NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
चुनाव 2022
मज़दूर-किसान
महिलाएं
विधानसभा चुनाव
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
उत्तराखंड चुनाव: मज़बूत विपक्ष के उद्देश्य से चुनावी रण में डटे हैं वामदल
“…वामदलों ने ये चुनौती ली है कि लूट-खसोट और उन्माद की राजनीति के खिलाफ एक ध्रुव बनना चाहिए। ये ध्रुव भले ही छोटा ही क्यों न हो, लेकिन इस राजनीतिक शून्यता को खत्म करना चाहिए। इस लिहाज से वामदलों का हस्तक्षेप बहुत जरूरी है”।
वर्षा सिंह
02 Feb 2022
उत्तराखंड चुनाव: मज़बूत विपक्ष के उद्देश्य से चुनावी रण में डटे हैं वामदल
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में संयुक्त वाम मोर्चा 10 सीटों पर चुनाव लड़ रहा है

उत्तराखंड की 70 विधानसभा सीटों पर कुल 571 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। इनमें 10 उम्मीदवार संयुक्त वाम मोर्चा के भी हैं। भाजपा-कांग्रेस को छोड़ यूकेडी, आम आदमी पार्टी, एसपी-बीएसपी जैसे दलों ने सभी 70 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। जबकि वामदल अपने कामकाज के आधार पर सीमित सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। इनका उद्देश्य है कि राज्य के मुद्दों पर बात करने के लिए एक मज़बूत विपक्ष बनाया जा सके।

संयुक्त वाममोर्चा के 10 प्रत्याशी

सीपीआई, सीपीआई-एम और सीपीआई-एमएल का संयुक्त वाम मोर्चा राज्य की 10 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ रहा है। उत्तरकाशी से सीपीआई के महावीर भट्ट चुनाव मैदान में हैं। हरीश रावत के चुनाव लड़ने से महत्वपूर्ण हुई सीट लालकुआं से सीपीआई-एमएल के बहादुर सिंह जंगी चुनाव लड़ रहे हैं। कर्णप्रयाग से सीपीआई-एमएल के इंद्रेश मैखुरी हैं। नरेंद्रनगर से सीपीआई के जगदीश कुलियाल, सहसपुर से सीपीएम के कमरुद्दीन। केदारनाथ से सीपीएम के राजाराम सेमवाल, रानीपुर (भेल) से सीपीएम के आरसी धीमान, थराली से सीपीएम के कुंवर राम, बदरीनाथ से सीपीआई के विनोद जोशी और रुद्रप्रयाग से सीपीआई के सुधीर रौथाण चुनाव मैदान में हैं।

सभाओं पर रोक के चलते घर-घर जाकर चुनाव प्रचार करते संयुक्त वाम मोर्चा के प्रत्याशी इंद्रेश मैखुरी

 

धनबल-बाहुबल के बीच वामदल

कोरोना संक्रमण के चलते रोक से पहले ही भाजपा और कांग्रेस ने राज्य में ज़ोरदार तरीके से चुनाव प्रचार किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर भाजपा के अमित शाह तक चुनाव प्रचार के लिए आए। कांग्रेस की कमान राहुल गांधी ने संभाली। इस समय भी दोनों दलों के दिग्गज नेता बतौर स्टार प्रचारक राज्य में आ रहे हैं। चुनावी रैलियों पर रोक के चलते बड़े-बड़े डिजिटल कैंपेन और डिजिटल स्टुडियो तैयार किए गए हैं। तो धनबल और कार्यकर्ताओं की संख्या के आधार पर बाहुबल का चुनाव में ज़ोर रहता है।

निर्वाचन आयोग ने भी इस बार प्रति प्रत्याशी चुनाव प्रचार खर्च सीमा 28 लाख से बढ़ाकर 40 लाख कर दी है।

चमोली के कर्णप्रयाग विधानसभा सीट से वाममोर्चा प्रत्याशी इंद्रेश मैखुरी कहते हैं “वे सोशल मीडिया और अन्य प्रचार अभियान के ज़रिये मीडिया में छाए रह सकते हैं। ये स्थितियां तीसरे मोर्चे की राह को और मुश्किल बना रही हैं। हम इस समय डोर-टु-डोर कैंपेन कर रहे हैं। पहाड़ों के गांवों में दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियां होती हैं। घर-घर जाने और लोगों से मिलने में हमारी पहुंच कम हो जाती है। जबकि हम किसी एक जगह सभा करते हैं तो 400-500 लोग खुद-ब-खुद हमें सुनने चले आते हैं”।

