NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
वैवाहिक बलात्कार और भारतीय कानून
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 17 जुलाई को सुनवाई के दौरान कहा कि विवाह का यह मतलब नहीं कि पत्नी हमेशा शारीरिक संम्बंधो के लिए तैयार होI
मुकुंद झा
19 Jul 2018
marital rape

दिल्ली उच्च न्यायालय ने 17 जुलाई को अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति (एडवा) और रीट फाउंडेशन की जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान कहा कि विवाह का मतलब यह नहीं है कि एक महिला हमेशा अपने पति के साथ शारीरिक संबंधों के लिए सहमति दे और बलात्कार जैसे अपराध करने के लिए किसी प्रकार के शारीरिक बल ज़रूरी नहीं है| 

दिल्ली उच्च न्यायालय में एडवा और रीट फाउंडेशन ने अलग–अलग  जनहित याचिका दायर की थीं| जिसमें उन महिलाओं के लिए लड़ाई की बात कही गई है जहाँ महिलाओं को शादी के बाद उनकी मर्ज़ी के बिना पुरुष सम्बन्ध बनाते हैं और महिला को इसका विरोध करने का कोई हक़ नहीं है| इसी मसले पर  न्यायालय सुनवाई कर रहा है|

वैवाहिक बलात्कार महिलाओं के लिए क्यों है अभिशाप

एडवा एक वामपंथी  महिला संगठन है जो लोकतंत्र, समानता और महिलाओं की मुक्ति के लिए समाज में कार्य करता है। इन्होंने अपनी याचिका में कहा है कि मौजूदा कानून विवाहित महिलाओं को अपने पति के खिलाफ़ बलात्कार जैसे अपराध के लिए कानूनी लड़ाई लड़ने से वंचित करता हैI वैवाहिक बलात्कार अपराध संविधान के अनुच्छेद 14, 15(1) और 21 का उल्लंघन करता है।

वैवाहिक बलात्कार अपवाद संविधान के  अनुच्छेद 14 के खिलाफ़ है जिसमें कानून के सामने समानता का अधिकार दिया गया हैI यह अनुच्छेद 15(1) में लिंग के आधार पर भेदभाव न किये जाने के अधिकार का भी उल्लंघन करता हैI यह अपवाद संविधान के अनुच्छेद 21 का भी उल्लंघन करता है जिसमें कहा गया है कि राज्य का दायित्व है कि वह एक उचित कानूनी तंत्र के माध्यम से नागरिकों (जिसमें विवाहित महिलाएँ भी शामिल हैं) के जीवन और शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य सुनिश्चित करेगा।

वैवाहिक बलात्कार अपवाद अधिनियम का इतिहास 

वैवाहिक बलात्कार अपवाद अधिनियम 1860 में भारतीय दंड संहिता के साथ ही लागू किया गया थाI यह प्राचीन ब्रिटिश नैतिकता की ही एक उपज है जिसके मुताबिक शादी के समय ही एक महिला अपने पति को वांछित यौन संभोग के लिए हमेशा के लिए सहमति दे देती है। 18वीं शताब्दी के ब्रिटिश न्यायवादी सर मैथ्यू हैले ने लिखा था कि "एक पत्नी ने खुद को अपने पति को इस तरह सौंप दिया है कि वह खुद को वापस नहीं ले सकती है।"

इंग्लैंड में उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध तक विवाह के मुताबिक, कानून के तहत, एक  अविवाहित महिला को संपत्ति रखने का अधिकार था और अपने नाम पर अनुबंध कर सकती थी परन्तु  विवाह के माध्यम से एक महिला का अस्तित्व उसके पति में शामिल किया गया था, ताकि उसे अपने स्वयं के व्यक्तिगत अधिकार बहुत कम प्राप्त हों। उदाहरण के लिए एक विवाहित महिला संपत्ति की  मालिक नहीं हो सकती थी, कानूनी दस्तावेजों पर हस्ताक्षर नहीं कर सकती थी या अनुबंध (कॉन्ट्रैक्ट) का हिस्सा नहीं हो सकती थी, अपने पति की इच्छाओं के खिलाफ शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकती थी या खुद के लिए वेतन नहीं रख सकती थी। अगर पत्नी को काम करने की इजाज़त दी गई तो पति-आश्रय  के नियमों के तहत उसे अपने पति को अपनी मज़दूरी देनी पड़ती थी। यह स्थिति 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध तक जारी रही फिर विवाहित महिलाओं की संपत्ति और कार्य को लेकर कई  कानूनी क्षेत्राधिकारों में नियम बनने  लगे और सुधारों के लिए मंच स्थापित हुआI विवाहित महिलाओं के अधिकारों को उनके  पतियों से अलग किया गया  है।

