सा अधिकारियों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से समीक्षा की।

बैठक में बताया गया कि राज्य में डेंगू रोगियों की संख्या 2,595 हैं। इस वर्ष डेंगू के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए देहरादून में 3 और नैनीताल में 1 अतिरिक्त निःशुल्क डेंगू एलीसा जांच केन्द्र शुरू किया गया है। फिलहाल देहरादून में 4 (दून चिकित्सालय, कोरोनेशन, गांधी शताब्दी और एस.पी.एस. ऋषिकेश), हरिद्वार में 1(मेला चिकित्सालय), नैनीताल में 2 (मेडिकल कालेज, बेस चिकित्सालय), ऊधमसिंहनगर में 1 (जिला चिकित्सालय) और पौड़ी में 1(जिला चिकित्सालय) जांच केन्द्र संचालित है। सरकार के आंकड़े देहरादून में मात्र चार लोगों की डेंगू से मौत की पुष्टि करते हैं।

इससे पहले न्यूज क्लिक ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि डेंगू के मरीजों को राजधानी देहरादून के अस्पताल में इलाज के लिए परेशान होना पड़ रहा है। आयुष्मान कार्ड वालों तक ने शिकायत की थी कि उनका इलाज नहीं किया जा रहा।
 
मच्छर से बचाव की तो जिम्मेदारी लीजिए

मुख्यमंत्री के “मच्छर सरकार के घर पर तो नहीं पैदा हो रहे” बयान पर सीपीआई-एमएल के नेता इंद्रेश मैखुरी कहते हैं कि ठीक है, मच्छर आप पैदा नहीं करते, लेकिन मच्छरों और उनके जनित रोगों पर रोक का इंतजाम करना सरकार का काम है। चूंकि मच्छर आपके यहां नहीं पैदा होते तो उनके उन्मूलन की जिम्मेदारी भी आप नहीं लेंगे? पर प्रश्न यह है मुख्यमंत्री जी किस बात की जिम्मेदारी लेंगे? डेंगू उन्मूलन का उपाय करना आपकी जिम्मेदारी नहीं है। अस्पतालों में डॉक्टर और स्कूलों में शिक्षक उपलब्ध करवाना आपकी जिम्मेदारी नहीं है। पहाड़ी में खाली होते गांव और बंजर होते खेतों के प्रति भी आपकी कोई जिम्मेदारी प्रतीत नहीं होती। इंद्रेश कहते हैं कि इतनी बड़ी सत्ता यदि मच्छर जनित रोग के उन्मूलन का उपाय नहीं कर सकती तो राज्य को उस सत्ता को क्यों ढोते रहना चाहिए?

dengue
uttrakhand government
BJP
Trivender Singh Rawat
Indian Automobile Industry
Minister of Finance Nirmala Sitharaman
Congress

Related Stories

आशा कार्यकर्ताओं को मिला 'ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड’  लेकिन उचित वेतन कब मिलेगा?

यूपी: बीएचयू अस्पताल में फिर महंगा हुआ इलाज, स्वास्थ्य सुविधाओं से और दूर हुए ग्रामीण मरीज़

उत्तराखंड चुनाव 2022 : बदहाल अस्पताल, इलाज के लिए भटकते मरीज़!

उत्तराखंड चुनाव: मज़बूत विपक्ष के उद्देश्य से चुनावी रण में डटे हैं वामदल

यूपीः एनिमिया से ग्रसित बच्चों की संख्या में वृद्धि, बाल मृत्यु दर चिंताजनक

EXCLUSIVE: सोनभद्र के सिंदूर मकरा में क़हर ढा रहा बुखार, मलेरिया से अब तक 40 आदिवासियों की मौत

दिल्ली में डेंगू के मामले बढ़े, अब तक 6 की मौत, स्वास्थ्य मंत्री ने की स्थिति की समीक्षा

बिहारः पटना में डेंगू का क़हर, एक रिटायर्ड अधिकारी की मौत

बिहार: वायरल फीवर की चपेट में बच्चे, कोविड और चमकी बुखार की तरह लाचार हेल्थ सिस्टम

डेंगू, बारिश से हुई मौतों से बेहाल यूपी, सरकार पर तंज कसने तक सीमित विपक्ष?


बाकी खबरें

  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: ये कहां आ गए हम! यूं ही सिर फिराते फिराते
    29 May 2022
    उधर अमरीका में और इधर भारत में भी ऐसी घटनाएं होने का और बार बार होने का कारण एक ही है। वही कि लोगों का सिर फिरा दिया गया है। सिर फिरा दिया जाता है और फिर एक रंग, एक वर्ण या एक धर्म अपने को दूसरे से…
  • प्रेम कुमार
    बच्चे नहीं, शिक्षकों का मूल्यांकन करें तो पता चलेगा शिक्षा का स्तर
    29 May 2022
    शिक्षाविदों का यह भी मानना है कि आज शिक्षक और छात्र दोनों दबाव में हैं। दोनों पर पढ़ाने और पढ़ने का दबाव है। ऐसे में ज्ञान हासिल करने का मूल लक्ष्य भटकता नज़र आ रहा है और केवल अंक जुटाने की होड़ दिख…
  • राज कुमार
    कैसे पता लगाएं वेबसाइट भरोसेमंद है या फ़र्ज़ी?
    29 May 2022
    आप दिनभर अलग-अलग ज़रूरतों के लिए अनेक वेबसाइट पर जाते होंगे। ऐसे में सवाल उठता है कि कैसे पता लगाएं कि वेबसाइट भरोसेमंद है या नहीं। यहां हम आपको कुछ तरीके बता रहें हैं जो इस मामले में आपकी मदद कर…
  • सोनिया यादव
    फ़िल्म: एक भारतीयता की पहचान वाले तथाकथित पैमानों पर ज़रूरी सवाल उठाती 'अनेक' 
    29 May 2022
    डायरेक्टर अनुभव सिन्हा और एक्टर आयुष्मान खुराना की लेटेस्ट फिल्म अनेक आज की राजनीति पर सवाल करने के साथ ही नॉर्थ ईस्ट क्षेत्र के राजनीतिक संघर्ष और भारतीय होने के बावजूद ‘’भारतीय नहीं होने’’ के संकट…
  • राजेश कुमार
    किताब: यह कविता को बचाने का वक़्त है
    29 May 2022
    अजय सिंह की सारी कविताएं एक अलग मिज़ाज की हैं। फॉर्म से लेकर कंटेंट के स्तर पर कविता की पारंपरिक ज़मीन को जगह–जगह तोड़ती नज़र आती हैं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License