सीपीआई के राज्य सचिव समर भंडारी कहते हैं “इस तरह बहुत ही अ-समान चुनाव हो जाता है। एक तरफ बडी पार्टियां प्रचार में करोड़ों रुपए खर्च करती हैं। अखबारों में बड़े विज्ञापन देती हैं। लेकिन वामदल प्रतिबद्धता के साथ समाज के वंचित तबके के सवालों पर बात करते हैं”।

मज़बूत विपक्ष की खातिर

सीपीआई-एमएल के राज्य सचिव राजा बहुगुणा कहते हैं “अलग राज्य बनने के बाद से सदन में हमारा विपक्ष कमजोर ही दिखा है। लूटखसोट की राजनीति में अपनी हिस्सेदारी के लिए सभी लोग छटपटाते रहे। हमने नारा दिया है कि भाजपा हराओ और वाम विपक्ष का निर्माण करो। भाजपा-कांग्रेस के बीच जिस तरह टिकटों की मारामारी हो रही थी, इससे उनका सारा राजनीतिक परिदृश्य दिखाई देता है। आम आदमी पार्टी सोच रही है कि कौन कहां से टूटे तो उसे हम अपना कैंडिडेट बना दें”।

राजा बहुगुणा एक छोटा किंतु मज़बूत विपक्ष बनाने की बात कहते हैं। “राज्य बनने के बाद 2002 के विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड क्रांति दल के चार विधायक बने थे। हमने उनसे एकजुट विपक्ष बनाने का आग्रह किया था। 4 विधायक विधानसभा के अंदर सवाल उठाएं और हम सड़क पर मज़बूत विपक्ष बनाएं। लेकिन वे भी उस समय अवसरवाद के शिकार हो गए। वामदलों ने ये चुनौती ली है कि लूट-खसूट और उन्माद की राजनीति के खिलाफ एक ध्रुव बनना चाहिए। ये ध्रुव भले ही छोटा ही क्यों न हो, लेकिन इस राजनीतिक शून्यता को खत्म करना चाहिए। इस लिहाज से वामदलों का हस्तक्षेप बहुत जरूरी है”।

सीपीआई-एम के राज्य सचिव राजेंद्र सिंह नेगी कहते हैं “भाजपा या कांग्रेस चुनाव में जनता के मुद्दों की बात नहीं कर रहे हैं। नामांकन से ठीक पहले बड़े पैमाने पर दल-बदल हुआ। वामदलों का नारा है कि हम जनता के सवालों को उठाने के लिए मज़बूत विपक्ष बनाना चाहते हैं। हम उन्हीं 10 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं, जहां हमारा आधार मज़बूत है। हम चाहते हैं कि यहां अपना वोट प्रतिशत बढ़ा सकें”।

2002 विधानसभा चुनाव में भाजपा-कांग्रेस के अलावा अन्य दल और निर्दलीयों को 32.7 % वोट मिले थे। जबकि 2017 के चुनाव में ये 10.1 % वोट रह गया।  तस्वीर साभार- Indiavotes.com

तीसरे मोर्चे को मज़बूत बनाने की ज़रूरत

2017 के चुनाव में भाजपा की बढ़त ने  राज्य में कांग्रेस के साथ तीसरे मोर्चे को भी कमज़ोर किया था। 2002 विधानसभा चुनाव में 32.7 % वोट से तीसरा पक्ष 2017 के चुनाव में 10.1 % वोट पर आ गया।

2002 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 36 सीटें 26.9 % वोट मिले थे। भाजपा को 19 सीटें 25.4 % वोट। बीएसपी को 7 सीटें 10.9 % वोट। यूकेडी को 4 सीट 5.5 % वोट। निर्दलीय को 3 सीटें और 16.3 % वोट।

यानी भाजपा-कांग्रेस को छोड़ दें तो बीएसपी, यूकेडी और निर्दलीय को 32.7 % वोट मिले।

2007 में, भाजपा 34 सीट, 31.9 % वोट। कांग्रेस 21 सीट 29.6 % वोट। बीएसपी 8 सीट 11.8 % वोट, निर्दलीय 3 सीट 10.8 % वोट और यूकेडी 3 सीट 5.5 % वोट। तो 28.1 % वोट अन्य दलों को मिले।