एडवा का कहना है  कि यह अपवाद स्वतंत्रता आंदोलन के चरित्र से भी मेल नहीं खाता जहाँ महिलाओं ने महत्वपूर्ण सार्वजनिक भूमिका निभाईI साथ ही साथ संविधान के साथ भी धोखा है जो सभी के लिए समान सम्मान और चिंता के आधार पर बना है। एडवा के अनुसार संविधान वैवाहिक संघ को कोई ऐसी विशेष पवित्रता प्रदान देता कि किसी को  आपराधिक और दंड कानूनों के सामान्य संचालन से अलग रखा जा सकेI तो फिर यह विशेष छूट क्यों? 

याचिकाकर्ता ने माननीय न्यायालय से संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत महिलाओं के इस कमज़ोर वर्ग की रक्षा के लिए अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने के लिए कहा है। याचिकाकर्ता स्पष्ट करता है कि वह माननीय न्यायालय से राज्य को कानून बनाने या नए अपराध कानून बनाने के लिए नहीं कह रहा है बल्कि केवल मौजूदा दंड प्रावधान और इसके साथ-साथ कानूनी व्याख्यानों (इंटरपेटीशन) को अमान्य करने का अनुरोध कर रहे हैं जो संविधान के अनुच्छेद 14,15,19 और 21 की भावना का विरोध करता हैI

पिछले तीन दशकों में, पूरी दुनिया में वैवाहिक बलात्कार अपवाद उदार और संवैधानिक लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों के साथ असंगत माना जा रहा हैI यह मानव गरिमा, शारीरिक सुरक्षा और व्यक्तिगत आत्मनिर्भरता के सिद्धांत के आधार पर किया जा रहा है। लिंग समानता और समान सम्मान 1993 में, मानव अधिकारों के संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त ने पाया कि वैवाहिक बलात्कार एक मानवाधिकार उल्लंघन है। यह संयुक्त राष्ट्र का निरंतर रुख रहा है।

ऑस्ट्रेलिया, आयरलैंड, बेल्जियम जैसे विभिन्न कानूनी परंपराओं के साथ , नीदरलैंड, कोलंबिया, चिली, नामीबिया, जिम्बाब्वे और दक्षिण अफ्रीका सभी देशो में वैवाहिक बलात्कार को बलात्कार की श्रेणी में रखा गया है|

एडवा के मुताबिक जब ये देश वैवाहिक बलात्कार को अपराधी बनाने पर विचार कर रहे थे तब वहाँ भी आपत्तियाँ उठाई गयीं कि इस तरह के कदम से परिवार का "टूट" सकता है। यहा हम कहना चाहते हैं कि समय बीतने से इस तरह के भय पूरी तरह से आधारहीन साबित हुए। वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण और परिवार के "टूटने" के बीच कोई सम्बन्ध नहीं है|

रिट फाउंडेशन अपनी स्थापना के बाद से समाज के वंचित वर्गों के लिए सक्रिय कानूनी सहायता शिविर आयोजित करता है। रीट फाउंडेशन  की एक कार्यकर्ता ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि उन्होंने “अपनी याचिका में न्यायालय से यही माँग की है कि समाज की आधी आबादी के साथ आज भी शोषण होता है उसे उसका विरोध करने का भी अधिकार नहीं है| शादी के नाम पर कई बार उनकी इच्छा के विपरीत जाकर जबरन यौन सम्बंध बनाने के लिए मज़बूर किया जाता है| यह एक प्रकार का हिंसा है परन्तु इसे पुरुष अपना समाजिक अधिकार मानते हैं और महिला को अपनी संपति समझ कर व्यवहार करते हैं| यही हमारे समाज की हक़ीकत है इसी को रोकने और उस महिला के अधिकार के लिए हम एक क़ानूनी सुरक्षा की माँग को लेकर न्यायलय में आए हैं|  इस प्रकार के कानून दुनिया के कई अन्य देशो में बने हैं अब समय है कि भारत भी अपनी आधी आबादी से न्याय करे|”

अफ़सोस है कि आज भी ऐसे लोग व संस्थाएँ मौजूद हैं जो विवाहित महिलाओं के इस अधिकार के खिलाफ़ खड़े हैंI कोलकाता स्थित एनजीओ हृदय ने वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाने की याचिका का विरोध किया था और कहा था कि जब कोई व्यक्ति विवाह संस्था में प्रवेश करता है तो शारीरिक संबंधों की सहमति हर समय होती है।