2012 में, कांग्रेस 32 सीट 33.8 % वोट। भाजपा 31 सीट, 33.1 % वोट। बीएसपी 3 सीट 12.2 % वोट, निर्दलीय 3 सीट 12.3 % वोट और यूकेडी 1 सीट 1.9 % वोट। तो 26.4 % वोट अन्य दलों को मिले। यहां यूकेडी का वोट प्रतिशत कम हुआ जिसका फायदा भाजपा-कांग्रेस के वोट प्रतिशत को हुआ। यूकेडी अपना जनाधार बुरी तरह खोने लगी।

2017 के विधानसभा चुनाव के नतीजे पूरी तरह एकतरफा आए। भाजपा 57 सीटें 47.0 % वोट। कांग्रेस 11 सीटें 33.8 % वोट शेयर। निर्दलीय 2 सीटें 10.1% वोट।

कांग्रेस को 2012 में जितना वोट प्रतिशत मिला था, उतना ही 2017 के चुनाव में भी रहा। लेकिन यूकेडी और बीएसपी का सफाया हो गया और उनका वोट भाजपा को मिला।

वाम नेता समर भंडारी कहते हैं कि राज्य के शुरुआती चुनाव को देखें तो तीसरे पक्ष के पास बड़ा स्पेस था। लेकिन राज्य आंदोलन से निकली यूकेडी जैसी पार्टी की क्रेडेबिलिटी खत्म हुई है। आप और यूकेडी जैसी पार्टियां 70 सीटों पर सरकार बनाने के लिए चुनाव लड़ रही हैं जो कि ज़मीनी वास्तविकता के उलट है। हम तीसरे मोर्चे को लगातार संगठित करने की कोशिश कर रहे हैं। विपक्ष यदि विभाजित रहेगा तो विकल्प नहीं बना सकता।

 

चमोली में चुनाव प्रचार के दौरान अपनी हताशा बताते मतदाता, तस्वीर इंद्रेश मैखुरी के फेसबुक वॉल से

मतदाता का मन

चमोली में घर-घर प्रचार अभियान में जुटे इंद्रेश मैखुरी कहते हैं “राज्य में पार्टियों की उपलब्धियों के पुलंदे अपनी जगह हैं और लोगों की सामान्य सी समस्याएं अपनी जगह हैं। लोगों में एक हताशा-निराशा है कि हम वोट देते हैं तो हमें क्या मिलता है। हमारी स्थितियों में तो बदलाव नहीं हुआ”।

इंद्रेश कहते हैं “हमारे विधानसभा क्षेत्र में सड़कों की बहुत बुरी स्थिति है। स्वास्थ्य सुविधाओं का एक बड़ा सवाल है। सारे अस्पताल सिर्फ रेफरल सेंटर बने हुए हैं। कोविड के बाद भी बदलाव नहीं आया है। रोजगार प्रमुख सवाल है। पर्वतीय कृषि की हालत खराब है। जंगली जानवर सूअर, बंदर, बाघ, भालू के हमले भी लोगों के सवाल बने हुए हैं। हमने स्थायी नियमित रोजगार और पुरानी पेंशन का समर्थन किया है”।

वहीं, वाम नेता राजा बहुगुणा कहते हैं “उत्तराखंड सवर्ण बाहुल्य राज्य है। बीजेपी जैसी पार्टियों के लिए स्वाभाविक रूप से जगह बन जाती है। इसीलिए यहां दलित या अल्पसंख्यक समुदाय खुद को अलग-थलग पाता है। हमारी कोशिश है कि उत्तराखंड के दलित, शोषित, महिलाओं और बेरोजगारों का भी एक पॉलिटिकल प्लान बनना चाहिए”।

देहरादून से गीता गैरौला कहती हैं “वोट देते समय हम जुझारू लोगों को क्यों भूल जाते है? जब कहीं किसी मांग के लिए संघर्ष करना हो तभी हमें ये सब लोग याद आते हैं। आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं-आशा कार्यकर्ताओं के मुद्दे हों, कहीं ज़मीन हथियाने का मुद्दा हो तो लोग वामदलों के पास आते हैं कि वे उनकी लड़ाई लड़ें। इन्हें याद करने का वक्त अभी आया है”।