एक महिला कार्यकर्ता ने कहा की न्यायलय की सुनवाई से उम्मीद जगी है कि जल्द ही विवाहित महिलाओं को भी एक स्वतंत्र और सुरिक्षित जीवन ज़ीने का अधिकार मिल सकेगा|

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और सी हरि शंकर की एक पीठ ने कहा कि वैवाहिक संबंध में पुरुष और महिला दोनों को शारीरिक संबंधों बनाने के लिए मना करने का अधिकार है। इस मामले की सुनवाई की अगली तारीख 8 अगस्त हैI  

Marital Rape
rape
वैवाहिक बलात्कार
बलात्कार
विवाह
भारतीय कानून

Related Stories

मैरिटल रेप : दिल्ली हाई कोर्ट के बंटे हुए फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती, क्या अब ख़त्म होगा न्याय का इंतज़ार!

मैरिटल रेप को अपराध मानने की ज़रूरत क्यों?

पिता के यौन शोषण का शिकार हुई बिटिया, शुरुआत में पुलिस ने नहीं की कोई मदद, ख़ुद बनाना पड़ा वीडियो

पत्नी नहीं है पति के अधीन, मैरिटल रेप समानता के अधिकार के ख़िलाफ़

बिहार शेल्टर होम कांड-2’: मामले को रफ़ा-दफ़ा करता प्रशासन, हाईकोर्ट ने लिया स्वतः संज्ञान

बिहार शेल्टर होम कांड-2: युवती ने अधीक्षिका पर लगाए गंभीर आरोप, कहा- होता है गंदा काम

दिल्ली गैंगरेप: निर्भया कांड के 9 साल बाद भी नहीं बदली राजधानी में महिला सुरक्षा की तस्वीर

मैरिटल रेप: घरेलू मसले से ज़्यादा एक जघन्य अपराध है, जिसकी अब तक कोई सज़ा नहीं

मैरिटल रेप को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट सख्त, क्या अब ख़त्म होगा महिलाओं का संघर्ष?

शादी की क़ानूनी उम्र बदलने से लड़कियों की ज़िंदगी पर क्या असर होगा?


बाकी खबरें

  • sedition
    भाषा
    सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह मामलों की कार्यवाही पर लगाई रोक, नई FIR दर्ज नहीं करने का आदेश
    11 May 2022
    पीठ ने कहा कि राजद्रोह के आरोप से संबंधित सभी लंबित मामले, अपील और कार्यवाही को स्थगित रखा जाना चाहिए। अदालतों द्वारा आरोपियों को दी गई राहत जारी रहेगी। उसने आगे कहा कि प्रावधान की वैधता को चुनौती…
  • बिहार मिड-डे-मीलः सरकार का सुधार केवल काग़ज़ों पर, हक़ से महरूम ग़रीब बच्चे
    एम.ओबैद
    बिहार मिड-डे-मीलः सरकार का सुधार केवल काग़ज़ों पर, हक़ से महरूम ग़रीब बच्चे
    11 May 2022
    "ख़ासकर बिहार में बड़ी संख्या में वैसे बच्चे जाते हैं जिनके घरों में खाना उपलब्ध नहीं होता है। उनके लिए कम से कम एक वक्त के खाने का स्कूल ही आसरा है। लेकिन उन्हें ये भी न मिलना बिहार सरकार की विफलता…
  • मार्को फ़र्नांडीज़
    लैटिन अमेरिका को क्यों एक नई विश्व व्यवस्था की ज़रूरत है?
    11 May 2022
    दुनिया यूक्रेन में युद्ध का अंत देखना चाहती है। हालाँकि, नाटो देश यूक्रेन को हथियारों की खेप बढ़ाकर युद्ध को लम्बा खींचना चाहते हैं और इस घोषणा के साथ कि वे "रूस को कमजोर" बनाना चाहते हैं। यूक्रेन
  • assad
    एम. के. भद्रकुमार
    असद ने फिर सीरिया के ईरान से रिश्तों की नई शुरुआत की
    11 May 2022
    राष्ट्रपति बशर अल-असद का यह तेहरान दौरा इस बात का संकेत है कि ईरान, सीरिया की भविष्य की रणनीति का मुख्य आधार बना हुआ है।
  • रवि शंकर दुबे
    इप्टा की सांस्कृतिक यात्रा यूपी में: कबीर और भारतेंदु से लेकर बिस्मिल्लाह तक के आंगन से इकट्ठा की मिट्टी
    11 May 2022
    इप्टा की ढाई आखर प्रेम की सांस्कृतिक यात्रा उत्तर प्रदेश पहुंच चुकी है। प्रदेश के अलग-अलग शहरों में गीतों, नाटकों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का मंचन किया जा रहा है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License