घोषणा पत्र “हम लड़ेंगे”

संयुक्त वाम मोर्चा ने अपने घोषणा पत्र “हम लड़ेंगे” में पर्वतीय राज्य के मुद्दों को वरीयता दी है। गैरसैंण स्थायी राजधानी। जल विद्युत परियोजनाओं और ऑल वेदर रोड जैसी त्रासदी जनक परियोजनाओं का विरोध और जनमुखी विकास का ब्लुप्रिंट बनाने वाले के लिए विधानसभा में दबाव बनाएंगे। शराब, खनन, भूमिफाया के वर्चस्व को समाप्त करने का दबाव। भू-संशोधन कानून रद्द। राज्य, जिला और अन्य संपर्क सड़कों का गुणवत्ता पूर्ण निर्माण। शिक्षक-कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाली के लिए। किसानों को एमएसपी पर फसल खरीद की गारंटी के लिए कानून बनवाने। सबको शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अधिकार और महंगाई-भ्रष्टाचार के विरद्ध संघर्ष के लिए लड़ने का वादा शामिल है।

इन वादों के साथ संयुक्त वाम मोर्चा विधानसभा में मज़बूत विपक्ष बनाने के लिए चुनाव मैदान में है। 

(वर्षा सिंह देहरादून स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

Left politics
Uttrakhand
uttrakhand government

Related Stories

उत्तराखंड विधानसभा चुनाव परिणाम: हिंदुत्व की लहर या विपक्ष का ढीलापन?

उत्तराखंड में बीजेपी को बहुमत लेकिन मुख्यमंत्री धामी नहीं बचा सके अपनी सीट

EXIT POLL: बिग मीडिया से उलट तस्वीर दिखा रहे हैं स्मॉल मीडिया-सोशल मीडिया

उत्तराखंड चुनाव: एक विश्लेषण: बहुत आसान नहीं रहा चुनाव, भाजपा-कांग्रेस में कांटे की टक्कर

उत्तराखंड चुनाव: भाजपा के घोषणा पत्र में लव-लैंड जिहाद का मुद्दा तो कांग्रेस में सत्ता से दूर रहने की टीस

बजट 2022: क्या मिला चुनावी राज्यों को, क्यों खुश नहीं हैं आम जन


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल
    02 Jun 2022
    साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद भी एलजीबीटी कम्युनिटी के लोग देश में भेदभाव का सामना करते हैं, उन्हें एॉब्नार्मल माना जाता है। ऐसे में एक लेस्बियन कपल को एक साथ रहने की अनुमति…
  • समृद्धि साकुनिया
    कैसे चक्रवात 'असानी' ने बरपाया कहर और सालाना बाढ़ ने क्यों तबाह किया असम को
    02 Jun 2022
    'असानी' चक्रवात आने की संभावना आगामी मानसून में बतायी जा रही थी। लेकिन चक्रवात की वजह से खतरनाक किस्म की बाढ़ मानसून से पहले ही आ गयी। तकरीबन पांच लाख इस बाढ़ के शिकार बने। इनमें हरेक पांचवां पीड़ित एक…
  • बिजयानी मिश्रा
    2019 में हुआ हैदराबाद का एनकाउंटर और पुलिसिया ताक़त की मनमानी
    02 Jun 2022
    पुलिस एनकाउंटरों को रोकने के लिए हमें पुलिस द्वारा किए जाने वाले व्यवहार में बदलाव लाना होगा। इस तरह की हत्याएं न्याय और समता के अधिकार को ख़त्म कर सकती हैं और इनसे आपात ढंग से निपटने की ज़रूरत है।
  • रवि शंकर दुबे
    गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?
    02 Jun 2022
    गुजरात में पाटीदार समाज के बड़े नेता हार्दिक पटेल ने भाजपा का दामन थाम लिया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले चुनावों में पाटीदार किसका साथ देते हैं।
  • सरोजिनी बिष्ट
    उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा
    02 Jun 2022
    "अब हमें नियुक्ति दो या मुक्ति दो " ऐसा कहने वाले ये आरक्षित वर्ग के वे 6800 अभ्यर्थी हैं जिनका नाम शिक्षक चयन सूची में आ चुका है, बस अब जरूरी है तो इतना कि इन्हे जिला अवंटित कर इनकी नियुक्ति कर दी…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License